आज का दौर आंकड़ों का दौर है .वो आंकड़े ही हैं जो सूचनाओं से ज्यादा पुष्ट हैं और इसीलिये जीवन के हर क्षेत्र में इनका महत्त्व बढ़ता जा रहा है .समय बदला और तकनीक भी .भारत इस वक्त चीन के बाद दूसरे नम्बर का स्मार्ट फोन धारक देश है और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है जिसने सोशल मीडिया के प्रयोग को काफी बढ़ावा दिया है .सोशल मीडिया पर होना एक तरह से समाज में आपकी स्वीकार्यता को बढ़ावा देता है .समाज में किसी की हैसियत सोशल मीडिया में उसके फोलोवर से तय की जाने लगी है .सोशल मीडिया पर आने से जिस तथ्य को हम नजरंदाज करते हैं वह है हमारी निजता का मुद्दा और हमारे दी जाने वाली जानकारी.जब भी हम किसी सोशल मीडिया से जुड़ते हैं हम अपना नाम पता फोन नम्बर ई मेल उस कम्पनी को दे देते है.असल समस्या यहीं से शुरू होती है . इस तरह देश के सभी नागरिकों का आंकड़ा संग्रहण कर लिया गया .उधर इंटरनेट के फैलाव के साथ आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण हो उठें .लोगों के बारे में सम्पूर्ण जानकारियां को एकत्र करके बेचा जाना एक व्यवसाय बन चुका है और इनकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए लोग तैयार बैठे हैं .कई बार एक गलती किसी कंपनी की उस लोकप्रियता पर भारी पड़ जाती है जो उसने एक लंबे समय में अर्जित की होती है. पिछले साल पहले कैंब्रिज एनालिटिका मामला सोशल नेटवर्किंग साईट फेसबुक के लिए ऐसा ही रहा. इस कंपनी पर आरोप है कि इसने अवैध तरीके से फेसबुक के करोड़ों यूजरों का डेटा हासिल किया और इस जानकारी का इस्तेमाल अलग-अलग देशों के चुनावों को प्रभावित करने में किया. इनमें 2016 में हुआ अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव भी शामिल है. इस काण्ड के सामने आने के बाद फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा है कि उनकी कंपनी ग्राहकों की निजता को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है ऐसा प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जा रहा है, ताकि फेसबुक समेत उसके सहयोगी प्लेटफॉर्म मेसेंजर, वॉट्स एप और इंस्टाग्राम पर लोगों द्वारा की जा रही बात गोपनीय रहे और यूजर्स का डाटा सिक्योर रहे.इस मामले ने फेसबुक की विश्वसनीयता को भी काफी गंभीर नुकसान पहुंचाया. कंपनी के प्रमुख मार्क जुकरबर्ग को बार –बार सफाई देनी पड़ीं.विभिन्न रिपोर्ट्स के मुताबिक़ विवाद सामने आने के दस दिन के अंदर कंपनी को 9,000 करोड़ डॉलर (5,82,615 करोड़ रुपये) का नुक़सान हो गया, अमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने जांच बिठा दी और अमेरिकी सीनेट ने डेटा सुरक्षा के मुद्दे पर मार्क जुकरबर्ग को गवाही देने के लिए बुला लिया था.
