सजे हुए परंपरागत बाजार अभी इतिहास की चीज नहीं हुए हैं, शायद होंगे भी नहीं, पर ऑनलाइन शॉपिंग ने उनको कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है। परंपरागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचर, कपड़ों, बीज, किराने के सामान से लेकर फल, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। यह लिस्ट हर दिन बढ़ती जा रही है। इस खरीदारी की दुनिया में घुसना इतना आसान है कि आप अपने बेडरूम से लेकर दफ्तर या गाड़ी से, कहीं से भी यह काम कर सकते हैं। ई-कॉमर्स पोर्टलों की बहार है। भारत में ऑनलाईन बाजार का एक चक्र पूरा हो गया अब देश इस कारोबार के अगले पायदान पर चढने के लिए तैयार हो रहा है और इसमें शामिल हैं फल,अनाज और सब्जी | ऑनलाईन बाजार के पहले चरण में इलेक्ट्रॉनिक सामान और कपडे की खूब खरीददारी शुरू हुई जो अभी तक लगातार जारी है जिसमें उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए खूब आकर्षक उपहार और छूट भी शामिल थीं |सबसे महतवपूर्ण सारे अंतरष्ट्रीय ब्रांड का एक जगह उपलब्ध हो जाना भी रहा |पिछले साल की चौथी तिमाही (अक्तूबर –दिसम्बर ) में भारत अमेरिका को पिछाड कर दुनिया में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर सबसे ज्यादा स्मार्टफोन धारकों का देश बन चुका है पर भारत के स्मार्ट फोन बाजार में अभी भी असीमित संभावनाएं हैं क्योंकि भारत में अभी दस मोबाईल फोन में से मात्र चार ही स्मार्ट फोन हैं और यह आंकड़ा विकसित देशों के स्मार्टफोन धारकों के मुकाबले काफी कम है |स्मार्ट फोन की बढ़ोत्तरी ऑनलाईन शौपिंग को बढ़ावा दे रही है लेकिन इसमें घरेलू इस्तेमाल का किराना अछूता रहा उसके लिए उपभोक्ताओं को या तो मॉल में खरीददारी करनी पड़ती या फिर मोहल्ले की दूकान पर निर्भर रहना पड़ता |ऑनलाईन कारोबार के पंद्रह साल के इतिहास में किराने का सामान उपभोक्ताओं को विकल्प नहीं दे पाया वहीं इलेक्ट्रॉनिक सामान ने परम्परागत बाजार का पैंतीस प्रतिशत हिस्सा हथिया लिया जबकि यात्रा से सम्बन्धित मामलों में यह आंकड़ा पचास प्रतिशत हो गया |अमेजन और फ्लिप्कार्ट जैसी कम्पनियां अभी इस बाजार के मात्र तीन से पांच प्रतिशत हिस्से को पाने के लिए कमर कस चुकी हैं |अमेजन जहाँ इस बाजार में जहाँ पहले से ही कूद चुकी है वहीं फ्लिप्कार्ट ने अमेजन को टक्कर देने के लिए अपने ऑनलाईन किराना स्टोर की शुरुआत सुपरमार्केट नाम के स्टोर के साथ शुरू कर दी है यह परियोजना प्रयोग के लिए बंगुलुरु में अपने कर्मचारियों के लिए शुरू की है |
पे टी एम माल अपने मुख्य निवेशक अलीबाबा के साथ इस क्षेत्र में विस्तार कर रही है जिसने बिग बास्केट में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी खरीद ली है |अमेजन इण्डिया खाने का सामान अमेजन पैंट्री के साथ चुने हुए शहरों में उपलब्ध करा रहा है और उसी दिन किराने का सामान उपभोक्ताओं को उपलब्ध कराने के लिए बिग बाजार और हाइपर सिटी के साथ करार किया है जिस सेवा का लाभ अमेजन नाऊ एप के सहारे चुने हुए शहरों में लिया जा सकता है |अमेजन के किराना खंड की मांग में दो सालों के भीतर ढाई सौ प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है जिसमें 1.9 मिलीयन उत्पाद और नौ हजार विक्रेता जुड़े हुए हैं |इस क्षेत्र में मांग के पीछे सीधा तर्क यह है कि आम उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद और कपडे रोज –रोज़ नहीं खरीदता |आम तौर पर मोबाईल दो साल और फ्रिज पांच साल या उससे भी ज्यादा समय में बदला जाता है