Monday, May 31, 2021

डिजीटल सेवाओं के लिए सुविधा शुल्क

 


दुनिया को जोड़ने वाला, इंटरनेट। एक क्लिक पर हमारे हर सवाल के तमाम जवाब देने वाला, इंटरनेट। घर बैठे शॉपिंग और फिर घर बैठे ही डिलीवरी करने वाला, इंटरनेट। आम हो या ख़ास सबकी एक जरुरी जरुरत सा बन चुका है इंटरनेट इतनी खूबियों वाले इंटरनेट का फायदा उठाने के लिए एक अदद कम्प्यूटर या मोबाईल के साथ जिस चीज की जरुरत होती है वो है एक सर्च इंजन| सारी दुनिया में आज खोज का पर्याय बन चुकी कम्पनी का नाम है गूगल | गूगल इंटरनेट का प्रवेश द्वार है और खोज-विज्ञापन के बाजार में यह विशालकाय है।शुरुआत में इंटरनेट पर उपलब्ध लगभग हर सेवा मुफ्त में ही मिलती थी फिर धीरे –धीरे इंटरनेट पर उपलब्ध कई सेवाओं की खिड़कियाँ मुफ्त के लिए बंद होने लगीं पर ज्यादातर ये मुफ्त सेवाएँ विशेसीकृत सेवाओं की थी जैसे नौकरी ढूँढना या फिर अपने लिए जीवन साथी की तलाश आदि पर गूगल की सेवाएँ सब मुफ्त ही रहीं |इस बीच गूगल लगातार हमारे जीवन में घुसपैठ बढाता रहा सर्च इंजन से शुरू हुआ सफर ई मेल फोटो वीडियो और न जाने कितनी सेवाओं को जोड़कर हमारे जीवन को आसान करता रहा | यदि उपभोक्ताओं को डिस्काउंट और बहुत कुछ फ्री मिल रहा है तो उन्हें चिंता क्यों करनी चाहिए? इसको समझने के लिए जरूरी है कि 2016 में भारत में एक फोन कम्पनी  ने फॉर जी सेवा शुरू की जिसमें उपभोक्ताओं को करीब एक वर्ष तक इंटरनेट और कॉलिंग की मुफ्त सेवाएं दी गई। परिणाम यह हुआ कि एक समय 15 से ज्यादा टेलीकॉम कंपनियां भारत में सेवाएं दे रही थी, अब महज तीन बची हैं। अब तीनों कंपनियां अपनी दरें बढ़ा रही हैं। बाजार से प्रतिस्पर्धा काफी हद तक खत्म हो गई है।

