एडिटिंग का कम खतम हुआ मुश्लिल तनाव का एक दौर ख़त्म हुआ लेकिन कुछ और तनाव इंतिज़ार कर रहे होंगे एक शिक्षक की हैसियत से सब से जयादा परेशानी होती है सभी को संतुष्ट करने में क्योंकी मेरा मानना है कि अगर सर्जन्तामकता निकालनी है तो दिमाग से कुंठा को निकालना होगा एक कुंठित व्यक्ति कुंठित विचार को आगे बढायेगा इस लिए सारे तनाव मैं ओढ़ लेता हूँ अगर ये खुश रहेंगे तो मई खुश रहूंगा लेकिन कुछ ज्यादा जिद करते हैं तब मुझे लगता है कि उनका भरोसा मैं नहीं जीत पाया लेकिन यही जिन्दगी है ।
शुक्रिया सभी का जिनोहेने मेरी डांट सूनी लेकिन बुरा नहीं माना शुक्रिया दुर्गेश जी शुक्रिया गणेश तुम्हारा दुस्हेरा ख़राब किया लेकिन तुमने पूरा साथ दिया बच्चों बहुत बहुत शुक्रिया इस पूरे दौर मैं किसी को मेरी बात बुरी लगी हो तो मैं माफी चाहूँगा शुक्रिया
Friday, October 26, 2007
Wednesday, October 24, 2007
अनवर भाई यानी हमारे आर्यभट
अनवर भाई यानी हमारे आर्यभट यूं तो हमारी मुलाक़ात बहुत पुरानी है लेकिन उनकी बहुमुखी प्रतिभा का मुज़हयारा तो वापस लखनऊ आकर हुआ अनवर भाई हमेशा में और मेरी तन्हाई के साथ अपने कमरे में मिलते किसी भी काम के जितने पोस्सीबल एंगल हो सकते हैं वो सारे अनवर भाई मुझे अक्सर बताते । ना जाने क्यों उनोहने विभाग से एक अनचाही दूरी बना ली थी या बन गयी थी लेकिन मुझे ये लगता था की ये काम को सिलसिलेवार करने के आदी थे और फिर काम धीरे -धीरे ठीक होना शुरू हुआ .ये तो दुनिआवी बातें हो गयी उनकी शाख्शियत का जो हिस्सा मुझे प्रभावित करता है उनका कम बोलना और अपने काम से मतलब रखना
जिन्दगी से बड़ा शिक्षक कोई नही हो सकता है ये बातें किसी विश्विद्यालय में नहीं सिखाई जा सकती हैं जिन्दगी खुद आपको सिखा जाती है अगर आप की नीयत साफ है और काम करने के लगन है तो दुनिया की कोई ताकत आपको बढ़ने से रोक नही सकती लेकिन प्रयास ईमानदारी से होना चहिये । शिखर पर चढ़ने में वक्त लगता है और रास्ता आपको बताता है कि जिन्दगी कितनी मुश्किल है लेकिन फिर भी हम जीने का हौसला नहीं छोड़ ते
हैं । अनवर भाई जिन्दगी अपनी शर्तों में जीने में यकीन करते हैं समय के पाबन्द हैं आप काम उनपर छोड़ सकते हैं । उनोहने भी मेरी तरह कंप्यूटर किसी से सीखा नही है लेकिन उनके कंप्यूटर ज्ञान के आगे बडे- बडे महारथी पानी माँग जाते हैं लेकिन इसका प्रदर्शन वो कभी नहीं करते
शायद यही बात उनेह दूसरों से अलग करती है किसी से कोई शिकवा -शिक़ायत नही बस आप काम दीजिए हाँ यदि विभाग से बाहर का काम है तो वो अपनी फ़ीस के बारे में एकदम सचेत है लेकिन पैसे का लालच बिल्कुल नहीं
दुनिया में हम तरह तरह के लोगों से मिलते हैं और उनको हम अपने नज़रिए से परखने की कोशिश करते हैं ये नज़रिया गलत भी हो सकता है ।
चलिए अब चलता हूँ फिर किसी नए किस्से से जिन्दगी को समझने का प्रयास किया जाएगा॥
Tuesday, October 23, 2007
