देश की आजादी के पैंसठवें साल के दिन दो ख़बरें एक साथ आयीं पहली कि कनाडा की नॉर्थन ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के डी अजित, हान डोंकर और रवि सक्सेना ने एक हजार निजी और सरकारी शीर्ष भारतीय कंपनियों के बोर्ड सदस्यों का अध्ययन किया है. अध्ययन में पाया गया कि 93 प्रतिशत बोर्ड सदस्य अगड़ी जातियों से थे जबकि अन्य पिछड़ी जातियों से सिर्फ़ 3.8 प्रतिशत निदेशक ही थे|साठ के दशक से आरक्षण नीति होने के बावजूद अनुसूचित जाति और जनजाति के निदेशक इस कड़ी में सबसे नीचे, 3.5 प्रतिशत हीथे|शोधकर्ताओं के मुताबिक, ये नतीजे दिखाते हैं कि भारतीय कॉरपोरेट जगत एक छोटी और सीमित दुनिया है जहाँ भारत की विविधता नहीं दिखती | भारतीय कॉरपोरेट घराने अब भी योग्यता या अनुभव से ज़्यादा जाति के आधार पर काम करते है|दूसरी खबर एक टीवी चैनल द्वारा महात्मा गांधी के बाद महानतम भारतीय चुनने की प्रतियोगिता में लोगों ने करीब दो करोड़ वोट देकर डॉ भीम राव आंबेडकर को चुना|ग्रेटस्ट इंडियन की इंटरनेट और मोबाइल से हो रही वोटिंग में बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर को इतने वोट सिर्फ दलितों की वजह से नहीं मिल सकते|बाबा साहब का महानतम भारतीय के रूप में चुना जाना उनके दलित होने के कारण और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है| आजादी के पैंसठ साल बाद बाबा बगैर राजनैतिक हस्तक्षेप के बाबा साहब को महानतम भारतीय का दर्जा दिया जा रहा है तो यह बताता है कि देश सामजिक रूप से बदल रहा है | अगर यही सर्वेक्षण आज से बीस साल पहले हुआ होता तो बाबा साहब को इतने वोट कभी नहीं मिलते |इस परिणाम के कई निहितार्थ हैं इससे ये तथ्य स्थापित होता है कि सूचना क्रांति के फल का असर धीरे धीरे ही सही समाज में हो रहा है| इन्टरनेट और मोबाईल के इस्तेमाल में जातिगत दुराग्रह कम हैं और ऐसी प्रतियोगिताओं में भाग लेने वाले भारतीय मध्यवर्ग की मानसिकता बदली है|मोबाईल के रूप में समाज के हाशिए पर रही जनसँख्या को एक ऐसा हथियार मिला जिसका इस्तेमाल वो अपनी राय देने में कर सकता है|इंटरनेट और मोबाईल देश में सामाजिक आर्थिक स्तर पर हो रहे बदलाव के नए वाहक बन कर उभरे हैं जिसकी पुष्टि मैककिन्सी ऐंड कंपनी द्वारा की जारी की गयी एक रिपोर्ट करती है कि साल 2015 तक भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद तिगुनी हो कर पैंतीस करोड से भी ज्यादा हो जाएगी। जिसमे बड़ी भूमिका मोबाईल फोन निभाने वाले हैं | इंटरनेट के लिए कंप्यूटर की निर्भरता को कम कर देंगे बाबा साहब सिर्फ दलितों के ही नेता नहीं थे और मध्यवर्ग महज शहरी सवर्णों का जुटान नहीं रहा, इसमें पिछड़ी और दलित जातियों का भी बड़ी तादाद में प्रवेश हुआ है। एक ऐसा देश जहाँ आजादी के बाद नायकों की तलाश सिर्फ क्रिकेट खिलाडियों और बोलीवुड के नायकों पर खत्म हो जाती थी वहां बाबा साहब जैसे“मूकनायक” को लोग देश का वास्तविक नायक करार दे रहे हैं तो इसके कारणों की जांच पड़ताल आवश्यक है |जाति व्यवस्था इस देश का सच है और कनाडा की नॉर्थन ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय कंपनियों के बोर्ड सदस्यों का अध्ययन इस बात की पुष्टि भी करता है कि अभी भी संसाधनों का बंटवारा उचित रूप से