85वें ऑस्कर पुरुस्कारों की घोषणा हो चुकी है | हॉलीवुड में बनने वाली फिल्मों में भारत की पैठ बढ़ रही है और उसी अनुपात में ऑस्कर पुरस्कारों में भारतीय सम्बन्ध भी पर किसी भारतीय फिल्म के लिए ऑस्कर के मिलने का इंतज़ार अभी जारी है|एक ऐसे वक्त में जब जिंदगियां बहुत तेज़ी से बदल रही हों हमारी फ़िल्में भी बदल रही हैं पर कितना, यह महतवपूर्ण है. ऑस्कर पुरूस्कार इसका एक पैमाना हो सकते हैं | बर्फी को इस वर्ष भारत की ओर से बेहतरीन विदेशी फिल्म वर्ग के अंतर्गत ऑस्कर अवॉर्ड के लिए भेजा गया,पर यह पहले ही ऑस्कर की दौड़ से बाहर हो गई| बर्फी के चुनाव के समय समीक्षकों ने इस बात पर सवाल खड़े किये कि इसके कुछ दृश्य बैनी ऐंड जून और कोरियन फिल्म ओएसिस से मिलती-जुलती है| प्रियंका की जरा सी हंसी के लिए रणबीर का नाक का घुमाना “सिंगिंग इन द रेन” से लिया गया है, वहीं चार्ली चैप्लिन की “सिटी लाइट्स”(1931) के कुछ सीन भी फिल्म में दिखाई दिए|इतने व्यापक सांस्कृतिक उत्पादन के बावजूद हमारे सपनों और चिंताओं को बोलीवुड सिनेमा के रुपहले परदे पर उतनी विश्वसनीयता से उतार पाने में नाकाम रहा है कि उसे ऑस्कर पाने के लायक समझा जाए|इस वर्ष भारत के ऑस्कर कनेक्शन पर खुशियाँ मनाई जा रही हैं माना जा रहा है कि ऑस्कर के छत्तीस नामांकन से भारत का सम्बन्ध है,पर सिर्फ एक ही भारतीय वास्तविक पुरस्कार की दौड़ में शामिल था | सबसे ज्यादा बारह नामांकन पाने वाली “लिंकन” फिल्म के निर्माण में भारतीय कम्पनी रिलायंस की हिस्सेदारी है|ग्यारह नामांकन हासिल करने वाली लाइफ ऑफ पाई में भारत की कहानी और भारत में शूटिंग.जीरो डार्क थर्टी की भारत में शूटिंग और सिल्वर लाइनिंग्स प्लेबुक में अनुपम खेर का अभिनय|दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्मो का निर्माण करने वाला देशों में से एक भारत से अब तक चालीस से ज्यादा फ़िल्में ऑस्कर के लिए भेजी गयीं जिसमे अधिकतर हिन्दी फ़िल्में रही क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्मों को उतने ज्यादा मौके नहीं मिले आठ बार तमिल और दो बार बांगला भाषा को यह सम्मान मिला पर मराठी,मलयालम और तेलुगु जैसी भाषाओँ में बनी फ़िल्में सिर्फ एक बार ही विदेशी भाषा वर्ग के लिए नामंकित हो पाईं|भारत को ऑस्कर न मिल पाने के पीछे फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की जूरी पर भी उंगलियां उठती रही हैं| फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया ही वह संस्था है जो भारत से कौन सी फिल्म ऑस्कर में नामंकित की जायेगी इसका निर्णय लेती है लेकिन सत्यजीत रे की 'महानगर' और 'शतरंज के खिलाड़ी', गुरु दत्त की 'साहिब बीवी और ग़ुलाम',जैसी फ़िल्में ऑस्कर पुरुस्कारों में भारत का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाईं| ऑस्कर के बोलीवुड कनेक्शन के पीछे भारतीय मध्यवर्ग जिम्मेदार है और इसीलिये अंग्रेजी फिल्मों को हिन्दी में डब करने की परम्परा बड़ी है ऐसे में किसी भी विदेशी फिल्म में भारतीय किरदार या भारतीय परिवेश फिल्म को व्यवसायिक रूप से सफल बनाने के लिए एक कारक हो सकता है|उदारीकरण के पश्चात मनोरंजन एक बड़े उद्योग के रूप में उभरा है हमारा बाजार बड़ा है पर तकनीक के लिए हमारी होलीवुड पर निर्भरता नयी नहीं है| भारतीय फिल्म बाजार में डब अंग्रेजी फिल्में औसतन पचास करोड़ रुपैये का वार्षिक का कारोबार कर लेती हैं हालंकि ऐसी फिल्में बाक्स ऑफिस की कुल फिल्मों की संख्या का दो से तीन प्रतिशत ही होती हैं लेकिन इनका असर मारक हो रहा है|हालंकि हॉलीवुड की किसी फिल्म ने अभी तक सौ करोड़ रुपैये के स्तर को नहीं छुआ है लेकिन अवतार ने नब्बे करोड़ 2012 फिल्म ने पैंसठ करोड़ और द एवेंजर ने सैंतालीस करोड़ रुपैये का व्यवसाय कर ये बता दिया है कि हमारे दर्शक व्यवसाय के पैमाने पर कितने महत्वपूर्ण हैं भारतीय हमारे सिनेमा में मौलिकता के नाम पर सिर्फ गाने हैं जिससे हमारी पहचान हैं दुनिया की अन्य भाषाओँ के लिहाज से भारतीय सिनेमा कंटेंट के लिहाज से कहीं नहीं ठहरता पर व्यवसाय के हिसाब से आप बौलीवुड को नजरंदाज नहीं कर सकते ईरानी भाषा में फ़िल्में कम बनती हैं पर उन्होंने विश्व सिनेमा में अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई है जिसमे मौलिकता और संप्रेषणीयता भी |भारतीय फिल्मों में बढते कॉर्परेटीकरण से छोटे फिल्म निर्माताओं के लिए फिल्म बनाना मुश्किल है उनकी फिल्मों में वही निर्माता पैसा लगाएंगे जिसकी पटकथा में पैसा वापस लाने की गारंटी हो|भारतीय दर्शक एक विचित्र स्थिति का शिकार है कल्टीवेशन थ्योरी के अनुसार जो उसे दिखाया जा रहा है वह वैसी फ़िल्में देखने का आदी हो चुका है वो ज्यादा की उम्मीद नहीं करता तभी तो तकनीक और प्रस्तुति में भले ही होलीवुड से पीछे हों , पर अपने दर्शकों का मनोरंजन करने में बहुत आगे हैं।वक्त है बदलाव का पर बड़े पैमाने पर हमारा सिनेमा कब व्यवसाय के अलावा कंटेंट के हिसाब से विश्वस्तरीय हो पायेगा इसका हम सबको इन्तजार है |
अमरउजाला में 26/02/13 को प्रकाशित
2 comments:
intzaar abhi baaki h
sir oscer melega kyun har film ki story me to love story daal di jati hai hindi film me wo chahe kaisi bhi ho aur film bussines ke liye banai ja rahi hain oscer ke liye nahi.
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