Thursday, December 28, 2023
सैवाधिक फीचर फोन यहीं बिकते हैं
Thursday, November 30, 2023
अभी अब्दुल रज्जाक की ऐश्वर्या राय पर की गई टिप्पणी पर मुझे कुछ नही कहना है. पर जब इस तरह की बातें होती है तो हम भूल जाते है कि “बोली एक अमोल है जो कोई बोले जानु लिए तराजू तौल के तब मुख बाहर आन”. कबीर दास जी का यह दोहा कई सौ साल बीतने के बाद भी प्रासंगिक बना हुआ है.
हम कितने भाग्यशाली है कि हमें बोलने के लिए ‘जबान’ मिली और सुनने के लिए ‘कान’.मेरे शहर लखनऊ के एक मॉल में रेस्टोरेंट है. जहां ज्यादातर वेटर मूक बधिर है.वे बड़े प्यार से आपको भोजन कराते हैं.अपनी इशारों की भाषा में वे सबके साथ सहज होते हैं.जब आप उनके बीच में होते है तब आपको समझ आता है कि हम कितने खुशनसीब है. कुछ भी कहने के लिए आपको सिर्फ जबान हिलानी है.आपको अपनी बात समझाने के लिए मेहनत नही करनी है.जरा सोचिये मूक बधिरों को अपनी बात कहने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है.यही बात उन्हें जिम्मेदार बनाती है.वे शब्दों का महत्व जानते हैं. उनकी इशारों की भाषा में कुछ भी निजी नही होता है . सब कुछ सार्वजनिक और शायद इसीलिए वो हमसे ज्यादा जिम्मेदार होते है. हम कोई स्टेट्स किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर डालते हैं और देखते हैं कि अचानक उसमें कुछ ऐसे लोग स्टेट्स के सही मंतव्य को समझे बगैर टिप्पणियाँ करने लगते हैं जिनसे हमारी किसी तरह की कोई जान पहचान नहीं होती .यह एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया होती है जिसमें ईगो का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है . हमारा ईगो, डिजिटल युग को पसंद क्यों करता है क्योंकि यह व्यक्तिवाद को बढ़ावा देता है जिसमें शामिल है ‘आई’’ ‘मी’ और “माई” “आई-फोन”. जिसमें सामूहिकता की कहीं कोई जगह नहीं है और शायद इसलिए लोगों ज्यादा से ज्यादा लाईक्स,शेयर और दोस्त वर्चुअल दुनिया में पाना चाहते हैं .
ये स्थिति घातक भी हो सकती है. यह एक और संकट को जन्म दे रहा है जिससे लोग अपने वर्तमान का लुत्फ़ न उठाकर अपने अतीत और भविष्य के बीच झूलते रहते हैं .अपनी पसंदीदा धुन के साथ हम मानसिक रूप से अपने वर्तमान स्थिति को छोड़ सकते हैं और अपने अस्तित्व को अलग डिजिटल वास्तविकता में परिवर्तित कर सकते हैं.वैसे भी ईगो के लिए वर्तमान के कोई मायने नहीं होते हैं. ईगो मन अतीत के लिए तरसता है क्योंकि ये आपको परिभाषित करता है. ऐसे ही ईगो अपनी किसी आपूर्ति के लिए भविष्य की तलाश में रहता है. हमारे डिजिटल उपकरण वर्तमान से बचने का बहाना देते हैं और आक्रमकता को बढ़ावा देते हैं .फेसबुक,ट्विटर जैसी तमाम सोशल नेटवर्किंग साईट्स की सफलता के पीछे हमारे दिमाग की यही प्रव्रत्ति जिम्मेदार है .लोग आमतौर पर ऑनलाइन होने की तुलना में आमने-सामने ज्यादा विनम्र होते हैं।चलते चलते बोलते वक्त जिम्मेदार बनिये वो चाहे वर्चुअल दुनिया हो या रीयल.
