जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के प्रमुख मुद्दों में कूड़ा प्रबंधन भी है पर ये कूड़ा धरती के लिए ही नहीं बल्कि समुद्रों के लिए भी बड़ा खतरा बनता जा रहा है|आमतौर पर यह धारणा है कि समुद्र बहुत विशाल है इसमें कुछ भी डाल दिया जाए तो पर्यावरण पर इसका फर्क नहीं पड़ेगा पर वास्तविकता इसके उलट है|पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का लगभग सत्तानबे प्रतिशत समुद्र में है। समुद्र हमारी धरती के लगभग इकहत्तर प्रतिशत हिस्से पर है। समुद्र की उपस्थिति पर धरती का अस्तित्व निर्भर करता है। परंतु विगत कुछ वर्षों से धरती पर मौजूद अन्य जलाशयों की भांति ही मनुष्यों ने समुद्र को भी अपने अविवेकपूर्ण एवं लापरवाह आचरण का शिकार बनाना शुरू कर दिया है और अधिक चिंताजनक विषय यह है कि इस ओर हमारे पर्यावरणविदों का ध्यान न के बराबर ही है। हाल ही में दुर्घटना का शिकार हुए मलेशिया के विमान का मलबा ढूंढते समय स्वच्छ समझे जाने वाले समुद्र में जिस मात्रा में अत्यधिक प्रदूषक कूड़ा निकला है उसने सम्पूर्ण विश्व का ध्यान समुद्री प्रदूषण की विकराल होती समस्या की ओर आकर्षित किया है। बढ़ती हुई जनसंख्या और पृथ्वी भूमि संसाधनों पर निरंतर बढ़ते जा रहे दबाव से यह तो तय है कि आने वाले वक़्त में हमें अपनी भूख और प्यास मिटाने के लिए समुद्र की ही शरण में जाना पड़ेगा इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने समुद्र का संरक्षण करें। समुद्र में हम प्लास्टिक से लेकर रेडियोधर्मी कचरे तक सबकुछ डाल रहे हैं। समुद्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है – प्लास्टिक। बदलती जीवन शैली,प्रयोग करो और फैंको की मनोवृति और सस्ती प्लास्टिक की उपलब्धता ने प्लास्टिक का उत्पादन और कचरा दोनों ही बढाया है|प्लास्टिक कचरे के निस्तारण की पर्याप्त व्यवस्था अभी सभी देशों के पास उपलब्ध नहीं है|
पर्यवारण संस्था ग्रीन पीस के आंकलन के मुताबिक हर साल लगभग अठाईस करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जिसका बीस प्रतिशत हिस्सा समुद्र में चला जाता है|कितना प्लास्टिक हमारे समुद्र के तल में जमा हो चूका है इसका वास्तविक अंदाज़ा किसी को नहीं है|उल्लेखनीय है कि ये कचरा समुद्र के ऊपर तैरते कचरे से अलग है|
प्लास्टिक की वजह से समुद्री खाद्य श्रखला पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। प्लास्टिक की वजह से न केवल समुद्री जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है बल्कि पूरे के पूरे समुद्री पारितंत्र के भी बिखरने का खतरा उत्पन्न हो गया है। ग्रीनपीस संस्था के आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष लगभग दस लाख पक्षी और एक लाख स्तनधारी जानवर समुद्री कचरे के कारण काल का ग्रास बन जाते हैं।विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 14,000 करोड़ पाउंड कूड़ा-कचरा समुद्र में फेंका जाता है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्री कचरे का लगभग अस्सी प्रतिशत जमीनी इंसानी गतिविधियों तथा बचा हुआ बीस प्रतिशत समुद्र में इंसान की गतिविधियों के फलस्वरूप आता है। जापान में 2011 में आए सूनामी ने प्रशांत महासमुद्र में कूड़े का एक सत्तर किलोमीटर लंबा टापू बना दिया। यह तो केवल एक उदाहरण भर है। विश्व भर में समुद्री कूड़े से बने ऐसे अनेकों टापू हैं और यदि समुद्र में कूड़ा डालने की हमारी आज की गति बरकरार रही तो वह दिन दूर नहीं जब समुद्र में हर तरफ सिर्फ कूड़े के टापू ही नज़र आएंगे। समुद्री कचरा जमीनी कचरे की तरह एक जगह इककट्ठा न होकर पूरे समुद्र में फैल जाता है। यह पर्यावरण, समुद्री यातायात, आर्थिक और मानव स्वास्थ्य को काफी भरी मात्रा में नुकसान पहुंचाता है। विश्व के कई देशों में इस समस्या का हल ढूँढने की कोशिशें शुरू हो गईं हैं। भारत में भी सन 2000 में ठोस कचरे के निस्तारण को लेकर एक नीति बनाई गयी थी पर वह आज भी कागजों पर ही है। हम अपने सीवेज का केवल तीस प्रतिशत का ही प्रक्रमण कर पाते हैं। बाकी का सीवेज वैसे का वैसा ही नदियों में डाल देते हैं जो अंततः समुद्र में जाता है। देश की आठ हजार किलोमीटर लम्बी तटरेखा सघन रूप से बसी हुई है जिसमें मुंबई ,कोलकाता,चेन्नई ,गोवा ,सूरत और थिरुवनंतपुरम जैसे शहर शामिल हैं.तथ्य यह भी आर्थिक रूप से विकसित इन शहरों में जनसँख्या का दबाव बढ़ रहा है और शहर अपने कूड़े को समुद्र में डाल रहे हैं.अल्पविकसित देशों के लिए कूड़ा निस्तारण हेतु समुद्र एक अच्छा विकल्प साबित होते हैं इससे समस्या का फौरी तौर पर तो समाधान हो जाता है पर लम्बे समय में यह व्यवहार पर्यावरण और मानवजाति के लिए खतरा ही बनेगा| समुद्र की विशालता के कारण समूचे समुद्र की सफाई संभव नहीं है इससे बचने का एकमात्र रास्ता जागरूकता और बेहतर प्लास्टिक कूड़ा प्रबंधन है |इस दिशा में ठोस पहल की आवयकता है|
अमर उजाला में 18/06/14 को प्रकाशित
2 comments:
a mind opening article....
इस लेख में आपने पूरी दुनिया की जटिल समस्या को उजागर किया है,यह बेहद जरुरी है। इसको रोकने में सबसे अहम प्रयास जागरूकता हो सकती है। इसलिए जरूरी है की समुद्र,नदी,तालाब,आदि को प्रदूषित होने से बचाने के लिए उनसे होने वाली हानिया और दुष्परिणाम से लोगो को अवगत कराया जाये।
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