Tuesday, December 20, 2011

अक्षम है साइबर अपराध कानून


इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार भारत में इंटरनेट सेवा प्रयोक्ताओं की संख्या 10 करोड़ से भी ज्यादा हो चुकी है. वैसे इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है. इस समय देश में पीसी पर या अन्य तरीकों से इंटरनेट का इस्तेमाल करने के अलावा मोबाइल पर इंटरनेट की इस्तेमाल करने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है. मोबाइल क्रांति के कारण इंटरनेट अब लोगों की जेब में पहुंच चुका है और इसमें आने वाले समय में और भी तेजी से विकास की संभावना है. भारत सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना आकाश के तहत छात्रों  के लिए जो टेबलेट कंप्यूटर जारी किया है और उसके साथ ही अन्य कंपनियों ने उससे लोगों के इंटरनेट इस्तेमाल में और भी तेजी आने की संभावना है. आशा व्यक्त की जा रही है कि आने वाले वर्षों में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की यह संख्या दो से तीन गुनी की रफ्तार से बढ़ेगी. इसी के साथ ही इंटरनेट से जुड़े अपराधों यानि साइबर क्राइम का भी  संकट बढ़ गया है. जिस तरह से इंटरनेट का इस्तेमाल सरकारी और बैंकिंग क्षेत्रों समेत हमारे दैनिक जीवन में  बढ़ रहा है उसी तेजी से इसमें अपराधियों की गतिविधियां भी बढ़ रही हैं. आज कहीं से भी इंटरनेट का इस्तेमाल  करना उतना सुरक्षित नहीं माना जा रहा है. सोशल नेटवर्किंग साइट से लेकर ई मेल तक  लोगों की तमाम व्यक्तिगत और गोपनीय जानकारियों पर अपराधियों की नजर है .साइबर अपराध में मुख्यतः वायरस से दूषित किया गया, हैकर द्वारा आक्रमण किया गया,स्पायवेयर,फ़िशिंग,स्पैम,पहचान चुरा ली गई,ऑनलाइन खरीदारी धोखा, जैसे अपराध शामिल हैं .साइबर अपराधों के बढ़ने में एक बड़ी भूमिका सोशल नेटर्किंग साईट्स की है जिसमे कई तरह के माल वेयर आ जाते हैं .प्रयोगकर्ता अनजाने में इन लिंक को क्लिक कर बैठता है और हैकर का शिकार हो जाता है . साइबर अपराध का एक नया चलन मोबाईल द्वारा इंटरनेट के इस्तेमाल से भी बढ़ा है जिसमे उपभोक्ता के मोबाईल से जानकारियों को चुरा लिया जाता है .असुरक्षित वाई फाई नेटवर्क के इस्तेमाल ने भी साइबर अपराधों को बढ़ावा दिया है .  एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में होने वाले कुल साइबर अपराध में करीब सत्ररह प्रतिशत  अपराध मोबाइल के द्वारा हुआ है. इसके साथ ही भारत वैश्विक स्तर पर छठें सबसे अधिक मालवेयर से पीड़ित देश के रूप में चिन्हित किया गया है .माइक्रोसॉफ्ट की सिक्युरिटी इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ पूरी दुनिया में मालवेयर संक्रमण (इन्फेक्शन ) के मामले घट रहे हैं वहीं भारत में इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ रही है. मई 2000 को भारतीय संसद के दोनों सदनों में सूचना प्रौद्योगिकी बिल पारित किया गया था. अगस्त 2000 में राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद बिल को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम,2000 के रूप में जाना गया. साइबर कानून IT अधिनियम, 2000 में शामिल हैं.उल्लेखनीय है कि भारत में इन्टरनेट का प्रयोग तो बढ़ रहा है पर साईबर अपराधों के मामले में कोई जागरूकता नहीं फ़ैल रही है.जिस तेजी से साइबर तकनीक में निरंतर परिवर्तन हो रहा है उस अनुपात में हमारा साइबर अधिनियम पुराना हो चुका है . लोग इंटरनेट पर सुरक्षा संबंधी मुद्दों को जाने बगैर उसका इस्तेमाल धड़ल्ले से शुरू कर देते हैं फिर साइबर अपराध का शिकार हो जाते हैं महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 ई कॉमर्स को ध्यान में रख कर बनाया गया था. सोशल नेटवर्किंग साईट्स के बढते चलन से साइबर उत्पीडन और साइबर मानहानि जैसे मामले बढ़ रहे हैं पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 इन मुद्दों पर लगाम लगाने में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पा रहा है .भारत जैसे देश में जहाँ विकास में इंटरनेट एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है साइबर अपराधों के प्रति लोगों का जागरूक न होना एक खतरनाक स्थिति की ओर इशारा कर रहा है .साइबर अपराध के शिकार हुए ज्यादातर लोग अपराध दर्ज ही नहीं कराते हैं वहीं दूसरी ओर बड़े साइबर अपराधी भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर इस तरह के अपराधों को अंजाम देते हैं जिससे वे पुलिस के चंगुल में आसानी से नहीं आ पाते हैं  यद्यपि इंटरनेट को सुरक्षित स्थान बनाने के लिए विश्वव्यापी प्रयास किया जा रहा है, परन्तु सावधानी से श्रेष्ठ बचाव है ,वहीं सरकार को भी इस ओर ध्यान देने की जरुरत है जिससे ज्यादा प्रभावी साइबर क़ानून बनाया जा सके और लोग निश्चित होकर साइबर दुनिया में विचरण कर सकें .
 अमर उजाला में 20/12/11 को प्रकाशित 

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