प्रभात खबर में 30/11/2023 को प्रकाशित
Thursday, November 23, 2023
अंगदान में लिंगभेद का मामला
Wednesday, November 22, 2023
एक खतरनाक चुनौती है 'डीप फेक '
यह भी कैसी विडंबना है कि तकनीक ने एक तरफ हमारे जीवन
को काफी आसान बनाया है, दूसरी तरफ कई स्तरों पर अराजकता
भी पैदा कर दी है। आज सूचनाओं के संजाल में यह तय करना मुश्किल है कि क्या सही है
क्या गलत। इससे हमारे समाज के सामने एक नई चुनौती पैदा हो गई है। गलत सूचनाओं को
पहचानना और उनसे निपटना आज के दौर के लिए एक बड़ा सबक है। फेक न्यूज आज के समय का
सच है। फेक न्यूज ज्यादातर भ्रमित करने
वाली सूचनाएं होती हैं। अक्सर झूठे संदर्भ या गलत संबंधों को आधार बनाकर ऐसी
सूचनाएं फैलाई जाती हैं। कुछ साल पहले, पत्रकारिता में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस के आगमन ने पत्रकारिता उद्योग में काफी उम्मीदें
बढ़ाई थी कि इससे समाचारों का वितरण एक नयी पीढी में पहुंचेगा और पत्रकारिता जगत में क्रांतिकारी उलटफेर होगा। उम्मीद तो यह भी जताई जा रही थी कि आर्टीफीशियल
इंटेलिजेंस से फेक न्यूज और मिस इन्फोर्मेशन के प्रसार को रोकने का एक प्रभावी तरीका भी मिल जाएगा पर व्यवहार में इसके
उलट ही हो रहा है | एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक
और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी फेक न्यज में
काफी वृद्धि हुई है| लोकतांत्रिक
राजनीति के लिए अड़चन पैदा करने में और चारित्रिक
हत्या करने में इंटरनेट एक शक्तिशाली औजार के रूप
में उभरा है|अपने सरलतम रूप में, एआई
को इस तरह से समझा जा सकता है कि उन चीजों को करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया
जाता है जिनके लिए मानव बुद्धि की आवश्यकता होती
है।
फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक ने और ज्यादा गंभीर
बना दिया है |असल में डीप फेक में
आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए किसी वीडियो क्लिप या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है| इसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर लिए जा रहे हैं
जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेक' एक बिल्कुल अलग तरह की समस्या है इसमें वीडियो सही होता है
पर तकनीक से चेहरे, वातावरण या असली औडियो बदल दिया
जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा
है |एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म
पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है| देश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को
गंभीर करते है |हालाँकि ऐसे वीडियो को पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो इंटरनेट पर
मौजूद असली वीडियो से ही बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए जिस धैर्य की
जरुरत होती है| वह भारतीयों के पास वहाट्स एप मेसेज को
फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज
वीडियो के रूप में मिलेगी तो लोग उसे तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते |
डीपफ़ेक बेहद पेचीदा तकनीक है. इसके लिए मशीन लर्निंग
यानी कंप्यूटर में दक्षता होनी चाहिए|डीपफे़क कंटेंट दो एल्गोरिदम का उपयोग करके बनाई जाती है, जो एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करती है|एक को
डिकोडर कहते हैं तो दूसरे को एनकोडर|इसमें फेक डिजिटल कंटेंट
बनाता है और डिकोडर से यह पता लगाने के लिए कहता है कि कंटेंट रियल है या नकली|हर बार डिकोडर कंटेंट को रियल या फे़क के रूप में सही ढंग से पहचानता है, फिर वह उस जानकारी को एनकोडर को भेज देता है ताकि अगले डीपफे़क में
गलतियां सुधार करके उसे और बेहतर किया जा सके|दोनों प्रक्रियाओं
को मिलाकर जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क बनाते हैं जिसे जीएएन कहा जाता है|
एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर
आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैं| इस तकनीक की शुरुआत अश्लील कंटेंट बनाने से हुई| पोर्नोग्राफी में इस तकनीक का काफी इस्तेमाल होता है. अभिनेता और अभिनेत्री का चेहरा बदल के अश्लील
कंटेंट पोर्न साइट्स पर पोस्ट किया जाता है |
डीपट्रेस की रिपोर्ट के अनुसार,2019 में ऑनलाइन पाए गए डीपफेक वीडियो में छियानबे
प्रतिशत अश्लील कंटेंट था|इसके अलावा इस तकनीक का इस्तेमाल
मनोरंजन के लिए भी किया जाता है. इन डीपफे़क वीडियो का मकसद देखनेवालों को ये यकीन
दिलाना होता है जो हुआ ही नहीं है | डीपफे़क