जबकि किराना में शामिल चीजों की जरुरत हर महीने पड़ती है क्योंकि इसमें जयादातर दैनिक उपभोग की वस्तुएं शामिल रहती हैं |मॉल संस्कृति के आने से किराना खरीद व्यवहार सुहाना जरुर हुआ है पर बढ़ते शहर और ट्रैफिक में लगने वाला समय इस अनुभव को थोडा कडुवा बना देता है |वहीं इलेक्ट्रॉनिक सामान और कपडे की ऑनलाईन खरीद जो मूलतः शहरी प्रवृत्ति है एक संतृप्ति बिंदु पर आकर टिक गयी है |जबकि ऑनलाईन किराना ग्राहक को अपने समय के हिसाब से खरीददारी का विकल्प देता है और स्थापित ब्रांडेड कम्पनियों के उत्पाद एक तरह का भरोसा भी कि सामान अच्छा होगा और अगर गुणवत्ता में कोई समस्या आयेगी तो शिकायत पर सुनवाई भी होगी |रेड्शीर कंसलटिंग रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऑनलाईन किराना कारोबार इस साल के अंत तक एक बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा और अगले चार वर्षों में पचपन प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ बढेगा | इन्डियन ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में किराना बाजार का आकार 566 बिलियन डॉलर का है जबकि भारत का कुल खुदरा बाजार का आकार 672 बिलियन डॉलर का है मतलब किराने के सामानों के रूप में बाजार का एक बड़ा भाग ऑनलाईन कारोबार से दूर है और सारी कम्पनियां इस हिस्से को कब्जा करने की होड़ में है |लेकिन सब्जी ,फल और अनाज बेचना मोबाईल या फ्रिज बेचने से अलग है जहाँ मुनाफा कम और सामान भेजने की लागत ज्यादा है जिसके लिए एक अलग तरह की बिक्री आधारभूत ढांचे की जरुरत होगी,सब्जी, फल की गुणवत्ता उनके ब्रांड नहीं बल्कि उनके ताजे होने से आंके जायेगी |
इस चुनौती से भारत के कुछ बड़े शहरों में ही पार पाया जा सकता है पर देश के बाकी हिस्से अभी इनके लिए तैयार नहीं दिखते हैं ऐसे में ऑनलाईन कारोबार करने वाली कम्पनियां मुनाफा कैसे कमाएंगी इसका फैसला होना है क्योंकि कई इस क्षेत्र में कई स्टार्ट अप असफल हो चुके हैं |दूसरा मुद्दा विधिक है भारत जैसे देश में जहाँ उपभोक्ता किराने के सामानों को लेकर काफी सतर्क रहते हैं वहां खराब सामान की वापसी प्रक्रिया क्या और कैसी होगी क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक सामान अगर खराब या गड़बड़ है तो उसके बगैर गुजारा चल सकता है पर खाने पीने की चीजों के साथ यह विकल्प नहीं होता है |यह जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है |ऐसी परिस्थिति में ऑनलाईन कम्पनियां उपभोक्ता को क्या विकल्प देंगी ,यह देखना ही ऑनलाईन किराने व्यापार के भविष्य को निर्धारित करेंगी |
अमर उजाला में 29/11/17 को प्रकाशित
2 comments:
sir , after reading your article I could sense that there no 'responsible' authority in our country that can give 'quality certification ' to the perishable product available 'on-line.
if the delivered product is not 'up to the satisfaction mark' or could not match the promised commitment from the manufacturer , then there is a no 'agency' that can take up the grievance.
Though there are some of this kind in abroad like 'Bureau Veritus' in Britain.
there could a good business in this domain if some one can make a kind of 'feedback / grievance portal where every consumer can register their response, and if possible , it can certify product quality backed by authentic lab test ......
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