आज के इस डिजीटल दौर में किसी भी देश की सुख समृद्घि इस बात पर निर्भर करती है कि वहां के नीति नियंताओं के पास कैसी विकास योजनाएं हैं. विकास योजनाओं के निर्धारण और क्रियान्वयन के लिए जरुरत होती है एक ऐसी दूर दूष्टिï की जो आने वाले सालों में सामने आने वाली चुनौतियों को भांप सकें. यह दूर दृष्टि उपलब्ध कराने में मददगार होते हैं आंकड़े. यूं तो आंकड़े महज कुछ गिनतियां हैं पर आंकड़े विकास में निवेश के प्राथमिक आधार हैं. बदलते समय के साथ ही आंकड़ों के भी विशेषीकरण पर जोर दिया गया और २०१० में आधार कार्ड योजना की शुरुआत हुई. अब तक 20 करोड़ लोग इसमें नाम पंजीकृत करा करा चुके हैं.2014 तक और 40 करोड़ लोगों के ब्यौरे इसमें दर्ज हो जाएंगे और उन सबको भी 12 अंकों वाली एक विशिष्ट पहचान संख्या दी जाएगी.
प्रारम्भ से ही इस योजना पर आलोचकों ने प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि ये सिर्फ समय और धन की बर्बादी है. इसके बाद भी योजना आगे बढ़ी, आलोचकों के प्रश्नों को दरकिनार नहीं किया जा सकता आम लोगों तक इस योजना की वास्तविक उपयोगिता नहीं पहुँची है इसे लोगों के निजता पर हमले के रूप में भी देखा जा रहा है .एकत्र किये गए आंकड़े की सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा है.अब तक योजना को लेकर किए जा रहे दावे और आपत्तियां बगैर आंकड़ों के कही जा रही थी पर आधार कार्ड की उपयोगिता के पक्ष में पहली बार कोई विशेषीकृत आंकड़े सामने आ रहे हैं. जो कुछ और ही कहानी ही कह रहे हैं. न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजऩेस के प्रोफेसर अरुण सुंदरराजन और यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के कार्लसन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर रवि बापना द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पहली यह तथ्य सामने आये हैं कि यह कार्यक्रम अपने उद्देश्य में सफल होता दिख रहा है. 2011 में 514,000 परिवारों पर भारतीय नेशनल काउंसिल फोर अप्लाइड इकॉनॉमिक रिसर्च (व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधा राष्ट्रीय परिषद) द्वारा किया यह सर्वेक्षण, यूआईडी के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, एक व्यापक बहु-वर्षीय अध्ययन का हिस्सा है.सर्वेक्षण में इस बात पर भी रोशनी डाली गई है कि आखिर किस राज्य में ये काम तीव्र गति से हो रहा है. इस कार्यक्रम के तहत नामांकित छप्पन प्रतिशत से ज्यादा लोगों के पास इससे पहले किसी तरह का कोई वैध पहचान पत्र जैसे पासपोर्ट, ड्राईविंग लाइसेंस या स्थायी लेखा संख्या कार्ड(पैन) नहीं था.इनमें से सत्तासी प्रतिशत परिवारों की आय दो हजार डॉलर प्रति वर्ष से कम है.यह आंकड़े इस बात की पुष्टि करते है कि भारत में निम्न आय वर्ग के लोगों के पास बेहतर पहचान दस्तावेज नहीं होते.जगह बदलने पर ऐसे लोगों को विभिन्न सरकारी योजनाओं का फायदा सिर्फ वैध पहचान पत्र न होने से नहीं मिल पाता.आधार कार्ड योजना से इस बात पर भी बल मिलता है कि भारत में बढते डिजीटल डिवाईड को आंकड़ों को डिजीटल करके और उसी अनुसार नीतियां बना कर पाटा जा सकता है तकनीक सिर्फ साधन संपन्न लोगों का जीवन स्तर नहीं बेहतर कर रही है.शोध के आंकड़े यह भी बताते है कि निम्न आय वर्ग के जिन लोगों के पास वैध पहचान पत्र नहीं हैं उनमें अशिक्षा की दर बाकी जनसंख्या के मुकाबले चौगुनी देखी जा रही है.सर्वेक्षण के अनुसार जो राज्य तकनीक के क्षेत्र में आगे हैं वो आधार कार्ड बांटने में भी आगे हैं उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश ने करीब 4 करोड़ तीस लाख यूआईडी जारी किए हैं जो किसी भी राज्य के मुकाबले सबसे ज्यादा है. इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर है जिसने 3 करोड़ 38 लाख कार्ड जारी किए हैं, 1 करोड़ 34 लाख के साथ तीसरे नंबर पर है लेकिन वो इन कार्डों को सबसे ज्यादा वंचित घरों तक पहुंचाने में पहले पायदान पर है.गौर तलब है कि आंध्र प्रदेश 2005 से ही बायोमेट्रिक राशन कार्ड जारी कर रहा है और कर्नाटक ने सबसे पहले भूमि रिकॉर्ड के डिजीटलीकरण की शुरुवात की थी .इस पूरे सर्वेक्षण से एक बात तो पूरी तरह से साफ हो जाती है कि आधार योजना को फालतू बताकर इसपर निवेश को निराधार बताने वाले स्वयं तथ्यपरक नही हैं. कार्ड को लेकर किए जाने वाले दावों में से अगर आधे परिणाम भी मिले तो रोजगार गारंटी कार्यक्रम, सार्वजनिक वितरण प्रणाली समेत सरकार की ओर से चल रही तमाम योजनाओं के फायदों को लक्षित समूह तक पहुंचाने की प्रक्रिया में तेजी आ सकेगी और पारदर्शिता भी बढ़ेगी. साथ ही योजना के पूरे होने पर देश के पास डिजिटल आंकडों का एक बृहद स्रोत होगा जिसके अनुसार दूरगामी योजनाओं के निर्धारण में अधिक सटीक आंकलन किया जा सकेगा. इन आंकडों के इस्तेमाल से कुछ और फायदे भी होंगे मसलन देश के प्रत्येक नागरिक को देश भर में कहीं भी एक एकीकृत व्यवस्था के अनुसार तमाम सरकारी फायदे तो मिलेंगे ही देश में अवैध घुसपैठ जैसी समस्या से भी निपटा जा सकेगा. पर ऐसा होगा तभी जब योजना को इसके अंजाम तक पहुचाने में देरी न की जाए. ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार आधार कार्ड योजना पर एक सकारात्मक दृष्किोण बनाए रखेगी. भारत में विशिष्ट पहचान (यूआईडी) योजना की शुरुआत दो साल पहले हुई और अब तक 20 करोड़ लोग इसमें अपना ब्यौरा दर्ज करा चुके हैं.2014 तक और 40 करोड़ लोगों के ब्यौरे इसमें दर्ज हो जाएंगे और उन सबको भी 12 अंकों वाली एक विशिष्ठ पहचान संख्या दी जाएगी.ये सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि ये योजना अपने लक्ष्यों को हासिल करेगी या अन्य सरकारी योजनाओं की तरह ये भी सामान्य ज्ञान के प्रश्नों का महज़ हिस्सा भर रह जायेगी .
अमरउजाला कॉम्पैक्ट में 14/06/12 को प्रकाशित मेरा लेख
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