अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की अनदेखी दुनिया :छठा भाग
अगले दिन हमें
दुनिया के सबसे खुबसूरत “समद्री बीच” में से एक राधानगर बीच की यात्रा करनी थी पर उससे पहले
हमें विकल्प दिया गया कि “क्या हम स्कूबा डाइविंग करना चाहते हैं”?जीवन में कोई
एडवेंचर तो बचा नहीं था इसलिए सोचा गया क्यों न एक चांस लिया जाए |शुरुआत में
तो लगा यूँ हो जाएगा |हमारे हाँ कहते ही
पहले हमें एक जिप्सी में लादा गया और एक बियावान से एरिये में ले जाया गया गया जो
स्कूबा डाइविंग सेंटर था |
स्कूबा डाइविंग का अनुभव
वहां दो जवान लड़कों ने हमारा स्वागत किया और हमें स्कूबा
डाइविंग के बारे में बताया गया |उनके दो स्लॉट थे |प्रीमियम सुबह छ बजे से आठ बजे
तक प्रीमियम और आठ बजे से एक बजे तक नार्मल |प्रीमियम का शुल्क चार हजार रुपये
मात्र जिसमें आधे घंटे की स्कूबा डाइविंग फोटोग्राफ और वीडियो भी शामिल थे जबकि नार्मल
में सबकुछ वही था पर समय बदल गया था |मैंने पूछा समय बदलने से पैसा कम क्यों हो
रहा है ?तब मुझे बताया गया कि सुबह छ से आठ समुद्र के भीतर द्र्श्यता अच्छी रहती
है उसके बाद लोगों के आने जाने से द्र्श्यता प्रभावित होती है इसलिए समुद्री जीवन
उतना स्पष्ट नहीं दिखता |हमारे पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि तब तक सुबह के दस
बज चुके थे |हमारे सामने दो फॉर्म रख दिए गए जिसमें अपने स्वास्थ्य और बीमारियों
का ब्यौरा देना था ,साथ ही यह भी घोषणा करनी थी कि इस दौरान अगर कोई दुर्घटना हो
जाती है तो कम्पनी की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी |वो फॉर्म इतना बड़ा था कि मुझे डर
लगना शुरू हो गया |मैंने अपने इंस्ट्रक्टर से पूछा क्या यह वाकई में सुरक्षित होने
वाला है ?उसने आत्मविश्वास से कहा आप बिलकुल चिंता न करें एक आदमी जब तक आप पानी
के नीचे रहेंगे |आपके साथ रहेगा ,आपको बस अपने आपको उसके हवाले करके समुद्र के
अन्दर की खूबसूरती को निहारना है |अब फंस चुके थे |अगर कहते डर लग रहा है तो और
परेशानी क्योंकि अगुआ हमीं थे |मैंने अपने डर को कम करने के लिए अपने इंस्ट्रक्टर
से बात चीत शुरू कर दी,कागजी कार्यवाही के बाद हमें विशेष डिजाइन वाले स्कूबा सूट पहनने थे जिसमें समय लग रहा था |
बीस फीट पानी के अंदर से सूरज ऐसा दिखता है
मेरा इंस्ट्रक्टर जिसका नाम अब मैं भूल चुका हूँ
|चेन्नई का एक ऑटोमोबाईल इंजीनियर था जो एक बार हेवेलॉक
घूमने आया फिर नौकरी छोड़ कर यहीं रह गया |स्कूबा डाइविंग का उसने कोर्स वगैरह शायद
पुदुचेरी से किया फिर यही काम करने लग गया |उसने बताया पैसे बहुत कमाए पर अब वो
जीवन का लुत्फ़ उठाना चाहता था |मैंने उसे बधाई दी और कहा दोस्त इस देश में बहुत कम
ऐसे खुशनसीब लोग हैं जो वो कर पा रहे हैं |जो वो अपने जीवन में वाकई करना चाहते
हैं |आज भी उस मृदुभाषी श्यामवर्णी इंसान का चेहरा मेरी आँखों के आगे घूम जाता है
जो अपनी शर्तों पर जीवन जी रहा है |हमने अपने डर को काबू करने के लिए कहा यहाँ
सिर्फ अंडमान राज्य की गाडिया दिखती हैं उसने दार्शनिक अंदाज में कहा “यहाँ आने के
रास्ते तो बहुत हैं पर जाने का एक ही” इसीलिये गाड़ियों की चोरी नहीं होती ,कोई चुरा
के ले के कहाँ जाएगा |मन में आया उससे कहूँ क्या यहाँ कबाड़ी नहीं है जो गाड़ियाँ
काट डालते हैं और आपको कभी पता ही नहीं चलता आपकी गाड़ी गयी कहाँ ?बातों –बातों में
हम तैयार हो गए |काले नीले रंग का स्किन टाईट सूट ,नाक को ढंकते हुए आँखों पर लगने
वाला चश्मा ,बड़े –बड़े पैर की साईज के फिन लेकर हम उसकी मारुती वैन में बैठा दिया