किसी भी ऑनलाइन कम्पनी का विज्ञापन कारोबार तभी तेजी से बढेगा जब उसके पास ग्राहकों की गोपनीय जानकारी हो जिससे वह उनके शौक रूचि आदतों के हिसाब से विज्ञापन दिखा सकेगी वहीं साईबर अपराधियों की निगाह भी ऐसे आंकड़ों पर रहती है,पर ऐसी घटनाएँ न हों और अगर हों तो दोषियों पर कड़ी दंडात्मक कार्यवाही हो ऐसा कोई भी प्रावधान अभी तक भारतीय संविधान मे नहीं किया गया है .अभी तक ऐसे किसी मामले को निजता के अधिकार के हनन के तहत देखा जाता है .नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है. किसी नागरिक की आधार सूचना हो या कोई अन्य किस्म की डिजीटल सूचना- उन पर सेंध लगाने की कोशिश अंततः नागरिक गरिमा ही नहीं, राष्ट्रीय संप्रभुता को भी ठेस पहुंचाएगी. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी एन श्री कृष्णा की अध्यक्षता में गठित समिति ने पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन बिल का ड्राफ्ट बिल सरकार को सौंप दिया है .इस बिल में “निजी” शब्द को परिभाषित किया गया है.इसके अतिरिक्त इसमें सम्वेदनशील निजी डाटा को बारह भागों में विभाजित किया गया है.जिसमें पासवर्ड,वित्तीय डाटा,स्वास्थ्य डाटा,अधिकारिक नियोक्ता,सेक्स जीवन,जाति/जनजाति,धार्मिक ,राजनैतिक संबद्धता जैसे क्षेत्र जोड़े गए हैं.इस बिल को अगर संसद बगैर किसी संशोधन के पास कर देती है तो देश के प्रत्येक नागरिक को अपने डाटा पर चार तरह के अधिकार मिल जायेंगे .जिनमें पुष्टिकरण और पहुँच का अधिकार, डाटा को सही करने का अधिकार, डाटा पोर्टेबिलिटी और डाटा को बिसरा देने जैसे अधिकार शामिल हैं .इस समिति की रिपोर्ट के अनुसार यदि इस बिल का कहीं उल्लंघन होता है तो सभी कम्पनियों और सरकार को स्पष्ट रूप से उन व्यक्तियों को सूचित करना होगा जिनके डाटा की चोरी या लीक हुई है कि चोरी या लीक हुए डाटा की प्रकृति क्या है ,उससे कितने लोग प्रभावित होंगे ,उस चोरी या लीक के क्या परिणाम हो सकते हैं और प्रभावित लोग जिनके डाटा चोरी या लीक हुए हैं वे क्या करें .ऐसी स्थिति में जिस व्यक्ति का डाटा चोरी या लीक हुआ है वह उस कम्पनी से क्षतिपूर्ति की मांग भी कर सकता है .फिलहाल यह बिल संसद की मंजूरी के इन्तजार में है,लेकिन सिर्फ़ कानून के बन जाने से सबकुछ ठीक हो जाए, ऐसा संभव नहीं है. इसके लिए लोगों को भी जागरूक होना होगा. इस कानून का उद्देश्य आम लोगों को यह जानकारी देना है कि आपका डाटा कौन ले रहा है और उसका इस्तेमाल कौन कर रहा है.क़ानून के तहत लोगों का निजी डेटा केवल पहले से बताए गए उद्देश्यों के लिए किया जा सकेगा. कंपनियों को यह बताना होगा कि वो डेटा की जानकारी कैसे और क्यों ले रहे हैं. कंपनियों को यूज़र्स का डेटा सुरक्षित करने की ज़रूरत है और अगर उनका डेटा लीक होता है तो उन्हें बताना होगा कि यह उनके लिए कितना ख़तरनाक हो सकता है.भारत ने इस दिशा में काफी देर से ही एक सार्थक कदम उठाया है .इसके साथ ही लोगों को भी सोशल मीडिया के प्रयोग करते वक्त सावधानी बरतनी होगी कि उन्हें कितनी जानकारी लोगों को देनी है .वक्त बे वक्त चेक इन्स की जानकारी हो या घर से दूर छुट्टियाँ मनाने का मामला ,हमें यह बात हमेशा जहन में रखनी होगी इंटरनेट पर कुछ भी गोपनीय नहीं है .
आई नेक्स्ट /दैनिक जागरण में 05/07/2019 को प्रकाशित
4 comments:
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्मदिवस - मैथिलीशरण गुप्त और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
आपने सही कहा अंत में यह सेवा इस्तेमाल करने वाले की ही जिम्मेदारी है कि उन्हें किस तरह से अपनी निजता को बचाकर रखना है। हमे सजग रहना होगा और इस बात का ख्याल रखना होगा कि हर जानकारी सोशल मीडिया में साझा करने वाली नहीं होती।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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