कंटेंट की पहचान करने के लिए कुछ ख़ास चीज़ो पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है|उनमें सबसे पहले आती है चेहरे की स्थिति | अक्सर डीपफे़क तकनीक चेहरे और आँख की स्थिति में मात खा जाता है| इसमें पलकों का झपकना भी
शामिल है|
ऐसे में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए
बुनियादी शिक्षा में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच को पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता है ताकि जागरूकता को बढ़ावा
दिया जा सके| जिससे लोगों
को फेक न्यूज से बचाने में मदद करने के लिए एक
सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके। डीपफेक और फेक न्यूज से सतर्क रहने के लिए हमें आज और आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य
वाले भविष्य के लिए, सभी
उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक बहु-आयामी, क्रॉस-सेक्टर दृष्टिकोण की आवश्यकता है।जिसमें एक अहम् मुद्दा अपनी निजता
को बचाए रखने का भी है |'डीप फेक' का शिकार कोई भी कभी भी हो सकता है |अगर हम इस
नजरिये से सोचेंगे तो 'डीप फेक' की समस्या से लड़ने में ज्यादा आसानी होगी |
Friday, November 17, 2023
डीप फेक वीडियो आसान नहीं पहचान कर पाना
वैसे केंद्र सरकार ने ऐसे डीप फेक वीडियो पर सख्त नाराजगी जाहिर की है। केंद्र सरकार ने एक्स, इंस्टाग्राम और फेसबुक समेत सभी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्मों से आइटी नियमों के तहत शिकायत मिलने के 24 घंटे के भीतर छेड़छाड़ की गई तस्वीरों को हटाने के लिए कहा है। यह सही है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आगमन ने पत्रकारिता जगत में काफी उम्मीद बढ़ाई थी कि इससे समाचारों का वितरण एक नई पीढ़ी तक पहुंचेगा और पत्रकारिता जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव हो सकता है। उम्मीद तो यह भी जताई जा रही थी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से फेक न्यूज और मिस इन्फोर्मेशन के प्रसार को रोकने का एक प्रभावी तरीका भी मिल जाएगा, परंतु व्यवहार में इसके उलट ही हो रहा है। एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और सामाजिक विकास किया है तो दूसरी फेक न्यूज में काफी वृद्धि हुई है।
शक्तिशाली औजार के रूप में उभरा इंटरनेट : लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अड़चन पैदा करने में और चारित्रिक हत्या करने में इंटरनेट एक शक्तिशाली औजार के रूप में उभरा है। फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक ने और ज्यादा गंभीर बना दिया है। असल में डीप फेक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिये किसी वीडियो क्लिप या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है। इसके माध्यम से कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं। 'डीप फेक' एक बिल्कुल अलग तरह की समस्या है। इसमें वीडियो सही होता है, पर तकनीक से चेहरे, वातावरण या असली आडियो को बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है। एक बार ऐसे वीडियो जब किसी इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार की गति बहुत तेज हो जाती है।
इंटरनेट पर ऐसे करोडों डीप फेक वीडियो मौजूद हैं। देश में डिजिटल साक्षरता बहुत कम है, लिहाजा डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर करते हैं। इससे बचाव के लिए केंद्र सरकार ने आइटी नियमों के उपबंध और इंटरनेट मीडिया कंपनियों के दायित्वों का हवाला देते हुए इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को एक एडवाइजरी जारी की है। इस एडवाइजरी के अनुसार, इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म को उस सामग्री को हटाने या निष्क्रिय करने के लिए सभी उपाय करने चाहिए, जो फेक हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि इंटरनेट मीडिया मध्यस्थों को नियमों और विनियमों, गोपनीयता नीति या उपयोगकर्ता समझौते को सुनिश्चित करने सहित उचित नियमों का पालन करना चाहिए और उपयोगकर्ताओं को किसी अन्य व्यक्ति का प्रतिरूपण करने वाली किसी भी सामग्री को पोस्ट नहीं करने के लिए सूचित करना चाहिए।
