एक बात मुझे आजकल बहुत कचोट रही हैं, मेरे एक मित्र मुझसे किसी बात पर नाराज हो गए और बोले कि ज्यादा “स्मार्ट” न बना करो,खैर उन्हें तो मैंने मना लिया,क्यूंकि वो मेरे अपने थे पर ये स्मार्ट शब्द मेरे जेहन में घुस गया,क्यूंकि बात दोस्ती के रिश्ते के रिश्ते की थी और र्श्ते में स्मार्टनेस कैसे और कहाँ से आ गयी.ओह मैं भी क्या ले बैठा छोडिये इस बात को. आजकल स्मार्ट होने का जमाना है वो चाहे फोन हो या टीवी या फ्रिज सब स्नार्ट होने चाहिए अब तो स्मार्ट चश्मे और घर भी बनने लग गए हैं .वैसे स्मार्ट होने में कोई बुराई भी नहीं है पर सुबह सुबह आपसे दिमाग पर जोर डालने के लिए कह रहा हूँ जो आपका पुराना फोन था जिसको बदल कर अभी आपने नया नया स्मार्ट फोन लिया है क्या उसकी कमी खलती है.आप कहेंगे कभी कभी जब नया फोन हैंग होता है या कोई वाइरस आ जाता है. वो बहुत सिंपल था उसमें फीचर्स कम थे पर बात और मेसेजिंग के लिए ठीक था.अब ये नया फोन वैसे तो बहुत बढ़िया है पर फीचर्स इतने ज्यादा है कि आधे की तो कभी जरुरत ही नहीं पड़ती.खैर मैं कोई टेक एक्सपर्ट तो हूँ नहीं मैं तो जिंदगी को समझने की कोशिश में लगा एक अदना सा इंसान हूँ जब इतनी चीजें स्मार्ट हो रही है तो रिश्ते क्यूँ न स्मार्ट हों,रिश्ते और स्मार्ट ये भला कैसी बात .आप भी सोच रहे होंगे कि ये क्या गडबडझाला है.रिश्ते तो बस रिश्ते होते हैं उनका स्मार्टनेस से क्या लेना देना.जब दुनिया बदल रही है तो रिश्ते क्यूँ नहीं बस यहीं मामला थोडा उल्टा हो जाता कुछ चीजें अपनी ऑरिजिनल फॉर्म में ही अच्छी लगती हैं और हमारे रिश्ते उनमें से एक है.जरा सोचिये हमारा वो पुराना फोन बात करने और मेसेज भेजने के काम तो कर ही रहा था और हममें से ज्यादातर लोग अपने स्मार्टफोन से भी वही काम करते हैं जो अपने पुराने फोन से करते थे.फोन पर चैटिंग और मिनट मिनट पर फेसबुक का इस्तेमाल बस थोड़े दिन ही करते हैं फिर जिंदगी की आपधापी में ये चीजें बस फोन का फीचर भर बन कर रह जाती हैं पर इस थोड़े से मजे के लिए हम अपने फोन को कितना कॉमप्लिकेटेड बना लेते हैं.फोन की स्क्रीन को सम्हालना कहीं गिर न जाए महंगा फोन हैं कहीं खो न जाए हमेशा अपने से चिपकाए फिरते हैं.आप परेशान न हों हम ये थोड़ी न कह रहे हैं कि आपने फोन बदल कर गलत किया.हम तो बस बता रहे हैं कि जब चीजें स्मार्ट होती हैं तो उसका क्या असर होता है रिश्ते भी वक्त के साथ बदलते हैं पर जो चीजें नहीं बदलती हैं वो है अपनापन, रिश्तों की गर्मी और किसी के साथ से मिलने वाली खुशी. हमारा फोन स्मार्ट हुआ तो कॉमप्लिकेटेड हो गया उसी तरह रिश्तों में अगर स्मार्टनेस आ जाती है तो उसमें कॉमप्लिकेशेन बढ़ जाता है फिर वो रिश्ते भले ही रहें पर उनमें वो अपनापन,प्यार नहीं रह जाता .भाई हम जिंदगी में कई तरह के रिश्ते बनाते हैं कुछ पर्सनल तो कुछ फॉर्मल,कभी आपने महसूस किया है हम फॉर्मल रिश्तों में ज्यादा स्मार्टनेस दिखाते हैं हम जैसे हैं उससे अलग हटकर डिप्लोमेटिक बिहैव करते हैं.किसी बात पर गुस्सा भी आया तो हंसकर टाल गए ,कुछ बुरा लगा तो भी चेहरे पर मुस्कुराहट ओढ़े रहे जाहिर है जबकि हम ऐसे नहीं होते नहीं अगर अपने लोगों के साथ कुछ ऐसा हुआ होता तो हम जमकर गुस्सा करते पर बाहर हम ऐसा नहीं करते क्यूंकि जिन लोगों के साथ हम थे उनसे हमारे फोर्मल रिश्ते थे पर अगर इस तरह की चीजें आप लंबे समय तक करते रहे तो आप फ्रस्टेट हो जायेंगे,इसलिए हर इंसान के जीवन में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके सामने वो असल में जैसा होता है वैसा दिखा सकता है.वो रो सकता है ,कह सकता है कि ये काम मुझसे गलती हो गया.जाहिर है अपने लोगो से स्मार्टनेस दिखाने का कोई फायदा नहीं है.ये लोग हमारे अपने हैं जो हमारी सब अच्छे बुराई जानते हैं.ये हमारे नाम, ओहदे,रसूख के कारण हमारे साथ नहीं है, ऐसे रिश्तों के साथ कोई नियम व शर्तें नहीं लागू होती हैं.अब आपको समझ में आ गया होगा कि स्मार्टफोन खरीदते वक्त नियम व शर्तें जरुर पढ़ें पर जब बात अपनों की हो तो कोई बिलकुल स्मार्टनेस न दिखाएँ क्यूंकि अपने रिश्तों के साथ कोई नियम और शर्तें नहीं होती हैं,तो मैं फोन भले ही स्मार्ट रखता हूँ पर असल में स्मार्ट हूँ नहीं.
आईनेक्स्ट में 03/06/14 को प्रकाशित
2 comments:
बढ़िया पोस्ट सर जी !
सही कहा आपने आज के दौर में रिश्ते स्मार्टफोन की तरह ही बदलते जा रहे है। रिश्ते बनाना बहुत आसान होता है पर उन्हें निभाना मुश्किल। हर रिश्ते को निभाने के लिए आपसी प्रेम ,विश्वास और समझौते का होना बहुत जरूरी है। रिश्ते नाज़ुक डोर की तरह होते है।
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