हालंकि केन्द्रीयसरकार ने इस तरह के साइबर हमले को नहीं माना था | अमेरिकी कंपनी आईबीएम (IBM) की साइबर हमलों की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2020 में भारत एक तरफ कोरोना महामारी से लड़ रहा था,तो उसे दूसरी तरफ साइबर हमलों से पूरे एशिया-प्रशांत इलाके में भारतको जापान के बाद सबसे ज्यादा साइबर हमले झेलने पड़े| महतवपूर्णहै कि सबसे ज्यादा साइबर हमले बैंकिंग और बीमा क्षेत्र से जुडी हुई कंपनियों परहुए| 2020 में एशिया में हुए कुल साइबर हमलों में से सातप्रतिशत भारतीय कंपनियों पर हुए | इंटरनेट के बढते विस्तार ने सायबर हमले की सम्भावना को बढ़ाया है|साइबर हमले कई तरह से हो सकते है जैसेवेबसाइट डिफेंसिंग इसमें किसी सरकारी वेबसाइट को हैक कर उसकी द्रश्य दिखावट को बदलदिया जाता है।जिससे यह पता चलता है कि अमुक वेबसाईट साइबर हमले का शिकार हुई है |दूसरा तरीका है फिशिंग या स्पीयर फिशिंग अटैक जिसमे हैकर ईमेल या मैसेज के जरिए लिंकभेजता है , जिस पर क्लिक करते ही कंप्यूटर या वेबसाईट कासारा डाटा लीक हो जाता है।इसके अलावा बैकडोर अटैक भी एक तरीका है जिसमें कम्प्यूटरमें एक मालवेयर भेजा जाता है, जिससे उपभोक्ता की सारीसूचनाएं मिल सके। देश को साइबर हमलों से बचाने के लिए भारत में दो सस्थाएं हैं। एकहै सी ई आर टी जिसे कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के नाम से जाना जाता है। इसकी स्थापना साल 2004 में हुई थी। दूसरी संस्था का नाम नेशनल क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर है | जो रक्षा ,दूरसंचार,परिवहन ,बैंकिंग आदि क्षेत्रों की साइबर सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है | ये 2014 से भारत में काम कर रही है। भारत में अभी तक साइबर हमलों के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साइबर हमलों के मामले में फिलहाल आईटी एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है जिसमें वेबसाइट ब्लॉक तक करने तक केप्रावधान हैं लेकिन न तो प्रावधान प्रभावी हैं और न ही पर्याप्त ।
केंद्रीय शिक्षा,संचार तथा इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसारदेश में जनवरी से मार्च, 2020 के बीच देश में 1,13,334,अप्रैल से जून के बीच 2,30,223 और जुलाई सेअगस्त से बीच 3,53,381 साइबर हमले हुए हैं।वहीं साल 2017-18में साइबर अटैक से निपटने के लिए 86.48 करोड़दिए गए जिनमें से 78.62 करोड़ रुपये खर्च किए गए। साल 2018-19में 141.33 करोड़ रुपये जारी किये गए हुए,जबकि खर्च 137.38 करोड़ रुपये ही हुए। साल 2019-20में साइबर फंड के नाम पर 135.75 करोड़ रुपयेदिए गए हैं जिनमें से मात्र 122.04 करोड़ रुपये ही खर्च हुएहैं।कंप्यूटर की दुनिया ऐसी है जिसमें अनेक प्रॉक्सी सर्वर होते हैं और दुनिया भरमें फैले इंटरनेट के जाल पर दुनिया की कोई सरकार हमेशा नजर नहीं रख सकती ऐसे मेंजागरूकता के साथ बचाव की रणनीति ही देश को इन साइबर हमलों से बचा सकती है |एक आँकड़े के मुताबिक़ भारत दुनिया के उन शीर्षपाँच देशों में है, जो साइबर क्राइम से सबसेज़्यादा प्रभावित हैं| पहले हैकर्स जहाँ भारतीय वेबसाइटों पर उन देशों के समर्थन में नारे लिख देते थे|जिस देश के लिए वो काम कर रहे होते थे | पर ये परम्परा साल 2013-14के बाद से बदली है और चुपचाप किए गए साईबर हमलों की मदद से जासूसी की जाती है| ऐसे समय जब साइबर दुनिया में चुनौतियाँ लगातार बढ़ रही हैं, इन चुनौतियों से निपटने केलिए एक स्पष्ट रणनीति की कमी साफ़ दिखती है|भारत में साइबर ख़तरों से निपटने के लिए पिछली राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति 2013में आई थी, लेकिन पिछले आठ सालों में इंटरनेटकी दुनिया में भारी बदलाव आए हैं| स्पष्ट नीति के न होने से वजह से बहुत सारी असैन्यसंस्थाएँ उन पर हुए साइबर हमलों के बारेमें जानकारी नहीं देती, क्योंकि उनके लिए क़ानूनी तौर पर ऐसा करना ज़रूरी नहीं है| साइबर हमलों से बचने के लिए देश के लिए यह जरुरी है कि इंटरनेटके लिए जरुरी महत्वपूर्ण तकनीकी मूलभूत सुविधाओं जैसे राऊटर्स, स्विच , सुरक्षा उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बने|वर्तमान स्थिति में यह देश के लिए ये आसान नहीं होगा, क्योंकि भारतीय ऊर्जा स्टेशंस, मोबाइल नेटवर्क जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीनी उपकरणों का वर्चस्व है| इसी तरह रक्षा क्षेत्र में पश्चिम से आयातित उपकरणों का इस्तेमाल होता है |
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 18/12/2021 को प्रकाशित
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