मेरे जीवन के कई
बसंत सिर्फ यह सुनते सुनते बीत गए कि देश का युवा जागरूक नहीं है पर क्या
ऐसा वास्तव में है| मस्ती की पाठशाला में बिंदास जीवन का पाठ पढ़ रहे युवाओं ने देश ही क्या सारी दुनिया में दिखा दिया कि ना तो वो गैर जिम्मेदार हैं
और ना ही अपने आस पास के परिवेश से कटे हुए| वास्तव ऐसा है नहीं |यही युवा है जो दुनिया भर की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर कई
मुद्दों पर लोगों को जागरूक करने में लगे हुए है |वो एक गाना है “ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा” कोई ध्वनि प्रदूषण नहीं हुआ पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर जो
कुछ लिखा पढ़ा गया उसका असर सारे देश ने देखा और सुना भी |निर्भया काण्ड के बाद युवाओं की इसी मुहिम ने लोगों को
अपने घरों से बाहर निकाला| ये एक सेल्फ मोटीवेटेड प्रयास था ना लाउडस्पीकर बजे ना लोग घरों घरों में जाकर घूमे यानि ना बिल आये ना दिल घबराये फिर भी कमाल का असर हुआ और
महिलाओं के लिए एक नया कानून बना |अब जब सिस्टम को सुधारने की बात की जायेगी तो उसका भारत में कम
से कम एक ही तरीका है राजनीति में अच्छे और नए लोग ज्यादा से ज्यादा चुनकर
आयें और ये काम पांच साल में एक ही बार होता है .
एक बार अगर हमने
गलती कर दी तो पांच साल का इन्तिज़ार करना पड़ेगा .अमूमन यूथ चुनाव के समय वोट ये सोचकर नहीं जाता कि हमारे
एक वोट से क्या होगा और वही एक कम वोट सही कैन्डीडेट को हरा देता है . अब देश का यूथ पोलिटकली एक्टिव हो रहा है |हम जैसा सिस्टम चाहते हैं उसको बनाने की जिम्मेदारी हम किसको
सौपने जा रहे हैं और इसके लिए हमें वोट देने जाना जरूरी है .वोटिंग डे को होलिडे मत समझिए ये सबसे बड़े काम का दिन है .मेरी बात पढकर शायद आप मान जाएँ पर वो जिसने ये लेख नहीं पढ़ा
या चुनाव जिसकी प्राथमिकता में नहीं है उनका क्या करें ? चलिए एक कोशिश कर के देखते हैं हम सभी टेक्सेवी तो हैं ही ना तो तकनीक को हम अपना माध्यम बनाते हैं .आज से सोशल नेटवर्किंग साईट्स का इस्तेमाल लोगो को इस बात को
मोटिवेट करने के लिए कीजिये कि लोग वोट देने जरुर जाएँ और वोट सही उम्मीदवार को दें .
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