Thursday, December 23, 2021
कार्यक्षेत्र में घटती महिलाओं की हिस्सेदारी
Monday, December 20, 2021
ओ टी टी वही आगे ,जिसमें लगा है देशी तड़का
उदाहरण के लिए, बालाजी टेलीफिल्म्स की सहायक कंपनी ऑल्ट बालाजी ने सितंबर 2021 तक 1.8 मिलियन उपभोक्ताओं को जोड़ा , जो तीन साल पहले के 280,000 से कई गुना अधिक है। जी फाईव और सोनी लिव जैसे अन्य प्लेटफार्मों को न केवल भारत में बल्कि प्रवासी विदेशी दर्शकों ने सर माथे पर बिठाया है |ये भारत की विविधता का ही कमाल है कि सारी दुनिया में अपने उपभोक्ताओं की संख्या के मामले में बड़ा नाम बन चुके नेटफ्लिक्स और अमेजॉन के सितारे भारत में इतने बुलंद नहीं हैं |स्ट्रीमिंग गाईड जस्ट वाच की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 की तीसरी तिमाही में डिज्नी प्लस हॉटस्टार पच्चीस प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ पहले स्थान पर है। इस सूची में दूसरे स्थान पर अमेजन प्राइम वीडियो है, जिसकी वृद्धि दर उन्नीस प्रतिशत है और वहीं नेटफ्लिक्स इन तीनों में सबसे पीछे तीसरे स्थान पर है और उसकी वृद्धि दर सत्रह प्रतिशत है, जिसमें पहले के मुकाबले कमी आई है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार लगातार तीसरी बार सबसे ज्यादा वृद्धि के साथ पहले स्थान पर बना हुआ है। इसी साल जनवरी में डिज्नी प्लस हॉटस्टार की वृद्धि दर बीस प्रतिशत थी जो तीसरी तिमाही यानी सितंबर तक बढ़कर पच्चीस प्रतिशत हो गयी |
इसका सीधा असर नेटफ्लिक्स के ऊपर हुआ , जिसकी वृद्धि दर दूसरी तिमाही के मुकाबले तीसरी तिमाही में दो प्रतिशत कम हुई है। डिज्नी प्लस हॉटस्टार और अमेजन प्राईम की सफलता का एक बड़ा कारण इन प्लेटफोर्म पर लगातार भारतीय भाषाओं में कंटेंट ओरिजनल कंटेंट का उपलब्ध कराया जाना भी है जबकि नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध ज्यादातर कंटेंट अंग्रेजी या अन्य यूरोपीय भाषाओं में हैं हालाँकि नेटफ्लिक्स अपने कंटेंट को भारतीय भाषाओं में डब कर रहा है पर क्षेत्रीयता के मामले में डिज्नी प्लस हॉटस्टार के कंटेंट में ज्यादा भारतीयता दिखती है और अमेजन भी भारतीय दर्शकों को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम परोस रहा है |दूसरा कारण अमेज़ॅन प्राइम परिवार के सदस्यों के लिए अलग-अलग खातों का उपयोग नहीं करता है - क्योंकि यह सब अमेज़ॅन प्राइम छतरी के नीचे है। आप अलग-अलग डिवाइस पर एक ही शो और फिल्में देखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन अगर एक ही समय में आपके खाते पर बहुत से लोग स्ट्रीमिंग कर रहे हैं तो आपकी स्क्रीन पर एक संदेश आएगा ।नेटफ्लिक्स आपके प्लान के आधार पर, एक से चार दर्शकों के बीच कहीं भी कार्यक्रम देखने की सुविधा देता है। इस सबमें अपेक्षाकृत रूप से डिज्नी प्लस हॉटस्टार सेवा सबसे उदार है। जो अपनी सदस्यता चार उपकरणों पर स्ट्रीमिंग की अनुमति देती है, जिसमें सात अलग-अलग प्रोफाइल बनाने का विकल्प भी होता है और भारत में इसकी लोकप्रियता का यह एक बड़ा कारण भी है |
