Thursday, November 28, 2013

बढ़ते ई कचरे से निपटने की चुनौती

सूचना क्रांति के इस युग में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। मोबाइल,कम्प्युटर, लैपटॉप, टैबलेट, आदि अब आधुनिक मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं। पर इन आधुनिक उपकरणों के साथ ई-कचरे के रूप में एक बड़ी समस्या भी हमारे सामने आ खड़ी हुई है। ई-कचरे के अंतर्गत वे सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार, के अनुसार ई-कचरे से तात्पर्य उन सभी इलैक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, पूर्ण अथवा टुकड़ों मेंतथा उनके उत्पादन और मरम्मत के दौरान निकले उन पदार्थों से, जो कि अनुपयोगी हैं, से है। विगत कुछ वर्षों में ई-कचरे की मात्रा में लगातार तीव्र वृद्धि हो रही है और प्रतिवर्ष लगभग 20 से 50 मीट्रिक टन ई-कचरा विश्व भर फेंका जा रहा है। ग्रीनपीस संस्था के अनुसार ई-कचरा विश्व भर में उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे का लगभग पाँच प्रतिशत है। साथ ही विभिन्न प्रकार के ठोस कचरे में सबसे तेज़ वृद्धि दर ई-कचरे में ही देखी जा रही है क्योंकि लोग अब अपने टेलिविजन,कम्प्युटर, मोबाइल, प्रिंटर आदि को पहले से अधिक जल्दी बदलने लगे है। इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत पैदा हो रही है कम्प्युटर और मोबाइल से क्योंकि इनका तकनीकी विकास इतनी तीव्र गति से हो रहा है कि ये बहुत ही कम समय में पुराने हो जाते हैं और इन्हें जल्दी बदलना पड़ता है। भविष्य में ई-कचरे की समस्या कितनी विकराल हो सकती है इस बात का अंदाज़ा इन कुछ तथ्यों के माध्यम से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में विकसित देशों में कम्प्युटर और मोबाइल उपकरणों की औसत आयु घट कर मात्र दो  साल रह गई है। भारत में ट्राई की एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 90 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं और यदि इसमें कम्प्युटर उपभोक्ताओं की भी संख्या जोड़ दी जाये तो हम आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं की आने वाले वर्षों में ई-कचरे की समस्या कितनी भयावह होने वाली है। एसोचैम के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 30,000 मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा होता है और इसमें लगभग 25 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है। एसोचैम का अनुमान है की वर्ष 2015 तक आते-आते यह मात्रा तकरीबन 50,000 मीट्रिक टन प्रतिवर्ष हो जाएगी। घटते दामों और बढ़ती क्र्य शक्ति के फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे मोबाइल, टीवी, कम्प्युटर, आदि की संख्या और प्रतिस्थापना दर में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है|जिससे निकला ई कचरा सम्पूर्ण विश्व में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है|भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा और जागरूकता का अभाव है वहां सस्ती तकनीक ई कचरे जैसी समस्याएं ला रही है|
घरेलू ई-कचरे जैसे अनुपयोगी टीवी और रेफ्रिजरेटर में लगभग 1000 विषैले पदार्थ होते हैं जो मिट्टी एवं भू-जल को प्रदूषित करते हैं। इन पदार्थों के संपर्क में आने पर सरदर्द, कै, मतली, आँखों में दर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। ई-कचरा हमारे एवं हमारे वातावरण के लिए अत्यंत हानिकारक हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रण एवं निस्तारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने ई-कचरे के प्रबंधन के लिए विस्तृत नियम बनाए हैं जो कि मई 2012 से प्रभाव में आ गए हैं। ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन नियम) 2011 के अंतर्गत ई-कचरे के पुनर्चक्रण एवं निस्तारण के लिए विस्तृत निर्देश दिये गए हैं। हालांकि इन दिशा निर्देशों का पालन किस सीमा तक किया जा रहा है यह कह पाना कठिन है। जानकारी के अभाव में ई-कचरे के शमन में लगे लोग कई  प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त  हो रहे हैं। अकेले दिल्ली में ही एशिया का लगभग 85 प्रतिशत ई-कचरा शमन के लिए आता है परंतु इसके निस्तारण के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है। आवश्यक जानकारी एवं सुविधाओं के अभाव में न केवल ई-कचरे के निस्तारण में लगे लोग न केवल अपने स्वास्थ्य को  नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर  रहे हैं। ई-कचरे में कई जहरीले और खतरनाक रसायन तथा अन्य पदार्थ जैसे सीसा, कांसा, पारा,कैडमियम आदि शामिल होते हैं जो  उचित शमन प्रणाली के अभाव में पर्यवरण के लिए काफी खतरा पैदा करते हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने ई-कचरे के केवल 5 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण कर पाता है।
ई-कचरे के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उत्पादक, उपभोक्ता एवं सरकार की सम्मिलित हिस्सेदारी होनी चाहिए । उत्पादक की ज़िम्मेदारी है कि वह कम से कम हानिकारक पदार्थों का प्रयोग करें एवं ई-कचरे के प्रशमन का उचित प्रबंधन करें,उपभोक्ता की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे को इधर उधर न फेंक कर उसे पुनर्चक्रण के लिए उचित संस्था को दें तथा सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे के प्रबंधन के ठोस और व्यावहारिक नियम बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करे.
अमर उजाला में 28/11/13 को प्रकाशित 

