जहाँ
एक ओर यह तकनीक संचार को त्वरित और सुलभ बना रही है, वहीं दूसरी ओर इसका प्रभाव मानवीयता पर भी पड़ा है। संचार में मानवीय
भावनाएँ, आवाज़ की गर्माहट, और चेहरों के भाव धीरे-धीरे गायब होते जा रहे
हैं। जो समस्याओं को सुलझाने के बजाय और
बिगाड़ रही है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स हों या हमारे जीवन को आसान बनाने वाली
ऑनलाइन कंपनियाँ ये हमारे जीवन का आज अहम हिस्सा बन गई है। चाहे अमेजन जैसे
ई-कॉमर्स प्लेटफार्म सामान मंगाना हो या ऊबर,ओला जैसी कैब सर्विस से कहीं जाना, इन एप बेस्ड कंपनियों ने हमारे रोजाना के कामों को सरल और सुविधाजनक
बना दिया है। मगर इसका एक और पहलू भी है, इन तकनीकों और ऑनलाइन सेवाओं के फायदे के साथ कुछ चुनौतियाँ और
समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं। इन प्लेटफार्म्स पर हमारे पास सीधे और व्यक्तिगत
संपर्क की कमी होती है, जिससे
हमारी समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म फेसबुक, जिसने भारत में 32 करोड़
यूज़र्स का आंकड़ा पार कर लिया है, उपयोगकर्ताओं
की समस्याओं के समाधान के लिए केवल हेल्प, सपोर्ट और रिपोर्ट जैसी सुविधाएं प्रदान करता है जो कि एक प्री
डिसायडेड एक तरफा तंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है।
उदाहरण
के लिए, यदि आप अमेज़न या फ्लिपकार्ट से कोई
उत्पाद खरीदते हैं और वह ख़राब निकलता है, तो आपको अकसर चैटबॉट से ही मदद मिलती है। इसके बाद, वास्तविक कस्टमर सर्विस प्रतिनिधि से संपर्क करने
के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। इसी तरह, अगर फूड डिलीवरी ऐप पर आपके ऑर्डर में खराब या गलत भोजन आता है, तो आपको स्वचालित सपोर्ट और लंबे इंतजार का सामना
करना पड़ता है। इन प्लेटफार्म पर स्वचालित सहायता और सीमित विकल्पों के कारण, कई बार समस्या मिनटों में सुलझने की बजाय घंटों
तक उलझी रहती है।
यह
स्थिति ग्राहक को इतना निराश कर देती है कि उन्हें अंततः सोशल मीडिया पर अपने
मुद्दे उठाने पड़ते हैं। मगर
ग्राहक सेवा क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से इन नौकरियों पर खतरा मंडरा
रहा है। बड़ी कंपनियों ने ग्राहक सेवा में वेटिंग टाइम को कम करने के लिए लाइव चैट
का विकल्प दिया। जिसमें ग्राहकों को अपनी समस्याएं लिख कर देने के लिए प्रेरित
किया जाने लगा। और धीरे-धीरे मौखिक संचार को कम कर कंपनियों ने आर्टिफिशियल
इंटेलिजेंस चैटबॉट्स को तरजीह देनी शुरू कर दी, इससे कंपनियों को ग्राहक सेवा में खर्च कम पड़ रहा है। इस कटौती की
शुरुआत कॉल सेंटर एग्जीक्यूटिव की संख्या घटाने से शुरू कर दी गई है।
वहीं
विशेषज्ञ ये मानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव से अधिकांश कॉल
सेंटर्स का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। कई ऐप्स कॉल हेल्पलाइन की लिंक तक पहुँचने की प्रक्रिया को इतना जटिल
बना देते हैं कि ग्राहकों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
न्यू वाइस मीडिया द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, खराब ग्राहक सेवा के कारण हर साल करीब 75 बिलियन डॉलर के व्यापार की हानि होती है। तकनीक के अंधाधुंध प्रयोग से मानवीय संवाद का स्थान एक निर्जीव तंत्र ने ले लिया है, जहाँ अब समस्याओं का समाधान मशीनों और बिना मौखिक संवाद से बातचीत द्वारा किया जाता है वहीं यह सिर्फ व्यापार और ग्राहक सेवा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी पड़ रहा है। तकनीक जब हमारे संचार के हर पहलू को नियंत्रित करती है तो हम अपनी मानवीय संवेदनाओं से दूर होते जाते हैं। यह एक महत्वपूर्ण समय है जब हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तकनीक हमें उलझाने के बजाय हमारे जीवन को सुगम बनाए।
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