आंकड़ों से इतर इतिहास गवाह है कि इंसानी व्यवहार में परिवर्तन कभी पीछे की ओर नहीं लौटता |कोविड काल ने हमारी जीवन की दिनचर्या के हर क्षेत्र में असर डाला है और इनमें से बहुत सी चीजें अब हमेशा हमारे जीवन का हमेशा के लिए अंग बन जायेंगी |ओटीटी प्लेटफोर्म पर समय बिताना उनमें से ही कुछ एक है |हालाँकि ओटी टी पर अश्लीलता फैलाने के आरोप भी हैं पर कंटेंट के तौर पर जो विविधता है वो अब टेलीविजन के पास नहीं है उपर से असमय विज्ञापनों की भरमार दर्शकों की कार्यक्रम में तल्लीनता को तोडती है |तथ्य यहं भी है कि पारम्परिक रूप से फिल्मों को पहली टक्कर टेलीविजन से मिली फिर वी सी आर उसके बाद सी डी/डी वी डी आया पर हमारे सिनेमा हाल रूप बदल बदल कर इन सब चुनौतियों का समाना करते रहे |ओटीटी प्लेटफोर्म से मिलती इस चुनौती का सामना टीवी और फिल्म उद्योग कैसे करेगा इसका फैसला अभी होना है |
नवभारत टाईम्स में 20/12/2021 को प्रकाशित लेख
Saturday, December 18, 2021
साइबर हमला और भारत
हालंकि केन्द्रीयसरकार ने इस तरह के साइबर हमले को नहीं माना था | अमेरिकी कंपनी आईबीएम (IBM) की साइबर हमलों की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2020 में भारत एक तरफ कोरोना महामारी से लड़ रहा था,तो उसे दूसरी तरफ साइबर हमलों से पूरे एशिया-प्रशांत इलाके में भारतको जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले झेलने पड़े| महतवपूर्णहै कि सबसे ज्यादा साइबर हमले बैंकिंग और बीमा क्षेत्र से जुडी हुई कंपनियों परहुए| 2020 में एशिया में हुए कुल साइबर हमलों में से सातप्रतिशत भारतीय कंपनियों पर हुए | इंटरनेट के बढते विस्तार ने सायबर हमले की सम्भावना को बढ़ाया है|साइबर हमले कई तरह से हो सकते है जैसेवेबसाइट डिफेंसिंग इसमें किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर उसकी द्रश्य दिखावट को बदलदिया जाता है।जिससे यह पता चलता है कि अमुक वेबसाईट साइबर हमले का शिकार हुई है |दूसरा तरीका है फिशिंग या स्पीयर फिशिंग अटैक जिसमे हैकर ईमेल या मैसेज के जरिए लिंकभेजता है , जिस पर क्लिक करते ही कंप्यूटर या वेबसाईट कासारा डाटा लीक हो जाता है।इसके अलावा बैकडोर अटैक भी एक तरीका है जिसमें कम्प्यूटरमें एक मालवेयर भेजा जाता है, जिससे उपभोक्ता की सारीसूचनाएं मिल सके। देश को साइबर हमलों से बचाने के लिए भारत में दो सस्थाएं हैं। एकहै सी ई आर टी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना साल 2004 में हुई थी। दूसरी संस्था का नाम नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर है | जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है | ये 2014 से भारत में काम कर रही है। भारत में अभी तक साइबर हमलों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साइबर हमलों के मामले में फिलहाल आईटी एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है जिसमें वेबसाइट ब्लॉक तक करने तक केप्रावधान हैं लेकिन न तो प्रावधान प्रभावी हैं और न ही पर्याप्त ।
