इसमें कोई शक नहीं है कि इंटरनेट के राजनैतिक इस्तेमाल का श्रेय भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है वो चाहे सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता हो या अपना चुनाव अभियान इंटरनेट केन्द्रित करना या फिर सरकार में आते ही डिजीटल इण्डिया, स्टार्ट अप इण्डिया जैसे नवोन्मेषी कार्यक्रमों की घोषणा हो जिनके आधार में इंटरनेट की ताकत को जन –जन तक पहुँचाना ही रहा है.अपने इसी सोच को विस्तार देते हुए उन्होंने ‘‘साइबर स्पेस पर वैश्विक सम्मेलन’’ के उदघाटन भाषण में आगे बढाया .जिसका विषय था साइबर फॉर ऑल(एक समावेशी, सतत विकास, सुरक्षित साइबर स्पेस)। जिसमें साइबर स्पेस में सहयोग को बढ़ावा देने, जिम्मेदार व्यवहार के लिए मानदंडों और साइबर क्षमता निर्माण को बढ़ाने से संबंधित मुद्दों पर 120 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा विचार-विमर्श किया गया .इस सम्मेलन का आयोजन साइबर स्पेस में भारत की बड़ी और महतवपूर्ण स्थिति को दिखाता है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल माध्यम और प्रौद्योगिकी की सराहना करते हुए कहा कि डिजीटल प्रौद्योगिकी सबको समानता पर लाने की बड़ी क्षमता रखती है जिसने सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने, प्रशासन में सुधार और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक के क्षेत्र में कारगर मदद की है. जन धन बैंक अकाउंट, आधार प्लेेटफार्म और मोबाइल माध्यम से भ्रष्टायचार को कम कर पारदर्शिता लाने में मदद मिल रही है. इंटरनेट की शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा . आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली.इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया.प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा था पर जैसे जैसे तकनीक विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया और नयी नयी सेवाएँ इससे जुडती चली गयीं . भारत सही मायने में कन्वर्जेंस की अवधारणा को साकार होते हुए देख रहा है, जिसका असर तकनीक के हर क्षेत्र में दिख रहा है। इंटरनेट मुख्यता कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है पर स्मार्ट फोन के आगमन के साथ ही यह धारणा तेजी से ख़त्म होने लग गयी और जिस तेजी से मोबाईल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है वह साफ़ इशारा कर रहा है की भविष्य में इंटरनेट आधारित सेवाएँ कंप्यूटर नहीं बल्कि मोबाईल को ध्यान में रखकर उपलब्ध कराई जायेंगी.
हिंदी को शामिल करते हुए इस समय इंटरनेट की दुनिया बंगाली ,तमिल, कन्नड़ ,मराठी ,उड़िया , गुजराती ,मलयालम ,पंजाबी, संस्कृत, उर्दू और तेलुगु जैसी भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा देती है आज से दस वर्ष पूर्व ऐसा सोचना भी गलत माना जा सकता था पर इस अन्वेषण के पीछे भारतीय इंटरनेट उपभोक्ताओं के बड़े आकार का दबाव काम कर रहा था .भारत जैसे देश में यह बड़ा अवसर है जहाँ मोबाईल इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या विश्व में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा है । इंटरनेट हमारी जिंदगी को सरल बनाता है और ऐसा करने में गूगल का बहुत बड़ा योगदान है। आज एक किसान भी सभी नवीनतम तकनीकों को अपना रहे हैं, और उन्हें सीख भी रहे हैं,लेकिन इन तकनीकों को उनके लिए अनुकूलित बनाना जरूरी है जिसमें भाषा का व कंटेंट का बहुत अहम मुद्दा है।इसलिए भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं में इंटरनेट के विस्तार पर बल दिया जा रहा है . इंटरनेट ने दुनिया को एक स्क्रीन में समेट दिया है, समय स्थान अब कोई सीमा नहीं है बस इंटरनेट होना चाहिए, हमारे कार्य व्यवहार से लेकर भाषा तक हर क्षेत्र में इसका असर पड़ा है और भारत भी इस का अपवाद नहीं है. वर्तमान में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसँख्या समूह भारत का है जो इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा है पर इसमें ग्रामीण आबादी का मात्र नौ प्रतिशत हिस्सा ही है जो इंटरनेट से जुड़ा है .
साइबर स्पेस प्रौद्योगिकी को लोगों का मददगार बनना चाहिए. पर इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि समाज के असुरक्षित समुदाय के लोग साइबर अपराधों की साजिश में नहीं फंसे. साइबर सुरक्षा के प्रति सतर्कता जरूरी है पर भारत की साइबर अपराधों के प्रति उतनी तैयारी दिखती नहीं जितनी होनी चाहिए. एसोचैम-पीडब्ल्यूसी ने संयुक्त अध्ययन में कहा कि देश में साइबर हमले प्रतिदिन जारी हैं . भारत में 2011 से 2014 के बीच आईटी एक्ट 2000 के तहत पंजीकृत साइबर अपराध के मामलों में लगभग तीन सौ प्रतिशत की वृद्धि हुई है .शोध में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि ये हमलावर न्यूक्लियर प्लांट, रेलवे , अस्पताल जैसी महत्वपूर्ण जगहों के कंप्यूटर सिस्टम पर हो सकते हैं जिसके नतीजे में बिजली जाना ,जल प्रदुषण , बाढ़ , जैसे गंभीर परिणाम पूरे देश को भुगतने पड सकते हैं. 23 अगस्त 2016 को सूचना के अधिकार से मिली मिली जानकारी के अनुसार बीते साढ़े चार साल में 979 सरकारी वेबसाइट्स हैक हुई हैं.इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा दिए गए इन आंकड़ों के अनुसार2012 में 371, 2013 में 189, 2014 में 155, 2015 में 164 और 2016 में जून महीने तक 100 सरकारी वेबसाइट्स हैक हुईं. आरटीआई से मिली इस जानकारी में यह भी बताया गया था कि भारत में बीते साढ़े चार सालों में सबसे ज्यादा साइबर हमले पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन से हुए हैं. हालाँकि सरकार ने ज्यादा महत्वपूर्ण मामलों के लिए नेशनल क्रिटीकल इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर (NCIPC)की एक नयी इकाई बना दी गयी है जो रक्षा दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है. यह भी कम चिंतनीय नहीं है कि देश के एकमात्र साइबर ट्राइब्यूनल के चेयरमैन का पद पिछले पांच साल से खाली है . इंटरनेट के बढते विस्तार से भारत में साइबर हमले का खतरा बढ़ा है पर हमारी तैयारी उस अनुपात में नहीं है आवयश्कता समय की मांग के अनुरूप कार्यवाही करने की है.
आई नेक्स्ट में 25/11/2017 को प्रकाशित
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