Monday, January 14, 2013

इंटरनेट पर समझदारी से पेश आयें


बचपने से पढते चले आ रहे हैं मनुष्य एक सामजिक प्राणी है और इसी सामजिकता के तहत वो लोगों से रिश्ते बनाता है रिश्तों का आधार संचार ही होता है जिसमे छिपा होते हैं भाव एक दूसरे के प्रति प्यार और यही से शुरुवात होती है बतकही की एक दौर हुआ करता था जब कस्बों और गांवों  के नुक्कड़ चौपालों से गुलज़ार रहा करते थे पर अब दुनिया बदल चुकी है और वक्त भी  अब इन बैठकों की जगह वर्चुअल हो गयी है घर के आँगन कंप्यूटर की स्क्रीन में सिमट गए देह भाषा को कुछ संकेत चिन्हों में समेट दिया गयासमाज में जब भी कोई बदलाव आता है तो सबसे ज्यादा प्रभावित मध्यवर्ग होता है और ऐसा ही कुछ हुआ है हमारे सम्प्रेषण पर देश का मध्यवर्ग और खासकर युवा  चकल्लस के नए अड्डे से संक्रमित है जिसे सोशल नेटवर्किंग साईट्स का नाम दिया गया है अब चक्कलस  करने के  के लिए न तो किसी बुज़ुर्गियत की ज़रुरत है और न ही किसी पुराने निबाह की. ये वो अड्डे हैं जिनके नाम तक उल्टे पुल्टे हैं. कोई कई चेहरों वाली किताब है तो कोई ट्विटीयाने वाली चिड़िया बनने को बेताब है. फेसबुकगूगल प्लस,ट्विटर और फ्लिकर जैसे तमाम चकल्लस के लोकप्रिय अड्डे बनकर उभरे हैं. इसका हिस्सा बनने के लिए किसी तरह के बौद्धिक दक्षता के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. बस आपको अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने का हुनर आना चाहिए.ट्यूनीशिया का एक युवा जब वहां की पुलिस के कारण बेरोजगार हो जाता है तो वह अपनी लडाई में सोशल नेटवर्किंग साईट्स को अपना हथियार बनाता है. वर्चुअल संसार की डिजिटल चकल्लस की ऐसी लहर चलती है कि  वहां के राष्ट्रपति को अपनी सत्ता छोडनी पड़ती है .जब अरब जगत में में ये क्रांति जोर पकड़ रही थी ठीक उसी समय भारत में भ्रष्टाचार से अघाए मध्यवर्ग को दिल्ली के रामलीला मैदान में इसका उपचार नज़र आता हैऔर देश भर का थका हरा मध्यवर्ग इसके समर्थन में उठ खड़ा होता है.वज़हरामलीला मैदान में धरना प्रदर्शन करने वाली टीम अन्ना इस डिजिटल चौपाल के महत्व को बखूबी पहचानाते हुए इसका इस्तेमाल लोगों तक पहुँचने के लिए किया .इसी मैदान में भ्रष्टाचार का विरोध का समर्थन करने आये मध्यवर्ग्य युवा असीम त्रिवेदी  भी आये थे. उन्होंने उन्हों ने अपना विरोध दर्शाने के लिए खुद के बनाये कुछ कार्टून एक सोशल नेटवर्किंग साईट पर क्या डालेतीखी प्रतिक्रियाओं और बहसों का दौर शुरू हो गया.असीम  को राष्ट्रीय चिन्हों के अपमान और देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया गया. मीडिया में भारत माँ की जय के नारे लगता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरवी करते असीम की तस्वीर भारत के युवा मध्यवर्ग का नया क्रन्तिकारी चेहरा लग रही थी.  वर्चुअल मीडिया ने असीम को सर आँखों पर बिठाया पर उनके विरोध में कुछ स्वर उभरे . ज्यादा दिन नहीं हुए जब बा ला साहेब ठाकरे की म्रत्यु  पर पूरा महाराष्ट्र ठप पड़ा था तब जाम और असुविधाओं से जूझती एक लड़की ने अपने फेसबुक अकाउंट पर इसकी भड़ास निकली. नतीज़ा शाहीन और उस पोस्ट को पसंद करने वाली उसकी सहेली को जेल की हवा खानी पड़ी. शाहीन के समर्थन में भी एक बार फिर वर्चुअल अड्डा ज़बरदस्त तरीके से सक्रिय हो उठा और पूरे देश के वर्चुअल अड्डेबाज शाहीन के समर्थन में एकजुट हो गए. नतीजन चौतरफा आलोचना से घबरायी सरकार ने दोनों लड़कियों रिहा कर दिया आया. विदेश से पढाई करके लौटी दिल्ली की इक युवा ग्रेजुएट श्रेया सिंघल ने कहने की आज़ादी को जब इस तरह कुचलते हुए देखा तो उस ने आई टी एक्ट की खामियों को आर टी आई के तहत उजागर करने का निर्णय लिया. ये