केंद्रीय शिक्षा,संचार तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसारदेश में जनवरी से मार्च, 2020 के बीच देश में 1,13,334,अप्रैल से जून के बीच 2,30,223 और जुलाई सेअगस्त से बीच 3,53,381 साइबर हमले हुए हैं।वहीं साल 2017-18में साइबर अटैक से निपटने के लिए 86.48 करोड़दिए गए जिनमें से 78.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2018-19में 141.33 करोड़ रुपये जारी किये गए हुए,जबकि खर्च 137.38 करोड़ रुपये ही हुए। साल 2019-20में साइबर फंड के नाम पर 135.75 करोड़ रुपयेदिए गए हैं जिनमें से मात्र 122.04 करोड़ रुपये ही खर्च हुएहैं।कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्रॉक्सी सर्वर होते हैं और दुनिया भरमें फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती ऐसे मेंजागरूकता के साथ बचाव की रणनीति ही देश को इन साइबर हमलों से बचा सकती है |एक आँकड़े के मुताबिक़ भारत दुनिया के उन शीर्षपाँच देशों में है, जो साइबर क्राइम से सबसेज़्यादा प्रभावित हैं| पहले हैकर्स जहाँ भारतीय वेबसाइटों पर उन देशों के समर्थन में नारे लिख देते थे|जिस देश के लिए वो काम कर रहे होते थे | पर ये परम्परा साल 2013-14के बाद से बदली है और चुपचाप किए गए साईबर हमलों की मदद से जासूसी की जाती है| ऐसे समय जब साइबर दुनिया में चुनौतियाँ लगातार बढ़ रही हैं, इन चुनौतियों से निपटने केलिए एक स्पष्ट रणनीति की कमी साफ़ दिखती है|भारत में साइबर ख़तरों से निपटने के लिए पिछली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013में आई थी, लेकिन पिछले आठ सालों में इंटरनेटकी दुनिया में भारी बदलाव आए हैं| स्पष्ट नीति के न होने से वजह से बहुत सारी असैन्यसंस्थाएँ उन पर हुए साइबर हमलों के बारेमें जानकारी नहीं देती, क्योंकि उनके लिए क़ानूनी तौर पर ऐसा करना ज़रूरी नहीं है| साइबर हमलों से बचने के लिए देश के लिए यह जरुरी है कि इंटरनेटके लिए जरुरी महत्वपूर्ण तकनीकी मूलभूत सुविधाओं जैसे राऊटर्स, स्विच , सुरक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बने|वर्तमान स्थिति में यह देश के लिए ये आसान नहीं होगा, क्योंकि भारतीय ऊर्जा स्टेशंस, मोबाइल नेटवर्क जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीनी उपकरणों का वर्चस्व है| इसी तरह रक्षा क्षेत्र में पश्चिम से आयातित उपकरणों का इस्तेमाल होता है |
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 18/12/2021 को प्रकाशित
Wednesday, December 8, 2021
आओ चलें गाँव की ओर
मई लगते ही सूरज अपने तेवर दिखाना शुरू कर देता है। स्कूल
कॉलेज की छुट्टियाँ जहाँ समर कैंप्स की रौनक बढ़ा देती है वहीं आर्थिक रूप से
समर्थ लोग किसी हिल स्टेशन पर सुक़ून भरे समय की तलाश में निकल पड़ते हैं। जब ऐसे
ज़्यादातर लोग गर्मियाँ एंज्वॉय कर रहे होते हैंठीक उसी समयकिसी सुदूर गाँव में
हमारा अन्नदाता अपनी अपनी नंगी झुलसी चमड़ी पर सूरज का तापमान माप रहा होता है।
लहलहाती पकी फ़सल को देखकर आंखो में चमक के साथ चेहरे पर चिंता की झुर्रियां उसके
किसान होने का प्रमाण देती हैं। एक ऐसे देश का किसान जिसके खुरदुरे कंधों पर टिकाकर हम तरक्की की सीढ़ियाँ
चढ़ रहे है। पर खुद उसकी आजीविका अभी भी सूर्य और इंद्रदेवता की मेहरबानी पर टिकी
है|गाँव तो बेचारा है यादों में रहने वाले गाँव की हकीकत उतनी
रूमानी नहीं है इस तथ्य को समझने के लिए
किसी आंकड़े की जरुरत नहीं है| गाँव में वही लोग बचे हैं जो पढ़ने शहर
नहीं जा पाए या जिनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं है| दूसरा
ये मिथक कि खेती एक लो प्रोफाईल प्रोफेशन है जिसमे कोई ग्लैमर नहीं है फिर क्या
