Monday, August 13, 2012

Factual Entertainment


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जिंदगी में अगर इंटरटेन्मेंट ना हो तो लाईफ कितनी बोरिंग हो जायेगी इंटरटेन्मेंट बोले तो चिल करना ,फिल्म देखना ,नेट सर्फ़ करना और कुछ नहीं तो टीवी देखना |क्यों सच कहा ना टीवी देखना सबसे कॉमन तरीका है इंटरटेन् होने का इसीलिये तो टीवी को बुद्धू बक्सा कहा जाता है पर अब ये बुद्धू बक्सा इंटेलिजेंट हो गया है|मुझे पता है आपका वक्त कीमती है आप मेरे लेख को यूँ ही नहीं पढेंगे तो मैं कुछ ऐसा बता रहा हूँ जो आप जान तो रहे हैं पर मान नहीं रहे है देखिये इंटरटेन्मेंट एक रिस्पेक्तिव टर्म है अलग अलग समय पर लोग इंटरटेन्मेंट के नए नए तरीके निकालते रहे हैं पिछले बीस सालों से हम इंसानी रिश्ते परिवारों की आपसी उठा पटक को देख कर खुश होते रहे पर इन बीस सालों में दुनिया कितनी बदल गयी टेक्नॉलाजी हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन  गयी और यांगिस्तानियों की एक नयी फ़ौज दर्शक बन गयी जिसे चीजों के बारे में जानने का शौक है जीवन को समझने की चाह और इसीलिये टीवी इन्फोटेनमेंट से फैक्चुअल इंटरटेन्मेंट की तरफ बढ़ चला जहाँ कोई फंतासी नहीं है जीवन की सच्ची कहानियां हैं टीवी ज्ञान दे रहा है हमें अवेयर कर रहा है|है जिसमे वास्तविक तथ्यों को मनोरंजक बना कर प्रस्तुत किया जा रहा है|जो समाचार और वृतचित्रों का मिला जुला रूप है| जहाँ इतिहास जीवंत हो रहा है और वर्तमान को भविष्य के लिए संजोया जा रहा है |इस तरह के कार्यक्रम डिस्कवरी,हिस्ट्री,फोक्स,एनीमल प्लैनेट  जैसे चैनलों पर प्रमुखता से दिखाया जा रहे हैकुछ ट्रक ड्राईवर दुनिया की दुर्गम सड़कों पर ट्रक चला रहे हैं तो कहीं हाथ से मछली पकड़ने की होड लगी,कहीं एक युवक सुपर मानवों की तलाश में दुनिया का चक्कर काट रहा है,कहीं एक यात्री दुनिया के अलग अलग देशों में अलग अलग व्यापार कर यात्रा के पैसे जुटा रहा है |हमारे आस पास के जीवन में इतना मनोरजन होगा किसी ने सोचा ना था|कार्यक्रमों में नए कंटेंट के लिए बस अपने आस पास कुछ ऐसा खोजना है जो आपके आस पास हो पर आप उसकी अहमियत ना समझ रहे हों बस अपने ओब्सर्वेशन को कीन करना है |भारत में कितने लोग डेली पैसेंजर हैं जिनके जीवन का आधे से ज्यादा हिस्सा अपने काम के सिलसिले में ट्रेन में बीतता है कितनी कहानी रोज जन्म लेती हैं कितने झूठे सच्चे वायदे किये जाते हैं कोई अपनी पत्नी की बेरुखी की समस्या बता कर अपनी महिला मित्र से संवेदना बटोर रहा होता कोई उस दिन का इन्तजार जब वो इस ट्रेन पकड़ने छोड़ने के सिलसिले से मुक्त हो जाएगा, है ना मजेदार अब कथाक्रम को धारावाहिक बना टीवी पर दिखाया जाएगा जिसमे सबकुछ असली होगा तो यांगिस्तानियों को डायरेक्ट दिल से मजा आएगा
आई नेक्स्ट में 13/08/12 को प्रकाशित  

4 comments:

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

Sachmuch zamana badal raha hai.

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कितनी बदल रही है हिन्‍दी !

वृजेश सिंह said...

मुकुल जी आपके, लेख का आखिरी हिस्सा कि रोज कितनी कहानियां बनती बिगड़ती है। लोग मन बहलाने के लिए क्या-क्या तरीके आजमाते हैं..बेहद पसंद आया।
कहानियों और सीरियलों से लेकर टेलीविजन पर परोसे जाने वाले कंटेंट में भारी बदलाव हो रहा है। लेकिन अधिकतर कार्यक्रम बाहरी दुनिया को हमारे सामने परोसते हैं।
भारत में कितना कुछ हो रहा है। इतनी विविधता है। उसको संबोधित करने वाले कार्यक्रमों का पर्याप्त अभाव दिखाई देता है। शुक्रिया आपके लेख के लिए।

नुक्कड़वाली गली से... said...

sahi kaha sir entertainment ke mayne badal rahe hain

creatively sarcastic said...

Wakai main t.v aagaya hai family ke liye time hi nhi bachta aaj kal log internet pe to chat kr sakte hai pr ghar aae mehman se nhi ....ajeeb hai
-Rajsi swaroop

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