Tuesday, January 22, 2013

नए ज़माने की परियां ............

           जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है पर पुरानी बातों से सबक लेना भी जरूरी है तभी तो जिंदगी की कहानी आगे बढ़ेगी.कहानी से याद आया हम सबने बचपने में एक परी की कहानी जरुर सुनी होगी उस कहानी में आपको कुछ खास नहीं लगा होगा पर जरा गौर कीजिये असल में वो परी हमारी  कहानियों की दुनिया का एकमात्र काल्पनिक चरित्र है जो फीमेल है जिसका काम लोगों का भला करना है  उसका कोई परिवार नहीं उसका कोई दोस्त नहीं पर वो सबकी है ऐसी ही परी की कहानी सुन कर हमारी जैसी पीढ़ी के लोग बड़े हुए हैं सोचिये हमारे पास ऐसी ना जाने कितनी परी हैं जिन्होंने हमारा जीवन कितना सुखद बनाया है कभी वो हमारी माँ बन जाती हैं तो कभी दोस्त कभी बहन कभी बेटी और सुनिए बदले में इन्होने कभी कुछ नहीं माँगा परी कथाओं के इस देश में परियों के साथ हो क्या रहा है. दिल्ली रेपकांड के बाद बहुत कुछ और भी हुआ है एक सर्वे के दौरान पता चल कि दिल्ली में अचानक ही महिलाओं की की कार्यक्षमता प्रभावित हुयी है. खासकर कामकाजी महिलाओं ने या तो अपनी देर रात कि नौकारियां छोड़ दी हैं या फिर दिन रहे घर लौटने लगी है. पब्लिक प्लेसेज पर अब वे पहले से ज्यादा सतर्क और सहमी सी  नज़र आने लगी हैं. वे लगभग हर पुरुष को संदेह की दृष्टि से देखती हैं. लड़कियों के मां बाप के मन में अपनी बच्चियों के प्रति असुरक्षा की भावना पहले से ज्यादा दिख रही है . वे उन्हें घर से अकेले बाहर भेजने में कतराने लगे हैं.कामकाजी महिलायें हथियार के लाइसेंस ले रही हैं. सबसे बड़ी बात यह कि इतने बड़े प्रदर्शन और मीडिया में इसके कवरेज के बाद भी लगातार देश के हर कोने से बलात्कार कि खबरें आ रही हैं. इससे तो यही लगता है कि इस घटना के बाद भी समाज में कोई तब्दीली नहीं देखने को मिली है.लोग रेप के खिलाफ मुखर हुए हैं पर सोसायटी में इनसिक्योरिटी महसूस की जा रही है.
         आगे बढ़ने के लिए पीछे मुड के देखना भी जरूरी है ऐसा नहीं है कि इस देश में क्राईम के नाम पर सिर्फ रेप ही हो रहा है और हमारे आस पास ऐसी कोई चीज नहीं है जिस पर फख्र न किया जा सके.रेप पर बहस हो सख्त कानून बने जिससे ऐसी घटनाएँ फिर कभी न हो पर कानून बनाने के अलावा एक और चीज है हमारी मानसिकता, जिसका बदलना बहुत जरूरी है.मानसिकता कोई फ़ूड फ्लेवर नहीं है जिसे चुटकियों में बदल जा सके.इस बदलते मौसम में बहुत कुछ बदल रहा है तो मानसिकता भी बदलनी ही पड़ेगी,जरा ध्यान दीजिए भारत की रूलिंग  पार्टी की मुखिया एक महिला है, पार्लियामेंट  लोकसभा की स्पीकर एक महिला है,लोकसभा में विपक्ष की नेता एक महिला है, कुछ महिलाएं मुख्यमंत्री भी  हैं राजनीति के अलावा महिलाएं खेल ,कारोबार और फिल्मों में कामयाबी के झंडे गाड़ रही हैं.तस्वीर का दूसरा पहलू भले ही इतना अच्छा नहीं है  पर हम मौत के डर से जीना नहीं छोड़ देते हैं  आने वाले  दिनों में देश का मिजाज़ बदला बदला सा नज़र आयेगा. इस बार का बसंत अपने साथ कुछ ऐसा  लाएगा जो हर मौसम में अपने निशान छोड़ जायेगा.घर की खिड़की से बाहर झांकते, बसों और ट्रेनों में सफ़र करते हुए और यूँ ही अपने सपनों की ऊँगली थामे सड़क पर टहलती किसी लड़की  पर गौर करियेगा वे ज्यादा आत्मविश्वास से लबरेज़ नज़र आएँगी. जैसे हर मुश्किल का सामना करने की तैयारी  से निकली हों, ये नए ज़माने की परियां हैं जो अपना ख्याल रखना जानती हैं. अपने सपनों को वे दामन में किसी बच्चे के मानिंद छुपाकर बचा ;ले जाएँगीअगर हम उनके संग संग कदमताल कर सकें तो सिर्फ और सिर्फ बदलाव की बयार बहेगी.
आई नेक्स्ट में 22/01/13 को प्रकाशित 

1 comment:

archana chaturvedi said...

लेख तो हर बार की तरह काबिलेतारीफ हैं बस लेख सार्थक साबित हो इन परियो को बेचारियो से कोसो दूर रखा जाये .......

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