मौका था संवादी का और उत्सव अभिव्यक्ति का और मुद्दा आधी आबादी का “राजनीति ,महिला और सेक्स यह मुद्दे के प्रति सम्वेदनशीलता थी या जागरूकता पर महिलाओं से सम्बन्धित इस मुद्दे को सुनने वाले लोगों में पुरुष ज्यादा थे और माहौल में इतना सन्नाटा कि मानो कोई फिल्म चल रही हो |मंच पर थी प्रियंका चतुर्वेदी,प्रवक्ता कांग्रेस पार्टी और पंखुरी पाठक,समाजवादी पार्टी और संचालन का जिम्मा सम्हाल रखा था पत्रकार राखी बक्शी ने |बात शुरू हुई विषय के शीर्षक को लेकर कि राजनीति ,महिला और सेक्स क्यों हम पुरुषों के लेकर इस तरह की चर्चा क्यों नहीं करते? प्रियंका चतुर्वेदी का मानना था की अगर हम वाकई में समाज में बदलाव लाना चाहते हैं तो हमें राजनीति में आना ही पड़ेगा और कोई विकल्प नहीं है क्योंकि नीतियां राजनीतिज्ञ ही बनाते हैं और जब उन्होंने राजनीति में आने की सोची तो उन्हें बिलकुल अंदाजा नहीं था कि वे किस क्षेत्र में जा रही हैं |जिसमें चारित्रिक हत्या से लेकर ट्रोलिंग जैसी समस्याओं से जूझना पड़ा |शुरुवात में वह डिप्रेशन में चली जाती थीं पर उन्हें लगा कि वे चुप नहीं बैठेंगी |बात राजनीति की हो या कोई और क्षेत्र भारत में महिलाओं को दुगुनी मेहनत करनी पड़ती है और राजनीति में समस्या तब गंभीर हो जाती है जब आप किसी राजनैतिक परिवार से न आते हों |वैसे भी समाज में लोग लड़कियों के स्वतंत्र विचार और गुस्से को लोग स्वीकार नहीं करते और फिर वे आपके चरित्र के बारे में बातें करनी शुरू कर देते हैं |
पंखुरी पाठक का अनुभव भी कुछ ज्यादा अलग नहीं था वे अपनी पार्टी के मुखिया को यह श्रेय देती हैं कि अखिलेश यादव के समर्थन के बिना आज वहां नहीं होतीं जहाँ वह हैं |उनके पिता से शुरुआत में जब पूछा जाता कि उनकी बेटी क्या करती है तो उनके पास बताने के लिए कुछ नहीं होता था पर फिर भी उनके पिता ने उनका हौसला बनाये रखा |राजनीति में जितनी ज्यादा लड़कियां आयेंगी यह क्षेत्र अपने आप महिलाओं के लिए बेहतर होता जाएगा |किसी भी देश की राजनीति उसके समाज का आईना होती है और भारत भी इसमें अपवाद नहीं है पर महिलाओं को अपने हिस्से के हक के लिए लड़ना ही होगा और वो लड़ रही हैं इस पुरुषवादी समाज को एक बराबरी का समाज बनाने के लिए |यह देश की सारी महिलाओं की लड़ाई है |उन्हें भी सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ता है पर अब वे उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लेतीं |
महिलायें में कम क्यों आती हैं इसका बड़ा सधा हुआ जवाब प्रियंका चतुर्वेदी का था समाज की समस्याएं अपनी जगह हैं पर राजनीति में न तो को जॉब सिक्योरटी है और न ही कोई निश्चित वेतन इनके अभाव में लड़कियां सुरक्षित विकल्प का रास्ता चुन लेती हैं इसलिए राजनीति के मुकाबले उन क्षेत्रों में जहाँ ये दोनों सुविधाएं मिलती हैं वहां लड़कियां बढ़ रही हैं |
पंखुरी का मानना था महिलाओं को हर कदम पर समाज को इम्तिहान देना पड़ता है और राजनीति अपवाद नहीं है खुबसूरत है तो क्यों खुबसूरत है और बदसूरत है तो उसकी अपनी अलग समस्याएं हैं मतलब आप बच नहीं सकतीं |
पर उम्मीद की किरण दोनों को दिखती है प्रियंका कहती हैं राजनीति में महिलाओं के आने से जहाँ अब राजनीति गन्दा शब्द नहीं रह गया है अब लोगों की राय बदल रही है |पंखुरी की राय भी कुछ ऐसी ही थी अब यदि सोशल मीडिया पर उन्हें ट्रोल किया जाता है तो अब पुरुष भी उनके समर्थन में आगे आते हैं जो बता रहा है धीरे ही सही पर बदलाव की बयार बहनी शुरू हो गयी है |
दैनिक जागरण में 04/11/17 को प्रकाशित
1 comment:
bahut achchhi jaankari hi sir kyoki rajneet me sabhi ki bhagidari awashyak hai tabhi samaj k logon ki bat rakkhi ja sakti hai jisse desh mjbot hoga aur pragati kega
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