भारत में रेप और असहमति से बनाये गये इन सेक्स वीडियोज का बड़ा कारोबार है, इसकी जड़ें शहरों के ठिकानों से लेकर ऑनलाइन बाजारों तक फैली हुई हैं। पहले ये वीडियो देश के कस्बों और शहरों के एक कोने में सीडी और पेन ड्राइव के माध्यम से बेचे जाते थे। लेकिन इंटरनेट के आने के साथ, यह काला कारोबार अब इन्हीं इन्क्रिप्टेड ऐप्स पर चला गया है, जहाँ एक बार ऑनलाइन हो जाने के बाद क्लिप्स को रोकना संभव नहीं है। वाहट्सअप, टेलीग्राम जैसे मैसेजिंग ऐप्स पर एन्क्रिप्शन की आड़ में इस तरह के वीडियो के लिंक खुलेआम बेचे जा रहे हैं। इन एप्स पर कथित रेप वीडियोज, चाइल्ड पॉर्नोग्रॉफी से संबंधित वीडियो चंद पैसों में बेची जाती है। फैक्ट चैकिंग संस्था बूम की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी ये अपराधी अपनी पैठ जमाये हुए हैं। इंस्टाग्राम से ये अपराधी लिंक के जरिये प्राइवेट टेलीग्राम चैनल पर ले जाते हैं जहाँ यह काला कारोबार होता है। वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया साइट्स पर अगर आप ऐसे एक आपत्तिजनक पेज को फॉलो करते हैं तो एल्गोरिदम और भी इसी तरह के अकाउंट आपको सुझाता है। लिंक के लिए यूपीआई, इंस्टेंट पे से भुगतान करने के बाद इच्छुक सब्सक्राइबर को टैराबॉक्स और क्लाउड एग्रीगेटर ऐप्स की ओर ले जाया जाता है। जहां वे इन अवैध और अमानवीय सामग्री तक पहुँच कर उसे डाउनलोड कर सकते हैं। एक बार डाउनलोडिंग के बाद इसे ट्रेस करना या रोकना लगभग असंभव हो जाता है।
अमेरिकी गैर लाभकारी संस्था नेशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइटेड चिल्ड्रन की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत दुनिया में बाल यौन शोषण सामग्री का सबसे बड़ा निर्माता है। पॉक्सो एक्ट जैसे कठिन प्रावधानों और सजा के बाद भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर बाल यौन शोषण सामग्री भरी हुई है। टेलीग्राम जैसे ऐप्स पर ऐसे अनेक चैनल्स हैं जो बाल यौन शोषण सामग्री को चंद पैसों से लेकर हजारों रुपयों तक बेचते हैं। यह व्यापार इतनी तेजी से बढ़ता जा रहा है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां भी इसे रोकने में असमर्थ नजर आ रही हैं। इन एन्क्रिप्टेड चैनलों को बंद करना भी एक अस्थायी समाधान है, क्योंकि नए चैनल्स कुछ ही मिनटों में शुरू हो जाते हैं। इस अनैतिक व्यापार ने न केवल कानून को चुनौती दी है, बल्कि समाज की नैतिकता और संवेदनशीलता को भी कठघरे में खड़ा कर दिया है। इस कड़ी में एआई जैसी तकनीक आने से अपराधियों के हौसले और बढ़ गये हैं। जहाँ तकनीक की मदद से किसी भी शख्स की सामान्य तस्वीर को फेक न्यूड तस्वीरों और डीप फेक वीडियो में बदला जा सकता है। टेक रिसर्च संस्था वर्ज की एक रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को प्रशासन ने 18 वेबसाइट्स और ऐप्स के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, जो इस तरह के न्यूड फेक वीडियो को बनाने में मदद करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये वेबसाइट्स केवल 2024 के पहले छह महीनों में 200 मिलियन से अधिक बार देखी गई थीं। आज के दौर में किसी के भी शरीर का हक छीनकर उसकी इज्जत को तार तार किया जा सकता है, और तकनीक की मदद से इसे बेचना, फैलाना कितना आसान हो गया है।
साल 2023 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार ने सोशल मीडिया साइट्स जैसे फेसबुक, यूट्यूब और टेलीग्राम जैसी कंपनियों को इस तरह की सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नोटिस जारी किया था। इसके बाद यूट्यूब ने अपनी नई कम्युनिटी गाइड लाइन्स के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर माह के बीच करीब 25 लाख वीडियो को अपने प्लेटफॉर्म से हटाया था। वहीं, टेलीग्राम पर 'स्टॉप चाइल्ड अब्यूज' चैनल के डेटा के मुताबिक इस साल अब तक करीब 6 लाख 70 हजार चैनल्स को बैन किया जा चुका है, जिनमें अगस्त महीने में अकेले 52 हजार के करीब चैनलों को बैन किया गया।पॉर्नोग्राफी और इस तरह की यौन हिंसा के वीडियो देखने की आदत के बीच गहरा ताल्लुक है।
मनोचिकित्सक मानते हैं कि इस तरह की सामग्री देखने से व्यक्ति की यौन और हिंसा के प्रति सामान्य दृष्टि विकृत हो गई है। भारत जैसे देश में जहां यौन शिक्षा की कमी भी इस समस्या को और गंभीर कर देती है। दुनियाभर में पॉर्न के उपभोग पर मंकी इंसाइडर नामक संस्था की एक रिपोर्ट में चौकाने वाला खुलासा सामने आया है, रिपोर्ट में कहा गया है कि पॉर्न वीडियो देखने के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर आता है। जिनमे 18 से 24 साल के युवाओं की संख्या 24 प्रतिशत है।ब्रिटिश जर्नल ऑफ क्रिमिनोलॉजी में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यधारा की पोर्न साइट्स पर पहली बार आने वाले हर आठ में से एक उपयोगकर्ता को ऐसे वीडियो दिखाए जाते हैं, जिनमें यौन हिंसा या बिना पीड़ित की सहमति के रिकॉर्ड की गई गतिविधियों का उल्लेख होता है। यह आंकड़ा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि इंटरनेट पर इस तरह की सामग्री कितनी सामान्य होती जा रही है और किस हद तक हमारी मानसिकता और नैतिकता को प्रभावित कर रही है। इस समस्या का समाधान हम सिर्फ कानून से नहीं , बल्कि जागरूकता लाकर ही कर सकते हैं। ताकि हम न केवल इस तरह की सामग्री को नकारे, बल्कि इसके खिलाफ खड़े हों। हमें समझना होगा कि इस तरह का हर क्लिक, हर शेयर किसी की जिंदगी को तबाह कर सकता है।
अमर उजाला में दिनांक 21/10/2024 को प्रकाशित
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