Tuesday, June 2, 2020

शोहरत और विवादों का टिकटॉक

कोरोना वायरस के चलते हुए लॉक डाउन  में टिकटोक वीडियो लोगों के समय बिताने का अच्छा जरिया बने|इसी बीच यू ट्यूब और टिक टोक यूजर्स के बीच हुए विवाद से साइबर मीडिया में काफी सुर्खियाँ बनी और पूरा सोशल मीडिया दो हिस्सों में बंट गया |इसी विवाद ने अब तक सुर्ख़ियों से दूर से चल रहे टिक टोक वीडियो एप को चर्चा के केंद्र में ला दिया इसका कारण है हमारे जीवन में टिक टोक वीडियो का आ जाना |बात ज्यादा पुरानी नहीं है जब सोशल  मीडिया वर्च्युल दुनिया से लेकर हमारी असली दुनिया की बातचीत के केंद्र में आ गया वो चाहे ट्विटर हो या फेसबुक वहां क्या चल रहा है वो हमारे आपसी वार्तालाप का हिस्सा बन गया लेकिन अब उनकी जगह मजाकिया मीम्स ने ली है| एक ऐसा एप जिसने अपने विरोधियों की नींद उड़ा दी हैं कम्पनी के आंकड़ों के मुताबिक देश में इसके एक सौ बीस मिलीयन सक्रिय मासिक उपभोक्ता हैं फेसबुक को दो सौ चालीस मिलीयन उपभोक्ताओं के आंकड़े तक पहुँचने के लिए एक दशक से ज्यादा का समय लगा था |कहा जाता है कि अगर भारत को समझना है तो उसके गाँवों को समझिये उसी तरह से भारत क्या कर रहा है और भारत में कितना हुनर है ये आपको फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया एप नहीं बताएँगे इसके लिए आपको टिकटॉक  पर आना होगा |असल में टिकटॉक  की सफलता में छोटे शहरों कस्बों और गाँवों का सबसे बड़ा योगदान है |जहाँ कुछ भी बनावटी नहीं है |ऐसी जगहों के लोगों के पास ऐसा कोई प्लेटफोर्म नहीं था जहाँ लोगों को वो जैसे हैं वैसे ही उनकी नादानियों उनकी समस्याओं के साथ स्वीकार किया जाए |

कैसे टिकटॉक  बन गया एक बड़ी चुनौती इसकी सफलता का राज़ दुनिया के दूसरे सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते इंटरनेट यूजरबेस को होस्ट करने वाले देश में सही समय पर आना।भारत जहाँ हर कोई कैमरे के सामने सेलेब्रेटी बनना चाहता है, जहाँ फ़िल्में उनके सम्वाद और गाने  हमारे जीवन में इस हद तक घुसे हुए हैं कि कि उसके बगैर जीवन की कल्पना करना मुश्किल  है, वहां टिकटॉक जैसे माध्यमों की सफलता आश्चर्यजनक नहीं है |2016 में रिलायंस जिओ के लांच के बाद सस्ते डाटा के युद्ध ने टिकटॉक को भारत में पाँव पसारने का बेहतरीन मौका  दिया | कोई भी जिसके पास एक स्मार्ट फोन इंटरनेट कनेक्शन के साथ अपना नाचता गाता वीडियो बना सकता  है|दिल्ली स्थित मार्केट इंटेलीजेंस फर्म कलागतो ( KalaGato )के आंकड़ों के अनुसार, पिछले अगस्त तक, ऐप को एक तिहाई भारतीय स्मार्टफ़ोन पर डाउनलोड किया जा चुका  था। भारतीय किसी अन्य देश के लोगों की तुलना में ऐप पर अधिक समय बिताते हैं।इसी कम्पनी के आंकड़ों के मुताबिक अपने सेगमेंट में एक भारतीय औसत रूप में सबसे ज्यादा 34.1 मिनट टिकटॉक पर बिता रहा है जबकि लोकप्रिय एप इन्स्टाग्राम पर 23.8 मिनट पर जो लोकप्रियता पर तीसरे नम्बर पर है |टिकटॉक  का मौद्रिकीकरण का अभी तक कोई सीधा फार्मूला सार्वजनिक नहीं है पर बहुत से ब्रांड एन्फ़्लुएन्सर इससे ठीक ठाक पैसे कमा रहे हैं | स्टेटिसटा के आंकड़ों के मुताबिक भारत में फेसबुक के तीन सौ मिलियन उपभोक्ता है वहीं टिकटॉक  के दो सौ मिलियन है जिसमें से एक सौ बीस सक्रिय उपभोक्ता हैं|देश में साल 2020 तक इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले 67  प्रतिशत उपभोक्ता पैंतीस साल से कम के हैं |युवाओं और किशोरों में टिकटॉक  की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि अगली फेसबुक ट्विटर या इन्स्टाग्राम जैसी कम्पनियां अमेरिका से न होकर चीन से होंगी | बढ़ती फेक न्यूज की आमद और चारित्रिक हनन की कोशिशों के बीच लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साईट्स ट्विटर और फेसबुक पर उपभोक्ताओं का अनुभव अब उतना सुहाना नहीं रहा जितना आज से कुछ साल पहले रहा करता था |ऐसे में वो उपभोक्ता जो समाचार और राजनीति से इतर कारणों से सोशल मीडिया पर थे एक विकल्प की तलाश में थे जिसकी भरपाई टिकटॉक  ने बखूबी कर दी |

