सूचना प्रौद्योगिकी ने भले ही पूरी धरती को एक गाँव बना दिया हो और हम सूचना समाज की ओर बढ़ चले हों पर भारत के गाँव बदलाव की इस बयार का सुख नहीं ले पाए हैं| वैसे तो देश में सूचना क्रांति के विकास के आंकड़े हौसला बढ़ाते हैं| मैककिन्सी ऐंड कंपनी द्वारा किया गया एक अध्ययन बताता है कि 2015 तक भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद तिगुनी होकर पैंतीस करोड़ से भी ज्यादा हो जाएगी पर तस्वीर का एक हिस्सा उतना चमकदार नहीं है हमारी करीब साठ प्रतिशत आबादी अब भी शहरों से बाहर रहती है। सिर्फ आठ प्रतिशत भारतीय घरों में कंप्यूटर हैं|इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत की ग्रामीण जनसंख्या का दो प्रतिशत ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है। यह आंकड़ा इस हिसाब से बहुत कम है क्योंकि इस वक्त ग्रामीण इलाकों के कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से अट्ठारह प्रतिशत को इसके इस्तेमाल के लिए दस किलोमीटर से ज्यादा का सफर करना पड़ता है।तकनीक के इस डिजीटल युग में हम अभी भी रोटी कपडा और मकान जैसी मूलभूत समस्याओं के उन्मूलन में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं |खाद्य सुरक्षा बिल पास होने के इंतज़ार में है | अमरीका के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति और शोध संस्थान और कन्सर्न वर्ल्डवाइड ने 79 देशों को लेकर एक विश्व भुखमरी सूचकांक तैयार किया है जिसमें भारत को 65वें स्थान पर रखा गया है|भुखमरी से निपटने के मामले में भारत चीन ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और श्रीलंका से पीछे है| संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ की नई रिपोर्ट यह बताती है कि साल 2011 में दुनिया के अन्य देशों की मुकाबले भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतें हुईं। गौरतलब है कि सूचना तकनीकी का इस्तेमाल मानव संसाधन की बेहतरी के लिए बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ने में असफल रही है माना जाता रहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता लाएगा और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगा पर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की नयी रिपोर्ट हमारी आँखें खोल देती है जिसमे भारत को 176 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में 94 पायदान पर रखा गया है|सूचना क्रांति का शहर केंद्रित विकास देश के सामाजिक आर्थिक ढांचे में डिजीटल डिवाईड को बढ़ावा दे रहा है| प्रख्यात जोखिम विश्लेषण फर्म मेपलक्राफ्ट द्वारा जारी डिजिटल समावेशन सूचकांक में ब्रिक देशों के समूह में मात्र भारत को अत्यधिक जोखिम वाले देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिसका मतलब है कि आर्थिक विकास के बावजूद अभी भी देश की आबादी का बड़ा हिस्सा डिजीटल समावेशन से दूर है हालांकि बाजार का विस्तार हुआ है लेकिन आईसीटी के उपयोग का असमान वितरण चिंता का बड़ा कारण है|
उदहारण के रूप में भारत की अमीर जनसँख्या का बड़ा तबका शहरों में रहता है जो सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल करता है|उदारीकरण के पश्चात देश में एक नए मध्यम वर्ग का विकास हुआ जिसने उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को प्रेरित किया जिसका परिणाम सूचना प्रौद्योगिकी में इस वर्ग के हावी हो जाने के रूप में भी सामने आया देश की शेष सत्तर प्रतिशत जनसँख्या न तो इस प्रक्रिया का लाभ उठा पा रही है और न ही सहभागिता कर पा रही है|आश्चर्यजनक रूप से इसके पीछे भी बाजार का अर्थशास्त्र जिम्मेदार है न कि तकनीक का अभाव,सूचना प्रौद्योगिकी कोई लोककल्याणकारी नीति पर नहीं बल्कि मुनाफे के अर्थशात्र पर निजी कंपनियों के हाथों में हैं जिनका जोर फायदे को अधिकतम करना है, जाहिर तौर पर इसी लिए इंटरनेट सेवाओं का विस्तार शहरों और उनके इर्द गिर्द के कस्बों में ज्यादा हो रहा है|सामन्यत:एक ग्रामीण इलाके के निवासी की खरीद क्षमता शहरी निवासी से कम होती है इसीलिये बैंडविड्थ और कनेक्टीविटी की समस्या ग्रामीण इलाकों में ज्यादा है| नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्षपिछले दस वर्ष में ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 0.4 प्रतिशत परिवारों को ही घर में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध थी।सूचना प्रौद्योगिकी के आने से यह उम्मीद जगी थी कि शहरों और गावों के बीच का अंतर घटेगा और गाँव बिना शहर हुए विकास की धारा का हिस्सा बनेंगे पर व्यवहार में यह डिजीटल डिवाईड उसी आर्थिक सुधार की प्रतिकृति हैं जिसमे अमीर और गरीब में फासला बढ़ रहा है| सूचना प्रौद्योगिकी मानव समस्याओ का समाधान करने मे मदद करनेवाली मशीनो और प्रक्रिया का विकास प्रयोग है पर यदि इस तकनीक का वितरण असमान होगा तो यह समस्याएं कम करने की बजाय बढाएंगी|भारत जैसे विकास शील देश के ग्रामीण इलाकों में यह तकनीक जितनी जल्दी सर्व सुलभ होगी देश के विकसित राष्ट्र में बदलने का सपना उतनी जल्दी हकीकत बनेगा |
अमर उजाला में 16/12/12 को प्रकाशित