इंटरनेट के व्यवसाय का ढांचा भी बदल रहा है जो अब सिर्फ विज्ञापन आधारित न होकर सेवाओं के सब्सक्रिप्शन शुल्क के रूप में अपना विस्तार कर रहा है इसी कड़ी में गूगल ने आगामी एक जून से अपनी गूगल फोटो  मुफ्त क्लाउड स्टोरेज सर्विस बंद करने का फैसला किया है । अब गूगल  की ओर से गूगल  फोटो के क्लाउट स्टोरेज के लिए शुल्क वसूला जाएगा। इसका यह मतलब हुआ कि अगर आप गूगल  ड्राइव या फिर किसी अन्य जगह अपनी फोटो और डेटा को पंद्रह जी बी से ज्यादा  स्टोर करते हैं, तो इसके लिए आपको चार्ज देना होगा।  जो उन्हें प्रतिमाह के हिसाब से 1.99 डॉलर (146 रुपये) पड़ेगा । गूगल  की तरफ से इसे गूगल वन  नाम दिया गया है। जिसका वार्षिक सब्सक्रिप्शन शुल्क  19.99 डॉलर (करीब 1464 रुपये) है। इस तरह का शुल्क जी मेल में पहले से ही लागू है जिसमें कोई भी जी मेल उपभोक्ता सिर्फ पंद्रह जी बी तक का मेल स्टोरेज मुफ्त हासिल कर सकता है इससे ज्यादा के लिए उसे शुल्क देना होगा |
यानि भारत में इंटरनेट समय का एक चक्र पूरा कर चुका है और इस इंटरनेट पर कुछ कम्पनियों का एकाधिकार है बीच में चीन की कुछ कम्पनियों ने भारत में पहले से स्थापित गूगल जैसी कम्पनियों को चुनौती देने की शुरुआत जरुर की पर राजनैतिक वजहों से उन कम्पनियों को देश से बाहर जाना पड़ा |दुनिया में दूसरे स्थान पर इंटरनेट उपभोक्ताओं वाला देश ऐसी कोई स्वदेशी कम्पनी विकसित नहीं कर पाया नतीजा गूगल जैसी कम्पनियों का एकाधिकार जो अब हमारे जीवन का अंग बन गयीं हैं | कंपनी मुनाफा बढ़ाने के लिए ऑनलाइन सर्च कारोबार में अपने प्रभुत्व दुरुपयोग कर रही है। गूगल की मूल कंपनी एल्फाबेट इंक है और इसका बाजार मूल्य 1,000 अरब डॉलर से अधिक है। आज गूगल से टक्कर लेना इसलिए भी आसान नहीं है, क्योंकि उसने सर्च के मामले में अपना एकाधिकार बना रखा  है. गूगल ब्यानबे प्रतिशत सर्च को नियंत्रित  करता है, जो कि उसके सबसे बड़े प्रतिस्पर्धी माइक्रोसॉफ्ट बिंग ढाई प्रतिशत  से बहुत ज्यादा है|फिलहाल गूगल की आय का सबसे बड़ा स्रोत विज्ञापनों से होने वाली आय से आता है जो कि गूगल केवल उपभोक्ताओं को अपने  सर्च इंजन पर  ही नहीं बल्कि यूट्यूब ,जी मेल , क्रोम , एंड्राइड, मैप  और अन्य सभी सेवाओं पर भी ट्रैक करते हैं।गूगल ट्रैकर्स वास्तव में पचहतर प्रतिशत  शीर्ष मिलियन वेबसाइटों पर लगे होते हैं "गूगल एनालिटिक्स"अधिकांश साइटों पर इंस्टॉल किया गया है, जिससे वेबसाइट मालिकों और गूगल को पता चलता है कि उपभोक्ता  कौन सी साइट पर कब और कितने देर के लिए जाता है |जो विज्ञापन आपका हर जगह आपका पीछा करते हैं, उनमें से अधिकांश वास्तव में इन गूगल विज्ञापन नेटवर्क के माध्यम से चलाए जाते हैं। ये विज्ञापन न केवल कष्टप्रद हैं - वे आपको और अधिक चीजें खरीदने के लिए लक्षित करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
अपनी सेवाओं के लिए शुल्क लेना या लेना किसी भी कम्पनी का विशेषाधिकार है पर यहाँ स्थिति थोड़ी अलग है उपभोक्ताओं के पास ऐसा कोई सशक्त विकल्प है ही नहीं कि वो इंटरनेट की कुछ सेवाओं के लिए किसी अन्य कम्पनी के बारे में विचार करे |ऐसे में जहाँ हम अपने ही आंकड़ों से कमाए गए मुनाफे से गूगल जैसी कम्पनियों को विशाल बनाने में मदद करते हैं जबकि उस मुनाफे का कोई भी हिस्सा उस उपभोक्ता तक नहीं पहुंचता जिसके कारण मुनाफा कमाया जा रहा है वहीं मुनाफे को अधिकतम करने के लिए अब उन्हीं उपभोक्ताओं से शुल्क भी वसूला जा रहा है |मुनाफा कमाने की ये होड़ कहाँ जाकर रुकेगी इसका फैसला अभी होना बाकी है पर यह सच है कि इंटरनेट का यह दावा कि यह  हमारा समय बचा के हमारे जीवन को आसान बनाता है कहीं से सच नहीं लगता बल्कि यह उस बचे हुए समय को उसी इंटरनेट की अंधी सुरंगों  में बिताने के लिए प्रेरित करता है |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 31/05/2021 को प्रकाशित 

Friday, May 21, 2021

जिन्दगी का सुहाना सफ़र

 


