Friday, June 26, 2015

बर्फ के पहाड़ों से सीखें जिंदगी का फलसफा

वैसे गर्मी की बात आते ही पहला ख्याल जो जेहन में उठता है वो है गर्मी की छुट्टियाँ तो इस बार छुट्टियों में मैं भी लद्दाख की यात्रा पर निकल गया ,मैं समझ गया आप क्या सोच रहे हैं यही न की मैं छुट्टी  पर गया तो इससे आप सबको क्या मतलब .बात सही है पर आप इतनी जल्दी अधीर क्यों हो जाते हैं मैं जानता हूँ कि मेरी लद्दाख यात्रा से आपको कोई मतलब नहीं है पर जो कुछ मैं आगे लिखने जा रहा हूँ उस कहानी का एक किरदार हम सब कहीं न कहीं हैं .अब देखिये न हम सब कहीं न कहीं एक यात्रा में तो ही न बच्चे से जवान और जवान से बूढ़े फिर मौत ये है हर इंसान की यात्रा का किस्सा है .तो आज हम अपनी लद्दाख यात्रा के बहाने जिन्दगी के फलसफे को समझने की कोशिश करते हैं .जब हम किसी भी यात्रा में चलते हैं तो सब कुछ थम सा जाता है भले ही ट्रेन या बस चल रही होती पर हमारे अन्दर सब कुछ कितना शांत हो जाता और हो भी क्यों न हों जब हम सफर में होते हैं तो बाकी की दुनिया से कट जाते हैं यानि अब उस दुनिया में होने वाली किसी भी हलचल से पर हमारा कंट्रोल नहीं होता है. वैसे जैसे ही हमारी यात्रा ख़त्म होती है हम फिर दुनिया में होने वाली घटनाओं से जुड़ जाते हैं.हर सफ़र की एक मंजिल होती है उसी तरह हमारे जीवन का अंतिम सत्य तो मौत ही न ,अरे भाई डरिये मत जब हम सफ़र में निकलते हैं तो हमें क्या पता होता है कि सफर कैसा बीतेगा अब मुझे ही ले लीजिये दिल्ली एयरपोर्ट पर तीन घंटे इंतज़ार करना पड़ा .आखिर सफर जो करना था.उसी तरह जिन्दगी की इस यात्रा में कब ,क्या और कहाँ मिलेगा किसी को पता नहीं होता तो जिन्दगी में कल क्या होगा इस बात की परवाह किये बगैर अपना सफ़र जारी रखिये.वैसे भी किसी यात्रा में चलना ही हमारे हाथ में होता है बाकी ट्रेन ,बस या उस माध्यम पर निर्भर करता है जिस से हम यात्रा कर रहे होते हैं.
जब हम लेह में उतरे तो वहां  हाड़ कंपा देने वाली ठण्ड थी जब पूरा भारत जलाने वाली गर्मी से झुलस रहा था हम रजाई लपेटे आग से हाथ ताप रहे थे चूँकि पुरी तैयारी से गए थे इसलिए उस ठण्ड का सामना आसानी से कर लिया तो जिन्दगी में हर रंग के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए क्या पता कब कौन सा जिन्दगी का रंग सामने आ जाए.वैसे लेह में भले ही ठण्ड थी पर धूप भी बहुत चमकीली निकलती थी तो दिन में ठण्ड उतना नहीं सताती थी .क्या समझे अरे भाई अगर यात्रा में कुछ कठिनाई आती है तो उससे निकलने का रास्ता भी.पूरा लद्दाख सर उठाये ऊँचे  पहाड़ो से घिरा है .कभी आपने गौर किया बर्फ से ढंके ये पहाड़ हमें बताते हैं जिन्दगी की यात्रा में भले ही कितनी मुश्किलें क्यों न आयें हमें तनकर उनका सामना करना चाहिए. हम नुब्रा घाटी की तरफ चले वहां का एन्वायरमेंट कई मामलों में अनोखा था पहले सूखे पहाड़ जिस पर एक तिनका भी नहीं उगता उसके बाद बर्फ से ढंका खार्दुंग ला  जहाँ ऑक्सीजन की कमी से सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और उसके बाद आयी नुब्रा घाटी जहाँ एक और रेगिस्तान था तो दूसरी ओर पहाड़ों से पिघलती बर्फ का पानी.अब देखिये न हमारी जिन्दगी भी तो ऐसी ही है ,कभी सुख तो कभी दुःख और हाँ कभी एक नीरसता भी जिसका कोई कारण नहीं होता फिर भी हम जिन्दगी का सफर तय करते रहते हैं. 
फिर हम विश्व प्रसिद्ध पैन्गोंग झील की तरफ जहाँ तेज हवाएं चलती हैं और शाम के वक्त झील के पास न जाने की ताकीद की जाती है पर इतनी तेज हवाओं में भी झील का पानी एक दम शांत रहता है .सफलता पाना और सफलता को पचाना दो अलग अलग बातें हैं जिन्दगी में वही लोग लम्बे समय तक सफल होते हैं जिनके पाँव सफल होने पर भी जमीन पर टिके रहते हैं ठीक पेन्गोंग झील के पानी की तरह. तो आगे से जब भी किसी सफ़र पर निकालिएगा तो ये मत भूलियेगा कि ये जिन्दगी का सफ़र है और हर सफ़र की शुरुवात अकेले ही होती है लेकिन अंत अकेले नहीं होता साथ में कारवां होता है अपनों का अपने अपनों का यात्राएँ चाहे जीवन की हों या किसी दूर देश की या फिर घर से दफ्तर के बीच की ही क्यों न हो . सबकी यात्राओं का अपना अलग अलग सुख है .फिलहाल यह लेख लिखने  की अपनी इस  यात्रा को मैं  यहीं ख़तम करता हूँ ओर निकलता हूँ अपनी दूसरी यात्राओं की ओर.
आई नेक्स्ट में 26/06/15 को प्रकाशित 

