Tuesday, October 22, 2019

निजता संबंधी नीतियों की अनदेखी

आज इंटरनेट और मोबाईल हर क्षेत्र का आधार बन चुका है । बढ़ती तकनीक के जरिए आज लोगों की ना सिर्फ जिंदगी आसान हुई है ,बल्कि इस वजह से कई सारी समस्याएं भी पैदा  हुई हैं । हम रोज इंटरनेट के जरिए अनेकों  जानकारी लेते व देते हैं पर  इन सबके बीच हम यह भूल जाते हैं कि हम अपनी जानकारी का इस्तेमाल किस तरह से कर रहे हैं ,और हमारी निजता इससे किस तरह से प्रभावित हो रही है | इन्टरनेट एक अद्भुत दुनिया है, जिसने मनुष्य की कल्पनाओं को पंख प्रदान करें हैं । यह एक ऐसी तिलिस्मी दुनिया है ,जो आपको कुछ इस तरह बांधने की क्षमता रखती है, कि जिससे दूर होना आपके लिए मुश्किल हो जाता है ।हर रोज हम अलग-अलग सोशल नेटवर्किंग साइट्स ,अलग-अलग वेबसाइट से जुड़ते हैं तरह तरह के एप डाउनलोड करते हैं| ऐसा करते वक्त कई बार हम अपनी निजी जानकारी जैसे अपना नाम, पता ,फोन नंबर, ईमेल आईडी ,वगैरह का इस्तेमाल भी ऑनलाइन करते हैं और इसको एक आम प्रक्रिया का हिस्सा मान लेते हैं । पर क्या आपको पता है की निजता का मुद्दा आज के समय में एक व्यापक समस्या का कारण बन चुका है।        आपका डाटा आपकी पहचान है और आपके डेटा पर कंपनियों की नजर आपको हानि पहुंचा सकती है। यह मुद्दा हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं और समस्या की शुरुआत यहीं से होती है। आज इंटरनेट पर ऑनलाइन एप्स और वेबसाइट्स की भरमार है । हम सब किसी न किसी वजह से उनका इस्तेमाल भी करते हैं ।
 कई बार संचार के लिए, तो कई बार एंटरटेनमेंट के लिए । कई बार हमें कोई ऐप रोचक लगती हैं तो हम उसको डाउनलोड कर लेते हैं । डाउनलोड करने के बाद ऐप हमारे फोन में कई सारे परमिशन मांगते हैं और अक्सर ऐप को इस्तेमाल करने की जल्दी में हम यह नजरअंदाज कर देते हैं । जब हम किसी ऐप को परमिशन दे रहे हैं , तो हम उसको हमारी निजी जानकारी जैसे हमारे कांटेक्ट, हमारी गैलरी वगैरह में झांकने का मौका दे रहे हैं और यह काम वे हमारी जानकारी में करते हैं पर जागरूकता के अभाव में हम मौसम की जानकारी देने वाले  किसी एप को भी अपने कोंटेक्ट को देखने की अनुमति दे देते हैं |अब मौसम की जानकारी वाला एप हमारे कोंटेक्ट की जानकारी क्यों चाहता है यह सोचने की फुर्सत किसे है |
ये अद्भुत युग है जहाँ करोड़ों एप के बीच इंसान एक डाटा भर बन कर रह गया है |हमारे आपके मोबाईल में कई सारे एप है जो हमारी जिन्दगी को आसान बना रहे हैं पर इस सच्चाई के बीच हम यह तथ्य भूल जाते हैं कि बाजार के इस युग में मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता वहां इतने एप हमें मुफ्त में क्यों मिल रहे हैं ?सवाल का जवाब इसी क्यों में छुपा है कि इन एप कम्पनियों के लिए हम खुद ही अपना डाटा खुशी खुशी परोस दे रहे हैं और आदमी से डाटा बनने की इस प्रक्रिया में हमें खुद ही नहीं पता कि अब हमारा कुछ भी निजी नहीं रह गया है |आप एक समस्या से बचने के लिए एक एप डाउनलोड करते हैं उससे जुटाई गयी आपकी ही जानकारी आपके लिए दूसरी समस्या पैदा कर देती है उससे बचने के लिए हम दूसरा एप डाऊनलोड करते हैं इस तरह डाटा का कारोबार लगातार फलता फूलता रहता है और हमारा ही डाटा कई गुणकों में तब्दील होता जाता है | प्रमोशनल और टेलिमार्केटिंग कॉल्स की परेशानी से बचने के लिए  लिए लोगों ने ट्रू कॉलर  या ट्रैप कॉल जैसे ऐप्स डाउनलोड किये पर अब खबर ये है कि रोबोकॉल्स को ब्लॉक करने वाले ऐसे ऐप यूजर्स को स्पैम और स्पूफ कॉल्स से छुट्टी देने के अलावा उनका डेटा भी चुरा रहे हैं। एनसीसी ग्रुप नाम की साइबर सिक्यॉरिटी फर्म के सीनियर सिक्यॉरिटी कंसल्टेंट डैन हेस्टिंग्स ने कुछ सबसे पॉप्युलर रोबोकॉल ब्लॉकिंग ऐप्स का विश्लेषण  किया। इनमें ट्रैप कॉल, ट्रू कॉलर  और हिया भी शामिल थे और डैन ने पाया कि ये ऐप्स बुरी तरह लोगों की निजता  का उल्लंघन कर रहे हैं।इस  रिपोर्ट के बाद ऐसे सवाल फिर से उठ रहे हैं कि क्या ऐसे ऐप्स पर भरोसा किया जा सकता है इतना ही नहीं, ऐसे कई  ऐप्स उपयोगकर्ताओं  का डेटा थर्ड पार्टी कंपनियों को भी भेज रहे हैं।
