Thursday, February 14, 2019

बेजा विवादों से बचे सोशल मीडिया

पहले चुनाव ज़मीन पर  लड़े  जाते थे पर अब सोशल मीडिया भी जंग का मैदान बन चुका है. जहाँ किसी भी तरह मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की जा रही है .पहले जमीन पर काम करना जरुरी होता था पर अब काम का जिक्र करना भी जरुरी है .वहीं विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म के ऊपर ऐसे भी  आरोप लग रहे है कि वे ख़ास राजनैतिक विचार धारा का समर्थन कर रहे हैं |ताजा विवाद ट्विटर के सी ई ओ जैक डॉर्सी के अपने वरिष्ठ  अधिकारियों समेत  सूचना तकनीक के लिए बनी संसदीय समिति के सामने पेश होने का भाजपा  सांसद अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने उन्हें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भारतीय नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के मुद्दे पर तलब किया था. लेकिन ट्विटर ने 'सुनवाई के लिए  संक्षिप्त नोटिसका हवाला देकर समिति के सामने पेश होने से इनकार कर दिया. इसकी  जगह ट्विटर की तरफ से जो टीम भेजी गई थी उससे  संसदीय समिति ने मिलने से इनकार कर दिया. मामले की शुरुआत कुछ दिन पहले एक  संगठन यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी  के सदस्यों ने ट्विटर के कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए आरोप लगाया था कि ट्विटर ने 'दक्षिणपंथ विरोधी रुखअख्तियार कर लिया है और उनके ट्विटर खातों को बंद कर दिया है। जबकिट्विटर ने इन आरोपों से इनकार किया . ट्विटर का कहना है कि वह विचारधारा के आधार पर भेदभाव नहीं करता. यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी के कार्यकर्ताओं  ने इस बारे में अनुराग ठाकुर को भी पत्र लिखा था.साल 2014 के लोकसभा के चुनावों में देश ने पहली बार चुनावों में सोशल मीडिया की ताकत को महसूस किया और सोशल मीडिया में अपने आक्रामक चुनाव प्रचार का फायदा भाजपा को वोटो के रूप में मिला.देश में भाजपा ने अपनी सरकार बनाई|देश एक बार फिर चुनावों का सामना करने के लिए तैयार है .विभिन्न राजनैतिक दलों ने भी कमर कस ली है और जमीन के साथ –साथ विभिन्न सोशल मीडिया मंचों से चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है.आमतौर पर सोशल मीडिया से दूर रहने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया सुश्री मायवती  ने भी सोशल मीडिया की अहमियत समझते हुए जल्दी ही  ट्विटर पर अपनी आमद दर्ज की है .
 ट्विटर और फेसबुक ने देश में चुनावों के देखते हुए अपनी विज्ञापन नीतियों में कई बदलाव किये हुए हैं पर विवाद हैं कि रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं .फेसबुक कैम्ब्रिज ऐनालिटिका विवाद में मार्क जुकरबर्ग को अमेरिकी संसद के समक्ष तक  पेश होना पड़ा था जिसमें कैम्ब्रिज ऐनालिटिका कम्पनी के ऊपर अमेरिकी चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगा था जिसने फेसबुक यूजर्स के आंकड़ों के सहारे डोनाल्ड ट्रम्प का चुनावी अभियान चलाया और लोगों के विचारों  को प्रभावित किया था . फेसबुक के मुकाबले ट्विटर का यूजर आधार भारत में काफी कम है और इसके मात्र पैंतीस मिलियन यूजर ही भारत में है पर ट्विटर भी इन विवादों से बचा नहीं रह सका.पिछले साल नवम्बर में ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी की भारत यात्रा उस समय सुर्ख़ियों में आ गयी जब ट्विटर पर उनकी एक ऐसी तस्वीर वाइरल हुई जिसमें वे एक ऐसा पोस्टर उठाये दिखे जिससे एक जाति विशेष की भावनाएं आहत हो सकती थीं बाद में ट्विटर की तरफ से एक बयान जारी करके कहा गया कि वो तस्वीर जैक डॉर्सी के ट्विटर हैंडल से नहीं ट्वीट की गयी थी .भारतीय परिस्थितयों में यह मामला इस लिए ज्यादा महतवपूर्ण इसलिए हो जाता है कि दुनिया में सबसे ज्यादा फेसबुक यूजर भारत में हैं वहीं अन्य सोशल मीडिया प्लेटफोर्म भी देश में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं |देश में यूजर जेनेरेतेद कन्टेनट की बाढ़ है पर उनका अपने ही आंकड़ों पर कोई नियंत्रण नहीं है |कल्पना कीजिये कि किसी व्यक्ति का कोई सोशल मीडिया अकाउंट बगैर किसी कारण बंद कर दिया जाए या अकाउंट बंद करने के जो कारण बताये जाएँ वो गलत संदर्भ में हों तब वह व्यक्ति क्या करे .किस अदालत में अपील करें और अगर इसका जिम्मा अदालतों पर छोड़ा भी जाए तो साइबर क्राईम के अलावा अन्य गंभीर अपराधों का फैसला होने में सालों लग जाते हैं .लोगों में साइबर जागरूकता का अभाव है .जब किसी का अकाउंट बंद या सस्पेंड किया जाए तो कितने लोग अपने इस हक़ के लिए लड़ाई लड़ने को तैयार रहेंगे . 25 मई2018 को यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जीडीपीआर (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) को पूरी तरह से लागू किया और इस तरह यूरोपीय संघ (इयू) में डाटा प्रोटेक्शन कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया गया . जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) एक नियंत्रण व्यवस्था है जिसके तहत समूचे यूरोपीय संघ में नागरिकों के डाटा प्रोटेक्शन अधिकारों को मजबूत बनाया गया है और इसे मानकीकृत‍ किया गया है | इसके तहत माना जाता है कि उपभोक्ता ही आंकड़ों का असली स्वामी या मालिक है | इस कारण से संगठन को उपभोक्ता से स्वीकृति लेनी पड़ती है तभी उपभोक्ता के आंकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है या फिर उपभोक्ता से स्वीकृति मिलने के बाद ही आंकड़ों को समाप्त किया जाता है .   वही भारत में इस सम्बन्ध में ड्राफ्ट डाटा प्रोटेक्शन बिल 2018 को जस्टिस कृष्णा कमेटी ने इलेक्ट्रॉनिक एंड इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय को भेजा है . जिसका मुख्य उद्देश उस समस्या से निजात दिलाना जो विदेशों में इंडियन  डाटा सेव है . हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इंटरनेट के मूल में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निहित है पर जबसे इसका पूंजीकरण हुआ है ,यहाँ सिलेक्टिव विचारों को ही आगे बढाने की जो प्रवृत्ति है वो इसके लिए घातक होगी .हालिया ट्विटर प्रकरण पर सरकार को सख्त रुख अपनाना चाहिए .

दैनिक जागरण /आई नेक्स्ट में 14/02/19 को प्रकाशित 

1 comment:

HARSHVARDHAN said...

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 75वीं पुण्यतिथि - दादा साहेब फाल्के और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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