Wednesday, June 17, 2015

लेह में भी एक बिहार बसता है

लेह एक पहाडी शहर जहाँ की भाषा खान पान और वेशभूषा उत्तर भारत के किसी भी शहर से एक दम अलग है ,ऐसे में लेह की किसी गली से गुजरते हुए अगर आपके कानों में “बगल वाली जान मारेली” जैसा भोजपुरी गीत सुनाई पड़े तो कौतूहल होना स्वाभाविक है.ऐसा कुछ मेरे साथ हुआ अपने लेह प्रवास के दौरान जब मैं यूँ ही सड़कों पर गुजरता हुआ वहां के प्राकृतिक द्रश्यों को अपने आँखों में समेट रहा था तभी एक दुकान में चल रहे वार्तालाप ने मुझे अपनी ओर खींच लिया “का चीज ,का बीस रुपये अरे अनपच हो जाई|ये लेह का स्क्म्पारी ईलाका है जहाँ लेह में एक छोटा बिहार बसता है |मैं भी उस बात चीत में शामिल हो गया अपने मुलुक के आदमी से मिल कर उन सबको बहुत अच्छा लगा ,और फिर जो तथ्य हाथ लगे उससे पता पड़ा कि लेह क्यों बिहारी मजदूरों का स्वर्ग है
लेह में कुशल मजदूरों की भारी कमी है जिसकी पूर्ति नेपाली और बिहारी मजदूर करते हैं पर इसमें बड़ा हिस्सा बिहारी मजदूरों का है |लेह में जहाँ कहीं भी निर्माण कार्य चल रहा हो आप वहां आसानी से बिहारी मजदूरों को काम करते देख सकते हैं जिसमें ज्यादा हिस्सा बेतिया जिले का है |बेतिया से यहाँ मजदूरी करने आये हीरा लाल शाह ने कुछ पैसे जोड़कर एक मिठाई की दूकान खोल ली जिससे वे उस स्वाद की भरपाई कर सकें जिसे वो और उनके जैसे सैकड़ों मजदूर भारत के इस हिस्से में नहीं पा पाते हैं |उनकी दूकान पर सुबह शाम उन बिहारी मजदूरों का तांता लगा रहता है जो लिट्टी बाटी या पकोड़ी का स्वाद लेह में चखना चाहते हैं |देवनाथ शाह बताते हैं कि यहाँ आने के लिए वे कई महीने पहले टिकट कटा लेते हैं जिससे दिल्ली से लेह का टिकट ढाई से तीन हजार रुपये में मिल जाता है और फरवरी मार्च में मजदूर यहाँ आ जाते हैं दो चार दिन आराम करने के बाद यहाँ काम मिल ही जाता है |छ महीने पैसा कमाने के बाद दशहरे के आस पास वे फिर अपने गाँव फ्लाईट से लौट जाते हैं |देवनाथ यह बताना नहीं भूलते कि दिल्ली से अपने गाँव का सफर वो ट्रेन के एसी डिब्बे में ही करते हैं |
चूंकि सभी मजदूर एक दूसरे के रिफरेन्स से लेह पहुँचते हैं इसलिए सब एक ही जगह साथ रहना पसंद करते हैं और उन्हीं में से कुछ लोगों ने अपनी दुकाने वहां खोल ली हैं वो चाहे भोजपुरी गाने या फ़िल्में मोबाईल में डालनी हों या सब्जी बेचना सब ही बिहार से आये मजदूर हैं |मजेदार बात यह है कि दुकान साल में छ महीने ही खुलती है ,ठण्ड के कारण ये सभी सर्दियों में अपने घर लौट जाते हैं पर दुकान मालिक को साल भर किराया देना होता है|ऐसे ही एक दिहाड़ी मजदूर देवनाथ बताते हैं यहाँ पैसे ज्यादा मिलते हैं उत्तर प्रदेश या बिहार में जहाँ एक दिन की औसत दिहाड़ी लगभग साढ़े तीन सौ रुपये है वहीं लेह में उतने ही काम के पांच सौ से छ सौ रुपये मिल जाते हैं |
स्थानीय ठेकेदार परवेज अहमद बताते हैं कि बिहारी मजदूर बहुत मेहनती और कुशल होते हैं प्लास्टर और पुताई के काम में इनका कोई मुकाबला नहीं हैं |
लेह के जिलाधिकारी सौगत बिस्वास ने बताया कि इस समय लेह में करीब दस हजार बिहारी मजदूर हैं और अपनी मेहनत  से वे लेह के निवासियों का जीवन आसान बना रहे हैं |

