Sunday, August 18, 2013

खाद्य सुरक्षा तो देंगे पर साफ़ सफाई की नहीं


खाद्य सुरक्षा बिल पर उठा पटक जारी है इस अध्यादेश के कानून बन जाने के बाद देश भुखमरी की समस्या से निपट पायेगा और अपने मानव संसाधन को बेहतर बना पायेगा इस कार्यकर्म के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 75 प्रतिशत आबादी आएगी, जबकि शहरी क्षेत्र में इस विधेयक के दायरे में 50 प्रतिशत आबादी आएगी,जिसे सरकारबहुत कम दामों में चावल, गेहूं और दूसरे अनाज उपलब्ध करायेगी,लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि खाद्य  सब्सिडी भारत में और विशेषकर ग्रामीण इलाकों में खराब साफ-सफाई की समस्या को नज़रअंदाज़ करती है। भारत दुनिया का सबसे बड़े  खुले  शौचालय वाला देश है जहाँ दुनिया के लगभग साठ प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं और उनके  मल के उचित प्रबंधन की कोई व्यवस्था नहीं है ग्रामीण इलाके अभी भी खुले में शौच के लिए अभिशप्त है अंदाजा लगाया जा सकता है स्थिति कितनी शोचनीय जिसमे बांग्लादेश ,नेपाल ,पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशभी खुले शौचालय के मामले में हमसे बेहतर स्थिति में है |शौचालयों के न होने का अर्थ है  लोग खुले में शौच करने के लिए मजबूर हैं जिससे बच्चों में जीवाणु संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, जो छोटी आंतों को नुकसान पहुंचा सकता है जिससे बच्चों के बढ़ने, विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को लेने  की क्षमता या तो कम हो जाती है या रुक जाती है, तो  इससे कोई असर  नहीं पड़ता कि उन्होंने कितना भोजन खाया है।कुपोषण एक स्वास्थ्य समस्या के साथ भारत के संदर्भ में एक सांस्कृतिक जटिलता भी है जहाँ खुले में शौच को सामजिक मान्यता  मिली हुई है पर इस मान्यता से कितनी तरह की स्वाश्य समस्याएं पैदा हो रही हैं इस ओर लोगों का ध्यान कम ही जाता है|यूनिसेफ कहता है कि भारत में 61.7 मिलियन बच्चे नाटे हैं, जो दुनियाभर में सबसे ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों  के हिसाब से पांच वर्ष से कम आयु के करीब 20 फीसदी बच्चे अपने कद के हिसाब से कमज़ोर अथवा काफी पतले हैं।इकॉनॉमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकशित एक  पेपर में यूनिवर्सिटी ऑफ सूसेक्स और यूनिसेफ के ग्रेगोर वॉन मेडीज़ा ने कहा कि स्वच्छता और कम पोषण के बीच संबंध को व्यापक तौर पर अनदेखा किया जाता है, उन्होंने इसे ‘अंधा बिन्दु’ कहा है जिसको व्यापक संदर्भ में नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए|स्वच्छता के बारे में ना तो जागरूकता है और ना ही ये हमारी प्राथमिकता में है|वेल्लोर के क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर गगनदीप कांग, का  अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि रोगाणु बच्चों की अंतड़ियों को कैसे नुकसान पहुंचाते हैं, जो फलत: कुपोषण की तरफ ले जाता है यानि सफाई और कुपोषण के बीच संबंध है हम कुपोषण की समस्या से सिर्फ खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करा कर नहीं लड़ सकते यानि सिर्फ स्वच्छता से लोग कुपोषित नहीं होगें और  ना ही सिर्फ  भोजन से प्रत्येक बच्चे का समुचित विकास हो सकता है। दोनों का उचित मिश्रण ज़रूरी है|दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स के एक अतिथि प्रोफेसर डीन स्पीयर्स के शोध के मुताबिक जिन भारतीय ज़िलों में शौचालय हैं, वहां बौने बच्चों की संख्या कम है।2011 के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन भारतीय बच्चों को दस्त लगे हैं, उनमें करीब 80 फीसदी शौच करने के बाद साबुन से हाथ साफ नहीं करते| विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार भारत  कि पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों के कुपोषित होने की मुख्य वजह दस्त है। विश्व में प्रत्येक वर्ष इस उम्र वर्ग के 800,000 से ज्यादा बच्चों की दस्त से मृत्यु होती है,और  इनमें से एक चौथाई मौतें भारत में होती हैं| इसका सीधा सा मतलब  है कि स्वच्छता योजनाओं और खाद्य सुरक्षा पर संतुलित निवेश किया जाए और इस दोतरफा निवेशन से ही ग्रामीण भारत का मानव संसाधन बेहतर हो पायेगा|भारत के नन्हे बालको का भविष्य तभी सुरक्षित  है जब उनकी मुट्ठियाँ साफ़ और कीटाणु रहित होंगी| हैं। सरकार भोजन की उपलब्धता की गारंटी तो सुनिश्चित कर रही है पर वो भोजन कैसा होगा और किन पर्यावासों में उसका उपयोग किया जाएगा यह तथ्य पूरी तरह से नजरंदाज किया जा रहा है|
गाँव कनेक्शन साप्तहिक के 18/08/13के अंक में 

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