यूँ तो मै हर बार आपके सामने जिन्दगी के एक नए रंग के साथ आता हूँ पर आज की बात कुछ अलग है गर्मी अपने पूरे शबाब पर है बारिश बस आने को है और ऐसे ही मौसम की एक शाम को जब मै कुछ लिखने की कोशिश कर रहा था अचानक जिन्दगी के कुछ खट्टे मीठे पल दिल के किसी कोने से निकल पड़े और मुझे बीती यादों मे ले गए और मेरा मन उड़ चला बिन पंखों के... जी हाँ ये मन ही तो है जो कभी ज्यादा का इरादा करता है तो कभी कहता है जी लो जी भर के, ये आवाज़ हमारे अन्दर से आती हैहमसे बहुत कुछ कहती है और बस मैंने सोचा क्यों न आज मन की बातें मन से की जाएँ .मन है तभी सोच है और आज का यंगिस्तानी जो सोचता है वही बोलता है और यहीं थोड़ी सी प्रॉब्लम होती है जिसे हम जेनरेशन गैप कहते हैं वो गाना है न मैं करता रहा औरों की कही मेरे बात मेरे मन मे ही रही . वो वक्त दूसरा था जब लोग अपनी खुशियों को मार कर अपने घर परिवार के लिए सब कुछ किया करते थे इतने पर तो ठीक था लेकिन समय बीत जाने के बाद उन्हें अपने किये गए सेकरीफाइसेस पर स्ट्रेस ज्यादा होता था क्योंकि वो लोग कहीं आगे निकल चुके होते थे जिनकी मदद की गयी थी .आज टाइम बदल गया है लोग ३० साल में घर और गाडी के मालिक बन जाते हैं. अवसर भी है और उन्हें पाने का मौका भी ऐसे में अगर खुशियाँ मनाने का मौका है तो बिलकुल उन खुशियों के लिए अपने मन के दरवाजे खोल, दीजिये मत परवाह कीजिये लोक लाज और समाज की बंदिशों की आज के युवाओं की यही सोच है.इंसान जितना बड़ा प्लाट खरीदता है उस पर उतना बड़ा मकान नहीं बनाता ,कुछ जगह बागीचे के लिए छोड़ देता है जितना बड़ा मकान बनाता है उस पर उतना बड़ा दरवाजा नहीं बनाता ,जितना बड़ा दरवाज़ा लगाता है उसका ताला उतना बड़ा नहीं होता और जितना बड़ा ताला होता है उसकी उतनी बड़ी चाभी नहीं होती लेकिन मकान का कण्ट्रोल चाभी पर ही होता है बात सीधी है अब सोचिये न इस छोटे से मन पर कितना ज्यादा बोझ होता है रिश्तों का समाज का और न जाने क्या -क्या . तो इस पर बंदिश लगा कर क्यों हम इसे बाँधने की कोशिश करते हैं . और यही प्रॉब्लम है जेनरेशन गैप से होने वाले कंफ्लिक्ट की परेंट्स अपने बच्चों को अपने टाइम के हिसाब से बनाना चाहते हैं लेकिन मोबाइल और इन्टरनेट के इस युग में जहाँ दुनिया हर पल बदल रही है हम अपने मन की सोच अपने बच्चों पर थोप नहीं सकते हैं आखिर उनके पास भी एक प्यारा सा मन है जो उड़ना चाहता है कुछ करना चाहता है . ऐसे में हम अगर चीज पर बंदिश लगायें कि तुम ये करो ये न करो नहीं तो बिगड़ जाओगे ये ठीक नहीं होगा जिस चीज को जितना दबाया जाता है वो उतने ही वेग से ऊपर उठती है कहीं बचपन में पढ़ा था लेकिन बात थी एकदम सोलह आने सच . रोग को छुपायेंगे तो वो और फैलेगा तो बेहतरी इसमें है कि हम अच्छे और बुरे का फर्क उन्हें समझा दें और फैसला उन पर छोड़ दें क्योंकि जिन्दगी उनकी है और इसका फैसला भी उन्हें पर छोड़ दें अगर ऐसा हो गया तो किसी को भी अपने मन को नहीं मरना पड़ेगा और जेनरेशन गैप की प्रॉब्लम सोल्व हो जायेगी. जरा सोचिये अगर साहित्यकार , फिल्मकार ,कलाकार जैसे लोग अपने मन की न सुन रहे होते तो क्या आज हम यहाँ होते क्योंकि सोसाइटी किसी भी चेंज को आसानी से एक्सेप्ट नहीं करती. मन की बातें मन ही जानता है और इन बातों को समझने के लिए जरूरी है कि अपने मन को और अपने आस पास के लोगों को ऐसा एत्मोस्फीर दिया जाए कि उनका मन उड़ सके सोच सके.मन की बातें मन ही जानता है और इन बातों को समझने के लिए जरूरी है कि अपने मन को और अपने आस पास के लोगों को ऐसा एटमोस्फीयर दिया जाए कि उनका मन उड़ सके सोच सके .मेरे पिता जी कहा करते हैं शरीर को जितना कष्ट दोगे वो उतना ही स्वस्थ रहेगा नहीं तो आलसी हो जाएगा यही फलसफा हमारे मन पर भी लागू होती है अगर वो सोचेगा नहीं तो हम काम करने के लिए न तो खुद मोटिवेट होंगे और न दूसरों को कर पायेंगे यानि दूसरों के मन को भी उड़ने दीजिये और फिर देखिये दुनिया होगी मुट्ठी में।
आई नेक्स्ट में २ जून को प्रकाशित
13 comments:
hi sir...
