Wednesday, January 4, 2012

डिजीटल साक्षरता और नए मीडिया का संघर्ष


अब यह एक बड़ा बाजार है .भले ही हम अब भी डिजीटल डिवाईड की बात करते हों ,भले ही अब ही यह कहा जाता हो कि भारत की बहुसंख्यक आबादी इन्टरनेट माध्यम से दूर है इन सबके बावाजूओद भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या दस करोड से ऊपर हो जाना ,अपने आप में यह एक बड़ा बदलाव है .इतनी तो दुनिया के कई विकसित देशों की आबादी नहीं होगी .दस करोड का यह आंकड़ा भारत की डिजीटल साक्षरता का भी आंकडा है .यानि वह आबादी जो पाने कार्य व्यापार व अन्य जरूरतों के लिए इन्टरनेट का इस्तेमाल करती है .
साक्षरता जब बढ़ती है तो ख़बरों को पढ़ने वालों की संख्या भी बढ़ जाती है .दुनिया भर में डिजीटल साक्षरता के साठ भी यही हुआ .भारत में इंटरनेट का उपयोग बढ़ने के साथ ही समाचार पोर्टल और अखबारों के इंटरनेट संस्करण भी बढे .सबसे पहले अंग्रेजी के समाचार पोर्टल और अखबारों के इंटरनेट संस्करण ही शुरू हुए थे ,लेकिन बाद में भारतीय भाषाओँ में ये काम तेजी से हुआ बल्कि अब ये शायद भारतीय भाषाओँ में ज्यादा तेजी से हो रहा है .शुरू में यह सोचा जा रहा था कि सोशल मीडिया के आने से ऐसे पोर्टल का जमाना लड़ जाएगा पर ऐसा नहीं हुआ .सोशल मीडिया के साथ ही यह पोर्टल भी अपना विस्तार कर रहे हैं .समाचार पोर्टलों की संख्या का बढ़ने का एक कारण यह भी है कि इसे बहुत कम जमापूंजी से भी शुरू किया जा सकता है .अखबार ,पत्रिका या टेलीविजन चैनल शुरू करने के लिए बहुत बड़ी पूंजी की जरुरत पड़ती है ,प्रकाशन और प्रसार का बहुत बड़ा नेटवर्क खड़ा करना पड़ता है पोर्टल शुरू करने का खर्च इतना बड़ा नहीं है .इसे एक कमरे या अपने ही घर से कुछ खर्च में शुरू किया जा सकता है .समस्या इसके आगे शुरू होती है समाचार सामग्री जुटाना काफी कठिन और महंगा काम होता है .बहुत से नए पोर्टल यह काम नहीं कर पाते और शोर्ट कट अपनाते हैं .इसी से कट एंड पेस्ट पत्रकारिता का जन्म हुआ .यह कुछ वैसे ही है जैसे एक ज़माने में क्षेत्रीय अखबार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खबरों के लिए धीमी गति के समाचारों पर निर्भर रहते थे .पोर्टल की संख्या जरुर बढ़ रही है लेकिन समाचार सामग्री नहीं बढ़ रही है .अखबारों के ऑनलाइन संस्करण इन पोर्टल के मुकाबले ज्यादा चलते हैं क्योंकि इनके पास मौलिक समाचार सामग्री की कमी नहीं होती है दूसरी समस्या यह है कि इन पोर्टल की कमाई का बही तक कोई पक्का मोडल तैयार नहीं हुआ है .भारत में ऑनलाइन लाइन विज्ञापन अभी शुरुवाती स्तर पर हैं और इनके भरोसे पोर्टल चलाना एक हद से ज्यादा संभव नहीं है जबकि सच्चाई यह है कि हिंदी अखबारों ,पत्रिकाओं और टीवी चैनल की कमाई का ज्यादातर हिस्सा विज्ञापन से ही आता है .
हिन्दुस्तान के संपादकीय पृष्ठ पर दिनांक 4/01/12को प्रकाशित 

2 comments:

deepudarshan said...

internet ne media ke sath bhut chijo ke dev me imp role play kar rha hai guruji.......acha lga pad kar sir ji

Anonymous said...

new topic, defined very well, new information for me.. advertisement found everywhere and sir.. Hindi BBC ne commercialisation ke liye advertisements ke help lene ki sochi thi. will throw some light on that point? please..

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