 प्रभात खबर में 17/06/15 प्रकाशित लेख 

Monday, June 15, 2015

मजबूत होती मानसिक अवसाद की जकड

कहा जाता है एक स्वस्थ तन में ही स्वस्थ  मष्तिस्क का वास होता है पर अगर  मष्तिस्क स्वस्थ नहीं होगा तो तन भी बहुत जल्दी रोगी हो जाएगा |शरीर में अगर कोई समस्या है तो जीवन के बाकी के कामों पर सीधे असर पड़ता है और इसे जल्दी महसूस किया जा सकता है पर बीमार मस्तिस्क के साथ ऐसा नहीं है |
वैसे भारत एक खुशहाल देश दिखता है और इसकी पुष्टि आंकड़े भी करते हैं साल 2014 में खुशहाली के सर्वेक्षण में देश अपने नागरिकों को लम्बा और खुशहाल जीवन देने के मामले में 151 देशों में भारत चौथे पायदान पर रहा है  |पर वास्तविकता  के धरातल पर तस्वीर काफी अलग है |
 विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक़ भारत छत्तीस प्रतिशत की अवसाद दर के साथ दुनिया के सर्वाधिक  अवसाद ग्रस्त देशों में से एक है मतलब ये कि भारत में मानसिक अवसाद से पीड़ित लोगों की जनसँख्या लगातार बढ़ रही है |मानव संसाधन के लिहाज से ऐसे आंकड़े किसी भी देश के लिए अच्छे नहीं कहे जायेंगे जहाँ हर चार में से एक महिला और दस में से एक पुरुष इस रोग से पीड़ित हों जिसकी पुष्टि मानसिक अवसाद रोधी दवाओं के बढ़ते कारोबार से हो रही है |
देश में ही 2001 से 2014 के बीच 528 प्रतिशत अवसाद रोधी दवाओं का कारोबार बढ़ा है|जो यह बता रहा है कि मानसिक रोग कितनी तेजी से देश में अपना पैर पसार रहा है | फार्मास्युटिकल मार्केट रिसर्च संगठन एआईओसीडी एडब्लूएसीएस के अनुसार भारत में अवसाद रोधी दवाओं का कारोबार बारह प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है | ”डेली”(डिसेबिलिटी एडजस्ट लाईफ इयर ऑर हेल्थी लाईफ लॉस्ट टू प्रीमेच्योर डेथ ऑर डिसेबिलिटी ) में मापा जाने वाला यह रोग विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ 2020 तक बड़े रोगों के होने का सबसे बड़ा कारक बन जाएगाअवसाद से पीड़ित व्यक्ति भीषण दुःख और हताशा से गुजरते हैं|
उल्लेखनीय है कि ह्रदय रोग और मधुमेह जैसे रोग अवसाद के जोखिम को तीन गुना तक बढ़ा देते हैं|समाज शास्त्रीय नजरिये से देखा जाए तो यह प्रव्रत्ति हमारे सामाजिक ताने बाने के बिखरने की ओर इशारा कर रही है|बढ़ता शहरीकरण और एकल परिवारों की बढ़ती संख्या लोगों में अकेलापन बढ़ा रहा है और सम्बन्धों की डोर कमजोर हो रही है|रिश्ते छिन्न भिन्न हो रहे हैं तेजी से
 बदलती दुनिया में विकास के मायने सिर्फ आर्थिक विकास से ही मापे जाते हैं यानि आर्थिक विकास ही वो पैमाना है जिससे व्यक्ति की सफलता का आंकलन किया जाता है जबकि सामाजिक  पक्ष को एकदम से अनदेखा किया जा रहा हैशहरों में संयुक्त परिवार इतिहास हैं जहाँ लोग अपने सुख दुःख बाँट लिया करते थे और छतों का तो वजूद ही ख़त्म होता जा रहा हैफ़्लैट संस्कृति अपने साथ अपने तरह की समस्याएं लाई हैं जिसमें अकेलापन महसूस करना प्रमुख है |
इसका निदान लोग अधिक व्यस्ततता में खोज रहे हैं नतीजा अधिक काम करना ,कम सोना और टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता सोशल नेटवर्किंग पर लोगों की बढ़ती भीड़ और सेल्फी खींचने की सनक इसी संक्रमण की निशानी है जहाँ हम की बजाय मैं पर ज्यादा जोर दिया जाता है आर्थिक विकास मानसिक स्वास्थ्य की कीमत पर किया जा रहा है |
