Monday, February 11, 2013

निजी एफ एम् स्टेशन सिर्फ लाभ कमाने वाले प्राधिकरण हैं



ब्रेख्त ने बीसवीं शताब्दी में रेडियो के लिए कहा था  कि रेडियो एकाउस्टिकल डिपार्टमेंटल स्टोर के रूप में केवल वितरण प्रणाली बनकर रह गया है .रेडियो एफ एम् स्टेशन के तृतीय चरण की नीलामी जून में शुरू होगी जिसमे 227 नए शहर जुडेंगे ,अभी वर्तमान में   86 शहर रेडियो की एफ एम् सेवा का लुत्फ़ उठा रहे है इसके बाद भारत में कुल एफ एम् चैनलों की संख्या 839 हो जाने की उम्मीद हैसरकार  को उम्मीद है कि इससे  1733 बिलियन रुपैये की आमदनी होगी|भारत में सर्वाधिक पहुँच वाला माध्यम रेडियो है इस नीलामी के बाद एफ एम् चैनलों की पहुँच में  कई नए शहर आयेंगे व्यवसाय की दृष्टि से भले ही यह फायदे का सौदा हो पर कंटेंट के स्तर पर भारत के एफ एम् चैनल   एक ठहरे मनोरंजक  माध्यम के रूप में तब्दील हो गए हैं जो  पिछले दस सालों में सिर्फ मनोरंजन के नाम पर हमें फ़िल्मी गाने और प्रेम समस्याओं को  ही सुना रहे हैं|तकनीकी तेजी ने मीडिया के अन्य रूपों में  बहुत बदलाव ला दिया है |टी वी खबरिया चैनलों की आने से समाचारों में प्रयोग की गति तेज हुई समाचार पत्रों में भी परिवर्तन की गति तेज हुई है नए नये स्तंभ शुरू किये गए ले आउट पर भी ध्यान दिया जाने लगापर एफ एम् रेडियो सिर्फ शहरी जनता का माध्यम मात्र बने हैं| एफ एम् स्टेशन  म्यूजिक रेडियो और  टाक रेडियो  के बीच संतुलन नहीं बना पाए हैं| यहां ध्यान देने की बात है कि मीडिया के विभिन्न रूपों यथा समाचारपत्रटेलीविजन,रेडियो और हालिया आए बेब में से रेडियो की पहुंच ही सबसे अधिक मानी गई है |भारतीय परिप्रेक्ष्य में तो रेडियो की पहुंच को देखते हुए ही इसे सबसे बेहतर जनसंचार माध्यम की संज्ञा दी गई है|मोबाईल सेवा के बढते प्रसार ने एफ एम् सेवाओं की पहुँच को एक नया आयाम दिया और हर हाथ में मोबाईल के साथ हर हाथ में रेडियो भी पहुँच गया है | कुछ वर्षों पहले टेलीविजन के तेजी से बढ़ते प्रभाव को देखकर ऐसा माना जाने लगा था कि रेडियो अपनी पहचान खो देगा लेकिन  रेडियो ने एक बार फिर वापसी की| इस बार रेडियो नए स्वरूप एफ एम के रूप में सामने आया  जो ध्वनि गुणवत्ता के मामले में पारम्परिक रेडियो प्रसारण से कई गुना बेहतर था   महानगरों से शुरु हुए रेडियो के इस संस्करण ने बड़ी ही तेजी से लोकप्रियता हासिल की पर यह भारत के बड़े शहरों तक ही केंद्रित रहा तीसरे चरण की नीलामी के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि  रेडियो छोटे शहरों और गावों की तरफ बढ़ेगा| निजी एफ एम् रेडियो स्टेशन जहाँ सफलता की नयी कहानियां लिख रहे हैं वहीं सरकार उनकी लोकप्रियता का फायदा लोगों को जागरूक बनाने और स्वस्थ जनमत के निर्माण में नहीं कर पा रही है सभी निजी एफ एम् स्टेशन अपने प्रसारण का इस्तेमाल मात्र मनोरंजन के लिए ही कर रहे हैं इसका एक कारण जहाँ सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निजी एफ एम् चैनलों पर