समस्या ये है कि अगर आप ट्रू कॉलर का प्रयोग  कर रहे हैं तो जाहिर है आपके पूरे कॉन्टैक्ट्स ट्रू कॉलर के पास चले जाते हैं. इसलिए अगर आपके अकाउंट से डाटा चोरी  होता है, तो हमारे फोनबुक के सारे कॉन्टैक्ट्स भी चोरी हो जाते हैं| इस मामले में फेसबुक पहले ही दोषी पाया जा चुका है वहीं ट्विट्टर  ने भी खुलासा किया है जिसमें उसने यूजर्स की मर्जी के बिना ही उनके डाटा का इस्तेमाल विज्ञापन  के लिए किया है। कंपनी ने अपने आधिकारिक ब्लॉग पोस्ट में यूजर्स से माफी मांगते हुए का कि उसने एक साल तक बिना परमिशन के यूजर्स के डाटा का इस्तेमाल विज्ञापन  के लिए हुआ है।
हालांकि कंपनी ने अपने ब्लॉग पोस्ट में यह भी बताया है कि इस बग को फिलहाल ठीक  कर लिया गया है। आज के युग में सूचना एवं जानकारी ही ताकत है , जिसके पास यह ताकत है वह पूरे विश्व को जीतने की क्षमता रखता है ,और कुछ ऐसी ही जीतने की होड़ होती है ऑनलाइन कंपनियों में , क्योंकि वे बाजार में तब ही सफल होंगे  ,जब उनके पास अपने  ग्राहक की पूर्ण जानकारी उपलब्ध हो और आज के समय में यह जानकारी हम उनको खुद इंटरनेट और तमाम एप  के जरिए खुद ही पहुंचाते हैं और इस जानकारी का बेचा जानाअब  एक बड़ा व्यवसाय बन गया है।अक्सर हम जब कोई वेबसाइट खोलते हैं या कोई एप डाउनलोड करते हैं ,तो एक लंबी चौड़ी प्राइवेसी और टर्म्स एंड कंडीशन की सूची हमारे सामने आ जाती है अधिकांश लोग यह गोपनीयता नीति नहीं पढ़ते हैं, और जो पढ़ते हैं उनका मानना है कि उसमें क्या लिखा है, वह उनके लिए समझना बहुत मुश्किल होता है।
 कानूनी शब्द जाल और असप्श्तीकृत वाक्यांशों से भरे इन पन्नों का उद्देश्य मुख्यता: कंपनी को कानूनी तौर पर किसी दायित्व से बचाना होता है न कि उपभोक्ता को सूचित करने का |सूचनात्मक गोपनीयता का अधिकार आपकी निजी जानकारी की वकालत करता है , जिसके अनुसार हर एक व्यक्ति को यह निर्धारित करने में सक्षम होना चाहिए कि उनकी जानकारी का उपयोग कौन और किस उद्देश्य के लिए कर सकता है।डाटा उलंघन केसेस लगभग हर रोज होते हैं, दुर्भाग्य से अधिकांश लोग समस्या की गंभीरता को तब तक नहीं समझते हैं , जब तक कि यह व्यक्तिगत रूप से पहचान की चोरी या अन्य दुर्भावनापूर्ण गतिविधि के माध्यम से उन्हें प्रभावित नहीं करते।नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा करना सरकार का दायित्व होता है , और किसी की निजी जानकारी पर सेंध लगना सरकार की कमज़ोरी को भी दर्शाता है। हम डिजिटल तो हो रहे हैं , पर शायद आज भी उसके लिए तैयार नहीं है । आज सरकार के साथ-साथ लोगों को भी जागरूक रहने की आवश्यकता है, कि वह अपना डाटा किस कंपनी को दे रहे हैं, वह डेटा किस तरह से इस्तेमाल करा जाएगा और डाटा से संबंधित कंपनी की क्या पॉलिसी है। साथ ही साथ उपभोक्ता की जानकारी सुरक्षित रखना कंपनियों का दायित्व है, और वे उस जानकारी के प्रति जवाबदेह हैं ।साइबर गोपनीयता जैसे मामलों पर एक मज़बूत ढांचे की आज देश को जरूरत है । जिससे हमारा भारत तकनीक की दौड़ में बाकी देशों से कंधा मिलाकर चल सके।

 दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 22/10/2019 को प्रकाशित 



No comments:

पसंद आया हो तो