Saturday, December 31, 2011

लखनऊ की सरजमीं


साहित्य ,संगीत और कला के क्षेत्र में लखनऊ का नाम बड़े अदब से लिया जाता है पर हमारी संस्कृति का एक अहम हिस्सा बन चुकी फिल्मों के मामले में हम पिछड़ जाते हैं बात जब भी फिल्मों की होती है हमारे जेहन में सिर्फ एक ही नाम उभरता है मुंबई , हालाँकि उत्तर भारत के कई कलाकारों ,संगीतकारों और लेखकों ने अपने रचनाकर्म से दर्शकों को न भूलने वाली प्रस्तुतियाँ दी हैं पर उत्तर प्रदेश फिल्म निर्माण के मामले में भूला दिया गया. मेरे हुजूर, सावन को आने दो, और  'उमराव जान' जैसी कुछ फ़िल्में ही थी | प्रदेश में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के लिए करीब चार दशक पहले ही उत्तर प्रदेश चलचित्र निगम की स्थापना हुई .इसके बाद 1984 में प्रदेश की फिल्म निर्माण नीति भी घोषित कर दी गयी .वर्ष 1999 में तत्कालीन सरकार ने प्रदेश में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने में गंभीरता दिखाते हुए मल्टी प्लेक्स के निर्माण में छूट ,मनोरंजन कर में कमी ,फिल्मों के निर्माण के लिए बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए फिल्म निधि जैसे प्रस्ताव शामिल थे परन्तु बाद की सरकारों ने इन योजनाओं के प्रति कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखाई .साल 2001 में एक बार फिर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में फिल्म निर्माण को बढ़ावा देने के लिए फिल्म बंधु सोसाईटी की स्थापना की लेकिन दस साल बीत जाने के बाद भी व्यवहार में कोई आश्चर्य जनक परिणाम देखने को नहीं मिले और ये तमाम योजनाएं लालफीता शाही और राजनैतिक प्रतिबद्धता के अभाव में कागज के मात्र कोरे शब्द ही साबित हुईं |
पिछले तीन सालों में तहजीब का यह शहर कई सारी फिल्मों की शूटिंग का गवाह बना जिसमे बाबर , तनु वेड्स मनु ,ओंकारा , या रब, लेडीज वर्सेज रिक्की बहल' जैसी फ़िल्में शामिल हैं |आने वाले दिनों में  'कुछ लोग', 'रक्तबीज' और 'ये इश्क नहीं' जैसी फिल्मों की शूटिंग लखनऊ में होने वाली है।यह बदलाव सुखद तो है पर इस बदलाव के पीछे निजी प्रयास ज्यादा जिम्मेदार हैं या यूँ कहें लखनऊ जैसे क्षेत्रों में फिल्मों की शूटिंग होना सरकारी प्रयास का नतीजा नहीं है वरन कहानी की मांग या निर्देशक की अपनी सोच ज्यादा जिम्मेदार है जो  सेट की बजाय वास्तविक स्थल को तरजीह दे रहे हैं|इसके पीछे एक और कारण है मल्टीप्लेक्स का आना और कम बजट की फिल्मों का बहुतायत में बनना |
ऐतिहासिक ईमारतों और अनूठे वास्तु शिल्प के बावजूद लखनऊ में शूटिंग के लिए लोकेशन का न तो विकास किया गया और न ही फिल्म निर्माताओं को प्रेरित | जिसमे ट्रैफिक और पर्याप्त सुरक्षा बंदोबस्त भी शामिल है .मायानगरी मुंबई और बागों की नगरी लखनऊ के बीच इस दूरी को घटाने के लिए बस पूर्व में बनाई गयी नीतियों के सही क्रियान्वयन की आवश्यकता है .अब समय आ गया है कि हम लखनऊ की ब्रांडिंग के लिए टुडे कबाब ,भूलभुलैया और चिकन की कढाई से आगे सोचें और तभी लखनऊ समेत प्रदेश की खूबसूरती को रूपहले परदे पर देखा जाना आम हो जाएगा और हम कह सकेंगे कि मुस्कुराइए आप लखनऊ में हैं .

16 comments:

वीर की हलचल said...

sahi kaha sir apne lucknow filmo ke mamle pichda jarrur hai but kuch filmo me lucknow ko shamil kiya hai aur aage bhi lagatar sayad hota hi rahega lucknow ka nawabi funda...............

Rohit Misra said...

पुरबिया बनते लखनऊ में वर्तमान में ऐसे लेखों की आवश्यकता है.

samra said...

hehehehe..sahi kaha sir aapne...aapka yeh lekh logon ki soch ko prabhavit kerne ke liye ek acha qadam hai..

archana chaturvedi said...

Kafi aacha lekh hai ...khbhi nababiyt ke liye to kabhi imarto ke liye to kabhi pakwaano ke liye jaana jane vala lucknow aaj bhi apni khusbu se is sarjami ko mekhae hue hai ...kbhi na kbhi to iski hawa mumbai valo ko lagnh hi thi

deepudarshan said...

sir ji aap ki soch kuch hud tak mujhe shi hote hue dikh rhi hai film aur serial me........ise laagta hai ki ab lko chane wala hai film industries pe

Unknown said...

