Saturday, July 6, 2013

कुछ अपने लिए (दौ सौवीं पोस्ट )

जिंदगी रोज नए रंग दिखती है वो कभी हमें खिलाती है और कभी हम से खेलती है तो ऐसे ही खेल का हिस्सा बने हम चले जा रहे हैं लोग मिलते हैं बिछड़ते हैं इसी का नाम जीवन है वैसे भी मेरे जीवन में प्लानिंग से कभी कुछ नहीं हुआ बस जो कुछ हुआ वो होता चला गया जिंदगी ने अच्छा दिया उसे भी स्वीकारा और बुरा भी मैंने जिंदगी से  चाहे कुछ सीखा हो या न सीखा हो पर एक बात सीखी है जो भी काम मिले उसमें अपने आपको झोंक दो और किसी काम को हल्का मत मानो और शायद इसी से तनाव लेने की आदत पड़ गयी है,तो लिखना अपने आप में एक बड़ा तनाव का काम है| मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं (ज्यादातर विद्यार्थी मैं इतना बड़ा लेखक नहीं हूँ कि लोग राह चलते पूछे कि भैया लिखा कैसे जाता है )कि आप लिखते कैसे हैं विचार कैसे आते हैं अब मेरे पास इसका कोई जवाब नहीं है सच तो ये है कि सारा खेल तनाव बोले तो स्ट्रेस का है बस हमेशा देखते रहिये और  सोचते रहिये अच्छा बुरा ऐसा क्यूँ, वैसा क्यूँ नहीं यानि देखते वक्त सोचते रहिये और सोचते वक्त देखते रहिये फिर देखिये आपके पास एक से एक विचार आयेंगे |पर ये सब इतना आसान नहीं है जितना आसानी से मैंने लिख दिया और अगर आप ऐसा करने लग जायेंगे तो सामाजिक रूप से आपके बहिष्कृत होने का खतरा बना रहेगा क्यूंकि आपको किसी काम में आनंद नहीं आएगा यानि आप जिंदगी का सही मायने में लुत्फ़ नहीं उठा पायेंगे जैसा कि अमूमन लोग करते हैं| कुछ बीमारी और अन्य कार्यों के कारण मैं फेसबुक से कुछ दिनों के लिए दूर हो गया कुछ न लिखना न पढ़ना बस देखना और सोचना बस तभी ख्याल आया कि जब नया स्मार्ट फोन लिया था तब दुनिया भर के एप्स डाउन लोड किये थे पर उनका लुत्फ़ नहीं उठा पाया जिंदगी की प्राथमिकताएं बदल चुकी थी और हम स्माईली और स्टीकर का इस्तेमाल नहीं सीख पाए हम ये नहीं बता सकते कि अपना ख्याल रखियेगा,कैसे हैं  जो अपने हैं उनका ख्याल रखा जाता है जताया नहीं जाता मिनट मिनट पर तस्वीरें खींच कर किस् से शेयर करता पर मेरे आस पास ऐसा बहुत कुछ हो रहा था और जब कुछ होता है तो उसका कोई कारण जरुर होता है बस मैंने खोजना शुरू किया तो बहुत से आंकड़े मिले जिनसे ये साबित हुआ कि स्थिर चित्र आजकल बोल रहे हैं खूब बोल रहे हैं स्मार्ट फोन के जरिये बस मिल गया एक लेख का मामला ऐसे ही एक बार किसी सिलसिले में कोर्ट जाना हुआ वहां कि भीड़ और व्यवस्था देखकर लगा आखिर ऐसा क्यूँ है तो पता पड़ा कि हमारी न्याय व्यवस्था पर कितना बोझ है तो ये तो कुछ बानगी है वैसे जो कुछ में लिख रहा होता हूँ सब हमारे आस पास या तो घटा होता है या घट रहा होता |जिंदगी कब कारवां बन जायेगी सोचा ना था जब ब्लॉग बनाया था तो कभी सोचा ना था कि दौ सौ पोस्ट तक पहुंचूंगा में मानता हूँ कि आज के ज़माने में ये इतना बड़ा आंकड़ा भी नहीं है पर दिल के खुश रखने को ये ख्याल अच्छा है तो जो लिखता हूँ बस अपने आप के लिए लिखता हूँ |ये प्रश्न अक्सर मेरे दिमाग में उठता है कि में क्यूँ लिखता हूँ और जो जवाब मिला वो अपने आप में एक कच्ची कविता के रूप में  आपसे साझा कर ले रहा हूँ 
सुनो 
मैं क्यूँ लिखता हूँ
भोली आशा 
घोर निराशा 
जीवन के हर कण को
मैं क्यूँ बिनता हूँ 
हार जीत के सपने को

सुख दुःख के ठगने को 
मैं क्यूँ चुनता हूँ
सवाल कई हैं जवाब नहीं हैं
क्यूँ गिरता हूँ और सम्हलता हूँ 
मैं क्यूँ लिखता हूँ 
मन के सूनेपन को 
जीवन के आलम्बन  को 
क्यूँ सहेजता चलता हूँ 
तुम भी वही हो 
मैं भी वही हूँ 
फिर दुनिया मेरी क्यूँ 
बदल रही है 
बताओ तो जरा 
मैं क्यूँ लिखता हूँ ........... 
उन सभी का शुक्रिया जो मेरी जिंदगी का हिस्सा बनें उनमें  कुछ बहुत कुछ ले गए और कुछ बहुत कुछ दे गए और इसी आदान प्रदान में जो कुछ दिमाग में आया वो लिखता गया 
किसी के लिए नहीं सिर्फ अपने लिए 

6 comments:

Sunil Kant Mishra said...

aap ne jo b apne liye likha h bht achha likha h......maine ye panktiyan padi to bht apni lagin...very nice

Mukul said...

शुक्रिया सुनील जी आपका

मैं आज़ाद हूं said...

sir, yu he nirantar likhte rahiye kyki jb kuch achcha padhne ko milega to shayad hm bhi kuch likh sakenge

Bhawna Tewari said...

sir... ye to vastviktaa h ki likhna aapse hi sikhaa h shi mayne mein..
is saunvi post k liye aapko nahin khud ko badhai dena chahti hu, aakhir aapk sath 5 saalon se judne ka anubhav mila h.

bs thank u bolna h aapko..

Unknown said...

tum kaha pahuch gaye sadav esi esi tarah bulandion ko choote raho esme sbse achhi line tum bhi vahi ma bhi vahi fir dunia kyo badal gae




Unknown said...

likhne ko to koi b likh sakta hai magar jaroori nhi ki hm jo likhey wahi duniya padhna chahe..kuch log likhtey hai duniya ko pdhane k liye kuch likhtey hai apne mann ki baat jo wo bolkr nhi bta sktey...jb kahi ek sapna toota hai ya koi dil toota hai wahi ek kahaani ya ek gazal sunne ko mil jti hai.. aise log jab likhtey hai to wo kalam ki takat ke saath apni bhwanao ko aisa motiyo ki malaa ke tarah pirotey hai jisey pdhkr hr kisiko apni kahaniyaa ya apna koi kissa yaad aa jta hai....wo lekh dil ko andar tk choota hai..jisey hr koi pdhna chahta hai...

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