गाँव धीरे धीरे हमारी यादों का हिस्सा भर हो गए हैं | जो एक दो दिन पिकनिक
मनाने के लिए ठीक है | शायद इसीलिये गाँव खाली हो
रहे हैं और शहर जरुरत से ज्यादा भरे हुए |आखिर समस्या कहाँ है |गाँव को पुरानी
पीढ़ी ने इसलिए पीछे छोड़ा क्योंकि तरक्की
का रास्ता शहर से होकर जाता था | फिर जो गया उसने मुड़कर गाँव की सुधि नहीं
ली |क्योंकि गाँव के लोग शहर जाकर कमा रहे
थे पर गाँव आर्थिक रूप से पिछड़े ही रहे |एक तरफ 6 लाख छोटे
गाँव और दूसरी तरफ 600 शहर, कोई भी
जागरूक और धन से संपन्न ग्रामीण शहर ही जाना चाहेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही| दुनिया
की हर विकसित अर्थव्यवस्था ऐसे ही आगे बढ़ी है जिसमे कृषि क्षेत्र की उत्पादकता को
बढ़ाया गया और बची श्रम शक्ति को औद्योगिकी करण में इस्तेमाल किया गया|भारत के गाँव के सामने विकल्प हैं पर यदि समय रहते इनको आज़मा लिया जाए|गाँव
से पलायन इसलिए होता है कि वहां सुविधाएँ नहीं है सुविधाएँ के लिए धन की जरुरत है,
और वो दो तरीके से आ सकता है| पहला सरकार
द्वारा दूसरा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप से|सरकार अपनी प्राथमिकताओं के हिसाब से
काम करती है| इसमें अगर तेजी लानी है तो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा
देना होगा| अब यहाँ समस्या ये है कि गाँव ,जनसंख्या के
अनुपात में शहरों से काफी छोटे होते हैं|
इसलिए आधारभूत सेवाओं के विकास में लागत बढ़ जाती है और इनकी वसूली में भी देर
होती है| जिससे निजी निवेशक पैसा लगाने से कतराते हैं| दूसरी समस्या ग्रामीण
जनसँख्या का आर्थिक रूप से कमज़ोर होना भी
है क्योंकि जो जनसंख्या वर्ग दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा हो |उसे सुविधाओं की जरूरत
बाद में होगी |इसी मानक को आधार बना कर शहरों की ओर ज्यादा ध्यान दिया जाता है| जिससे गाँव विकास की दौड में पीछे छूट जाते हैं |
इससे ग्राम पलायन के एक ऐसे दुष्चक्र का निर्माण होता है जिससे देश आज तक जूझ रहा
है| सुविधाओं के अभाव में जिसको मौका मिलता है वो लोग गाँव छोड़ देते हैं| क्योंकि
शहर में बिजली पानी और सडक की स्थिति गाँव
से बेहतर है | ऐसे लोग दुबारा गाँव नहीं लौटते|खेती
छोटे और मझोले किसानों के लिए अब फायदे का सौदा नहीं रही |जोत छोटी होने के कारण खेती
में लागत ज्यादा आती है और लाभ कम होता है , एक और कारण गाँव
में आधारभूत सुविधाओं का अभाव समस्याओं को बढाता है और ये दुष्चक्र चलता रहता है |ग्रामीण
अर्थव्यवस्था इस हद तक खेती के के इर्द गिर्द घूमती है कि कोई और विकल्प उभर ही
नहीं पाया, हमारे खेत और गाँव के
उत्पाद अपनी ब्रांडिंग करने में असफल रहे. खेती में नवचारिता वही किसान कर पाए
जिनकी जोतें बड़ी थीं और आय के अन्य स्रोत थे| ऐसे लोग आज भी सफल हैं और अक्सर
मीडिया की प्रेरक कहानियों का हिस्सा बनते हैं किन्तु ऐसे लोगों की संख्या
बहुत कम है.सहकारी आंदोलन की मिसाल लिज्जत पापड और अमूल दूध जैसे कुछ गिने चुने
प्रयोगों को छोड़कर ऐसी सफलता कहानियां दुहराई नहीं जा सकीं.जिसका परिणाम ये हुआ
कि गाँवों को शहर लुभाने लग गए और गाँव शहर बनने चल पड़े गाँव शहरों की संस्कृति
को अपना नहीं पाए पर अपनी मौलिकता को भी नहीं बचा पाए जिसका परिणाम ये हुआ कि अपनी