इस तरह अवसाद के एक ऐसे दुश्चक्र का निर्माण होता है जिससे निकल पाना लगभग असंभव होता है |अवसाद से निपटने के लिए नशीले पदार्थों का अधिक इस्तेमाल समस्या की गंभीरता को बढ़ा देता है| भारत में नशे की बढ़ती समस्या को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है .आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों में यह समस्या ज्यादा देखी जा रही है |जागरूकता की कमी भी एक बड़ा  कारण है,मानसिक स्वास्थ्य कभी भी लोगों की प्राथमिकता में नहीं रहा है |व्यक्ति या तो पागल होता है या फिर ठीक बीच की कोई अवस्था है ही नहीं है |इस बीमारी के लक्षण भी  ऐसे नहीं है जिनसे इसे आसानी से पहचाना जा सके आमतौर पर इनके लक्षणों को व्यक्ति के मूड से जोड़कर देखा जाता है|अवसाद के लक्षणों में हर चीज को लेकर नकारात्मक रवैया ,उदासी और निराशा जैसी भावना,चिड़ चिड़ापनभीड़ में भी अकेलापन महसूस करना और जीवन के प्रति उत्साह में कमी आना हैआमतौर पर यह ऐसे लक्षण नहीं है जिनसे लोगों को इस बात का एहसास हो कि वे अवसाद की गिरफ्त  में आ रहे हैंदुसरी समस्या ज्यादातर भारतीय एक मनोचिकित्सक के पास मशविरा लेने जाने में आज भी हिचकते हैं उन्हें लगता है कि वे पागल घोषित कर दिए जायेंगे इस परिपाटी को तोडना एक बड़ी चुनौती है |जिससे पूरा भारतीय समाज जूझ रहा है |उदारीकरण के बाद देश की सामाजिक स्थिति में खासे बदलाव हुए हैं पर हमारी सोच उस हिसाब से नहीं बदली है |अपने बारे में बात करना आज भी सामजिक रूप से वर्जना की श्रेणी में आता है ऐसे में अवसाद का शिकार व्यक्ति अपनी बात खुलकर किसी से कह ही नहीं पाता और अपने में ही घुटता रहता है |एक आम भारतीय को ये पता ही नहीं होता कि वह किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहा है और इलाज की सख्त जरुरत है | तथ्य यह भी है कि इस तरह की समस्याओं को देखने का एक मध्यवर्गीय भारतीय नजरिया है जो यह मानता है कि इस तरह की समस्याएं आर्थिक तौर पर संपन्न लोगों और बिगडैल रईसजाड़ों को ही होती हैं मध्यम या निम्न आय वर्ग के लोगों को नहीं जबकि मानसिक अवसाद से कोई भी गसित हो सकता है |इस स्थिति में अवसाद बढ़ता ही रहता है जबकि समय रहते अगर इन मुद्दों पर गौर कर लिया जाए तो स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है |तथ्य यह भी है कि देश शारीरिक स्वास्थ्य के कई पैमाने पर विकसित देशों के मुकाबले बहुत पीछे है और शायद यही कारण है कि देश की सरकारें भी मानसिक स्वाथ्य के मुद्दे को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखतीं |
देश में कोई स्वीकृत मानसिक स्वास्थय  नीति नहीं है और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधयेक अभी संसद में लंबित है जिसमें ऐसे रोगियों की देखभाल और उनसे सम्बन्धित अधिकारों का प्रावधान है |मानसिक स्वास्थ्य के प्रति बरती जा रही है लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अक्तूबर 2014 से पूर्व मानसिक स्वास्थ्य नीति का कोई अस्तित्व ही नहीं था |इसका खामियाजा मनोचिकित्सकों की कमी के रूप में सामने आ रहा है देश में 8,500 मनोचिकित्सक और 6,750 मनोवैज्ञानिकों की भारी कमी है |इसके अतिरिक्त 2,100 योग्य नर्सों की कमी हैमानसिक समस्याओं को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता इस दिशा में सांस्थानिक सहायता की भी पर्याप्त आवश्यकता है|माना जाता है किसी भी रोग का आधा निदान उसकी सही पहचान होने से हो जाता है  
रोग की पहचान हो चुकी है भारत इसका निदान कैसे करेगा इसका फैसला होना अभी बाकी है |
राष्ट्रीय सहारा में 15/06/15 को प्रकाशित 

