Monday, October 29, 2018

बड़े बदलाव का कारक बन रहा इंटरनेट

एसोचैम डेलायट की रिपोर्ट के  अनुसार देश में  इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या साल  2020 तक 60 करोड़ के पार  पहुंच जाएगी. फिलहाल इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की कुल संख्या 34.3 करोड़ है.इतनी बड़ी इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की  तो दुनिया के कई विकसित देशों की कुल आबादी की भी नहीं है । यानी इतने लोग कार्य, व्यापार व अन्य जरूरतों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते है। पिछले तकरीबन एक दशक से भारत को किसी और चीज ने उतना नहीं बदला, जितना इंटरनेट ने बदल दिया है। रही-सही कसर इंटरनेट आधारित फोन यानी स्मार्टफोन ने पूरी कर दी. इंटरनेट की शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा . आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली.इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया. कल तक स्क्रीन का मतलब घरों में सिर्फ टीवी ही  होता था पर आज उस स्क्रीन के साथ एक और स्क्रीन हमारी जिन्दगी का अहम् हिस्सा बन गयी है वो है हमारे स्मार्ट फोन की स्क्रीन जहाँ मनोरंजन से लेकर समाचारों का सारा खजाना  मौजूद है.स्मार्टफोन ने देश में इंटरनेट प्रयोग के आयाम जरूर बदले हैं और इसके साथ सोशल नेटवर्किंग ने हमारे संवाद व मेल-मिलाप का तरीका भी बदल दिया है। इसमें यू-ट्यूब और फेसबुक लाइव जैसे फीचर बहुत लोकप्रिय हुए हैं. इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं. यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है. विवाह तय करने जैसी सामाजिक प्रक्रिया पहले परिवार और यहां तक कि खानदान के बड़े-बुजुर्गों, मित्रों, रिश्तेदारों वगैरह को शामिल करते हुए आगे बढ़ती थी, अब उसमें भी ‘ई’ लग गया है।. इंटरनेट सामूहिक तौर पर हमारे समाज  के हर व्यक्ति को प्रभावित कर रहा है .बतकही का एक दौर हुआ करता था जब कस्बों और गांवों  के नुक्कड़ चौपालों से गुलज़ार रहा करते थे पर अब दुनिया बदल चुकी है और वक्त भी  अब इन बैठकों की जगह वर्चुअल हो गयी है घर के आँगन मोबाईल  की स्क्रीन में सिमट गए देह भाषा को कुछ संकेत चिन्हों(इमोजी )में समेट दिया गया. समाज में जब भी कोई बदलाव आता है तो सबसे ज्यादा प्रभावित मध्यवर्ग होता है और ऐसा ही कुछ हुआ है हमारे सम्प्रेषण पर देश का मध्यवर्ग और खासकर युवा  चकल्लस के नए अड्डे से संक्रमित है . जिसे सोशल नेटवर्किंग साईट्स का नाम दिया गया है अब चक्कलस  करने के  के लिए न तो किसी बुज़ुर्गियत की ज़रुरत है और न ही किसी पुराने निबाह की. ये वो अड्डे हैं जिनके नाम तक उल्टे पुल्टे हैं. कोई कई चेहरों वाली किताब है तो कोई ट्विटीयाने वाली चिड़िया बनने को बेताब हैफेसबुक, ट्विटर और इन्स्टाग्राम  जैसे तमाम चकल्लस के लोकप्रिय अड्डे बनकर उभरे हैं. इसका हिस्सा बनने के लिए किसी तरह के बौद्धिक दक्षता के प्रमाण की आवश्यकता नहीं है. बस आपको अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने का हुनर आना चाहिए.फेसबुक,  ट्विटर ,इन्स्टाग्राम और व्हाट्स एप वर्चुयल  सोसायटी के चार धाम माने जाते हैं.जिनमें से फेसबुक वर्चुअल अड्डेबाजों  का तीर्थ  सिद्ध हुआ है.हर कोई यहाँ डूबकी लगाकर इंटरनेट तकनीक का आशीर्वाद पा लेने को बेताब है. अगर आप इसके सक्रिय सदस्य है और चीज़ों को गहराई से समझने की लत है तो सहजता से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि युवाओं के साथ साथ ये मध्यम वर्ग की  स्त्रियों को भी यह डिजीटल  संसार खूब रास आ रहा है. सास से होने वाली रोज़ रोज़ की  चिकचिक हो या परम्पराओं की  लकीर  पीटने वाले पति से  नाराजगी ये यहाँ अपने मन के गुबार निकाल रही हैं . घर की  चहारदीवारी में बंद इन औरतों के लिए डिजिटल संसार आज़ादी के नए दरवाज़े खोलता है. जहाँ वह अपनी सोच और व्यक्तित्व को निखार सकती हैं. जब घरेलू औरत होने के तानों से उकताई गृहणी अपने किसी स्टेटस को 18  बरस के युवा से लेकर 65  बरस तक के बुजुर्गों की और से ढेरो लाईक्स  और कमेंट्स मिलते हैं तब उसके चेहरे पर  संतुष्टि के भाव  बिना किसी  चश्मे के साफ़ पढ़े जा सकते हैं . जैसा की हमेशा से ही कहा जाता रहा है कि हर अच्छी चीज़ का एक स्याह पक्ष भी होता है उसी तरह भारत में सोशल नेटवर्किंग साईट्स के लिए चुनौतियाँ कम नहीं है. कई बार इन साईट्स पर लोग अश्लीलता और फूहड़ता की सारी हदों को पार कर जाते हैं. दूसरों के जीवन में तांकझांक और उन पर टिप्पणियाँ करने का चलन यहाँ भी खूब है. ऐसे कई मामले प्रकाश में आये हैं जब लड़कियों से अपनी खुन्नस निकलने के लिए अश्लील पोस्ट की आड़ ली गयी.दूसरों को  सुख दुःख का ज्ञान और नीति  की घुट्टी पिलाने वाले वचन अक्सर बेमानी लगते हैं.आभासी संबंधों की दुनिया महज़ लाईक्स और टिप्पणी की  में सीमा रह गयी है.प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे को ई मेल से फूल भेज रहे हैं. यहाँ एक समय में सब ओपन है तो बहुत कुछ गोपन भी है. इंटरनेट की  खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो ली,अब इसके दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान जाने लगा है। शोध बताता है कि इंटरनेट हमें भुलक्कड़ बना रहा है, ज्यादातर युवा उपभोक्ताओं के लिए, जो कि कनेक्टेड डिवाइसों का प्रयोग करते हैं, इंटरनेट न केवल ज्ञान का प्राथमिक स्रोत है, बल्कि उनकी व्यक्तिगत जानकारियों को सुरक्षित करने का भी मुख्य स्रोत बन चुका है.इसे कैस्परस्की लैब ने डिजिटल एम्नेशिया का नाम दिया है. यानी अपनी जरूरत की सभी जानकारियों को भूलने की क्षमता के कारण किसी का डिजिटल डिवाइसों पर ज्यादा भरोसा करना कि वह आपके लिए सभी जानकारियों को एकत्रित कर सुरक्षित कर लेगा. कई देशों के न्यूरो वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक, लोगों पर इंटरनेट और डिजिटल डिवाइस से लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर रहे हैं.  देश भर में यह चर्चा आम है कि स्मार्टफोन व इंटरनेट लोगों को व्यसनी बना रहा है.
दैनिक जागरण /आईनेक्स्ट में 29/10/18 को प्रकाशित 

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन स्टैच्यू ऑफ यूनिटी - लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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