किसी भी समाज की संवेदनशीलता का स्तर उसके अपने बच्चों के साथ किये गए व्यवहार से परिलक्षित होता है.यौन हिंसा किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है,पर जब बात बच्चों की हो तो समस्या की गंभीरता बढ़ जाती है|
देश में बाल यौन उत्पीडन के मामले तीन सौ छत्तीस प्रतिशत बढ़ गए हैं | एशियन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स रिपोर्ट इंडियाज हेल होल्स के मुताबिक साल 2001 2011 के बीच कुल 48,338 बच्चों से यौन हिंसा के मामले दर्ज किये गए,साल 2001 में जहाँ इनकी संख्या 2,113 थी वो 2011 में बढ़कर 7,112 हो गई.महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ये ऐसे मामले हैं जो रिपोर्ट किये गए हैं|रिपोर्ट के मुताबिक़ बच्चों के प्रति बढ़ती यौन हिंसा बहुत तेज बढ़ रही है|इस अवधि में राज्यों के लिहाज से सबसे ज्यादा बच्चों के साथ यौन हिंसा के मामले मध्यप्रदेश (9465),महाराष्ट्र(6868) फिर उत्तरप्रदेश (5949) में दर्ज किये गए लक्षदीप में बच्चों के साथ यौन हिंसा का कोई भी मामला आधिकारिक रूप से दर्ज नहीं किया गया|महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा के मामले इसलिए आसानी से सुर्खियाँ बन जाते हैं कि वे बालिग़ होती हैं और अपने साथ हुए अन्याय को दुनिया से कह सकती हैं,बच्चे इस मामले में लाचार होते हैं,हमारा सामाजिक ताना बाना और सेक्स शिक्षा के अभाव में किसी भी पीड़ित बच्चे के साथ ऐसा कुछ भी होता है तो उसे समझ ही नहीं आता कि वो क्या करे|
बच्चों के साथ हुए ऐसे कृत्य के परिणाम बहुंत गंभीर होते हैं जिससे पूरा समाज प्रभावित होता है| तथ्य यह भी है कि हमारी समाजीकरण प्रक्रिया में अभी तक बच्चों के पास इस पाशविक व्यवहार के लिए कोई शब्द विज्ञान या भाषा ही नहीं है उनके पास महज हाव भाव ही होते हैं और हर अभिभावक इतना जागरूक और पढ़ा लिखा हुआ हो ये जरूरी नहीं|
भारत में लगभग चार करोड तीस लाख (430 मिलियन) बच्चे हैं, जो उसकी कुल आबादी का एक-तिहाई हैं। विश्व की कुल बाल आबादी का ये पांचवा हिस्सा हैं। संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के मुताबिक : “एक बच्चे और उम्रदराज़ अथवा ज्यादा समझदार बच्चे अथवा वयस्क के बीच संपर्क अथवा बातचीत (अजनबी, सहोदर अथवा अधिकार प्राप्त शख्स, जैसे अभिभावक अथवा देखभाल करने वाला), के दौरान जब बच्चे का इस्तेमाल एक उम्रदराज़ बच्चे अथवा वयस्क द्वारा यौन संतुष्टि के लिए वस्तु के तौर पर किया जाए। बच्चे से ये संपर्क अथवा बातचीत ज़ोर-जबरदस्ती, छल-कपट, लोभ, धमकी अथवा दबाव में की जाए।” भारत आबादी के लिहाज से दुनिया के ऐसे देशों में आगे है जिसकी आबादी का बड़ा हिस्सा युवा वर्ग से बनता है आर्थिक विकास परिप्रेक्ष्य में यह वरदान सरीखा है, लेकिन अपने युवाओं की सही देखभाल न कर पाने से देश अपने जनसांख्यिकीय लाभ का पूरी तरह फायदा पाने में पिछड सकता है कारण बाल उत्पीडन की संख्या में हो रही लगातार वृद्धि|हालंकि सरकार ने यौन-अपराध बाल संरक्षण अधिनियम(POCSO) लागू कर दिया है जिसके अंतर्गत बाल-उत्पीड़न के सभी प्रकारों को पहली बार भारत में विशिष्ट अपराध बना दिया गया लेकिन पर्याप्त जागरूकता के अभाव और संसाधनों की कमी के चलते व्यवहार में कोई ठोस बदलाव होता नहीं दिख रहा है|बच्चे लगभग हर जगह उत्पीडन के शिकार हैं अपने घरों के भीतर, सड़कों पर, स्कूलों में, अनाथालयों में और सरकारी संरक्षण गृहों में भी| इस समस्या का एक साँस्कृतिक पक्ष भी है.हम एक युवा आबादी वाले देश में पुरातन पितृसत्तात्मक सोच के साथ बच्चों को पालते हैं और अपनी सोच को उन पर इस तर्क के साथ थोप देते हैं कि ये तो बच्चे हैं, परिणाम बाल विवाह,ऑनर किलिंग और भ्रूणहत्या जिनका समाधान सिर्फ कानून बना कर नहीं हो सकता है|पारिवारिक ढांचे में ये सच है कि बच्चों की कोई नहीं सुनता वो भी यौन शोषण जैसे संवेदनशील विषय पर तब सम्बन्धों,परिवार की मर्यादा आदि की आड़ लेकर बच्चों को चुप करवा दिया जाता है,इसलिए बाल उत्पीडन के वही मामले दर्ज होते हैं जिसमें शारीरिक क्षति हुई होती है|बाल यौन उत्पीडन एक स्वस्थ बाल मस्तिष्क को हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त कर देता है जिससे बच्चों में व्यवहार संबंधी अनेक तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिसका परिणाम एक खराब युवा मानव संसाधन के रूप में आता है|बाल यौन उत्पीडन को गंभीरता से इसलिए भी लिए जाने की जरुरत है क्यूंकि बच्चे ही हमारा भविष्य हैं| प्रख्यात बाल लेखक जैनज़ कोरज़ाक ने कहा था कि- 'बच्चे और किशोर, मानवता का एक-तिहाई हिस्सा हैं। इंसान अपनी जिंदगी का एक-तिहाई हिस्सा बच्चे के तौर पर जीता है। बच्चे...बड़े होकर इंसान नहीं बनते, वे पहले से ही होते हैं,हमें बच्चों के अंदर के इंसान को जिन्दा रखना होगा |
अमरउजाला कॉम्पेक्ट में 28/05/14 को प्रकाशित