i'll say emphatically its a great writeup sir and how beautifully u've penned down the solution to lessen the existing generation gap in the sciety..
hatts off to u sir..
तर्क बहुत अच्छा लगा रोकें नहीं उड़ान।
छोटे से आलेख में खूब कहा श्रीमान।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
एक अच्छा लेख ...अच्छा लगा पढ़कर
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
मुकुल जी उत्तम विचार। लेख में पैराग्राफ और गैप डालेंगे तो पठनीयता और बेहतर होगी।
मन के हारे हार है,मन के जीते जीत.. वैसे मन बड़ा चंचल भी होता है इसलिए मन को काबू में रखना भी जरूरी है..तभी होगी दुनिया मुट्ठी में...
बहुत ही अच्छा लेख सर जी..
बहुत अच्छा लिखा है आपनें .
मन
कुछ चाहने की क्षमता नहीं है
इसीलिए मांगना पड़ता है उसे
बैठे रहने की क्षमता नहीं है
इसीलिए दौड़ना पड़ता है उसे
सांस लेने की क्षमता नहीं है
इसीलिए 'कुत्ता' बनना पड़ता है उसे
रो पाने की क्षमता नहीं है
इसीलिए ठहाके लगाना पड़ता है उसे
'देख लेने' की क्षमता नहीं है
इसीलिए पहरा देना पड़ता है उसे
मर जाने की क्षमता नहीं है
इसीलिए झूम-झूम जीना पड़ता है उसे !
kafi achha likha hai sir
sir mai aapke is lekh ko achha nahi kh sakta
......kyonki ye bahut accha hai...ummeed hai aise aur lekh padhne ko milenge
mann bahuthi chanchal hota hain sir isko agar kabbooo me kar liya to duniya humari muthi me aur dil ki baat dil me rakh kar keh di jaye to betar hogi mann par koi bojh nahi rakhana cahiye. aur puri body ka control mann se hi hota hain. wakai me sir mann ki baat mann hi janta hai.
sir aapne bohat achi baat ki hai apne article mein... pehle hi bande ko achai burai ke baare mein bata do or phr saamne wale ke man pe chod do ki woh kya karna chahta hai..isse kisis bhi situation mein woh dusro per ilzaam nahi de sakta ki rok lete ya bataya nahi tha her insaan apni kerni ka khud zimmedar hota hai..isse parents or childrens ke beech mein bhi dararen kam hongi..
Well written...
ye baat to sach hai ki agar hm apni iccha ko markar kisi aur ke mutabik koi bhi kaam krtey hai to aagey chalkar aksar hume ye ehsaas hota hai ki kaash hum apne man ki kar lete to aj jo kasak mere man mai reh gayi hai wo na rehti......humse badey logo ka nazariya aksar humse alag hota hai..isiliue nahi ki wo humare dushman hai balki hume sahi raasta dikhane kliye..par humare badey aksar sahi ho ye jaroori nahi..to apne aur apne se bado ke beech ki samajh ko ek jaisa rkhne k liye hume..ek hi baat unke tareeke se samjhani chiye jisse wo unhe alag anokhi ya galat na lgey balki wo humare man ki baat bhi jaaney....
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