जाड़े की उस शाम
धुंध की चादर के बीच
गुजरते हुए
देखा था तुम्हें
आँखें भी बोलती हैं
पहली बार महसूस किया
हौले से तुमने पकड़ा था मेरा हाथ
अनोखा था वो एहसास
खनकती हंसी में
जब काटे थे तुमने अपने ही ओंठ
परियों के देश
मैं भी हो आया था
जाड़े की उस शाम
धुंध की चादर के बीच
तुम यूँ ही सरक आये थे मेरे पास
बगैर कुछ कहे बैठे रहे
यूँ ही पकडे हांथों में हाँथ
बहुत कुछ सुन लिया था मैंने
जानता हूँ मैं कि तुम नहीं बोलोगी
पर मैं सुन रहा हूँ
जाड़े की उस शाम
धुंध के चादर के बीच
आज भी तैर रहे हैं तुम्हारे प्यार के अल्फाज ...
धुंध की चादर के बीच
गुजरते हुए
देखा था तुम्हें
आँखें भी बोलती हैं
पहली बार महसूस किया
हौले से तुमने पकड़ा था मेरा हाथ
अनोखा था वो एहसास
खनकती हंसी में
जब काटे थे तुमने अपने ही ओंठ
परियों के देश
मैं भी हो आया था
जाड़े की उस शाम
धुंध की चादर के बीच
तुम यूँ ही सरक आये थे मेरे पास
बगैर कुछ कहे बैठे रहे
यूँ ही पकडे हांथों में हाँथ
बहुत कुछ सुन लिया था मैंने
जानता हूँ मैं कि तुम नहीं बोलोगी
पर मैं सुन रहा हूँ
जाड़े की उस शाम
धुंध के चादर के बीच
आज भी तैर रहे हैं तुम्हारे प्यार के अल्फाज ...
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