Saturday, February 1, 2020

इंसान के डाटा में परिवर्तित हो जाने का दशक

मानव सभ्यता के इतिहास में पिछले दस साल  इसलिए याद रखे जायेंगे   जब इंसान एक डाटा (आंकड़े )में परिवर्तित हो गया और आज इससे मूल्यवान कोई चीज नहीं है | डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी  उपभोक्ताओं  के लिए मुफ्त हैं |असल मे जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है |इनमे से अधिकतर कम्पनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कार्य गए आंकड़ों को सम्हाल पाने में असफल रहती हैं जिसका परिणाम लागातार आंकड़ों की चोरी और उनके  दुरूपयोग के मामले सामने आते रहते हैं |साल 2018 में फेसबुक ने पचपन बिलियन डॉलर और गूगल ने एक सौ सोलह बिलियन डॉलर विज्ञापन से कमाए |मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता है और इसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है और आप क्या विज्ञापन देखेंगे इसके लिए आपको जानना जरुरी है |यही से आंकड़े महत्वपूर्ण हो उठते हैं | देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ उस तेजी से हम अपने निजी आंकडे (फोन ई मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं परिणाम तरह तरह के एप मोबाईल में भरे हुए जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि एप को इंस्टाल करते वक्त किन –किन चीजों को एक्सेस देने की जरुरत है |
टेक एआर सी की एक रिपोर्ट के अनुसार एक भारतीय कम से कम चौबीस एप का इस्तेमाल  करता है और यह आंकड़ा वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना ज्यादा है |मोबाईल एनालातिक्स फर्म एप एनी की एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर किसी  फोन में एप रखने का औसत नौ एप प्रयोग करने का हैयह रिपोर्ट बताती है कि औसत रूप से एक भारतीय इक्यावन एप तक अपने फोन में रखता है वैसे अधिकतम एप इंस्टाल करने का अधिकतम आंकड़ा इसी रिपोर्ट के अनुसार दो सौ सात का है यह तथ्य बताता है कि एक आम भारतीय किसी एप को डाउनलोड करने में कितनी कम सावधानी बरत रहे हैं |सबसे ज्यादा सोशल मीडिया एप का इस्तेमाल किया जाता है और यही से इंसान के डाटा बनने का खेल शुरू हो जाता है यह सोचने में अच्छा है कि हमारे ऑनलाइन प्रोफाइल पर हमारा नियंत्रण है | हम तय करते हैं कि हमें कौन सी तस्वीरें साझा करनी हैं और कौन सी निजी रहनी चाहिये | हम निमंत्रण स्वीकार करते हैं या अस्वीकार करते हैंटैग को नियंत्रित करते हैंऔर पोस्ट या टिप्पणी प्रकाशित करने से पहले दो बार सोचते हैं | बुरी खबर यह है कि जब यह आपके डिजिटल प्रोफाइल की बात आती हैतो आपके द्वारा साझा किया जाने वाला डेटा केवल एक आइसबर्ग का टिप होता है | हम बाकी को नहीं देखते हैं जो मोबाइल एप्लिकेशन और ऑनलाइन सेवाओं के अनुकूल इंटरफेस के पानी के नीचे छिपा हुआ है | हमारे बारे में सबसे मूल्यवान डेटा हमारे नियंत्रण से परे है | यह ऐसी गहरी परतें हैं जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते हैं जो वास्तव में निर्णय लेते हैंवो हम नहीं हैं बल्कि हमारे डाटा को विश्लेषित करने वाला होता है |
पहली परत वह है जिसे आप नियंत्रित करते हैं | इसमें वह डेटा होता है जो आप सोशल मीडिया और मोबाइल एप्लिकेशन में फीड करते हैं | इसमें आपकी प्रोफ़ाइल जानकारीआपके सार्वजनिक पोस्ट और निजी संदेशपसंदखोजअपलोड की गई फ़ोटोआदि चीजें  शामिल हैं |
दूसरी परत व्यवहार संबंधी टिप्पणियों से बनी है | ये इतने विकल्प नहीं हैं जो आप होशपूर्वक बनाते हैंलेकिन मेटाडेटा जो उन विकल्पों को संदर्भ देता है | इसमें ऐसी चीजें शामिल हैं जिन्हें आप शायद हर किसी के साथ साझा नहीं करना चाहते हैंजैसे कि आपका वास्तविक समय स्थान और आपके अंतरंग और पेशेवर संबंधों की विस्तृत समझ | जैसे एक ही घर में अक्सर एक ही कार्यालय की इमारतों या आपके आराम करने के समय  के वक्त आपके मोबाईल की जगह  को दिखाने  करने वाले स्थान पैटर्न को देखकर,  कंपनियां बहुत कुछ बता सकती हैं कि आप किसके साथ अपना समय बिताते हैं। ऑनलाइन और ऑफलाइनआपके द्वारा क्लिक की गई सामग्रीआपके द्वारा इसे पढ़ने में बिताए गए समयखरीदारी पैटर्नकीस्ट्रोक डायनेमिक्सटाइपिंग स्पीडऔर स्क्रीन पर आपकी उंगलियों के मूवमेंट (जो कुछ कंपनियों का मानना है कि भावनाओं और विभिन्न मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को प्रकट करते हैं)|