नहीं हुआ है फिर भी बाबा साहब द्वारा दलितों के सामजिक उत्थान के लिए गए प्रयासों के कारण आज का मध्यवर्ग सामाजिक रूप से ज्यादा विविधता लिए हुए है जो कथित तौर पर कुछ सवर्ण जातियों का समूह नहीं है आरक्षण व्यवस्था से देश के मध्य वर्ग में बदलाव हुए हैं जिसमे दलित और अन्य पिछड़े वर्ग की जातियों का बड़े पैमाने पर प्रवेश हुआ है | वहीं राजनैतिक रूप से दलित बहुजन पिछले बीस वर्षों में सशक्त बनकर उभरे हैं |उत्तर प्रदेश और बिहार में यह बदलाव साफ़ तौर पर देखा जा सकता है |उन्हें इस बात का एहसास हुआ है कि लोकतंत्र में संख्या बल के मायने हैं और वे अपनी हिस्सेदारी सत्ता में तभी बढ़ा सकते है जब अपनी भागीदारी को बढ़ाएं|इस बदलाव को पीछे एक बड़ी भूमिका भारत में हो रही सूचना क्रांति की है| कोई भी तकनीक प्रयोग के सापेक्ष होती है जिसका इस्तेमाल प्रयोगकर्ता की मानसिकता पर निर्भर है|मानसिकता निर्माण में बड़ी भूमिका शिक्षा की होती है जिससे जागरूकता आती है |सूचना की नयी तकनीकों में जिसमे इंटरनेट अव्वल है इस प्रक्रिया को कई गुना तेज कर दिया है| बदलाव तो निश्चित तौर पर हो रहा है|फेसबुक जैसी कई सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर कई दलित चिन्तक सामाजिक मुद्दों पर ज्यादा बेबाकी से अपनी राय रख पा रहे हैं जाहिर तौर पर उन विचारों से बाबा साहब का दर्शन ज्यादा लोगों तक कम समय में पहुँच पा रहा है| ये इस बात का भी सुबूत है डा.अंबेडकर के पक्ष में कथित सवर्ण जातियों में जन्में लोगों का भी एक तबका खुलकर हाथ उठा रहा है|ये बाबा साहब के देखे गए एक सपने के सच होने की कहानी है उन्होंने दलितों से कहा था "शिक्षित हो संघर्ष करो आगे बढ़ो"
इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाले जिन युवाओं के बारे में यह आम धारणा बना ली जाती है कि वह देश की जड़ों से कटे शहरी इलीट हैं जिन्हें देश के इतिहास और अपने महापुरुषों के योगदान की जानकारी नहीं है,इस पोल ने उस मिथक को भी तोडा है अगर ऐसा होता तो वह आंबेडकर को चुनने की बजाय ऐसे लोगों को वोट करते जो कई वजहों से समाचार माध्यमों में छाये रहते हैं या ऐसे लोगों का चुनाव होता जो ज्यादा सामयिक हैं जैसे डॉ कलाम ,जवाहरलाल नेहरू ,इंदिरागांधी या मदर टेरसा पर बाबा साहब आंबेडकर के चुनाव से यह साफ़ हो जाता है कि देश का पढ़ा लिखा शिक्षित तबका इतिहास की भी जानकारी रखता है और ऐतिहासिक पुरुषों के योगदान का भी. इन्टरनेट इस्तेमाल करने वाले ये सभी साक्षर हैं और सही गलत का निर्णय करने में सक्षम हैं. सर्वेक्षण का एक सुखद पहलू यह भी है कि इंटरनेट के बढते इस्तेमाल से हम पुरातन सोच को बदल रहे है और तकनीकी का इस्तेमाल रूढ़ियों को कम करने में काफी मददगार है. इन्टरनेट का इस्तेमाल सामाजिक एकीकरण में तो अहम् भूमिका निभा ही रहा है लोगों में हमारे इतिहास और और ऐतिहासिक पुरुषों के बारे में भी जागरूक कर रहा है|फिर भी हमारी सामजिक संरचना में आ रहे ये बदलाव सिर्फ उम्मीद ही जगाते हैं क्योंकि जमीनी स्तर पर अभी भी बहुत कुछ किया जाना और होना दोनों बाकी है पर फिर भी चिंतन और चेतना में आ रहा ये बदलाव स्वागतयोग्य है|
नेशनल दुनिया में 21/08/12 में प्रकाशित
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