Wednesday, June 3, 2015

हाथ से निकल न जाए दूध बाजार


देश के अन्य उद्योगों की तरह भारतीय दुग्ध  उद्योग की भी अपनी खामियां हैं । इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस उद्योग की संरचना बहुत संगठित नहीं है । देश में काम कर रहे तकरीबन सभी को-ऑपरेटिव फेडरेशन लघु  एवं मध्यम सेक्टर से सम्बन्ध  रखते हैं |मध्यस्थों की बढ़ती दखलंदाजी और आपूर्ति श्रृंखला के बीच तालमेल के अभाव की वजह से काफी समस्याएं  आती हैं । इससे दूध की गुणवत्ता और आपूर्त्ति श्रृंखला की कार्यप्रणाली पर प्रभाव  पड़ता है । इस श्रृंखला में कई कमजोर कड़ियां होती हैं, इसके अलावा अनावश्यक मानवीय दखल होता है जिससे गलतियों की संभावना बढ़ती है |भारत में दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों का बाजार हमेशा से ही असंगठित रहा है अमूल जैसे प्रयोगों को अगर छोड़ दिया जाए तो  इनके बाजार पर डेयरी सहकारिता संस्थानों एवं दलालों का कब्ज़ा है| इस क्षेत्र को संगठित करने के सरकार एवं संगठित क्षेत्र की निजी कंपनियों के प्रयासों को दूध के ठेकेदारों के भारी विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है| पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन विभाग, भारत सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार वर्ष १९९१-९२ के दौरान हमारे देश में दूध का उत्पादन लगभग ५ करोड़ साठ लाख टन था जो कि वर्ष २०१२-१३ के दौरान बढ़कर १३ करोड़ २० लाख टन से भी अधिक हो गया| भारत में दूध एवं दुग्ध उत्पादों का बाजार काफी तेज़ी से बढ़ रहा है। इसी वजह से बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी अब इस क्षेत्र में दिलचस्पी लेने लगी हैं| भारत में अभी इनका बाजार ४.४० लाख  करोड़ रूपये का है और साल २०२० तक इसके दुगने हो जाने की संभावना है| इस तथ्य के बावजूद कोई भी एकलौती भारतीय कम्पनी इस बाजार पर पूरी तरह  अपना सिक्का नहीं जमा पायी है|यानि भारत में दूध का कारोबार बाजार की बयार से एकदम अछूता रहकर परम्परा गत तरीके से आगे बढ़ रहा है |आवश्यक निवेश न होने से इसका सीधा असर दूध की गुणवत्ता और कीमतों पर पड़ रहा है |दुग्ध उद्योग में आई सी टी अर्थात इन्फोर्मेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का बहुत कम इस्तेमाल हो रहा है जबकि अन्य  उद्योगों में इसके इस्तेमाल से गुणवत्ता बेहतर की गयी और कीमतों को नियंत्रण में रखा गया है |जबकि असंगठित दुग्ध उद्योग में अभी भी ज्यादातर सारा काम हाथों द्वारा हो रहा है |
                 इसी लिए इस क्षेत्र में कार्यरत विदेशी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस मलाईदार बाजार में अपना हिस्सा सुनिश्चित करना चाहती हैं| सरकार ने  भी इस क्षेत्र की महत्ता को समझते हुए राष्ट्रीय डेयरी योजना लागू की है जिसका कि उद्देश्य देश में दुधारू जानवरों की उत्पादकता बढ़ाकर देश में बढ़ती हुई दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों की मांग की पूर्ति को सुनिश्चित करना है और दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में लगे हुए ग्रामीणों को संगठित क्षेत्र के दुग्ध प्रसंस्करण संस्थानों तक उनकी पहुँच को सुगम बनाना। पिछले तीस वर्षों में अर्थव्यवस्था की तरक्की से भारत में माध्यम वर्ग का बहुत तेजी से विस्तार हुआ और यह विस्तार अभी जारी है |जैसे-जैसे भारत में मध्य वर्ग का दायरा बढ़ता जा रहा है दुग्ध एवं दुग्ध उत्पादों पनीर, दही,मक्खन की मांग बढ़ती जाएगी | 
हालाँकि भारत दुनिया के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादकों में से एक है फिर भी दुनिया की बीस  बड़ी दुग्ध उत्पादक कंपनियों में अमूल को छोड़कर किसी भी कंपनी की शुमारी नहीं है| फिच समूह की संस्था इण्डिया रेटिंग्स एंड रिसर्च  के अनुसार भारत के सात  करोड़ ग्रामीण परिवारों द्वारा उत्पादित दूध में से केवल पच्चीस प्रतिशत ही संगठित क्षेत्र के बाजार में बिकता है शेष पचहत्तर प्रतिशत  फुटकर विक्रेताओं द्वारा | इससे  इस क्षेत्र में मौजूद अपार अवसर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है|निजी कम्पनियां इस क्षेत्र  में साल 2010 से अब तक पंद्रह समझौतों के साथ पहले ही 862 करोड़ रुपये का  निवेश भी कर चुकी हैं| पिछले साल जनवरी 2014 में ही विश्व की सबसे बड़ी दुग्ध क्म्पनी  ग्रुपी लेक्टेल्स एस ए(Groupe Lactalis SA) ने हैदराबाद की त्रिमुला मिल्क प्रोडक्ट्स को सत्रह सौ पचास करोड़  रू में खरीद लिया| जापानी दुग्ध कम्पनी मेजी (Meiji) भी भारत के बाज़ार में प्रवेश करने के लिए तैयार है| यदि सरकार और निजी कम्पनियाँ मिलकर भारतीय डेयरी बाजार को एक संगठित उद्योग में परिवर्तित कर सकेंगी तो न केवल ग्रामीण जनता का विकास होगा बल्कि दुग्ध उत्पादों के दामों में भी भारी कमी आएगी और उनकी गुणवत्ता भी बढ़ेगी| साथ ही रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे और सरकार की कमाई में भी इज़ाफ़ा होगा पर देखना यह है कि   क्या ये निजी कम्पनियां विश्व की सबसे बड़ी सहकारी समिति अमूल का भारत में  मुकाबला कर पाएंगी| इस क्षेत्र  में गुंजाइश बहुत है और स्वास्थ्य सम्बन्धी उत्पाद इसे एक नया आयाम देकर उद्योग की शकल हमेशा के लिए  बदल सकते हैं| 
अमर उजाला में 03/06/15 को प्रकाशित 

