बदलाव प्रकृति का नियम है पर ये बदलाव हमें इस बात का
एहसास भी कराता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं. परिवर्तन का मतलब पुरानी चीजों से पीछा
छुड़ाना नहीं है. सुनहरे वर्तमान की नींव इतिहास पर ही रखी जाती है.मैं
बिलकुल भारी भरकम बात करके आपको बोर नहीं करना चाहता .आज की दुनिया इंटरनेट की
दुनिया जिसमे काफी कुछ आभासी है. कितना कुछ इसने बदल दिया है पर ये बदलाव यूँ ही
नहीं हुआ है एक छोटा सा उदाहरण है इंटरनेट ने कागज़ पर हमारी निर्भरता को कम किया
है. वो कागज़ जिससे हमारी ना जाने कितनी यादें जुडी हैं. वो स्कूल की नयी किताबें
जिससे आती खुशबू आज भी हमें अपने बचपने में ले जाती है.हम उस दौर को एक बार फिर जी
लेना चाहते हैं .वो कॉलेज की डिग्री का कागज़. जिसने हमें पहली बार एहसास
कराया कि हमने जीवन का अहम पड़ाव पार कर लिया. फिर वो शादी के कार्ड का कागज. जब
हम एक से दो हो गए, अपने पहले अपोइंटमेंट लैटर को कौन भूल
सकता है. जब आपने पहली बार वित्तीय स्वतंत्रता का लुत्फ़ उठाया, और ये सिलसिला चलता रहता है. पर अब
सबकुछ ऑन लाइन है .लेकिन कभी कभी तो प्रिंट आउट भी निकलना पड़ता है.
भले ही सब कुछ ऑन लाइन हो रहा है. फिर भी कागज़ तो हमारे जीवन का हिस्सा है
ही ना. अब इस लेख को कुछ लोग अखबार में पढेंगे. कुछ नेट पर तो हो गया न ऑन लाइन और
ऑफ लाइन का कोम्बिनेशन .तो ये पेज जल्दी ही इतिहास का हिस्सा हो जायेंगे जब बच्चे
लिखना पढ़ना कॉपी और कागज़ से नहीं टेबलेट और लैपटॉप पर सीखेंगे, अब ग्रीटिंग कार्ड से लेकर शादी के
कार्ड और अपोइंटमेंट लेटरसीधे ई मेल या व्हाट्स एप किये जाते हैं पर वो कागज़ के
कुछ टुकड़े ही थे. जिन पर भविष्य के कंप्यूटर और इंटरनेट की इबारत लिखी गयी. बोले
तो कागज़ ही ने जिन्होंने हमें ऑफ लाइन से ऑन लाइन होने का जरिया दिया तभी
तो किसी भी वेबसाईट के खास हिस्से को वेबपेज ही कहते हैं. जबकि इस वेब पेज में उस पेज जैसा कुछ
नहीं होत. जिसे हम जानते हैं तो सीधे दिल से जब हम जड़ों से जुड़े रहेंगे तो आगे
बढते रहेंगे पर उनसे कट कर हम कभी तरक्की के रास्ते पर नहीं बढ़ पायेंगे .
पर ये तो आधी बात हुई मैं तो कुछ और ही कहना चाहता हूँ कि जीवन में कितनी बातें ऐसी होती हैं. जिन्हें हम ऑबियस मानकर छोड़ देते हैं पर जरा सा दिमाग पर जोर डालने से हमें पता पड़ता है कि उनकी हमारे जीवन में कितनी अहमियत होती है. कागज़ तो बहाना भर है आपको ये समझाने को हम कितने भी आगे क्यों ना निकल जाएँ पर अपने बेसिक्स को न भूलें. मॉडर्न हो जाने का मतलब पुरानी चीजों को भूल जाना नहीं है बल्कि उनको याद करके आने वाली दुनिया को और बेहतर करना है.अब उस मामूली कागज़ को लीजिए उसके साथ हम क्या करते हैं.हर मेल का प्रिंट आउट निकलना जरूरी तो नहीं है .प्रिंट आउट निकले पन्ने के दूसरी तरफ भी कुछ लिखा जा सकता है. पर हम उन्हें रद्दी मानकर फैंक देते हैं .हम जितना कागज़ ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उतना ही पेड ज्यादा काटे जाते हैं तो कागज का इस्तेमाल सम्हाल कर कीजिये तभी हम अपने पर्यावरण को बचा पायेंगे तो कागज़ की इस कहानी के साथ आज के लिए इतना ही....
प्रभात खबर में 13/05/2022 को प्रकाशित
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