असल में डीप फेक में आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल
के जरिए किसी वीडियो क्लिप या फोटो पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है| इसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप या फोटो विकसित कर
लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं|‘डीपफेक' एक बिल्कुल
अलग तरह की समस्या है इसमें वीडियो सही होता है पर तकनीक से चेहरे, वातावरण या असली औडियो बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता
नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है | डीपफ़ेक बेहद पेचीदा तकनीक है. इसके लिए मशीन लर्निंग यानी
कंप्यूटर में दक्षता होनी चाहिए|डीपफे़क
कंटेंट दो एल्गोरिदम का उपयोग करके बनाई जाती है, जो एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करती है|एक को
डिकोडर कहते हैं तो दूसरे को एनकोडर|इसमें फेक
डिजिटल कंटेंट बनाता है और डिकोडर से यह पता लगाने के लिए कहता है कि कंटेंट रियल
है या नकली|हर बार डिकोडर कंटेंट को रियल या फे़क के रूप में सही ढंग
से पहचानता है, फिर वह उस जानकारी को एनकोडर को भेज देता है ताकि अगले
डीपफे़क में गलतियां सुधार करके उसे और बेहतर किया जा सके|दोनों प्रक्रियाओं को मिलाकर जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क
बनाते हैं जिसे जीएएन कहा जाता है|
एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी
प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है|इंटरनेट पर
ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैं| इस तकनीक की शुरुआत अश्लील कंटेंट बनाने से हुई| पोर्नोग्राफी में इस तकनीक का काफी इस्तेमाल होता है. अभिनेता और अभिनेत्री का चेहरा बदल के अश्लील कंटेंट पोर्न साइट्स पर पोस्ट किया
जाता है |
डीपट्रेस की रिपोर्ट के अनुसार,2019 में ऑनलाइन पाए गए डीपफेक वीडियो में छियानबे प्रतिशत अश्लील कंटेंट था|इसके अलावा इस तकनीक का इस्तेमाल मनोरंजन के लिए भी किया
जाता है. इन डीपफे़क वीडियो का मकसद देखनेवालों को ये यकीन दिलाना होता है जो हुआ
ही नहीं है | डीपफे़क
कंटेंट की पहचान करने के लिए कुछ ख़ास चीज़ो पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है|उनमें सबसे पहले आती है चेहरे की स्थिति | अक्सर डीपफे़क तकनीक चेहरे और आँख की स्थिति में मात खा जाता है| इसमें पलकों का झपकना भी शामिल है|
देश में जहाँ डिजीटल साक्षरता बहुत कम है वहां डीप फेक वीडियो समस्या को गंभीर
करते है |हालाँकि ऐसे वीडियो को पकड़ना आसान भी हो सकता है क्योंकि ऐसे वीडियो
इंटरनेट पर मौजूद असली वीडियो से ही बनाये जा सकते हैं पर इस काम को करने के लिए
जिस धैर्य की जरुरत होती है| वह भारतीयों
के पास वहाट्स एप मेसेज को फॉरवर्ड करने में नहीं दिखती |ऐसे में जब फेक न्यूज वीडियो के रूप में मिलेगी तो लोग उसे
तुरंत आगे बढ़ने में नहीं हिचकते | ए सी नेल्सन की हालिया इंडिया इंटरनेट रिपोर्ट 2023' शीर्षक वाली रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाते हैं ग्रामीण भारत में 425 मिलियन से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जो शहरी भारत की तुलना में चौआलीस प्रतिशत अधिक था, जिसमें 295 मिलियन लोग नियमित रूप से इंटरनेट का उपयोग करते थे।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि लगभग आधा ग्रामीण भारत इंटरनेट तीस
प्रतिशत की मजबूत वृद्धि के साथ, इंटरनेट पर
है और जिसके भविष्य में और बढ़ने की सम्भावना है| सामान्यतः: सोशल मीडिया एक तरह के ईको चैंबर का निर्माण करते हैं जिनमें एक
जैसी रुचियों और प्रव्रत्तियों वाले लोग आपस में जुड़ते हैं |ऐसे में डीप फेक वीडियो के प्रसार को रोकने के लिए बुनियादी
शिक्षा में मीडिया साक्षरता और आलोचनात्मक सोच पाठ्यक्रम को शामिल करने की
आवश्यकता है ताकि जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके| जिससे लोगों को फेक न्यूज से बचाने में मदद करने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण का निर्माण किया जा सके।
डीपफेक और फेक न्यूज से सतर्क रहने के लिए हमें आज और आने वाले कल के जटिल डिजिटल परिदृश्य वाले
भविष्य के लिए, सभी उम्र के लोगों को तैयार करने में पूरे भारत में एक
बहु-आयामी, क्रॉस-सेक्टर दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
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