समाचारों के प्रसारण पर लगाई गयी रोक  है जिससे समाचारों में आकाशवाणी का एकाधिकार बना हुआ है और उसे कहीं से प्रतिस्पर्धा नहीं मिल रही है और एफ एम् स्टेशन सिर्फ फ़िल्मी संगीत के एक डिब्बे के रूप में तब्दील हो गए हैं |पर बात महज समाचारों तक सीमित नहीं है संगीत के नाम पर सिर्फ फ़िल्मी संगीत को बढ़ावा देना भारत जैसे विविधीकृत देश की जनता के साथ अन्याय है जहाँ लोकसंगीत का खजाना बिखरा हुआ है वहीं कार्यक्रमों में नवचारिता का पूर्णता अभाव है|रेडियो नाटक जैसी विधा अब लुप्त होने के कगार पर है खाना पूर्ति के नाम पर आकाशवाणी में ही कुछ रेडियो नाटक बनते हैं|इस मामले में आकाशवाणी की विविध भारती सेवा फिर भी कुछ बेहतर कार्य कर रही है जिसके कार्यक्रमों में सूचना शिक्षा और मनोरंजन का तालमेल देखने को मिलता है भले ही उसके प्रसारण में फ़िल्मी गीतों की अधिकता है पर रेडियो की अन्य विधाओं के लिए भी वहां जगह है|निजी एफ एम् स्टेशन सिर्फ  एक लाभ अर्जित करने वाले प्राधिकरण के रूप में काम कर रहे हैं जबकि उम्मीद ये की गयी थी कि ये लाभ और मीडिया के सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनायेंगे पर व्यवहार में ऐसा होता नहीं दिख रहा है रेडियो समाचारों और विचारों  के क्षेत्र में एक जनमाध्यम के रूप में पिछड़ता जा रहा है महतवपूर्ण यह है कि एक जनमाध्यम के रूप में रेडियो की पहुँच और माध्यम की उपलब्धता भारत के परिप्रेक्ष्य में सबसे ज्यादा है जहाँ अखबार को पढ़ने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी है वहीं टीवी अभी भी एक जनमाध्यम के रूप में एक महंगा और सर्वसुलभ माध्यम नहीं है सस्ती तकनीक और एक श्रवणीयमाध्यम होने के कारण इन सारी सीमाओं से परे है |पहले इसके लिए यह तर्क दिया जाता था कि रेडियो प्रसारण की गुणवत्ता ठीक नहीं है इसलिए श्रोता उससे दूर हो रहे हैं पर एफ एम् रेडियो स्टेशन और मोबईल पर इसकी उपलब्धता  ने इस मिथक को भी तोड़ दिया है अन्य जनमाध्यमों में समाचारों के प्रसारण /प्रकाशन के मुकाबले सरकारों का रेडियो के प्रति अति संवेदनशील होना बताता है कि इस माध्यम को सरकार कितनी गंभीरता से लेती है| एफ एम् रेडियो के तृतीय चरण की नीलामी सिर्फ एक उम्मीद ही जताती है पर भारत में एफ एम् रेडियो की उत्पादकता का दोहन होना अभी बाकी है और यह तभी हो पायेगा जब सरकार और निजी प्रसारकों दोनों अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे जहाँ सरकार को एफएम पर समाचारों के प्रसारण की अनुमति देनी चाहिए वहीं निजी प्रसारकों को फ़िल्मी गीतों के बगैर इन्फोटेनमेंट की अवधारणा के बारे में सोचना होगा |रेडियो एक सस्ता साधन है बशर्ते सरकार इसके महत्व को समझे और ख़बरों व सूचनाओं पर सरकारी एकाधिकार की सोच से मुक्त हो ,मौजूदा रवैया किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं .

गाँव कनेक्शन के 10 फरवरी 2012 के अंक में प्रकाशित 

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