साल 2010 में जो सोशल मीडिया आशाओं उम्मीदों का प्रतीक बन कर उभर रहा था| वो साल 2020 तक आते –आते फेक न्यूज और लोगों की राजनीतिक विचारों को प्रभावित करने जैसे आरोपों का शिकार हो चुका था | सोशल मीडिया की आंधी आये हुए महज दस साल में ही लोग अपनी राय पोस्ट करने में अब कम लोग ही सक्रिय हैं|पोस्ट करने से आशय टेक्स्ट, इमेज, फॉर्म में अपने आपको व्यक्त करने से है |सोशल मीडिया पर रोज बहुत सारे लोग लॉग इन करते हैं, पर वास्तव में बहुत कम लोग ही पोस्ट कर रहे हैं।हम प्रतिदिन लगभग दो घंटे इंस्टाग्राम फेसबुक या ट्विटर पर स्क्रॉल करते हुए समय बिताते हैं, लेकिन उनके मुख्य फ़ीड पर उनकी आखिरी पोस्ट एक साल पहले की थी। कभी कभी लोग सोशल मीडिया स्टोरीज जरुर शेयर करते हैं ,जो चौबीस घंटों के बाद गायब हो जाती हैं। सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल ने लोगों को अब यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब जीवन में और अधिक झगड़े जोड़ने की जरूरत नहीं है और लोगों को इस बात पर झगड़ने की ज़रूरत नहीं है कि मैंने किसे वोट दिया या मैं क्या सोचता हूँ।अब वह वह आमने-सामने और समूह चैट को प्राथमिकता देता है—जिसे अब "निजी नेटवर्किंग" कहा जा रहा है।
उपयोगकर्ताओं के सर्वेक्षण और डेटा-एनालिटिक्स फर्मों के शोध के अनुसार, अरबों लोग मासिक रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, लेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता कम पोस्ट कर रहे हैं और अधिक निष्क्रिय अनुभव का आनंद ले रहे हैं।इसे दूसरे शब्दों में यूँ समझा जा सकता है कि ऐसा नहीं है लोगों का सोशल मीडिया से मोह भंग हो रहा है वे अभी भी लोगों की सोशल मीडिया फीड देखने या राष्ट्रीय समय पास करना बन चुका शगल ,रील देखने में समय बिता रहे हैं| पर वे अब अपनी राय रखने में उतने सक्रिय नहीं रहे हैं |डेटा-इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट की अक्टूबर रिपोर्ट में,सोशल-मीडिया अकाउंट वाले 61 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क उत्तरदाताओं ने कहा कि वे जो पोस्ट करते हैं उसके बारे में वे अधिक चयनात्मक हो गए हैं यनि अब लोग क्या पोस्ट करना है उसके बारे में सोचने लग गए है ।भारत भी अपवाद नहीं है|भले ही अपने विशाल सोशल मीडिया यूजर बेस के कारण यहाँ ऐसा नहीं दिखता पर अब लोग सोशल मीडिया पर कम पोस्ट शेयर कर रहे हैं | इसके कई कारण हैं इस शोध के हिसाब से लोग ये मानने लगे हैं कि वे जो सामग्री देखते हैं उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। वेअपने जीवन को ऑनलाइन साझा करने को लेकर अधिक सुरक्षात्मक हो गए हैं और अब उन्हें अपनी निजता की भी चिंता होने लग गयी हैं ।सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स की बढ़ती संख्या के कारण लोगों का मजा किरकिरा भी हुआ है |सारे मेटा प्लेटफोर्म (इन्स्टाग्राम और फेसबुक )में यह गुप्त प्रवृत्ति जिसमें टिकटोक और एक्स(ट्विटर ) इन सभी के व्यवसाय के लिए ख़तरा है। उपयोगकर्ताओं के ज्यादा से ज्यादा शेयर करने के कारण वे दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंपनियों और प्लेटफार्मों में से बन गए हैं।मजेदार तथ्य यह है कि इनमें से कोई भी कम्पनी कोई उत्पाद नहीं बनाती है,फिर भी ये नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|
सिर्फ यूजर जेनरेटेड कंटेंट जाहिर है लोगों की कहने की आदत के कारण|भारत अभी अमेरिका जैसी गंभीर स्थिति में नहीं है पर यह साफ़ तौर पर अब देखा जा सकता है कि लोग अपनी निजता और सब कुछ सोशल मीडिया पर डालने की मानसिकता से किनारा कर रहे हैं |इसका एक बड़ा कारण सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग मार्केटिंग और ब्रांडिग के लिए किया जाना इसके अलावा मीडिया लिट्रेसी का प्रचार प्रसार भी है | वैसे भी सोशल मीडिया पर आते ही उपभोक्ता डाटा में तब्दील हो जाता है| फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है | यूजर जेनरेटेड कंटेंट से चलने वाली इन कम्पनियों की कमाई का बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को नहीं होता |
आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी करतीं । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता है । ऐसा भी नहीं कि ये सोशल मीडिया कंपनियां इस तथ्य से अनजान हैं |अब वे सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं को ज्यादा पर्सनलाइज्ड अनुभव देने की ओर अग्रसर हैं |वे मैसेजिंग जैसे अधिक निजी उपयोगकर्ता अनुभवों में निवेश कर रहे हैं और बातचीत को अधिक सुरक्षित बना रहे हैं। जिसमें लोगों को अधिक अंतरंग साथियों के लिए पोस्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना भी शामिल है - जैसा कि इंस्टाग्राम के हाल ही में जारी किये गए क्लोज फ्रेंड्स फीचर के साथ हुआ है।इन सबके बावजूद सोशल मीडिया से लोगों की बढ़ती अरुचि किसी नए माध्यम के विकास का बहाना बनेगी या नए यूजर की बढ़ती संख्या इस प्रक्रिया को चलायमान रखेगी यह देखना दिलचस्प होगा |
उपयोगकर्ताओं के सर्वेक्षण और डेटा-एनालिटिक्स फर्मों के शोध के अनुसार, अरबों लोग मासिक रूप से सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं, लेकिन सोशल मीडिया उपयोगकर्ता कम पोस्ट कर रहे हैं और अधिक निष्क्रिय अनुभव का आनंद ले रहे हैं।इसे दूसरे शब्दों में यूँ समझा जा सकता है कि ऐसा नहीं है लोगों का सोशल मीडिया से मोह भंग हो रहा है वे अभी भी लोगों की सोशल मीडिया फीड देखने या राष्ट्रीय समय पास करना बन चुका शगल ,रील देखने में समय बिता रहे हैं| पर वे अब अपनी राय रखने में उतने सक्रिय नहीं रहे हैं |डेटा-इंटेलिजेंस कंपनी मॉर्निंग कंसल्ट की अक्टूबर रिपोर्ट में,सोशल-मीडिया अकाउंट वाले 61 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क उत्तरदाताओं ने कहा कि वे जो पोस्ट करते हैं उसके बारे में वे अधिक चयनात्मक हो गए हैं यनि अब लोग क्या पोस्ट करना है उसके बारे में सोचने लग गए है ।भारत भी अपवाद नहीं है|भले ही अपने विशाल सोशल मीडिया यूजर बेस के कारण यहाँ ऐसा नहीं दिखता पर अब लोग सोशल मीडिया पर कम पोस्ट शेयर कर रहे हैं | इसके कई कारण हैं इस शोध के हिसाब से लोग ये मानने लगे हैं कि वे जो सामग्री देखते हैं उसे नियंत्रित नहीं कर सकते। वेअपने जीवन को ऑनलाइन साझा करने को लेकर अधिक सुरक्षात्मक हो गए हैं और अब उन्हें अपनी निजता की भी चिंता होने लग गयी हैं ।सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स की बढ़ती संख्या के कारण लोगों का मजा किरकिरा भी हुआ है |सारे मेटा प्लेटफोर्म (इन्स्टाग्राम और फेसबुक )में यह गुप्त प्रवृत्ति जिसमें टिकटोक और एक्स(ट्विटर ) इन सभी के व्यवसाय के लिए ख़तरा है। उपयोगकर्ताओं के ज्यादा से ज्यादा शेयर करने के कारण वे दुनिया की सबसे शक्तिशाली कंपनियों और प्लेटफार्मों में से बन गए हैं।मजेदार तथ्य यह है कि इनमें से कोई भी कम्पनी कोई उत्पाद नहीं बनाती है,फिर भी ये नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|
सिर्फ यूजर जेनरेटेड कंटेंट जाहिर है लोगों की कहने की आदत के कारण|भारत अभी अमेरिका जैसी गंभीर स्थिति में नहीं है पर यह साफ़ तौर पर अब देखा जा सकता है कि लोग अपनी निजता और सब कुछ सोशल मीडिया पर डालने की मानसिकता से किनारा कर रहे हैं |इसका एक बड़ा कारण सोशल मीडिया अकाउंट का उपयोग मार्केटिंग और ब्रांडिग के लिए किया जाना इसके अलावा मीडिया लिट्रेसी का प्रचार प्रसार भी है | वैसे भी सोशल मीडिया पर आते ही उपभोक्ता डाटा में तब्दील हो जाता है| फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है | यूजर जेनरेटेड कंटेंट से चलने वाली इन कम्पनियों की कमाई का बड़ा फायदा उपभोक्ताओं को नहीं होता |
आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया से भारत मे कितने रोजगार पैदा हुए इसका विशेष उल्लेख नही मिलता क्योंकि ये सारी कम्पनियां इन से सम्बन्धित आंकड़े सार्वजनिक रूप से नहीं जारी करतीं । साथ ही प्रत्यक्ष रोजगार के काफी कम होने का संकेत इन कम्पनीज के एम्प्लाइज की कम संख्या से प्रमाणित होता है । ऐसा भी नहीं कि ये सोशल मीडिया कंपनियां इस तथ्य से अनजान हैं |अब वे सोशल मीडिया के उपभोक्ताओं को ज्यादा पर्सनलाइज्ड अनुभव देने की ओर अग्रसर हैं |वे मैसेजिंग जैसे अधिक निजी उपयोगकर्ता अनुभवों में निवेश कर रहे हैं और बातचीत को अधिक सुरक्षित बना रहे हैं। जिसमें लोगों को अधिक अंतरंग साथियों के लिए पोस्ट करने के लिए प्रोत्साहित करना भी शामिल है - जैसा कि इंस्टाग्राम के हाल ही में जारी किये गए क्लोज फ्रेंड्स फीचर के साथ हुआ है।इन सबके बावजूद सोशल मीडिया से लोगों की बढ़ती अरुचि किसी नए माध्यम के विकास का बहाना बनेगी या नए यूजर की बढ़ती संख्या इस प्रक्रिया को चलायमान रखेगी यह देखना दिलचस्प होगा |
अमर उजाला में 03/04/2024 को प्रकाशित
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