श्रेया की मांगी जानकारी का ही असर है कि सरकार इस एक्ट की विवादस्पद धारा 66A  में बदलाव की तयारी कर रही है. ये कुछ घटनाएं  थीं जिनका यदि  बारीकी से विश्लेषण किया जाये तो हमें एक बारगी ये साफ़ समझ में आ जायेगा कि  भारत में सूचना क्रांति अपना असर दिखा रही है पर क्या ये शहरी संक्रमण है जो महानगरों के चमचमाते मकानों तक सीमित है या  इसका असर गावों और कस्बों में भी हो रहा है आंकड़े काफी कुछ कह रहे हैं हमारी करीब साठ प्रतिशत आबादी अब भी शहरों से बाहर रहती है। सिर्फ आठ प्रतिशत भारतीय घरों में कंप्यूटर हैं|इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत की ग्रामीण जनसंख्या का दो प्रतिशत ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है। यह आंकड़ा इस हिसाब से बहुत कम है क्योंकि इस वक्त ग्रामीण इलाकों के कुल इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से अट्ठारह  प्रतिशत को इसके इस्तेमाल के लिए दस किलोमीटर से ज्यादा का सफर करना पड़ता है। पर शहरों में इन  वर्चुअल अड्डों ने पुराने  हो चुके संस्कारों और रुढियों की सड़ांध में दम तोड़ते समाज के सपनों को पंख लगा दिए हैं.जिन मुद्दों पर घर और समाज में दबी ज़बान से भी बोलने तक की मनाही है वहांये  वर्चुअल अड्डे अभिव्यक्ति की सवतंत्रता का पर्याय बन चुके हैं.
 फेसबुकगूगल प्लसट्विटर और ऑरकुट वर्चुआल सोसायटी के चार धाम माने जाते हैं.जिनमें से फेसबुक वर्चुअल अड्डेबाजों  का तीर्थ  सिद्ध हुआ है.हर कोई यहाँ डूबकी लगाकर इंटरनेट तकनीक का आशीर्वाद पा लेने को बेताब है. फरवरी २००४ को शुरू हुए फेसबुक पर अड्डेबाजों  का सबसे बड़ा जमघट लगता है. पूरी दुनिया में इसके 908 ,000 ,000  प्रयोगकर्ता  हैं. दूसरे स्थान पर अपनी टवीट टवीट से बड़े बड़ों का मुंह बंद करने वाली चिड़िया ट्विटर है. जिसके 500 , 000 ,000  प्रयोगकर्ता हैं. नवजात गूगल प्लस ४००,000 ,000  के साथ बड़ी तेजी से बड़ा हो रहा है तो आर्कुट की चाल धीमी भले ही पड़ गयी हो मगर ब्राजील के युवाओं में ख़ासा लोकप्रिय है. इसके कुल यूज़र्स 100 ,000 ,000  हैं. इन सबके अतरिक्त फ्लिकरए स्मॉल वर्ल्ड और फोर्टी थ्री थिंग्स जैसी तमाम साईट्स हैं जिनके प्रयोगकर्ता करोड़ों की संख्या में हैं. अगर आप इसके सक्रिय सदस्य है और चीज़ों को गहराई से समझने की लत है तो सहजता से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि युवाओं के साथ साथ ये मध्यम वर्ग की  स्त्रियों को भी यह डिजीटल  संसार खूब रास आ रहा है. सास से होने वाली रोज़ रोज़ कि चिकचिक हो या परम्पराओं की  लकीर  पीटने वाले पति से  नाराजगी ये यहाँ अपने मन के गुबार निकाल रही हैं . घर की  चहारदीवारी में बंद इन औरतों के लिए डिजिटल संसार आज़ादी के नए दरवाज़े खोलता है. जहाँ वह अपनी सोच और व्यक्तित्व को निखार सकती हैं. जब घरेलू औरत होने के तानों से उकताई गृहणी अपने किसी स्टेटस को 18  बरस के युवा से लेकर 65  बरस तक के बुजुर्गों की और से ढेरो लाईक्स  और कमेंट्स मिलते हैं तब उसके चेहरे पर  संतुष्टि के भाव  बिना किसी  चश्मे के साफ़ पढ़े जा सकते हैं . यकीनन रात को बर्तन साफ़  करते समय या किचन के काम करते हुए उसके दिमाग में सुबह के नाश्ते की फिक्र के साथ साथ रात को उसकी वाल पोस्ट क्या होगी ये भी चलता रहता है. अगर सोशल नेटवर्किंग साईट्स आधी आबादी के एक दसवें हिस्से को भी उनका आत्मविश्वास लौटा पाती है तो ये भविष्य के लिए अच्छा संकेत हैं. भारत में फेसबुक से अभी 29 प्रतिशत महिलाएं जुड़ी हैंजिनकी संख्या आने वाले वर्षों में पचास प्रतिशत होने की उम्मीद है।भारत में सक्रिय फेसबुक  उपभोक्ताओं की संख्या 31 दिसम्बर 2011 तक पिछले वर्ष की तुलना में 132 फीसदी की वृद्धि के साथ 4.60 करोड़ रही।