Tuesday, June 2, 2015

ऑन लाईन हो रही दुनिया में बढ़ते साइबर खतरे

कैस्परस्की की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार ग्रैबिट नामके एक वाइरस अटैक ने छोटी और मझोली व्यवसायिक कंपनियों के दस हजार से ज्यादा फाइलें चुरा लीं इनमें से ज्यादातर कम्पनियाँ थाईलेंड ,भारत और अमेरिका में स्थित हैं जो केमिकल ,नैनो टेक्नोलोजी ,शिक्षा ,कृषि ,मीडिया और निर्माण के धंधे में लगी हैं | इस जासूसी वाइरस ने 2887 पासवर्ड ,1053 ईमेल ,3023 यूजरनेम जो 4928 विभिन्न होस्ट से संबंधित थे जिसमें  आउटलुक ,फेसबुक ,स्कायप ,जी मेल ,याहू, लिंक्डइन जैसे बड़ी शामिल है और लोगों के बैक अकाउंट से जुड़ी जानकारियां भी शामिल हैं चुरा लीं | कैस्परस्की के अनुसार ग्रैबिट अभी भी सक्रीय है और यह लोगों के असुरक्षित इंटरनेट से सूचनाएं चुरा रहा है | साईबर अपराध से जुड़ा न तो यह पहला मामला है और न आख़िरी इंटरनेट पर हमारी निर्भरता बिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है और उसी अनुपात में इंटरनेट से जुड़े अपराध भी |भारत इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के लिहाज से एक बड़ा बाजार है चीन और अमेरिका के बाद |यदि आपको ज़माने के हिसाब से कदमताल करना है तो आपको इंटरनेट की जरुरत पड़ेगी ही वो चाहे एकाउंट खोलना हो या पैसे निकालने हों या किसी फिल्म का टिकट जैसा मामूली काम करना हो हर जगह हम ऑन लाइन सुविधा खोजते हैं पर हर अवसर अपने साथ कुछ न कुछ चुनौती लाता है और कमसे काम भारत में साईबर अपराध इंटरनेट के लिहाज से एक बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है पर इसकी गंभीरता का अंदाजा अभी ज्यादातर लोगों को नहीं है |इस वाइरस हमले की शुरुआत एक सामान्य ई मेल से होती है जो किसी कम्पनी से जुड़े कर्मचारी के आंतरिक अधिकारिक ई मेल पर किया जाता है जिसमें माइक्रोसॉफ्ट वर्ड की फाईल अटैचमेंट जैसी लगती है जैसे ही कोई इसे डाऊनलोड करता है यह वाइरस सक्रीय होकर सूचनाएं चुरा कर भेजने लगता |अन्य अपराधों के मुकाबले साईबर अपराध में अपराधी ,अपराध स्थल पर खुद मौजूद नहीं होता है और इसमें तकनीक का मुख्यता इस्तेमाल किया जाता है |भारत जैसे देश में जहां इंटरनेट के ज्यादातर उपभोक्ता इसके पहले प्रयोगकर्ता बन रहे हैं उन्हें आसानी से शिकार बनाया जा सकता है कभी लुभावने विज्ञापनों से कभी आकर्षक उपहारों और ईनामी योजनाओं के ई मेल से या इंटरनेट वेबसाईट पर भडकीले विज्ञापनों से |चूँकि प्रयोगकर्ता को इन सबकी बारीकियों की इतनी ज्यादा जानकारी नहीं होती है इसलिए वह आसान शिकार होता है |
वहीं दूसरी तरफ छोटी और मझोली कम्पनियाँ अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए ऑनलाइन गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं पर लागत खर्च को कम करने के चक्कर में वह ऑन लाइन सुरक्षा पर उतना खर्च नहीं करते हैं जितना की किया जाना चाहिए ,अर्थव्यवस्था के बढते फैलाव ने छोटी और मझौली कंपनियों की संख्या में पर्याप्त बढोत्तरी की है पर ऐसी कंपनियों के आंकड़े असुरक्षित ज्यादा रहते हैं ऐसे में साईबर हमलों का खतरा ज्यादा बढ़ रहा है |
सोशल नेटवर्किंग साईट्स के बढते चलन के इस दौर में आपकी साईबर उपस्थिति बहुत मायने रखती है |अगर आप फेसबुक या ट्विटर जैसी साइट्स पर नहीं है तो इस बात का खतरा हमेशा बना रहेगा कि आप समय के साथ न चलने वाला शख्स मान लिया जाये | हर आदमी ऑनलाइन होना चाहता हैडेटा फीड से लेकर सोशल नेटवर्किंग तक ने ऑनलाइन अपना बिजनेस फैला रखा है। पर इसमें खतरे भी अपार है। ऑनलाइन होती दुनिया में छोटी-मंझोली कंपनियों के लिए खतरे बढ़ते जा रहे हैं। साइबर क्राइम अब बस सोशल नेटवर्किंग हैकिंग तक ही नहीं रह गया हैइसने भी अपना बिजनेस बढ़ा लिया है। अब ये बिजनेस सिर्फ बैडरूम और एक सिस्टम पर हैकिंग प्रोसेस तक नहीं रह गया है।

क्या है साइबर क्राइम?
इंटरनेट के ज़रिए किए जाने वाले अपराधों को साइबर क्राइम कहते हैं। जैसे बैंक अकाउंट नंबर की जानकारी लेकर उससे पैसा निकालनाआपका सीवीवी कोड जाननाफेस्बुक हैक करना इत्यादि। जहाँ एक ओर इंटरनेट वरदान साबित हुआ है वहीँ दूसरी ओर इसे अभिशाप बनने में भी देर नहीं लगी। जहाँ पहले सिर्फ हैकिंग और वाइरस का ही डर थावहीँ अब इसका बाजार बढ़ता जा रहा है। मॉर्फिंगपोर्नोग्राफीपीडोफाइल भी इसमें शामिल हो गया है। आंकड़ों के अनुसार स्पैमहैकिंग और धोखाधड़ी के सूचित मामलों की संख्या 2004 से 2007 में 50 गुना बढ़ी है। कंप्यूटर वाइरस के जरिये भी साइबर क्राइम होता है।