गया |गाडी में हमारे साथ बड़े और भारी ऑक्सीजन सिलेंडर ,कमर पर बांधे जाने वाला
पत्थरों का एक पट्टा सब लाद दिया गया |
समुद्री जीवन
अब हमें उस जगह जाना था जहाँ से हम सबको
स्कूबा डाइविंग के लिए समुद्र के भीतर ले जाया जाने वाला था |तब तक मैं बहुत
प्रसन्न और स्कूबा के लिए बड़ा उत्सुक था |स्कूबा डाइविंग की जगह हेवेलॉक की जेटी(वो
स्थान जहाँ से जहाज आते और जाते हैं ) के करीब थी |करीब दस मिनट की यात्रा के बाद
हमारी वैन उस जगह रुक गयी |कई छोटे बच्चे हँसते –मुस्कुराते स्कूबा डाइविंग का अपना
सेशन करके लौट रहे थे |उनको हँसते मुस्कुराते मेरा डर कुछ कम हुआ |मेंग्रोव के
जंगलो के किनारे उस जगह लोगों का काफी हुजूम था |बच्चे बूढ़े और जवान समुद्र के
अन्दर की अनोखी दुनिया को देखना चाह रहे थे |हम भी उन लोगों के हुजूम में शामिल हो
गए |एक रजिस्टर में सबके नाम दर्ज किये गए जो समुद्र के अंदर जा रहे थे साथ ही
उनके इंस्ट्रक्टर के भी नाम |अब हम उथले समुद्र में थे |पीठ पर ऑक्सीजन के सिलेंडर
लाद दिए गए पैरो में फिन ,अब हमारा ट्रेनिंग सेशन शुरू हुआ |बीस फीट पानी के नीचे
आप कुछ बोल नहीं सकते क्योंकि मुंह में ऑक्सीजन के सिलेंडर की पाईप लगी हुई होती
|इसलिए नीचे इशारों से काम चलाया जाता है वो सारे इशारे सीखाये गए |मुंह में पानी
चला जाए तो क्या करना है ,चश्मा गन्दा हो जाए तो बगैर हाथ के उसे कैसे साफ़ करना
आदि ,आदि |
हेवेलॉक की हरियाली
अब बारी थी पानी के अन्दर जाने की उससे पहले ट्रायल ,उससे पहले अपने
चश्मे के देखे जाने वाले भाग पर थूकने को कहा गया |फिर उस थूक को उंगली से उस
प्लास्टिक के चश्मे को रगड़ने को कहा गया ,हमारे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था
|ये थूकने का काण्ड क्यों करवाया गया इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला |शायद थूक
में खारा पन नहीं होता इसलिए चश्मा ठीक से साफ़ हो जाता है जो भी हो |अभी मेरी और
मौज ली जाने वाली थी |मुझसे ट्रायल के तौर में समुद्र के पानी में डुबकी लगाने को
कहा गया मैंने डुबकी के बाद कहा “यहाँ का पानी ज्यादा खारा क्यों है” उसका जवाब भी
तुर्की बा तुर्की था उसने कहा यहाँ ज्यादा टूरिस्ट हैं ये उनके पेशाब के कारण है
|तो पेशाब और थूक के बीच हम स्कूबा के लिए तैयार हो रहे थे |स्कूबा के लिए जरुरी
है कि आप भूल जाएँ कि आपके पास नाक जैसी भी कोई चीज है आपको मुंह से ही सांस लेनी
है और छोडनी और ये लय जहाँ टूटी वहां आप संकट में पड़ जायेंगे |नाक को चश्मे का कवर
ढांक कर बंद देता है फिर भी थोड़ी बहुत सांस आप उससे ले सकते हैं |लेकिन समुद्र के
अंदर अगर ऐसा हुआ तो समुद्र का पानी भी नांक के अंदर जाएगा और जो समस्या पैदा कर
देगा |हमें एक बात बार –बार समझाई गयी |आपको समुद्र के अंदर अपनी समस्या से खुद
निपटना है |घबराना नहीं है और शांत दिमाग से समस्या का हल ढूँढना है |जैसे –जैसे
आप नीचे जायेंगे पानी का दबाव बढेगा और कान बंद होंगे इसके लिए हमें अपनी पहले से
ही बंद नाक को हाथ से और बंद करके जोर से नाक से सांस छोडनी होगी जिससे कान का भारीपन
हट जाए |मैं दो मिनट भी पानी में नहीं टिक पा रहा है और घबरा के ऊपर आ जा रहा था
|अभी तो हम गहरे पानी में गए भी नहीं तब मेरा यह हाल था |मैं अपने इंस्ट्रक्टर की
सारी हिदायतें मान रहा था पर फिर भी घबरा जा रहा था |यही अंतर होता है थ्योरी और
प्रैक्टिकल में | जारी ..............................
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