दशहेरा बीत गया एडिटिंग जारी है .6 फिल्में अभी तक एडिट हुईं अच्छी बात ये है की छात्रों का सहयोग मिल रह है वो बिना किसी शिक़ायत के अपनी बारी से फिल्मों की एडिटिंग करवा रहें हैं शुरुआत में जब उनकी शिकायतों का सिलसिला शुरू हुआ तो मुझे ऐसा लगा कि शायद मुझे ये कम नही करवाना चहिये और उसी को कायम रखने में रवि की एक बहुत अच्छी फिल्म आधीअटक गयी लेकिन मुझे उम्मीद है कि जब परिवर्तन होता है तो कुछ परेशानियाँ तो उठानी पड़ती हैं ज्यादा तर लोगों को ये लगा के केमरा आना हे फिल्म बनने के लिए पर्याप्त है और इसलिए सब चलता है वाला रवैया अपनाया लेकिन जैसे जैसे कम आगे बढ़ा सब को इस बात का एहसास होने लग गया कि अगर पेपर वर्क स्ट्रोंग नहीं होगा तो प्रोडक्शन में कितनी दिक्कत आती है , हम बिल्कुल भी उम्मीद नहीं कर रहे हैं कि हमने बड़ा खूबसूरत काम किया है लेकिन इस तथ्य से किसी को इनकार नहीं होगा कि सभी ने बड़ी मेहनत की है लेकिन हम सब इस मुगालते में बिल्कुल नहीं हैं कि मेहनत का फल हमेशा मीठा ही कभी क्योंकि हर प्रोडक्शन में मेहनत होती है किन्तु आखिरी फैसला जनता को ही करना है और हम सब उस फैसले को सहर्ष मानेंगे
कोशिश करने वालों कीई कभी हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और विचार करो
कुछ किये बिना यूं ही जय जय कार नहीं होती
मेहनत करने वालों की मेहनत , कभी बेकार नहीं होती है
फिर मुलाकात होगी
कोशिश करने वालों कीई कभी हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो
क्या कमी रह गयी देखो और विचार करो
कुछ किये बिना यूं ही जय जय कार नहीं होती
मेहनत करने वालों की मेहनत , कभी बेकार नहीं होती है
फिर मुलाकात होगी
Saturday, October 20, 2007
एक दिन और बीता आज कुछ भी खास नहीं हुआ । मैं उन सभी छात्रों से माफी मांगता हूँ जो मेरे बुलावे पर विभाग पहुंचे लेकिन कुछ हुआ नहीं । मित्रों आपने मेरी परेशानी को समझनें के कोशिस की होगी यहाँ मेरे हाँथ में कुछ भी नहीं है। मैं कानून बनाता रहूंगा और वे टूटते रहेंगे लेकिन मेरा कम है कोशिस करते रहना और में वो करूँगा क्योंकि जिंदा कोमें सवाल पूछती हैं
आज तो इतना ही लेकिन कल ज़रूर कुछ नए विचार लेकर हाज़िर हूँगा।
आज तो इतना ही लेकिन कल ज़रूर कुछ नए विचार लेकर हाज़िर हूँगा।
जिदगी की कहानी दुर्गेश के किस्से की जुबानी
दुर्गेशपाठक ये नाम नहीं एक चिंतन है बस दो मिनट में आरहा हूँ । कभी -कभी में सोचता हूँ कि इस नाम का एक नया पंथ चलाया जाये जो लोगों को ये सीख देता हो कि किसी काम को बोझ मत समझा जाये क्योंकि ऐसी भी जल्दी क्या है जब जीना है बरसों। आप कोई भी कम कहें वो हो जाएगा लेकिन कब ?इस प्रशन का उत्तर समय के गर्भ में है । दार्शनिकों के कई पंथ व विचारधाराएँ हैं जिसमें एक् विचारधारा दुर्गेश पाठक की भी है क्योंकि अगर आप जीवन का सत्य जान जायेंगे तो जीवन से डर तो मौत है इसलिए हमारे प्यारे दुर्गेश जी भी आपको कभी भी काम का सत्य नहीं बतायंगे क्योंकि अगर आप सत्य जान जायेंगे तो आप को अपने कार्य से विराक्ती हो जायेगी ।