चिप्स और सिरका दोयम दर्जे के लगने लग गए पर यही ब्रांडेड चीजें अच्छी पैकिंग में
हमें लुभाने लग गयीं हम अपनी सिवईं को भूल कर नूडल्स को दिल दे बैठे आखिर इनके
विज्ञापन टीवी से लेकर रेडियो तक हर जगह हैं पर अपना चियुड़ा,गट्टा किसी और देश का लगता है पारम्परिक कुटीर उद्योग और कला ब्रांडिंग और मार्केटिंग के अभाव में
रोजगार का अच्छा विकल्प नहीं बन पाए तो पर्यटन के अवसरों को कभी पर्याप्त दोहन
किया ही नहीं गया नतीजा एक ऐसे गाँव में रहना जहाँ सुविधाएँ नहीं वहां के लोग
शहर जाकर मजदूरी करना बेहतर समझते हैं बन्स्बत अपने गाँव में रहकर खेती करना,
सुविधाएँ किस तरह लोगों को आकर्षित करती हैं इसको पंजाब के खेतों
में देखा जा सकता है |जहाँ बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँव के किसान,खेतों मजदूरी और अन्य कार्य करने हर साल आते हैं|पर
अब तस्वीर थोड़ी बदल रही है हर बदलाव जहाँ कुछ चुनौतियाँ लाता है वहीं कुछ अवसर भी
उदारीकरण की बयार से गाँव के लोगों की क्रय शक्ति बढ़ रही है|नेशनल सैम्पल सर्वे संगठन और क्रिसिल की एक रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण
भारत शहरी भारत के मुकाबले ज्यादा खर्च कर रहा है|, यानि
गाँव उस दुष्चक्र से निकलने की कोशिश में कामयाब हो रहा है जो उसकी तरक्की में
सबसे बड़ी बाधा रही है ग्रामीण भारत की क्रय शक्ति बढ़ रही है| गाँव में अब बिजली की उपलब्धता अब सहज है |सड़कों
से अब सभी गाँव का जुड़ाव है | उन्नत भारत अभियान योजना तहत गाँव को उन्नत
बनाने के लिए वहां के बुनियादी विकास और शिक्षा पर ज़ोर दिया गया है। शिक्षण
संस्थानों द्वारा गाँव के विकास से सम्बंधित स्थानीय आर्थिक, समाजिक व अन्य समस्याओं का भी समाधान
किया जाएगा। इस अभियान के अंतर्गत उच्च शिक्षा संस्थानों को गाँव से जोड़ा जा रहा
है जहाँ वो अपने ज्ञान के आधार पर गाँव के विकास में भागीदार बन सकें। उच्च शिक्षा
संस्थान ज्यादा से ज्यादा जिलों में पहुंचकर विकास कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं ।
ये संस्थान अनेक प्रकार के प्रोग्राम जैसे कि मशरुम खेती ,धुआं
रहित चिमनी, ग्रामीण ऊर्जा , हस्त
शिल्प ,स्वास्थ्य सेवा और जल प्रबंधन, ग्रामीण
आवास , और अन्य विकासात्मक पहलुओं में सहायता प्रदान कर रहे
हैं।
पहले विभिन्न खतरनाक रोगों से गांव के गांव ही समाप्त हो जाते थे। लेकिन चिकित्सा
विज्ञान में हुई अभूतपूर्व क्रांति एवं ग्रामीणों में अपने स्वास्थ्य के प्रति
बढ़ती जागरूकता से ग्रामीणों के स्वास्थ्य स्तर में सुधार हुआ है। इसके अतिरिक्त गाँवों में इंटरनेट की पहुँच ने शहर और गाँव के बीच के अंतर
को काफी हद तक कम किया है |ग्रामीण उत्पाद अब इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के किसी
भी कोने में पहुंच रहे हैं |
आधुनिक तकनीक और जीवन-शैली की धमक वहां साफ सुनाई देने लगी है। गांवों में अब भी बहुत कुछ शेष है। गांव का विकास एक सुखद
अनुभूति है। लेकिन हमें कोशिश करनी होगी कि विकास की प्रक्रिया में गांवों की
आत्मा नष्ट न होने पाए, तभी गांव से
जुड़ी सुखद अनुभूतियां जिंदा रह पाएंगीं।
आकाशवाणी लखनऊ में दिनांक 08/12/2021 को प्रसारित रेडियो वार्ता
Wednesday, December 1, 2021
वो रातों की मीठी नींद