क्या है कंप्यूटर वाइरस
कंप्यूटर वायरस एक छोटा सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम होता हैजो एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में फैलता है और कंप्यूटर की वर्किंग में बाधा बनता है। यह कंप्यूटर में डेटा फीड को चोरी कर सकता है। इससे हार्ड डिस्क में मौजूद डेटा को खतरा रहता है। इसके लिए इमेल्स का प्रयोग होता है। अक्सर हमें किसी अनजान नाम से ईमेल आता है,  इन्हीं मैसेजेस में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो जानकारी हैक कर लेते है। इसलिएआपको तब तक कभी भी किसी ईमेल को नहीं खोलना चाहिएजब तक आपको पता न हो कि संदेश किसने भेजा है।

ऐसे काम करता है कंप्यूटर वाइरस
वायरस इमेजेस ग्रीटिंग कार्ड या ऑडियो और वीडियो फ़ाइलों के जरिये काम करता है। कंप्यूटर वायरसइंटरनेट पर डाउनलोड के द्वारा भी फैलते हैं। येपाइरेटेड सॉफ़्टवेयर या डाउनलोड की जा सकने वाली फ़ाइलों या प्रोग्राम में छुपे हो सकते हैं, और जैसे ही आप इन्हें डाऊनलोड करते हैंये आपकी सारी जानकारी हैक कर लेता है।

कुछ साइबर क्राइम :
साइबर स्टाकिंग - इसका मतलब इंटरनेट पर किसी व्यक्ति का पीछा करनापीछा करते करते उसके चैट बॉक्स में घुसना या उसकी साईबर प्रोफाईल पर नजर रखना |
ई मेल बॉम्बिंग - किसी की ईमेल पर इतनी ज्यादा मेल भेजना कि उसका अकाउंट ही ठप हो जाए।
डाटा डिडलिंग - इस हमले में कंप्यूटर के कच्चे डाटा को प्रोसेस होने से पहले ही बदल दिया जाता है। जैसे ही प्रोसेस पूर्ण होता है डाटा फिर मूल रूप में आ जाता है।
सलामी अटैक - इसमें गुपचुप तरीके से आर्थिक अपराध को अंजाम दिया जाता है। इसमें किसी का बैंक अकाउंट नंबर हथियानाकिसी के एटीएम से पैसे निकालना शामिल है।
मोर्फिगधड़ किसी का और सिर किसी का लगाकर फोटो बनाना 
लॉजिक बम - यह स्वतंत्र प्रोग्राम होता है। इसमें प्रोग्राम इस तरह से बनाया जाता है कि यह तभी एक्टिवेट हो जब कोई विशेष तारीख या घटना आती है। बाकी समय ये प्रोग्राम सुप्त पड़े रहते हैं।
ट्रोजन हॉर्स - यह एक अनाधिकृत प्रोग्राम है जो अंदर से ऐसे काम करता है जैसे यह अधिकृत प्रोग्राम हो।

क्या है कानून?
भारत में इस मामले में जागरूकता बढ़ी है और सरकार ने 2000 में आईटी एक्ट बनाया और 2008 में इसे संशोधित भी किया लेकिन इनसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा है। देश में साइबर क्राइम से निपटने के लिए आईटी एक्ट बनाया गया हैजिसमें वेबसाइट ब्लॉक करने तक के प्रावधान हैं। लेकिन यह एक्ट देश के अंदर ही ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है। कई बार लोग किसी के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट कर देते हैंऐसे मे भी कानूनी प्रावधान हैपुलिस उससे एक बार कहती है कि वह अपनी साइट से आपत्तिजनक सामग्री हटा ले और वह उसे नहीं हटाता है तो उसे तीन साल तक की सजा हो सकती है। हाल ही में लखनऊ में हुए मोहनलालगंज काण्ड में यही हुआलोग उसकी तस्वीर शेयर करने लगे जिसमें पुलिस को एक्शन लेना पड़ा। आईटी टेक्नोलॉजी 2000 के तहत कानूनी प्रावधान है जिसमें सेक्शन 69 के अनुसार कम्प्यूटर द्वारा कोई भी अपराध साइबर क्राइम में आएगा जिसमें सात साल की जेल भी हो सकती है।

कौन है साइबर क्राइम में शामिल
विदेशी सरकारऑनलाइन गैंग और अपराधियों का इसमें बड़ा हाथ है। इनका साथ दे रहे हैं ऑनलाइन फोरम। ऑनलाइन फोरम एक तरह का बाजार है जहाँ पर अपराधी चोरी किया हुआ डेटा खरीद बेंच सकते हैं। भारत  के किसी भी शहर से लेकर विदेश तक साइबर क्राइम करवाने में ये कम्युनिटी मदद कर रही हैं। बस एक क्लिक में कहीं का भी डेटा आपके पास हाजिर होगा। इतना ही नहींकई ऐसी साइट्स भी हैं जो ऐसे कामों को अंजाम देने के लिए ट्रेनिंग देती हैं। माना जा रहा है कि देश में चलने वाले कॉल सेंटर्स भी भीतरी धोखाधड़ी के स्रोत हैं।भारत समेत चीनरूस और ब्राजील जैसे देश भी साइबर अपराध की समस्या से परेशान है