Tuesday, November 26, 2013

कन्फ्यूजन जी कन्फ्यूजन है

                 
टू बी ऑर नॉट टू बी हालांकि ये लाइन है तो एक विश्व प्रसिद्ध नाटक की पर मामला तो हमारी लाईफ से ही जुड़ा हुआ है.मेरे एक परिचित हैं जो कभी मुझसे बुरी तरह लड़कर अलग हो गए थे  अरसे बाद फिर लौटे हैं और मैं बहुत कन्फ्यूज हूँ कि क्या करूँ.यानि टू बी ऑर नॉट टू बी. कन्फ्यूजन बोलो तो संशय या अनिर्णय की स्थिति. मुझसे अक्सर लोग सलाह मांगते हैं और तब मुझे बड़ी परेशानी होती है की क्या मुझे वाकई सलाह देनी चाहिए ? हमारे एक मित्र एक शहर में अकेले रहते हैं एक दिन उन्होंने मुझसे सलाह माँगी कि वो मकान बदलना चाहते हैं.मैंने पूछा क्यूँ तो वो बोले कि उन्हें बहुत अकेलापन लगता है.मैंने कहा ठीक है अपने किसी दोस्त के साथ रह लो या किसी ऐसी जगह मकान ले लो जहाँ आपके परिचित रहते हों तब उनका जवाब था उन्हें ज्यादा दुलार पसंद नहीं है.जाहिर है वो कन्फ्यूज्ड हैं.वैसे भी कन्फ्यूजन एक ऐसी समस्या है जिसका इलाज समय रहते नहीं किया गया तो इसका सीधा असर हमारी पर्सनाल्टी पर पड़ता है.लेक्चर से आप बोर होते हैं और ज्ञान का खर्रा आपको और कन्फ्यूज करता है तो मैं जो कुछ कहूँगा वो आपकी लाईफ से ही रिलेट कर के कहूँगा.
जिन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर हम कन्फ्यूजन का शिकार जरुर होते हैं.कभी रिश्तों में कभी करियर में तो कभी अपनी लाईफ में अक्सर ऐसा होता है और हमें कुछ समझ में नहीं आता कि किया क्या जाए.करियर में आपका इंटरेस्ट तो टीचिंग में है पर पेरेंट्स चाहते हैं कि आप  रेडियो में अपना करियर बनायें.शादी अपनी मर्जी से करना चाहते हैं पर पेरेंट्स को परेशानी होगी .चैटिंग से पढ़ाई में डिस्टर्बेंस होता है पर चैटिंग किये बिना हम रह भी नहीं पाते,वगैरह वगैरह वैसे आजकल स्टेटस अपडेट करने में भी कन्फ्यूजन हो जाता है,क्यूँ होता है न आपके साथ भी, जैसे जैसे जिंदगी आगे बढ़ती है वैसे हमारे कन्फ्यूजन का दायरा भी बढ़ता जाता है.