प्लेटो अरस्तू ने अपना सारा जीवन , दर्शन के मर्म को समझने में लगा दिया और उनके सिद्धांत किताब और ग्रंथों के रुप में आज भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहें हैं , लेकिन मुझे जीवन की निस्सारता का अहसास दुर्गेश जी के साथ कार्य करते हुए बहुत जल्दी समझ में आ गया है। शायद ठीक ही कहा गया है पुस्तकें हमारे चिंतन को विस्तार देती हैं लेकिन जब किसी दर्शन को आप जीने लगते हैं तो वो तुरंत यथार्थ का रुप ले लेता है और फिर शुरू होता है उसके सिद्धान्तिकरण का कार्य जो कार्य मैं कर रह हूँ .जिन्दगी का काम है चलते रहना और दुर्गेश जी भी चले जा रहे हैं उनको तो मैं बदल नहीं पा रहा हूँ तो सोचा जनमाध्यमों के तरह खुद ही क्यों न बदल लिया जाये क्योंकि जिन्दगी रुकती नहीं किसी के लिए चलता रहे इंसान यही मुनासिब है जिन्दगी के लिए ।
दोस्तों जिन्दगी एक ही है और फैसला हमें करना है कि हम अपना जीवन शिकयात करने और दूसरो के बदलने के इंतज़ार में ख़त्म कर दें या उस जीवन को जैसे हमें मिला है बेहतर करने की कोशिश में व्यतीत करें .किस्सा छोटा सा है फलसफा बड़ा जो सफर प्यार से कट जाये वो प्यारा है सफर ।
मेरा ये सफर चल रह है मंजिल के तलाश है न जाने कब खतम होगा लेकिन इतना विश्वास है की
जब चल कर आयें हैं इतने लाख वर्ष
तो आगे भी चल कर जायेंगे
आएंगे आएंगे उजले दिन जरूर आएंगे
धीरज और लगन से काम करते चलें दुनिया में सभी के लिए कुछ न कुछ है आप अपना हिस्सा तलाश करें
शुक्रिया
प्लेटो अरस्तू ने अपना सारा जीवन , दर्शन के मर्म को समझने में लगा दिया और उनके सिद्धांत किताब और ग्रंथों के रुप में आज भी हमारा पीछा नहीं छोड़ रहें हैं , लेकिन मुझे जीवन की निस्सारता का अहसास दुर्गेश जी के साथ कार्य करते हुए बहुत जल्दी समझ में आ गया है। शायद ठीक ही कहा गया है पुस्तकें हमारे चिंतन को विस्तार देती हैं लेकिन जब किसी दर्शन को आप जीने लगते हैं तो वो तुरंत यथार्थ का रुप ले लेता है और फिर शुरू होता है उसके सिद्धान्तिकरण का कार्य जो कार्य मैं कर रह हूँ .जिन्दगी का काम है चलते रहना और दुर्गेश जी भी चले जा रहे हैं उनको तो मैं बदल नहीं पा रहा हूँ तो सोचा जनमाध्यमों के तरह खुद ही क्यों न बदल लिया जाये क्योंकि जिन्दगी रुकती नहीं किसी के लिए चलता रहे इंसान यही मुनासिब है जिन्दगी के लिए ।
दोस्तों जिन्दगी एक ही है और फैसला हमें करना है कि हम अपना जीवन शिकयात करने और दूसरो के बदलने के इंतज़ार में ख़त्म कर दें या उस जीवन को जैसे हमें मिला है बेहतर करने की कोशिश में व्यतीत करें .किस्सा छोटा सा है फलसफा बड़ा जो सफर प्यार से कट जाये वो प्यारा है सफर ।
मेरा ये सफर चल रह है मंजिल के तलाश है न जाने कब खतम होगा लेकिन इतना विश्वास है की
जब चल कर आयें हैं इतने लाख वर्ष
तो आगे भी चल कर जायेंगे
आएंगे आएंगे उजले दिन जरूर आएंगे
धीरज और लगन से काम करते चलें दुनिया में सभी के लिए कुछ न कुछ है आप अपना हिस्सा तलाश करें
शुक्रिया
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