ऐसे हो सकती है रोकथाम
इनकी रोकथाम के लिए इंटरपोल तेजी से काम कर रही हैइंटरपोल राष्ट्रीय संस्था है जो ऐसे कामों को रोकने में मददगार साबित हुई है। इंटरपोल की मानें तो जहाँ पहले सिर्फ दो या तीन लोग ऐसे अपराधों में शामिल होते थेवहीँ अब इसमें समूहों की जरुरत पड़ती है जो विश्व भर से एक मंच पर बुलाये जाते हैं।  इंटरपोल ने तीन मुख्य कैटेगरी बताई हैं जिसमें साइबर अटैक की संभावना है- हार्डवेयर सॉफ्टवेयर अटैकफाइनेंशियल क्राइम और अब्यूज। फाइनेंशियल क्राइम यानी ऑनलाइन साइबर क्राइम जिसमें पिन नंबरसीवीवी कोडया सोशल नेटवर्किंग साईट हैकिंग आता है।हार्डवेयर सॉफ्टवेयर अटैक जिसमें डाइरेक्ट मदरबोर्ड पर अटैक होता है और फीड डेटा चोरी हो जाता हैअब्यूज जिसमें फेसबुक पर फोटोशॉप का इस्तेमाल कर गलत काम किये जाते हैं। 

चीन अमरीका जैसे देश भी साइबर क्राइम से परेशान 
दुनिया का सबसे मजूबत कंप्यूटर नेटवर्क भी हैकरों से सुरक्षित नहीं है। हाल ही में चीनी हैकरों ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के दफ्तर के कंप्यूटरों को हैक करने की कोशिश की जिसे समय रहते नाकाम कर दिया गया। लेकिन सेना अपने कंप्यूटरों को चीनी हैकिंग से नहीं बचा पाई। इस तरह से देखें तो लगभग यूरोप और अमेरिका तक हैकरों से परेशान हैं।

चीन ने लागू किया पांच वर्षीय सिक्योरिटी प्लान 
इनकी रोकथाम के लिए कंपनी अच्छी सिक्योरिटी ले रही पर इनका सही ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पा रहीकारण समय और मैनपावर की कमी। नतीजतन साइबर क्राइम पर रोक नहीं लग पा रही। आंकड़ों के अनुसार 71 प्रतिशत  आईटी प्रफेशनल्स मानते हैं कि कस्टमर्स का डेटा रिस्क पर है।इस मुद्दे पर चीन  ने अच्छे कदम उठाये हैं। चीन ने पांच साल का साइबर सिक्योरिटी प्लान की शुरुआत की है ताकि लोगों के डेटा और राज्य के गुप्त बातों की गोपनीयता बनाये रखे। आईटी के सीनियर ऑफिसर की मानें तो सरकार द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सॉफ्टवेयरराज्य द्वारा खरीदी गयी एंटरप्राइजेस और फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन में ये सिक्योरिटी रहेगी। फॉरेन टेक्नोलॉजी की जो कंपनियां चीन के बैंक में सप्लाई करती थी,उन्हें सोर्स कोड की आवश्यकता पड़ेगी। 

भारत की तैयारी 
अभी तक देश को सायबर हमले से बचाने की जिम्मेदारी साल 2004 में बनी इन्डियन कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पोंस टीम (सी ई आर टी -इन )के जिम्मे थी |साल 2004 से 2011 तक आधिकारिक तौर पर सायबर हमलों की संख्या 23 से बढ़कर 13,301तक पहुँच गयी और वास्तविक संख्या इन आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हो सकती हैपिछले वर्ष सरकार ने सी ई आर टी को दो भागों में बाँट दिया अब ज्यादा  महत्वपूर्ण मामलों के लिए नेशनल क्रिटीकल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर की एक नयी इकाई बना दी गयी है  जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है |साईबर सुरक्षा के लिए 2012-13 के लिए  मात्र 42.2 करोड रुपैये ही आवंटित किये गए जो कि काफी कम है साईबर हमलों के लिए चीन भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है |एसोसिएटेड प्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल  में दुनिया में हुए बड़े सायबर हमलों के लिए चीन सरकार समर्थित पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जिम्मेदार है जिसके हमलों में प्रमुख सोशल नेटवकिंग साइट्स फेसबक और ट्वीटर भी थीं|पिछले कई वर्षों से चीन को साइबर  सेंधमारी के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है जिसके निशाने पर ज्यादातर अमेरिकी सरकार और कंपनियां रहा करती हैं पर अब  भारत में साइबर हमले का खतरा बढ़ा है पर हमारी तैयारी उस अनुपात में नहीं है |हालाँकि मुकाबले के लिए आईटी एक्ट बनाया गया हैजिसमें वेबसाइट ब्लॉक तक  करने तक के प्रावधान हैं। लेकिन यह एक्ट देश के अंदर ही ठीक से लागू नहीं हो पा रहा है। कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्रॉक्सी सर्वर होते हैंऔर दुनिया भर में फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती ऐसे में जागरूकता ही बचाव है खुद भी जागरूक बनिए और अपने आस –पास के इंटरनेट के प्रयोगकर्ताओं को जागरूक बनाइये |किसी भी अवांछित लिंक या ई मेल को न खोलिए अपरिचितों द्वारा भेजे गए ई मेल के अटैचमेंट को डाउनलोड न किया जाये |
प्रभात खबर में 02/06/15 को प्रकाशित 

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