Wednesday, August 21, 2019

फोटो और वीडियो से भरी नेट की दुनिया चाहे चेंज



स्मार्ट फोन ने देश में इंटरनेट प्रयोग के मानक जरूर बदले हैं पर वहां भी वीडियो और तस्वीरों की ही सामाज्य  है . इसमें यू-ट्यूब और फेसबुक लाइव जैसे फीचर बहुत लोकप्रिय हुए हैं. जिसका नतीजा अक्सर  इंटरनेट को वीडियो का ही माध्यम समझ लिया जाता है और आवाज  को नजरंदाज कर दियागया है। भारत में अगर आप अपने विचार अपनी आवाज के माध्यम से लोगों तक पहुंचाना चाहते हैंतो आपको इंटरनेट पर खासी मेहनत करनी पड़ेगी। व्यवसाय के रूप में जहां इन्स्टाग्राम  वीडियो,फेसबुक वाच यू-ट्यूब के सैकड़ों वीडियो चैनल देश में काफी लोकप्रिय हैंवहीं आवाज  का माध्यम अभी भी जड़ें जमा नहीं पाया हैजबकि बाकी दुनिया में इंटरनेट पर ऑडियो का चलन जिसे पोडकास्ट कहा जाता है , काफी तेजी से बढ़ रहा है।इंटरनेट पर ऑडियो फाइल को साझा  करना पॉडकास्ट के नाम से जानाजाता है। पॉडकास्ट दो शब्दों के मिलन  से  बना हैजिसमें पहला हैं प्लेयेबल ऑन डिमांड (पॉड) और दूसरा ब्रॉडकास्ट । नीमन लैब के एक शोध  के अनुसारवर्ष 2016 में अमेरिका में पॉडकास्ट (इंटरनेट पर ध्वनि के माध्यम से विचार या सूचना देना) के प्रयोगकर्ताओं यानी श्रोताओं की संख्या में काफी  तेजी से वृद्धि हुई  है. जिसके  वर्ष 2020 तक लगातार पच्चीस  प्रतिशत की दर से वृद्धि करने की उम्मीद है। इस वृद्धि दर से वर्ष 2020 तक पॉडकास्टिंग से होने वाली आमदनी पांच सौ मिलियन डॉलर के करीब पहुंच जाएगी। पॉडकास्टिंग की शुरुआत हालांकि एक छोटे माध्यम के रूप में हुई थीपर अब यह एक संपूर्ण डिजिटल उद्योग का रूप धारण करता जा रहा है। अमेरिका की सबसे बड़ी पॉडकास्टिंग कंपनी एनपीआर की सालाना आमदनी लगभग दस मिलियन डॉलर के करीब है.
भारत में पॉडकास्टिंग के जड़ें न जमा पाने के कारण हैं ध्वनि के रूप में सिर्फ फिल्मी गाने सुनने की परंपरा  और श्रव्य की अन्य विधाओं से परिचित ही नहीं हो पाना रहा है ।देश में आवाज के माध्यम के रूप में रेडियो ने टीवी के आगमन से पहले अपनी जड़ें जमा ली थीं पर भारत में रेडियो सिर्फ म्यूजिक रेडियो का पर्याय बनकर रह गया और टाक रेडियो में बदल नहीं पाया है . तथ्य यह भी है कि सांस्कृतिक रूप से एक आम भारतीय का सामाजीकरण  सिर्फ फ़िल्मी गाने और क्रिकेट कमेंट्री सुनते हुए होता है जिसकी परम्परा पारंपरिक रेडियो से शुरू होकर निजी ऍफ़ एम् स्टेशन होते हुए इंटरनेट की दुनिया तक पहुँची है .
निजी ऍफ़ एम् प्रसारण के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि यह परिद्रश्य बदलेगा जैसे निजी टेलीविजन समाचार चैनलों के आने से देश में समाचारों को परोसने का तरीका एकदम से बदल गया पर निजी ऍफ़ एम् स्टेशन पर समाचारों की रोक के कारण एकबार फिर देश म्यूजिक रेडियो की राह पर निकल पड़ा ,जहाँ दिन रात संगीत परोसा जा रहा है और विचारों की कहीं कोई जगह नहीं है .जबकि पॉडकास्टिंग को मीडिया के श्रव्य विकल्प के रूप में देखने की आवश्यकता है. भारत जैसे देशों मेंजहां इंटरनेट की स्पीड काफी धीमी होती हैवीडियो के मुकाबले पॉडकास्टिंग ज्यादा कामयाब हो सकतीहै।