पैसों का समाज से गहरा रिश्ता रहा है. आज जिसके पास पैसा है वो और ज्यादा पाना चाहता है. जिसके पास नहीं है. वो भी पैसा पाना चाहता है.मतलब पैसा जिसके पास है दुनिया उसकी दास है . पैसे की माया अपरम्पार है.पैसा सर चढ़ कर बोलता है. ग्लोबलाईजेशन के इस दौर में हर आदमी पैसा कमाने के किसी मौके को चूकना नहीं चाहता है .पैसा इंसान की एक जरूरत है लेकिन आज के इस दौर में ऐसा लगता है कि पैसा इंसान की एक मात्र जरुरत है.पैसे पाने की चाह में कहीं छूटती जा रही है रिश्तों की गरमी और अपनेपन का एहसास. सब कुछ मशीनी होता जा रहा है. कोई बीमार है देखने जाने की बजाय कुछ कम पैसे खर्च करके व्हाट्स एप भेज दीजिये गेट वेल सून. काम हो गया. शुभकामना संदेश भेजना हो तो ई मेल कर दीजिये. और कुछ जयादा पैसे हों तो तरह तरह के ई-कार्ड तो मौजूद हैं. मतलब सारा खेल पैसे का ही है. सही ही कहा गया है सफलता अपनी कीमत मांगती है. अगर आगे बढ़ना है तो समय के साथ तो दौड़ना ही पढेगा नहीं तो हम पीछे छूट जायेंगे.तो परवाह किसे है रिश्तों की गर्मी और अपनेपन के एहसास की.
अब किसे याद आती है गरमी की उन रातों की जब पूरा घर छत पर सोता था. कूलर और एसी के बगैर भी वो रातें कितनी ठंडी होती थीं. या फिर जाडे की नर्म दोपहर में धूप सेंकते हुए सुख दुःख बांटना और वो नर्म धूप किसी हीटर के बगैर भी कितनी गरमी देती थी. वो छत पर बैठकर यूँ ही तारों को देखना .विकास तो खूब हुआ है. समय और स्थान की दूरियां घटी है. इन सब के बावजूद दिलों में दूरियां बढ़ी है. एक दूसरे पर अविश्वास बढ़ा है पैसा तो खूब है ,चैन नहीं है . होली या दीपावली की तैयारी महीनों पहले से होती थी. चिप्स या पापड़ बनाने का मामला हो या पटाखे की खरीददारी कोई बनावट नहीं थी लेकिन आज तो “पैसा फैंको तमाशा देखो” (फिल्म :दुश्मन ) सब कुछ रेडी मेड है. चिप्स पापड़ से लेकर चोकलेट में तब्दील होती हुई मिठाइयों तक , लेकिन रिश्ते न तो रेडी मेड होते हैं और न ही बाज़ार में मिलते हैं. रिश्ते तो बनते हैं प्यार की उर्जा ,त्याग समर्पण और अपनेपन के एहसास से. रिश्ते तो ही मकान को घर बनते हैं.
आज मकान तो खूब बन रहे हैं लेकिन घर गायब होते जा रहे हैं. त्यौहार मनाने के लिए अब साल भर इंतज़ार करने की जरुरत नहीं जेब में पैसा हो तो हर दिन दसहरा है और रात दिवाली है. लेकिन मनी मस्ती और मोबाइल ही जिन्दगी नहीं है आज पैसा पॉवर का पर्यायवाची बन गया है . पैसे को जीवन का एक मात्र मिशन बनाना मनुष्य के मन की संवेदनाओं को मार सकता है .ये समय की मांग है या किसी भी कीमत पर सफल होने की चाह ? तो रिश्तों को कारपोरेट करण होने से बचाइए और चलिए आज यूँ करें की किसी पुराने रिश्ते को जिन्दा किया जाए किसी परिचित दोस्त या रिश्तेदार के घर बगैर किसी काम के चला जाए और देखा जाए कि बगैर पैसे के भी दुनिया में काफी जुटाया जा सकता है .
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