 बचपने में टॉफी खाई जाए या चॉकलेट तो टीनएज में कौन सा कपडा पहना जाए और फिर जवानी में रिश्ते से लेकर करियर तक न जाने कितने सवाल रोज परेशान करते हैं.क्या करूँ क्या न करूँ है कैसी मुश्किल है भाई.फेसबुक पर भी जब आपको कुछ नहीं समझ आता तो आप भी हम्मम्मम्म कर के रह जाते हैं.ये हम्मम्मम्म का मामला वाकई बड़ा कन्फयूजिंग है,इसका कोई न कोई  सल्यूशन तो होना चाहिए अब कन्फ्यूजन के सल्यूशन की तलाश में अगर किसी से सलाह मांगेंगे और उस पर अमल नहीं करेंगे तो सल्यूशन कैसे निकलेगा.अब ऐसा होता ही क्यूँ है.चलिए इस कन्फ्यूजन को दूर ही कर दिया जाए.कन्फ्यूजन अगर है तो उससे निपटने के दो रास्ते हैं पहला किसी की राय ले ली जाए पर अक्सर होता है कि लोग इतने लोगों से राय ले लेते हैं कि कन्फ्यूजन घटने की बजाय और बढ़ जाता है.ज्यादा लोगों से राय लेने का मतलब ये भी है कि आप जिससे सलाह ले रहे हैं उस पर आपको पूरा भरोसा नहीं है.जब भरोसा नहीं है तो सलाह लेने का क्या फायदा  और अगर सलाह ले रहे हैं  तो उसे मानना चाहिए.बार बार सलाह लेकर अगर आप मानेंगे नहीं तो कोई भी आपको सही सलाह नहीं देगा क्यूंकि उसे पता है कि आप किसी और के पास इस मुद्दे पर राय लेने जायेंगे.दूसरा तरीका है शांत दिमाग से उस समस्या के बारे में सोचा जाए जिसमें आपको कन्फ्यूजन है फिर अपनी लिमिटेशन को ध्यान में रखते हुए अपना आंकलन किया जाए और तब कोई निर्णय लिया जाए पर इसके लिए पहले आपको अपने आप पर पूरा भरोसा होना चाहिए क्यूंकि अपने निर्णय के लिए आप खुद जिम्मेदार होंगे वैसे जिन्दगी में फेसबुक स्टेटस अपडेट की तरह एडिट का कोई ऑप्शन नहीं होता जो बीत जाता है वो बीत ही जाता है.जब भी कभी कोई कन्फ्यूजन हो तो उससे आप ही अपने आप को बाहर निकाल सकते हैं चाहे किसी की सलाह लेकर या अपने आप पर भरोसा रखकर.
                  समझे क्या तो मैंने तो आपका कन्फ्यूजन दूर कर दिया है पर मैं अभी तक कन्फ्यूज्ड हूँ कि अपने उस दोस्त से फिर से दोस्ती करूँ या न करूँ तो आप क्या कहते हैं वैसे जो आप कहेंगे उसे मैं मानूंगा क्यूंकि मैं आप पर भरोसा करता हूँ .
आईनेक्स्ट में 26/11/13 को प्रकाशित 