उल्लेखनीय है कि इंटरनेट पर ध्वनि रूप में अपने विचार प्रसारित करने की कोई रोक नहीं है पर फिर भी ज्यादातर निजी ऍफ़ एम् स्टेशन विभिन्न सोशल मीडिया प्लेट फॉर्म पर या तो गाने सुना रहे हैं या फिर मजाकिया वीडियो बनाकर अपना श्रोता आधार बढ़ा रहे हैं . सरकार ने सिर्फ रेडियो समाचारों के प्रसारणों पर रोक लगाई है आप जो रेडियो पर नहीं कह पा रहे हैं तो उसके लिए  इंटरनेट   को जरिया बनाया जा सकता है पर यहाँ  एक खतरा है .इंटरनेट  पर कुछ कहने के लिए विचार होने चाहिए और निजी एफएम के  रेडियो जॉकी या तो विचार शून्यता  के  शिकार हैं या  वे यथास्थिति से संतुष्ट हैं .तर्क यह भी दिया जाता है कि निजी रेडियो संस्थान किसी भी मुद्दे पर अपने फेसबुक पेज से किसी वैचारिक विमर्श की इजाजत नहीं देते  हैं . पोडकास्ट किसी भी विचार या विषय पर किया जा सकता है जो राजनीति से लेकर खेल और कारोबार से लेकर फैशन जैसे अनगिनत मुद्दों से जुड़ा हो सकता है.भारत जैसे भाषाई विविधता वाले देश में जहाँ निरक्षरता अभी भी मौजूद है . पॉडकास्ट लोगों तक उनकी ही भाषा में संचार करने का एक सस्ता और आसान विकल्प हो सकता है .प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात कार्यक्रम का पॉडकास्ट काफी लोकप्रिय है . पॉडकास्ट की सबसे बड़ी खूबी है इसकी ग्लोबल रीच यानि अगर आप कुछ ऐसा सुना रहे हैं जो लोग सुनने चाहते हैं तो किसी चैनल के लोकप्रिय होते देर नहीं लगेगी .
इस वक्त भारत में दो प्रमुख पॉडकास्ट सेवाएं नियमित रूप से प्रसारित की जा रही हैंजिनमें इंडसवॉक्स और ऑडियोमैटिक काफी लोकप्रिय हैंपर ये भारतीय भाषाओं में नहीं हैं। ऑडियोमैटिक ने अपनी शुरुआत के एक साल में एक लाख नियमित श्रोता जुटा लिए हैं। इंडसवॉक्स म्यूजिक स्ट्रीमिंग साइट सावन  पर उपलब्ध है। स्मार्टफोन की उपलब्धता के अनुपात में इनके श्रोता अभी काफी कम हैं। भारत के सन्दर्भ  में एक बात तय मानी जाती है कि पॉडकास्टिंग यहां विज्ञापन आधारित ही होगी। कुछ भी मनपसंद सुनने के लिए पैसे खर्च करने की परंपरा देश में फिलहाल  नहीं है. इन कंपनियों के लिए पॉडकास्टिंग एक ज्यादा अच्छा विकल्प हो सकती है। गूगल ने भारत में पॉडकास्ट में संभावनाएं देखते हुए पॉडकास्ट क्रियेटर प्रोग्राम शुरू किया है जिसमें चुने हुए लोगों को पॉडकास्ट की आवश्यक ट्रेनिंग के अलावा वित्तीय मदद भी दी जायेगी .पिछले साल गूगल ने अपना एंडरायड एप भी प्ले स्टोर पर लांच किया है .भारत जैसे देश में ध्वनि  व्यवसाय के लिएसंभावनाएं कितनी हैंइसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि देश में भले ध्वनि समाचारों के लिए आकाशवाणी का एकाधिकार है .सरकार इस एकाधिकार को निकट भविष्य में प्राइवेट रेडियो ऍफ़ एम् के साथ साझा करने के मूड में नहीं दिखती ऐसे में रेडियो का विचार क्षेत्र व्यवसाय के रूप में एकदमखाली पड़ा है .पॉडकास्ट उस खालीपन को भरकर देश के ध्वनि उद्योग में क्रांति कर सकता है और रेडियो संचारकों को अपनी बात नए तरीके से कहने का विकल्प दे सकती है .
दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 21/08/19 को प्रकाशित 



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