कोरोना काल में जब जीवन थमा हुआ है एक वेबसाइट के एक लेख पर नज़र पडी . 
लेख था.नोबेल पुरूस्कार विजेता फ़्रांसीसी लेखक जॉन मेरी गुस्ताव लाक्लेज़ियो के ऊपर.लाक्लेज़ियो यात्रा  लेखक हैं. लेख आगे चलकर दूसरी दिशा में मुड़ जाता है लेकिन मेरा मन मुड़ गया दूसरी ओर मेरे जेहन में अपने बचपन में सुनी गयी वो सारी कहानिया घूमने लगी जो मैंने रजाई में अपने पिताजी के आगोश में दुबक कर या कभी- कभी अलाव के गिर्द बैठकर सूनी थी.कभी सिंदबाद दा सेलर, तो कभी गुलिवर ट्रेवल्स  का कोई घटनाक्रम, कभी हातिमताई कुछ न समझ आये तो ऐसे राजकुमार की कहानी जो रानी की तलाश में जंगल- जंगल घूम रहा है .
गर्मियां की शुरुआत हो चुकी है ठीक दिन होते तो सब यात्राओं में या तो निकल गए होते या निकलने की योजना बना रहे होते. यात्रा हो या सफर हमारे जीवन का कितना अहम् हिस्सा है.भले ही बचपने की ज्यादातर कहानियां सफ़र से जुडी हुई रहती थीं. आज के बच्चे कहानी सुनने की बजाय कार्टून देख कर सोते हों पर ज्यादातर कार्टून उन्हें यात्रा पर ले जाते हैं. यात्राओं के बारे में सोचते हुए राहुल राहुल सांकृत्यायन याद न आयें ऐसा हो सकता है क्या ? ट्रैवेलॉग पढ़ते वक्त हमेशा ऐसा लगता है था कि घुमक्कड़ी के बाद इतना शानदार कैसे लिख लेते हैं लोग .लेकिन अब समझ में आने लगा है कि जब हम यात्राओं  को जीना शुरू कर देते हैं तो यात्रा वृतांत अपने आप जी उठते हैं .कहते है किसी पल को जी भर कर जी लेने के बाद ही डूब कर लिखा जा सकता है मैंने भी आज सफ़र को जीने की कोशिश की .

यात्राएँ हमारे चिंतन को विस्तार देती हैं आप ने वो गाना जरूर सुना होगा " जिन्दगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना" यूँ तो देखा जाए तो जिन्दगी का सफ़र है तो सुहाना लेकिन इसके साथ जुडी हुई है अनिश्चितता  और ऐसा ही होता है जब हम किसी सफ़र पर निकलते हैं .ट्रेन कब लेट हो जाए. बस कब ख़राब हो जाए वगैरह वगैरह मुश्किलें तों हैं. पर क्या मुश्किलों की वजह से हम सफ़र पर निकलना छोड़ देते हैं भाई काम तो करना ही पड़ेगा हर सफ़र हमें नया अनुभव देता है जिस तरह हमारे जीवन का कोई दिन एक जैसा नहीं होता वैसे ही दुनिया का कोई इंसान ये दावा नहीं कर सकता कि उसका रोज का सफ़र एक जैसा होता है. अब सफ़र पर निकले हैं तो किसी न किसी साथी की जरुरत पड़ेगी. जरुरी नहीं आप साथी के साथ ही सफ़र करें साथी सफ़र में भी बन जाते हैं. लेकिन साथी के चयन   मे सावधान रहें. गलत साथी आपके सफ़र को पीडादायक  बना सकते हैं और वैसा ही जिन्दगी के  सफ़र में गलत साथी  आपके लिए समस्याएं  ला सकते हैं .

आगे से जब भी किसी सफ़र पर निकालिएगा तो ये मत भूलियेगा कि ये जिन्दगी का सफ़र है और हर सफ़र की शुरुवात अकेले ही होती है, लेकिन अंत अकेले नहीं होता साथ में कारवां होता है अपनों का अपने अपनों का. यात्राएँ चाहे जीवन की हों या किसी दूर देश की या फिर घर से दफ्तर के बीच की ही क्यों न हो .ऐसी ही यात्राओं से कोई लाक्लेज़ियो नोबेल पुरूस्कार ले जाते हैं ओर कोई अपनी मंजिल पर पहुंचकर मुस्कुरा उठता है.