अगर आंकड़ों की माने तो इनमें से लगभग पचहत्तर प्रतिशत युवा हैं. यानि की आने वाले दिनों में भारत की कमान निश्चित ही जागरूक लोगों के हाथ में होगी. चूँकि भारत दुनिया में सबसे युवा आबादी वाला  देश है. इस हिसाब से अगर इस नयी आबादी तक सूचना तकनीक पहुँच जाये तो  हम सही मायने में युवा कहलायेंगे. जो वर्चुअल दुनिया में चौबीसों घंटे सक्रिय है. तुरंत प्रतिक्रिया दिलाऊ है. जनकी ज़रूरतों में रोटीकपडा और तकनीक शुमार है. ये अलसुबह उठकर बड़े बूढों के चरण स्पर्श करना भले ही भूल जाते हों मगर जी मेलब्लोग्स और फेसबुक का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते.                                                                                जैसा की हमेशा से ही कहा जाता रहा है कि हर अच्छी चीज़ का एक स्याह पक्ष भी होता है उसी तरह भारत में सोशल नेटवर्किंग साईट्स के लिए चुनौतियाँ कम नहीं है. यहाँ सिक्के का दूसरा पहलू अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता के नियमन और देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है.पूर्वोत्तर के लोगों पर हमले की अफवाह एक सोशल नेतार्किंग साईट से उडी और पुरे देश में फ़ैल गईजिससे पूर्वोत्तर सहित देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़क गयी थी. इससे घबराये पूर्वोत्तरवासी बड़ी संख्या में अपने घरों की और पलायन करने लगे. देश के एक हिस्से के नागरिको में स्वयं के प्रति असुरक्षा की ये भावना चिंता का  सबब है. सरकार ने भले ही इसे पड़ोसी देशों की करतूत बताकर मामले  से पल्ला  झाड लिया हो मगर सनद रहे कि एशिया की  महाशक्ति का ख्वाब देखने वाले भारत के लिए यह एक नए सायबर युद्ध का संकेत है. कई बार इन साईट्स पर लोग अश्लीलता और फूहड़ता की सारी हदों को पार कर जाते हैं. दूसरों के जीवन में तांकझांक और उन पर टिप्पणियाँ करने का चलन यहाँ भी खूब है. ऐसे कई मामले प्रकाश में आये हैं जब लड़कियों से अपनी खुन्नस निकलने के लिए अश्लील पोस्ट की आड़ ली गयी. सामाजिक संबंधों का डिजिटल जाल बुनने वाली सोशल नेटवर्किंग साईट्स का मजाक उड़ाते हुए एक सन्देश में बाप बेटे  की वाल पर लिखता है कि  बेटे कमरे से निकलकर नीचे आ जाओ हम सभी खाने की मेज पर तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं.दूसरों को  सुख दुःख का ज्ञान और नीति  की घुट्टी पिलाने वाले वचन अक्सर बेमानी लगते हैं.आभासी संबंधों की दुनिया महज़ लाईक्स और टिप्पणी की  में सीमा रह गयी है.प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे को ई मेल से फूल भेज रहे हैं. यहाँ एक समय में सब ओपन है तो बहुत कुछ गोपन भी है. किसी गोरी त्वचा वाली तस्वीर पर कुछ मिनटों में सैकड़ों  लायिक्स मिलना एक पल के लिए सोचने को मजबूर कर देता है कि  हम क्यूँ चौंका देने वाली सफेदीचार हफ़्तों में  चाँद सा चेहरा और हैंडसम होने के साथ साथ फेयर होने की चाह रखते हैं. अगर  आने वाले समय में  कोई ये पोस्ट करे कि  मैं आत्महत्या कर रहा हूँ और उसकी आभासी मित्र मंडली कारण जानने के बजाये म्रत्यु के बाद के अनुभव पूछने लग जाये तो चौकने  वाली बात न होगी. यह पढने में भले ही बड़ा हास्यास्पद लग रहा हो मगर इसके सच होए की कल्पना किस भयावह रोमांच की ओर ले जायेगी यह सोचने का विषय है. तकनीक और मार्केट रिसर्च फर्म फारेस्टर रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 2013 तक दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 45प्रतिशत बढकर 2.2 अरब हो जाएगी।