Friday, November 8, 2013

ताकि बनी रहे रिश्तों में गर्माहट

अच्छा आपकी कभी कोई चीज खोयी है.हाँ खोयी तो होगी ही और उसके खोने का गम भी हुआ होगा.अच्छा कभी आपने सोचा कि हम किस चीज से ज्यादा डरते हैं सोचिये सोचिये जी हाँ कुछ खोने से चाहे वो लोग हों रिश्ते हों या चीजें पर ये एक ऐसा दर्द है जिसे जिंदगी के किसी न किसी मोड पर सबको भोगना ही पड़ता है.देखिये जिंदगी हैं इतना कुछ डेली सिखाती है पर हम ध्यान नहीं देते.खोना बुरा है पर अगर हम कुछ खोयेंगे नहीं तो पाने के सुख का एहसास नहीं कर पायेंगे और जो चीजें हमारे आस पास हैं उनकी कीमत नहीं समझ पायेंगे.अब जिंदगी का सबसे बड़ा सच तो मौत है. अरे हम थोड़ी न कह रहे हैं फिल्म मुकद्दर का सिकंदर ये गाना तो आप सबको याद ही होगा “जिंदगी तो बेवफा है एक दिन ठुकराएगी मौत महबूबा है मेरी साथ लेकर जायेगी”.फिर भी हम हैं कि मानते नहीं एक दम दिल है कि मानता नहीं टाईप भाई आप सबको खोने के दुःख का एहसास है पर जो चीजें हमारे पास हैं क्या हम उनकी कद्र करते हैं चीजों से मेरा मतलब सिर्फ मेटीरियल्सटिक नहीं है. वो आपने सुना तो  होगा न टेकेन फॉर ग्रांटेड वो हम अपने करीबी रिश्तों पर कितना मजबूती से एप्लाई कर देते हैं.अरे वो तो मेरा दोस्त है और न जाने क्या क्या पर जरा सोचिये जब ये रिश्ते न होंगे वो इंसान न होगा तब आप कैसा महसूस करेंगे.यानि जो तेरा है वो तेरा है और जो मेरा है वो मेरा है फिर रिश्ता चलेगा क्या? यानि रिश्ते भी लेन देन पर ही चलते हैं.भले ही वो लेन देन मेटीरियल्सटिक न हो पर आप किसी रिश्ते में तभी रहते हैं जब आपको कुछ अच्छा लगता है और फिर क्या उस एहसास को जीने के लिए आप कुछ भी कर सकते हैं तो ये टू वे प्रोसेस हुआ न. अब आप अगर ये मान कर चलें कि ये तो उसका फ़र्ज़ है क्यूंकि वो तो आपका फलां है तो आपको क्या लगता है कि रिश्ता चलेगा बिलकुल नहीं वो ढोया जाएगा .हम तो भैया जिंदगी से ही सीखते हैं ठण्ड या तो मौसम में अच्छी लगती है या दिमाग में बाकी सब जगह तो गर्मी का ही बोलबाला है तो रिश्ते गर्मी के एहसास  से ही चलते हैंजिससे अपनेपन की इनर्जी मिलती है तो  उनको टेकेन फॉर ग्रांटेड नहीं लिया जा सकता है और अगर आप ऐसा  किसी रिश्ते के साथ  कर रहे हैं तो समझ लीजिए कि आप जल्दी ही फिर कुछ खोने वाले हैं जिसका दर्द आपको जीवन भर परेशान करेगा  मेटीरियल्सटिक चीजें खोती हैं तो उनका सबस्टीयूट मार्केट में मिल जाएगा पर अगर आपने कोई रिश्ता खोया तो उसका सबस्टीयूट किसी दूकान बाजार में नहीं मिलेगा. हम थोड़ी न कह रहे हैं अरे ये गाना भी तो यही कह रहा है कि “जिंदगी के सफर में बिछड जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते” साईंस ने बहुत तरक्की कर ली है पर खोये हुए रिश्ते और बिछड़े लोग दुबारा जीवन में उसी रूप में नहीं आते आप फिर मेरी बात नहीं मानेंगे तो हम कहाँ कह रहे हैं रहीम दास जी ने लिखा था “रहिमन धागा प्रेम का मत तोडो चटकाय,टूटे से फिर न जुड़े,जुड़े गाँठ पड़ जाए”मौसम में ठंडी का मजा लीजिए पर रिश्तों की गर्मी को बचा कर रखिये पर ये कहना जितना आसान करना उतना ही मुश्किल रिश्तों की गर्मी पर अक्सर ईगो की ठंडक हावी हो जाती है और हम नफा नुकसान देखने लग जाते है अब किसी रिश्ते में ऐसा हो रहा है तो उनको खो ही जाने दीजिए पर जिनकी आपको कद्र है बगैर शर्तों को उनको रोक लीजिए मना लीजिए क्यूंकि क्या पता कल हो न हो क्या पता कल वो लोग ही खो जाएँ जिनसे आप कह सकें तुस्सी न जाओ तो मौसम में ठण्ड का पूरा लुत्फ़ उठाइये पर मुझे भरोसा दिलाइये कि आप अपने रिश्तों में अपने पन के एहसास को गर्म रखेंगे जिससे जाड़े की वो सुहानी शाम आपको याद रहेगी.
आई नेक्स्ट में 08/11/13 को प्रकाशित 

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