भारत में लोकप्रियता का कारण

अपनी इन्हीं खूबियों के चलते ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में जो इंटरनेट पीढी की अगली लहर भारत में चलेगी जिसमें दो सौ से लेकर चार सौ मिलीयन तक लोग इंटरनेट से जुड़ेंगे |उसमें वे अपने जीवन के महत्वपूर्ण पलों को अपने दोस्तों और परिवार के साथ से बांटने के लिए जिस एप का चुनाव करेंगे वो फेसबुक न होकर टिकटॉक  होगा |आमतौर पर फेसबुक ,स्नैपचैट और ट्विटर का इंटरफेस पश्चिम के उपभोक्ताओं की रुचियों को ध्यान में रखकर बनाया गया था जबकि टिकटॉक  के मामले में ऐसा नहीं है यह आपको एक नया और अलग अनुभव देता है|मानवीय मनोविज्ञान के आधार पर इसने उन लोगों को सेलीब्रेटी स्टेट्स दे दिया जो अपने जीवन के संघर्षों में ऐसे उलझे है कि वे कैमरे पर नाचते गाते मुस्कुराते कभी आ ही नहीं सकते थे ,पर इस एप ने उन सबको पन्द्रह सेकेण्ड के लिए ही सही सेलेब्रेटी बनने का मौका दे दिया |दुर्भाग्य से भारत में ऐसे लोगों की संख्या करोडो में हैं |इस एप की पहुंच में आने से वे सेकेंडों में करोडो लोगों तक अपने आप को पहुंचा पा रहे हैं |ये इस एप की लोकप्रियता का ही कमाल है कि हिन्दी फ़िल्मी के बड़े सितारे टिकटॉक  पर अपने अकाउंट बना कर सक्रिय हो चुके हैं |फेसबुक और ट्विटर जैसे एप के साथ एक तरह का इलीटिज्म जुड़ गया जबकि टिकटॉक  के साथ ऐसा नहीं है |देश में अधिकांश इंटरनेट उपयोगकर्ता अंग्रेजी नहीं बोलते हैं और अंग्रेजी में बोलने सोचने वाले लोग काफी पहले ही इंटरनेट से जुड़ चुके हैं ।अब जितने भी नए उपभोक्ता इंटरनेट जुड़ रहे हैं ज्यादातर वे अंग्रेजी नहीं बोलते समझते हैं |तो बाजार के लिहाज से अब मुनाफ़ा छोटे शहरों,गाँवों और गैर अंग्रेजी क्षेत्रों में है | छोटे शहरों और कस्बों से ऑनलाइन आने वाले लोगों के लिए यह ऐप 10 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है, जो भारत की भाषाई विविधता को देखते हुए उपभोक्ताओं को अपनी भाषा में वीडियो बनाने का एक अच्छा विकल्प देता  है | ऐप में सब कुछ इन-बिल्ट है जिसमें विभिन्न फिल्टर और बैकग्राउंड चेंज जैसे टूल शामिल हैं|हैश टैग का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को कंटेंट को पहचानने में मदद करता है कि चुटकुले या किस अन्य फोर्मेट में बनाये गए वीडियो लोग देखना पसंद कर रहे हैं वो भी रीयल टाईम में |लेकिन इससे ये समस्याएं भी पैदा हुई है कि टिकटॉक  पर बिना किसी रोक टोक के वीडियो डाले जा रहे हैं |जो टिक टोक के दामन को दागदार बनाते हैं | टिक टोक वीडियो बनाते हुए होने वाली दुर्घटनाएं आम हैं जिनमें कई लोगों की जान भी जा चुकी हैं |

इसी कारण पिछले साल अप्रैल में, गूगल प्ले स्टोर  और एपलके ऐप स्टोर से इस  ऐप को हटा लिया गया  था, क्योंकि अदालत ने फैसला दिया था कि यह अश्लीलता  को बढ़ावा  दे  रहा है। अदालत ने दो सप्ताह बाद  इस प्रतिबंध हटा लिया जब ऐप के प्रभावों की जांच करने के लिए नियुक्त किए गए वकील ने कहा कि प्रतिबंध  समाधान नहीं , और वैध उपयोगकर्ताओं के अधिकारों को संरक्षित करने की आवश्यकता है।इस आलोचना के बाद पने ऐप को उपयोगकर्ताओं के लिए सुरक्षित बनाने के लिए टिकटॉक  ने कई कदम उठाए हैं। डेटा सेंटर स्थापित करने की उनकी योजना इंगित करती है कि भारत उनके लिए एक बड़ा बाजार है। हालांकि वे राजनीति से दूर रहे हैं, उन्होंने कई अभियान चलाए हैं जो सामाजिक जागरूकता को बढ़ाते हैं। भारत जैसे देश में जहाँ अभी लोगों को इंटरनेट मैनर्स सीखने हैं वहां लंबे समय में इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि ये कदम कितने प्रभावी साबित होते हैं, तब तक हम भारत के लोग  अपने पसंदीदा सोशल मीडिया ऐप पर पार्टी करते रहेंगे और भारतीय उपभोक्ताओं को कौन सा सोशल मीडिया एप ज्यादा पसंद आएगा इसकी लड़ाई  जारी रहेगी |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 02/06/2020 को प्रकाशित 

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