इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता जिसमें नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म नित नए रूप बदल रहे हैं, उसमें नए-नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं। इस सारी कवायद का मतलब श्रोताओं को ज्यादा से ज्यादा समय तक अपने प्लेटफार्म से जोड़े रखना है। इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है। मूल्यांकन सलाहकार फर्म क्रोल की एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारतीय ब्रांड्स ने अपनी इंफ्लूएंसर मार्केटिंग पर खर्च दोगुना कर दिया। पिछले एक साल में एक तिहाई भारतीय ब्रांड्स ने इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर पर अपना खर्च दोगुना कर दिया है। कोरोना महामारी ने बड़ी मात्रा में डिजिटलीकरण को प्रेरित किया। भारत में इंटरनेट मीडिया कंटेंट क्रिएटर इंडस्ट्री 25 प्रतिशत की तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 2025 में इसके 290 करोड़ डालर हो जाने की उम्मीद है। इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर अब ब्रांड को एक बड़े दर्शक वर्ग पर कम खर्च में पहुंचने का एक सुलभ तरीका बन रहा है। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आई क्यूब्स वायर के एक शोध से पता चलता है कि लगभग 35 प्रतिशत ग्राहकों के खरीदारी निर्णय इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर पोस्ट, रील्स और वीडियो देखकर लिए जा रहे हैं।
बड़ा बाजार : देश में इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर, व्यक्ति और ब्रांड प्रमोशन का बड़ा औजार बनकर सामने आया है। इंटरनेट मीडिया विज्ञापन का एक अपरंपरागत माध्यम है। यह माध्यम एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति इंटरनेट मीडिया के किसी प्लेटफार्म (फेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम आदि) का इंटरनेट के माध्यम से उपयोग कर किसी भी इंटरनेट कनेक्टेड व्यक्ति तक पहुंच बना सकता है।
भारत में चूंकि अभी इंटरनेट बाजार में पर्याप्त संभावनाएं हैं, इसलिए अभी इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर का यह दौर चलेगा। परंतु इस क्षेत्र से जुड़ी कुछ चिंताएं भी हैं। वस्तुत: भारत के इंटरनेट मीडिया इंफ्लूएंसर मार्केटिंग उद्योग को विनियमन की आवश्यकता है, ताकि तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण से बचा जा सके।
इंटरनेट मीडिया पर पकड़ बनाने की कवायद : आज के दौर में लगभग सभी नेता यह समझ चुके हैं कि चुनाव में इंटरनेट मीडिया से दूर रहने की दशा में वे चुनावी मैदान से बाहर हो सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि भारत में एक अरब से अधिक लोगों के पास मोबाइल फोन है और उतने ही लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। वहीं पिछले एक दशक में इंटरनेट सस्ता भी हुआ है, जिससे ग्रामीण एवं दूरदराज के आम लोगों की उस तक पहुंच बढ़ी है। इसका केवल स्थानीय स्तर पर इस्तेमाल होने से प्रत्याशियों का खर्च भी कम हो जाता है।एक समय सोशल मीडिया पर प्रचार के लिए सबसे पसंदीदा मंच रहा फेसबुक अब राजनीतिक पेज पर विज्ञापनों संबंधी कई पाबंदियों के कारण राजनीतिक दलों का पसंदीदा माध्यम नहीं रहा है।राजनैतिक दल ऐसे सोशल मीडिया मंच को पसंद करते हैं | जो उन्हें बगैर ज्यादा पाबंदियों के और बड़े उपयोगकर्ता आधार के साथ तेजी से जनता से जोड़ने में मदद करते हैं। इंस्टाग्राम और ट्विटर (अब एक्स) जैसे कई अन्य मंच हैं जो जनता के एक खास वर्ग की आवश्यकताओं को पूरी करते हैं और उनके अलग-अलग प्रारूप हैं।पिछले कुछ महीनों में कई नेता युवा दर्शकों से जुड़ने के लिए मशहूर सोशल मीडिया ‘इन्फ्लूएंसर्स’ के यूट्यूब चैनलों पर दिखायी दिए हैं। एस. जयशंकर, स्मृति ईरानी, पीयूष गोयल और राजीव चंद्रशेखर जैसे भाजपा नेताओं ने पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया को साक्षात्कार दिए हैं जिनके यूट्यूब पर 70 लाख से अधिक फॉलोअर हैं।कांग्रेसी नेता राहुल गांधी ने भी यात्रा और भोजन के वीडियो पॉडकास्ट ‘कर्ली टेल्स’ की संस्थापक कामिया जानी से भोजन पर बातचीत करी है |लोकतंत्र में राजनीति का कामकाज सार्वजनिक क्षेत्र के आधार पर होता है। डिजिटल तकनीक के आगमन के बाद, सार्वजनिक क्षेत्र की संरचना में भी बदलाव आया है। राजनीतिक कार्यप्रणाली का मुख्य उद्देश्य जनता के बीच संचार और विचारों को प्रसारित करना है। सोशल मीडिया डिजिटल सार्वजनिक क्षेत्र के अत्यधिक महत्वपूर्ण अंग बन गया है, जिससे राजनीतिक दल अपने संदेशों को पहुंचाते हैं और जनता के समर्थन को जुटाते हैं। यह रणनीति भारत में राजनीतिक संचार के परिदृश्य को बदल रही है, जहां डिजिटल आउटरीच रणनीतियाँ पारंपरिक तरीकों को पूरक या प्रतिस्थापित कर रही हैं। इस रणनीति के तहत, राजनीतिक दल सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर बड़ी संख्या में सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर के साथ सहयोग करके अपने संदेश को बढ़ाते हैं। इससे उन्हें अपनी दृश्यता बढ़ाने और युवा जनसांख्यिकी के साथ जुड़ने का मौका मिलता है। यह तरीका न केवल जनता के साथ संवाद को सुगम बनाता है, बल्कि उन्हें राजनीतिक दलों के साथ संवाद करने और अपनी राय व्यक्त करने का मंच भी प्रदान करता है। इसके अलावा, यह रणनीति नए रूप से जनता को शासन के निर्णयों और कार्यक्रमों के प्रति सक्रिय बनाती है, जिससे लोकतंत्र की स्थिरता और निष्पक्षता में सुधार होता है।तस्वीर का स्याह पक्ष यह भी है की कई बार सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर किसी राजनैतिक दल या व्यक्ति से नीतियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण न जुड़कर किसी वित्तीय या अन्य लाभ से जुड़ते हैं जो किसी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है |
दैनिक जागरण में 15/05/2024 को प्रकाशित