तीसरी परत पहले और दूसरे की व्याख्याओं से बनी है | आपके डेटा का विश्लेषण विभिन्न एल्गोरिदम द्वारा किया जाता है और सार्थक सांख्यिकीय सहसंबंधों के लिए अन्य उपयोगकर्ताओं के डेटा के साथ तुलना की जाती है | यह परत न केवल हम क्या करते हैं बल्कि हम अपने व्यवहार और मेटाडेटा पर आधारित हैंके बारे में निष्कर्ष निकालते हैं | इस परत को नियंत्रित करना बहुत अधिक कठिन है,  इन प्रोफ़ाइल-मैपिंग एल्गोरिदम का कार्य उन चीजों का अनुमान लगाना हैजिन्हें आप स्वेच्छा से प्रकट करने की संभावना नहीं रखते हैं। इनमें आपकी कमजोरियांसाइकोमेट्रिक प्रोफाइलआईक्यू लेवलपारिवारिक स्थितिव्यसनोंबीमारियोंचाहे हम एक नए रिश्ते में अलग होने या प्रवेश करने वाले होंआपकी छोटी सी टिप्पणियों (जैसे गेमिंग)और आपकी गंभीर प्रतिबद्धताएं (जैसे व्यावसायिक परियोजनाएं) शामिल हैं |
वे व्यवहार संबंधी भविष्यवाणियाँ और व्याख्याएँ विज्ञापनदाता के लिए बहुत मूल्यवान हैं | चूंकि विज्ञापन का मतलब जरूरतों को बनाना है और आपको ऐसे निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना है जिन्हें आपने (अभी तक) नहीं किया है,  चूंकि कम्पनियां जानती  हैं कि आप उन्हें सीधे कुछ नहीं बताएंगे कि यह कैसे करना है|  बैंकोंबीमा कंपनियोंऔर सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा किए गए बाध्यकारी निर्णय बिग डेटा और एल्गोरिदम द्वारा किए जाते हैंन कि लोगों द्वारायह मनुष्यों से बात करने के बजाय डेटा को देखते है जो  बहुत समय और पैसा बचाता है |इसलिएविज्ञापन उद्योग में एक साझा विश्वास है कि बड़ा डेटा झूठ नहीं है  यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कॉन्टेक्ट तक पहुँचने की अनुमति माँगी तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे की मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है उसकी अनुमति दे देंगे |अब उस एप के निर्मताओं के पास किसी के मोबाईल में जितने कोंटेक्ट उन तक पहुँचने की सुविधा मिल जायेगी|यानि एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |यह भी उल्लेखनीय है कि डेटा चुराने के लिए बहुत से फर्जी एप गूगल प्ले स्टोर पर डाल दिए जाते हैं और गूगल भी समय समय  पर ऐसे एप को हटाता रहता है पर ओपन प्लेटफोर्म होने के कारण जब तक ऐसे एप की पहचान होती है तब तक फर्जी एप निर्माता अपना काम कर चुके होते हैं |ग्रोसरी स्टोर और कई तरह के क्लब जब कोई उपभोक्ता वहां से कोई खरीददारी करता है या सेवाओं का उपभोग करता है तो वे उपभोक्ताओं के आंकड़े ले लेते हैं लेकिन उन आंकड़ों पर उपभोक्ताओं पर कोई अधिकार नहीं रहता है |
उपभोक्ता अधिकारों के तहत अभी आंकड़े नहीं आये हैं |किसी भी उपभोक्ता को ये नहीं पता चलता है कि उसकी निजी जानकारियों का (आंकड़ों )किस तरह इस्तेमाल होता है और उससे पैदा हुई आय का भी उपभोक्ता को कोई हिस्सा नहीं मिलता |आंकड़ों की दुनिया में भी वर्ग संघर्ष का दौर शुरू हो गया है किसी के निजी आंकड़ों की कीमत उसकी इंटरनेट पर कम उपस्थिति से तय होती है यानि अगर आप कई तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर हैं तो आपका डाटा यूनिक नहीं रहेगा | लोगों के निजी डाटा सिर्फ कम्पनियों के प्रोडक्ट को बेचने में ही मदद नहीं कर रहे बल्कि  यह आंकड़े हमें  भविष्य के समाज के लिए तैयार भी कर रहे हैं जिसमें एआई यनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है | आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है जो  मशीनों की सोचनेसमझनेसीखनेसमस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता पर कार्य करता है पर भविष्य का भारतीय समाज कैसा होगा यह इस मुद्दे पर निर्भर करेगा कि अभी हम अपने निजी आंकड़ों के बारे में कितने जागरूक है |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 01/02/2020 में प्रकाशित 

No comments:

पसंद आया हो तो