डीप फेक, गलत सूचना का नवीनतम और उससे भी अधिक खतरनाक स्वरूप है। लिहाजा इंटरनेट मीडिया को इससे निपटने की जरूरत है। आइटी एक्ट 2000 के वर्ग 66 ई के तहत बिना अनुमति किसी की फोटो और वीडियो बनाने पर तीन साल की सजा और दो लाख रुपये जुर्माना का प्रविधान है। इस नियम के तहत गोपनीयता के उल्लंघन के दोषी पाए जाने पर कार्रवाई का नियम है। इसमें किसी की व्यक्तिगत फोटो बिना अनुमति कैप्चर करने और उसे शेयर करने के आरोप के तहत कार्रवाई हो सकती है। आइटी एक्ट सेक्शन 67 के तहत साफ्टवेयर या किसी अन्य इलेक्ट्रानिक तरीके से किसी की अश्लील फोटो बनाने और उसे शेयर करने पर तीन साल जेल और पांच लाख रुपये जुर्माना लगाया जा सकता है। ऐसा बार-बार करने पर अपराधी को पांच साल की जेल और दस लाख रुपये का जुर्माना देना पड़ सकता है। डीपफेक के मामले में आइपीसी की धारा 66सी, 66ई और 67 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। इसमें आइपीसी की धारा 153ए और 295ए के तहत मुकदमा दर्ज करके कार्रवाई की जा सकती है।
दैनिक जागरण में 17/11/2023 को प्रकाशित
Friday, November 10, 2023
चरित्र हनन की तकनीक
असल में डीप फेक में आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल
के जरिए किसी वीडियो क्लिप या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है| इसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर
लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेक' एक बिल्कुल
अलग तरह की समस्या है इसमें वीडियो सही होता है पर तकनीक से चेहरे, वातावरण या असली औडियो बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता
नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है | डीपफ़ेक बेहद पेचीदा तकनीक है. इसके लिए मशीन लर्निंग यानी
कंप्यूटर में दक्षता होनी चाहिए|डीपफे़क
कंटेंट दो एल्गोरिदम का उपयोग करके बनाई जाती है, जो एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करती है|एक को
डिकोडर कहते हैं तो दूसरे को एनकोडर|इसमें फेक
डिजिटल कंटेंट बनाता है और डिकोडर से यह पता लगाने के लिए कहता है कि कंटेंट रियल
है या नकली|हर बार डिकोडर कंटेंट को रियल या फे़क के रूप में सही ढंग
से पहचानता है, फिर वह उस जानकारी को एनकोडर को भेज देता है ताकि अगले
डीपफे़क में गलतियां सुधार करके उसे और बेहतर किया जा सके|दोनों प्रक्रियाओं को मिलाकर जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क
बनाते हैं जिसे जीएएन कहा जाता है|
एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी
प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर
ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैं| इस तकनीक की शुरुआत अश्लील कंटेंट बनाने से हुई| पोर्नोग्राफी में इस तकनीक का काफी इस्तेमाल होता है. अभिनेता और अभिनेत्री का चेहरा बदल के अश्लील कंटेंट पोर्न साइट्स पर पोस्ट किया
जाता है |
डीपट्रेस की रिपोर्ट के अनुसार,2019 में ऑनलाइन पाए गए डीपफेक वीडियो में छियानबे प्रतिशत अश्लील कंटेंट था|इसके अलावा इस तकनीक का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए भी किया
जाता है. इन डीपफे़क वीडियो का मकसद देखनेवालों को ये यकीन दिलाना होता है जो हुआ
ही नहीं है | डीपफे़क
कंटेंट की पहचान करने के लिए कुछ ख़ास चीज़ो पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है|उनमें सबसे पहले आती है चेहरे की स्थिति | अक्सर डीपफे़क तकनीक चेहरे और आँख की स्थिति में मात खा जाता है| इसमें पलकों का झपकना भी शामिल है|
देश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर
करते है |हालाँकि ऐसे वीडियो को पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो
इंटरनेट पर मौजूद असली वीडियो से ही बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए
जिस धैर्य की जरुरत होती है| वह भारतीयों
के पास वहाट्स एप मेसेज को फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज वीडियो के रूप में मिलेगी तो लोग उसे
तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते | ए सी नेल्सन की हालिया इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाते हैं ग्रामीण भारत में 425 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जो शहरी भारत की तुलना में चौआलीस प्रतिशत अधिक था, जिसमें 295 मिलियन लोग नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करते थे।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग आधा ग्रामीण भारत इंटरनेट तीस
प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के साथ, इंटरनेट पर
है और जिसके भविष्य में और बढ़ने की सम्भावना है| सामान्यतः: सोशल मीडिया एक तरह के ईको चैंबर का निर्माण करते हैं जिनमें एक
जैसी रुचियों और प्रव्रत्तियों वाले लोग आपस में जुड़ते हैं |ऐसे में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए बुनियादी
