इन
दिनों आप खूब राजनीति का आनंद ले रहे होंगें राजनीति बोले तो पॉलीटिक्स हो भी
क्यूँ न चुनाव का मौसम है,मैंने एक बात गौर की है शायद आपने भी की हो
पॉलीटिक्स को एक निगेटिव टर्म माना जाता है.हम जब वर्कप्लेस या रिश्तों में फंस
जाते हैं तो बस बेसाख्ता मुंह से निकल जाता है “बहुत पॉलीटिक्स है” पर वास्तव में
क्या ऐसा है.सच बताऊँ तो ये पॉलीटिक्स इतना बुरा शब्द भी नहीं है जितना हम समझते
हैं.देश के चुनाव का मौसम पांच साल में एक बार आता है जब हम अपनी च्वाईस से किसी
को वोट देते हैं.कभी किसी को जीताने के लिए और कभी कभी किसी को हराने के लिए भाई
यही पॉलीटिक्स है.यानि सारा खेल बस इसी च्वाईस का है कि हम जिस तरह का देश समाज
चाहते हैं वैसे ही लोग चुनकर आयें पर जब ऐसा नहीं होता है तो शुरू होती है
कनफ्लिक्ट,इस
वैचारिक कनफ्लिक्ट का फैसला चुनाव के वक्त होता है पर जब बात जिंदगी की होती है तो
च्वाईस का मामला और भी इम्पोर्टेंट हो जाता है भाई जिंदगी कोई देश नहीं है कि एक
बार अपनी च्वाईस बता दी और पांच साल की छुट्टी यहाँ तो रोज हर वक्त पॉलीटिक्स है,क्यूंकि हम
सभी अपनी जिंदगी को बेहतर और खूबसूरत
बनाना चाहते हैं और ये तभी हो सकता है जब देश और समाज अच्छा होगा यहाँ तक तो ठीक
है पर जब बात जिंदगी और रिश्तों की होती है और चीजें हमारे हिसाब से नहीं होती तब
एक और तरह का कनफ्लिक्ट शुरू होता है तब हम परिस्थितियों का सामना करने की
बजाय “बहुत पॉलीटिक्स है” कहकर समस्याओं
से भागने लग जाते हैं.आपको क्या लगता है इस तरह जीवन की समस्याएं ठीक होंगी क्या ? चुनाव के वक्त
हमें वोट तो देना ही पड़ेगा तभी तो हम अपनी पसंद के कैन्डीडेट को जीता पायेंगे उसी
तरह जिंदगी में हमें अपनी प्राथमिकताएं तय करनी पड़ती हैं कि हम जिंदगी और रिश्तों
से क्या चाहते हैं तो जब रिश्ते की पॉलीटिक्स में फंसें तो पहले यह तय कीजिये कि
आप क्या चाहते हैं और उसी तरह से निर्णय लीजिए.अपनी जिंदगी के पन्ने पलटिए थोडा
पीछे मुड़कर देखिये कि आप जिन्द्गी में सफल या असफल क्यूँ हुए बात सीधी है.अगर आप
सफल रहे हैं तो आपने फैसले सही किये अपनी प्राथमिकताएं स्पष्ट रखी जिससे आपको और
दूसरों को भी आपके बारे में निर्णय लेने में आसानी हुई.पर अगर आप लगातार असफल हो
रहे हैं तो जिंदगी की पॉलीटिक्स यही कहती है कि आप भ्रम के शिकार हैं जिंदगी और
रिश्तों को लेकर आपका नजरिया स्पष्ट नहीं हैं.आप अपने आस पास के लोगों से क्या चाहते
हैं आपको इसका पता ही नहीं हैं तो जाहिर सी बात है जैसे देश के चुनाव में हम भ्रम
का शिकार होकर गलत कैन्डीडेट को वोट देकर
जीता देते हैं वैसे ही जिंदगी और रिश्तों में गलत फैसले लेकर अपने आप को परेशानी
में फंसा लेते हैं और कोसते हैं किस्मत और जिंदगी को भाई बहुत पॉलीटिक्स है.चुनाव
के वक्त आपने भी सुना होगा बहुत से दल ये दावा करते हैं कि उनके आते ही विकास की
गंगा बहने लगेगी अब आप इस तरह की बातों पर भरोसा कर लेते हैं तो समझ लीजिए कि आप
जिंदगी और रिश्तों के बारे में भी आपकी समझ नहीं है.बात को थोडा हल्का करता हूँ अच्छा
इतना तो आप भी मानते हैं कि दोस्ती या रिश्ते एकदम से क्लोज नहीं होते और अगर ऐसा
हो रहा है तो समझ लीजिए कि ऐसे रिश्ते के मोटिव क्लीयर नहीं हैं,रिश्तों को पकने
में वक्त लगता है और इसके पीछे सिलसिलेवार तरीके से आपके द्वारा लिए गए निर्णय
रिन्स्पोसिबल होते हैं उसी तरह से देश में बदलाव एक झटके में नहीं हो सकता है इसके
लिए एक पूरी प्रक्रिया है.आज लगता है मैं आप लोगों को ज्यादा पका रहा हूँ आपको मजा
नहीं आ रहा है.बस यही एटीट्यूड सारी प्रोब्लम की जड़ है बात जब भी पॉलीटिक्स की
होती है वो चाहे देश की हो या रिश्तों की हम बोर होने लगते हैं पर प्रोब्लम का
सल्यूशन तो तभी होगा जब हम उनके बारे में सोचेंगे,आपने कभी सोचा कि बचपन का वो दोस्त जो
आपको सबसे प्यारा लगता था आज उससे बात करने पर वो मजा नहीं आता सिंपल है आपने अपनी
प्राथमिकताएं बदल ली हैं.आज आपको उसकी उतनी जरूरत नहीं क्यूंकि आपका जीवन आगे बढ़
चला है.बात देश की हो या अपनी अपनी जिंदगी की पॉलीटिक्स की सारा खेल च्वाईस का है
पर जैसे देश आपसे वोट की उम्मीद करता है जिंदगी और रिश्ते भी करते हैं.देश का वोट
उंगली पर लगी स्याही से दिखता है.जिंदगी और रिश्तों का वोट अफैक्शन,केयर और सैक्रिफाईज़ की फॉर्म में
दिखता है तो वोट कीजिये देश के लिए पांच साल में और अपने लिए,अपने रिश्तों के
लिए रोज .
आई नेक्स्ट में 06/05/14 को प्रकाशित
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