Saturday, September 8, 2018

साक्षरता पर तय करना है लम्बा सफ़र

दुनिया  से निरक्षरता को खत्म  करने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र के शैक्षणिक , वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने सत्रह नवंबर 1965 के दिन 8 सितम्बर को विश्व साक्षरता दिवस मनाने का निर्णय लिया था और तब से यह सिलसिला पूरी दुनिया में चल पडा जिसकी शुरुआत वर्ष 1966 में हुई |
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के लोगों, समुदाय और समाज में साक्षरता के महत्व को स्थापित करना है। अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस प्रत्येक वर्ष एक नए उद्देश्य के साथ मनाया जाता है।साक्षरता को सीखने और पढ़ने की क्षमता के रुप में परिभाषित किया जा सकता है। ये एक ऐसी  अवधारणा है जो न केवल छपी हुई सामग्री  को अच्छे से समझने की क्षमता पर बल्कि तमाम तरह की  तकनीकी जागरुकताओं पर भी जोर डालती है। ये एक बहुआयामी अवधारणा है जो वैश्विक दुनिया में विकास के सन्दर्भ में इसके नये मानकों को जोड़ने के लिए बहुत जरुरी है ।सामान्य शब्दों में साक्षरता से तात्पर्य पहचानने, समझने, टोकने, निर्माण करने, वार्तालाप करने और अलग-अलग संदर्भों के साथ जुड़े छपी   और लिखी सामग्री के प्रयोग से गणना करने की क्षमता है। जिसमें एक  व्यक्ति के रूप में अपने उद्देश्यों की प्राप्ति और विकास के लिये अपने ज्ञान का प्रयोग  अपने समुदाय और बाहरी समाज में भाग लेने के लिये सीखने की निरंतरता भी शामिल है|

 विषय कोई भी हो चाहे इतिहास, भूगोल गणित या फिर साहित्य बगैर साक्षरता  के इनका कोई अस्तित्व नहीं है |यानि दुनिया को समझने के लिए हमें साक्षरता  की जरुरत है|कॉपियों में लिखने का अभ्यास बगैर साक्षरता  के नहीं हो सकता  है |भारत के लिए यह दिन इस लिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि देश का अभी भी एक बड़ा तबका निरक्षर है |निरक्षरता महज एक समस्या भर नहीं है बल्कि यह कई समस्याओं की जननी है |कोई भी सभी समाज निर्देश से चलता है क्योंकि आधुनिक समाज का आधार सरकार है| सरकार समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए समय समय पर अपने नागरिको को निर्देश देती रहती है जिसे हम कानून के रूप में जानते हैं |अगर जनता समान रूप से कानून को समझ के उनका पालन करने लग जाए तो किसी भी देश में नियमों का  उल्लंघन कम होगा या बिलकुल न होगा |इससे सरकार को अनावश्यक रूप से कानून लागू करवाने वाली एजेंसियों पर ज्यादा निवेश नहीं करना होगा ,क्योंकि लोगों को वास्तविक रूप से कानून की जानकारी है|यदि ऐसा नहीं हो रहा है तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जिस देश में निरक्षरता ज्यादा होगी वहां की सरकार को शासन देने  में कितनी दिक्कत आयेगी |उसी तरह से लोगों में भी निरक्षरता के कारण जागरूकता की कमी होगी जिससे लोगों का हक़ मारा जाएगा और ऐसे समाज में फिर भ्रष्टाचार की अधिकता होगी |भारत इस मामले में अपवाद नहीं है जहाँ सिर्फ लोगों के निरक्षर होने के कारण कितनी तरह की ऐसी समस्याएं हैं |बड़ा  कारण लोगों का निरक्षर होना है | संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में पंद्रह साल से ऊपर सात सौ इक्यासी मिलीयन लोग साल 2015 में निरक्षर थे जिनमें चार सौ छियानबे मिलीयन  महिलायें हैं |सरकारी आंकड़ों के अनुसार  2011 की सामाजिक-आर्थिक और जातीय जनगणना के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में निरक्षर लोगों की आबादी करीब 32 करोड़ है जो कुल ग्रामीण जनसंख्या का लगभग 35 प्रतिशत है। प्रतिशत के हिसाब से राजस्थान में ग्रामीण निरक्षर जनसंख्या सर्वाधिक है जिसका प्रतिशत 47.58 है और वहीं सबसे कम  लक्षद्वीप में 9.30 प्रतिशत है। देश के सर्वाधिक साक्षर राज्य केरल में ग्रामीण निरक्षर लोगों का प्रतिशत 11.38 प्रतिशत  है।  2011 की जनगणना के अनुसार देश के ग्रामीण इलाकों में सात साल और इससे अधिक के आयुवर्ग में निरक्षर लोगों की संख्या 22,96,32,152 रही जो 2001 की जनगणना की तुलना में थोड़ी कम है। 2001 की जनगणना में यह आंकड़ा 25,41,49,325 का था।आंकड़े अपने आप में देश में साक्षरता की स्थिति बयान कर रहे हैं |साक्षरता की कमी गरीबी ,भ्रष्टाचार ,कुपोषण अपराध और बढ़ती जनसँख्या जैसी समस्याओं को जन्म देती  हैं |देश तभी तरक्की कर सकता है जब उसका मानव संसाधन योग्य कुशल और उत्पादक हो |यह उत्पादकता अर्थव्यवस्था को गति देगी जिससे सरकार को गवर्नेन्स देने में आसानी होगी |सामाजिक रूप से देश में कई तरह की समस्याएं हैं जिनका इलाज कानून बनाकर नहीं किया जा सकता है |ऐसी बहुत सी समस्याओं का निदान जागरूकता से ही हो सकता है |सरकार सर्व शिक्षा अभियान में बहुत सारा धन खर्च कर रही है पर जागरूकता के अभाव में अगर लोग अपने बच्चों  को स्कूल न भेजें तो इस अभियान का उद्देश्य विफल हो जाएगा |पूरी दुनिया ऑन लाइन हो रही है भारत भी इसमें अपवाद नहीं है पर देश में निरक्षरों की बड़ी संख्या होने के कारण डिजीटल डिवाईड भी बढ़ा है और लोग पढ़े लिखे न होने के कारण बदलाव की इस बयार का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं |सरकार साक्षरता को बढाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है और शिक्षा का अधिकार इसी दिशा में उठाया गया एक सार्थक  कदम है पर यह प्रयास तभी सफल होगा जब इसमें जनभागीदारी जुड़ेगी और यह जिम्मेदारी उन पढ़े लिखे लोगों की ज्यादा है कि वे अपने आस पास के निरक्षर लोगों को साक्षर होने के लिए न केवल प्रेरित करें बल्कि अपना खुद का भी योगदान दें |कोई भी देश महान अपने लोगों से बनता है पर जनसंख्या का बड़ा तबका अगर शिक्षा की रौशनी से दूर है तो पहले से साक्षर लोगों को इस प्रयास में हाथ बंटाना ही होगा | साक्षरता का दिया जब तक भारत के हर घर में नहीं जलेगा तब तक हम विकास की दौड़ में भी पीछे रहेंगे और लोगों का जीवन स्तर भी बेहतर नहीं होगा |इस साक्षरता दिवस हम यह शपथ लेकर कि हम किसी एक व्यक्ति को साक्षर करेंगे राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे सकते हैं |
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 08/09/2018 को  प्रकाशित लेख 

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पं. गोविंद बल्लभ पंत और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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