प्रभात खबर में 21/05/2021 को प्रकाशित 

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Saturday, May 15, 2021

साइबर हमले के बढ़ते खतरे के बीच


अमेरिका में सरकार ने देश की सबसे बड़ी ईंधन पाइपलाइन पर पिछले सप्ताह के अंत में हुए एक साइबर हमले के बाद देश में आपातकाल का एलान कर दिया गया |कोलोनियल पाइपलाइन पर हुए इस हमले से अमेरिका के ईस्ट कोस्ट के राज्यों में डीज़ल, गैस और जेट ईंधन पर संकट पैदा हो गया क्योंकि इस पाईप लाइन से प्रतिदिन 25 लाख बैरल तेल जाता है जो कि इन जगहों की पैंतालीस प्रतिशत तेल आपूर्ति करता है | इस बात की पुष्टि हो गई है कि ये रैन्समवेयर हमला डार्कसाइड नाम के एक साइबर अपराधी गिरोह ने किया था | डार्कसाइट साइबर अपराध की दुनिया में बहुत चर्चित नाम नहीं है मगर इस घटना से पता चलता है कि रैन्समवेयर जैसे हमले केवल किसी पेशे या दफ़्तर को ही नहीं, किसी देश के महतवपूर्ण औद्योगिक ढाँचे के लिए भी ख़तरा बन सकते हैं| लंदन की साइबर सिक्योरिटी कंपनी डिजिटल शैडोज़ के अनुसार डार्कसाइड एक व्यसायिक कंपनी की तरह काम करता है. जो चोरी और हैकिंग के लिए सॉफ़्टवेयर बनाता है| उसके बाद इस अपराध में शामिल होनेवाले सहयोगियों को प्रशिक्षण देता है, और सिखाता है कि हमला कैसे किया जाए|भले ही यह हमला अमेरिका पर हुआ पर इस तेजी से डिजीटल होती दुनिया में भारत भी इस खतरे से अछूता नहीं है क्योंकि देश में जितनी डिजीटली करण का काम हो रहा है उतनी तेजी से साइबर सुरक्षा पर ध्यान न दिया जा रहा है |बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब चीन के हैकर्स (इंटरनेट को भेदने वाले ) ने भारत में वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) और भारत बायोटेक पर साइबर अटैक करने की कोशिश की थी| अक्तूबर 2020 में मुंबई एक बड़े हिस्से की पावर ग्रिड फेल हो गई थी और मुम्बई में अंधेरा छा गया। अमेरिका की मैसाचुसेट्स स्थित साइबर सिक्योरिटी कंपनी रिकॉर्डेड फ्यूचर ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि चाइनीज सरकार समर्थित हैकर्स के एक ग्रुप ने मैलवेयर के जरिए मुंबई में पावर ग्रिड को निशाना बनाया था। ।हालंकि केन्द्रीय सरकार ने इस तरह के साइबर हमले को नहीं माना था | 
 अमेरिकी कंपनी आईबीएम (IBM) की साइबर हमलों की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2020 में भारत एक तरफ कोरोना महामारी से लड़ रहा था, तो उसे दूसरी तरफ साइबर हमलों से पूरे एशिया-प्रशांत इलाके में भारत को जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले झेलने पड़े| महतवपूर्ण है कि सबसे ज्यादा साइबर हमले बैंकिंग और बीमा क्षेत्र से जुडी हुई कंपनियों पर हुए| 2020 में एशिया में हुए कुल साइबर हमलों में से सात प्रतिशत भारतीय कंपनियों पर हुए | साइबर हमले कई तरह से हो सकते है जैसे वेबसाइट डिफेंसिंग इसमें किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर उसकी द्रश्य दिखावट को बदल दिया जाता है।जिससे यह पता चलता है कि अमुक वेबसाईट साइबर हमले का शिकार हुई है |दूसरा तरीका है फिशिंग या स्पीयर फिशिंग अटैक जिसमे हैकर ईमेल या मैसेज के जरिए लिंक भेजता है , जिस पर क्लिक करते ही कंप्यूटर या वेबसाईट का सारा डाटा लीक हो जाता है।इसके अलावा बैकडोर अटैक भी एक तरीका है जिसमें कम्प्यूटर में एक मालवेयर भेजा जाता है, जिससे उपभोक्ता की सारी सूचनाएं मिल सके। देश को साइबर हमलों से बचाने के लिए भारत में दो सस्थाएं हैं। एक है सी ई आर टी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना साल 2004 में हुई थी। दूसरी संस्था का नाम नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर है | जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है | 
ये 2014 से भारत में काम कर रही है। भारत में अभी तक साइबर हमलों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साइबर हमलों के मामले में फिलहाल आईटी एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है जिसमें वेबसाइट ब्लॉक तक करने तक के प्रावधान हैं लेकिन न तो प्रावधान प्रभावी हैं और न ही पर्याप्त । केंद्रीय शिक्षा, संचार तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार देश में जनवरी से मार्च, 2020 के बीच देश में 1,13,334, अप्रैल से जून के बीच 2,30,223 और जुलाई से अगस्त से बीच 3,53,381 साइबर हमले हुए हैं।वहीं साल 2017-18 में साइबर अटैक से निपटने के लिए 86.48 करोड़ दिए गए जिनमें से 78.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2018-19 में 141.33 करोड़ रुपये जारी किये गए हुए, जबकि खर्च 137.38 करोड़ रुपये ही हुए। साल 2019-20 में साइबर फंड के नाम पर 135.75 करोड़ रुपये दिए गए हैं जिनमें से मात्र 122.04 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं।कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्रॉक्सी सर्वर होते हैं और दुनिया भर में फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती ऐसे में जागरूकता के साथ बचाव की रणनीति ही देश को इन साइबर हमलों से बचा सकती है |
अमर उजाला में 15/05/2021 को प्रकाशित 

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