वर्तमान समय में फेसबुक ने और कुछ किया हो न किया हो पर
हमारी जिंदगी को एक मेगा इवेंट में जरूर बदल दिया है .मिलना ,बिछुड़ना, चलना ,रूठना ,मनाना ,रोना ,खोना
और पाना न जाने क्या क्या बस सब कुछ लोगों को पता चलना चाहिए .जैसे –जैसे सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ता जा रहा है उतना ही तेजी
से निजता के अधिकार की सुरक्षा भी माँगी जा रही है .विचित्र दौर है जब हम खुद
चाहते हैं कि लोग हमारे बारे में जाने, हम क्या खाते हैं कौन हमारे ख़ास दोस्त हैं .हम
कहाँ जा रहे हैं .ये आत्म मुग्धता का महान दौर है जब एक ही वक्त में दो
परिस्थितियां आमने –सामने हैं .किसी
का जन्मदिन है तो फेसबुक आपको याद दिला दे रहा है और हम भी जन्मदिन की शुभकामनायें
लिख कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ले रहे हैं .किसी घर में किसी की मौत हुई उसने
मृतक की तस्वीर लगाई और शुरू हो गया रेस्ट इन पीस का सिलसिला ,मानों किसी अपने को ढाँढस बंधाने के लिए इतना काफी हो चंद शब्द और मानवता
का हक अदा हो गया .सब कुछ इतना तकनीकी और व्यवस्थित होता जा रहा है कि मानो होड़
लगी हो जिन्दगी का जो सरप्राइज एलीमेंट है उसे ख़त्म करके ही दम लिया जायेगा . इसे
गलत और सही के नज़रिए से न देखा जाए बस ये समझा जाये हम सूचना तकनीक के इस युग में
कितने प्रत्याशित होते जा रहे हैं .सब कुछ कितना मशीनी होता जा रहा है.सोशल मीडिया
सूचनाओं के आदान –प्रदान और वैचारिक
विमर्श के लिए एक क्रांतिकारी तकनीक है पर जिन्दगी के कठिन मसले आपसी लड़ाई –झगडे के लिए तो यह जगह बिलकुल भी ठीक नहीं
क्योंकि अपनी निजता को बचा कर रखने में हमारी भी कोई जिम्मेदारी बनती है .मेरे एक
मित्र ने शादी से पहले स्टेट्स अपडेट किया इन रिलेशनशिप विद पर बात शादी तक नहीं
पहुँची अब समाज के तरह –तरह के
सवालों से बचने के लिए अपने पुराने स्टेटस हटाने पड़े और लडकी की क्या स्थिति हुई
होगी इसका सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता है .डिजीटल दोस्ती और दुश्मनी हमको एक
व्यक्ति के तौर पर हल्का बना रहे हैं वहीं वर्च्युल सम्बन्ध पारस्परिक मेल मिलाप
के अभाव में औपचारिकताओं के मोहताज़ बन कर रह जा रहे हैं.जिन्दगी जीने का असली मजा
तो तभी है जब आपके पास दो चार ऐसे लोग हों जिनसे आप बगैर फोन किये कभी भी मिल सकते
हों या अगर आप फेसबुक पर अपने मित्र को शुभकामना न भी दें तो सम्बन्धों पर कोई असर
न पड़ें क्योंकि रिश्ते सोशल मीडिया के मोहताज नहीं होते हैं फिर वो सम्बन्ध ही
क्या जिसका आपको ढिंढोरा पीटना पड़े और यही प्राइवेसी है जो मेरे हैं वो मेरे
रहेंगे |
प्रभात खबर में 08/11/17 को प्रकाशित
2 comments:
सर मै आप की बात से सहमत हूं और इस का बेस्ट एग्जाम्पल है हमारे पैरेंट्स ।हम में से बहुत कम लोग ही उन्हें अपने सोशल अकाउंट्स से जोड़ते हैं।पर हमारी किसी भी परेशानी मे वे ही सबसे पहले हमारे पास होते हैं। भले ही हम उनसे कितने भी रूड क्यों हो।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 97वां जन्म दिवस - सितारा देवी - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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