इस बढोत्तरी में सबसे ज्यादा योगदान एशिया का रहेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 तक भारत इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं  के मामले में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होगा।हमको सामजिक होने का पाठ पढाने वाली सोशल नेटवर्किंग साईट्स किस तरह हमें बाहरी दुनिया से काट कर एक आभासी व्यक्तित्व में परिवर्तित कर दे रही हैं इस ओर भी कुछ चिंतन की आवश्यकता है. सर्जनात्मकता को नया आयाम मिल रहा है सबके पास अपना एक मीडिया है जिसे वे दूसरों के साथ बाँट सकते हैं चाहे वो चित्र हों या विचार पर महत्वपूर्ण यह है कि क्या बांटा जा रहा है और कैसे भारत जैसे देश में जहाँ तकनीक रातोंरात  बदल जा रही है पर तकनीक के सार्थक इस्तेमाल के मायने हमें सीखने होंगे. देश में इतने  सारे नए इंटरनेट उपभोक्ताओं ने एक विचित्र तरह की समस्या को जन्म दिया है वो है इसमें सोशल नेटवर्किंग साईट्स मैनर का ना होना या यूँ कहें कि इसका इस्तेमाल किस तरह से करना है ये उठने और गिरने  का दौर है जहाँ फैसले दिमाग से कम और दिल से ज्यादा लिए जाते हैं वहां ऐसे नए नेट यूजर समस्या भी खडी कर रहे हैं . लोग सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर मित्रता निवेदन रुचियों के हिसाब से नहीं बल्कि प्रोफाईल  फोटो की खूबसूरती  को देखकर भेज रहे हैं अकारण लोगों को टैग कर देना अश्लील वीडियो को देखने की लालसा में वाइरस की जकड में आ जाना जो आपके मित्रों की वाल पर बगैर आपकी जानकारी के पहुँच रहा है और आपको सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा होने के लिए मजबूर भी कर रहा है  .लैंगिक समानता के दौर में महिलाओं को इन सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर पुरुषों से ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ रही है.इतना समझने के लिए पर्याप्त है कि तकनीक कितनी  भी अच्छी क्यों न हो पर इसका इस्तेमाल आपकी सोच के ऊपर ही निर्भर करता है यानि आधी आबादी (पढ़ें महिलायें) यहाँ भी लैंगिक समानता का शिकार है कहने को यह इक्सवीं शताब्दी की तकनीक हो पर महिलाओं के लिए अभी भी अठारहवीं शताब्दी का माहौल है .सोशल नेटवर्किंग साईट्स वर्चुअल दुनिया में सामाजिकरण के लिए हैं जहाँ आप अपनी तस्वीरें ,विचार ,वीडियो लोगों के साथ साझा कर सकें पर एक ऐसा देश जहाँ लोग बहस सुनने और समझने की बजाय सिर्फ बहस करना पसंद करते हैं जहाँ दूसरे पक्ष के लिए जगह ही  नहीं वहाँ ये तकनीक बहुत सी मनोवैज्ञानिक समस्या पैदा कर रही है हमें यह बल्कुल नहीं भूलना चाहिए कि हमारे  समाजीकरण में अभी तकनीक को बहुत ज्यादा मान्यता नहीं मिली है और इसकी  जिम्मेदारी उस युवा पीढ़ी पर ज्यादा है जो इनके प्रथम उपभोक्ता बन रहे हैं .
समकालीन सरोकार जनवरी 2013 के अंक में प्रकाशित 

2 comments:

shalu awasthi said...

har sikke ke 2 pahlu hote hain..usi tarah social networking sites k bhi apne fayde or nuksaan hai..jahan 1 ore ye soocjna dene ka saadhan ban rha, pr door baithe apno se baat krne ka saadhan ban rha wahin doosri ore ashleelta bhi faila rha hai aur ladkio ko badnaam krne ka bhi zariya ban rha hai ...bohot acccha lekh hai sir...yatharth bayaa kr rha hai.

सूरज मीडिया said...

इंटरनेट का सबसे बड़ा नुकसान पोर्नोग्राफी साइट से है, इस तरह के साइट पर ढेरों अश्लील फोटो और वीडियो रहते है इसको देखकर बच्चों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। महिलाओं को सचेत रहना चाहिए । अपनी पर्सनल जानकारी या फोटोज हर जगह अपलोड या किसी अनजान लोगो को भेजने से बचना चाहिए । बहुत अच्छा लेख है सर।

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