Sir,but now condition of Lucknow is improving and many latest movies like 'Dawaat-E-Ishq' and 'tamancha-pa-disco...'(Bullet Raja) etc.... buzzed the name of lucknow in bollywood.

Unknown said...

Lucknow as a lot to offer in terms of its cultural heritage and historical monuments and bollywood seems to have realized that. Every now and then we hear about a movie being shot in Lucknow but there are a lot of things which still need to be worked upon. Recently there was news about shooting at monuments becoming even more expensive which might discourage small budget movie producers from choosing Lucknow, in such a scenario it becomes even more important that basic concerns like security issues and crowd management are improved so that film makers don't feel hesitant to opt for our city as a prime location for their films.

Unknown said...

Lucknow in the recent past has played a host to many bollywood films. Movies like 'Dawaat-e-Ishq' captured the essence of lucknow. 'Ishaqzaade' showed many picturesque locations of lucknow. Bullet Raja, Ladies v/s Ricky Bahel, Tanu weds manu, Youngistaan, Shoot out at Wadala etc have also been shot in lucknow. So in recent scenario the face of lucknow is changing from being a city of rich cultural heritage to a popular shooting city.

Unknown said...

The face of Lucknow is changing now and the charm of 2 crore subsidy to be in UP given by the state government to films, 50 per cent of which are shot , seems to have worked on Bollywood filmmakers .Lucknow now become a Bollywood attraction for the directors movies like Bullet Raja,Tanu Weds Manu&Dawat-e-ishq is example of it showing that the city of Nawab is changing
and became the first choice for new directors .

Sudhanshuthakur said...

लखनऊ का महत्व बॉलीवुड में इसी बात से लगाया जा सकता है की हर वर्ष किसी न किसी बड़ी मूवी की शूटिंग लखनऊ में ही होती है । इससे अब फ़िल्म निर्माता प्रेरित हो रहे है और लोकल शूटिंग लोकेशन को विकसित करने का प्रयास हो रहा है ।

सूरज मीडिया said...

अब तो हमारे लखनऊ के बिना बॉलीवुड अधूरा है । इसका उदहारण है । दावते इश्क़ ,बुलेट राजा,और जॉली llb 2 की शूटिंग हमारे लखनऊ में हुई है और हो रही है। और अब तो बॉलीवुड के बड़े सुपर स्टार्स सैफ अली खान और अक्षय कुमार जैसे सुपर स्टार्स भी अब तो लखनऊ को फिल्म की शूटिंग की लिए पसंदीदा जगह मानते है । और हमारी लखनऊ की सरकार फिल्मो को और लोकल फिल्म निर्माताओं और आर्टिस्ट को मौका देने का निरंतर प्रयास कर रही है ।

Tarunified said...

लखनऊ अपने आप में पूरा का पूरा उत्तर प्रदेश है। यहां के आम लोगों का जमीन से जुड़े रहना कहीं न कहीं इसके "स्वाद" को बनाए रखने में सहायक है। अच्छा है कि यहां वो देशीपन है जिसे हम मुंबई जैसे शहरों में तलाशते हैं। तभी यहां के जीवन में जो रस है, सादापन है, अपनापन है, तहज़ीब है वो हमें बड़े शहरों में सुकून नहीं देगी। इसलिए लोग यहां खिचे चले आते हैं। नवाबी हवा में घुली है यहां।

Unknown said...

its would be a delight to have more and more association of this city with cinema but its imperative that we should have reasons for those associations. Lucknow had a generous heritage which is disappearing quickly. if we fail to preserve the essence of the city there would would be nothing new for cinema here to look for.

Unknown said...

nawabon ka seher lucknow samey samey par bollywood ki filmo ka hissa rha hai, haan ye baat aur hai ki ye filmo ka ye sath waqt waqt pe kahi gayab sa hota dhiekta hai. iska karan film nirmataon ka woh perception rha hai jo lucknow ko sirf uski tehzeeb aur uske khaan-paan, aur nawabo ki jeevan shelly pe hai. samay ke sath lucknow me bi badlav aya hai yaha ab sirf purne purane nawabon ke ghr hi nai balki ek behtar tareeke se banye gye parks aur aise landscapes hai film nirmataon ko aakirshit kr rhe hai

Shraddha Khare said...

Lucknou tahzeeb ka shahar mana jata h hmara lucknow ki jo purani purani imarte h jo hme purani sabhyata se jodi hui h lucknow nwabo ka shar h or hmesha rhega lucknow apni chikan kari , imambada , rumidarwaja ye kafi rochak chije hmare lucknow me jise hm nhi bhula sakte or turist lucknow me ye sb khumne ate h hmare lucknow me bhut sari bollybood movi hui h or bhi hoti rhegi

Sweet n Sour said...

Humara sheher Lucknow har tarah se humein wajah deta hai ki hum kahein "Muskuraiyye aap Lucknow mein hain".
Lucknow ki tehzeeb se le kar, yaha ka khana-peena tatha yahan ke logon ka milansaar andaaz isko dusre shehron se kaafi alag banata hai sath hi jaise ki aapne filmon ki baat kahi to ye baat satya hai ki Lucknow mein bade se bade banner ki filmon ki shooting ki gayi hai aur Lucknow apni locations ke chalte hamesha hi lokpriya raha hai.

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