शिक्षा में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पाठ्यक्रम को शामिल करने की
आवश्यकता है ताकि जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके| जिससे लोगों को फेक न्यूज से बचाने में मदद करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके।
डीपफेक और फेक न्यूज से सतर्क रहने के लिए हमें आज और आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य वाले
भविष्य के लिए, सभी उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक
बहु-आयामी, क्रॉस-सेक्टर दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
Friday, October 20, 2023
फेक वीडियो की बढ़ती चुनौती
कुछ साल पहले, पत्रकारिता में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस के आगमन ने पत्रकारिता उद्योग में काफी उम्मीदें
बढ़ाई थी कि इससे समाचारों का वितरण एक नयी पीढी में पहुंचेगा और पत्रकारिता जगत में क्रांतिकारी उलटफेर होगा। उम्मीद तो यह भी जताई जा रही थी कि आर्टीफीशियल
इंटेलिजेंस से फेक न्यूज और मिस इन्फोर्मेशन के प्रसार को रोकने का एक प्रभावी तरीका भी मिल जाएगा पर व्यवहार में इसके
उलट ही हो रहा है | एक तरफ प्रौद्योगिकी ने आर्थिक और
सामाजिक विकास किया है तो दूसरी फेक न्यज में
काफी वृद्धि हुई है| लोकतांत्रिक राजनीति के लिए अड़चन पैदा
करने में और चारित्रिक हत्या करने में इंटरनेट एक शक्तिशाली औजार के रूप में
उभरा है|अपने सरलतम रूप में, एआई को इस तरह से समझा जा सकता है कि उन चीजों को करने के लिए कंप्यूटर का
उपयोग किया जाता है जिनके लिए मानव बुद्धि की आवश्यकता
होती है।ए आई बाजार पर कब्जा करने के लिए इन दिनों
माइक्रोसॉफ्ट के “चैटजीपीटी” और गूगल के “बार्ड” के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा इसका एक उदाहरण है |
फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक ने और ज्यादा गंभीर बना दिया है |असल में डीप फेक में आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए किसी वीडियो क्लिप या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है| इसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेक' एक बिल्कुल अलग तरह की समस्या है इसमें वीडियो सही होता है पर तकनीक से चेहरे, वातावरण या असली औडियो बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है |एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैं| देश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर करते है |हालाँकि ऐसे वीडियो को पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो इंटरनेट पर मौजूद असली वीडियो से ही बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए जिस धैर्य की जरुरत होती है| वह भारतीयों के पास वहाट्स एप मेसेज को फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज वीडियो के रूप में मिलेगी तो लोग उसे तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते | ए सी नेल्सन की हालिया इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाते हैं ग्रामीण भारत में 425 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जो शहरी भारत की तुलना में चौआलीस प्रतिशत अधिक था, जिसमें 295 मिलियन लोग नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करते थे। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग आधा ग्रामीण भारत इंटरनेट तीस प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के साथ, इंटरनेट पर है और जिसके भविष्य में और बढ़ने की सम्भावना है| सामान्यतः: सोशल मीडिया एक तरह के ईको चैंबर का निर्माण करते हैं जिनमें एक जैसी रुचियों और प्रव्रत्तियों वाले लोग आपस में जुड़ते हैं |ऐसे में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए बुनियादी शिक्षा में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पाठ्यक्रम को शामिल करने की आवश्यकता है ताकि जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके| जिससे लोगों को फेक न्यूज से बचाने में मदद करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके। डीपफेक और फेक न्यूज से सतर्क रहने के लिए हमें आज और आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य वाले भविष्य के लिए, सभी उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक बहु-आयामी, क्रॉस-सेक्टर दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
दैनिक जागरण में 20/10/2023 को प्रकाशित