Thursday, December 19, 2013

गरीब मास्टर की डायरी के कुछ पुराने पन्ने

 यादें भी अजीब होती हैं अब एल्बम का जमाना तो रहा नहीं पर पुराने स्टेटस देखना पुरानी यादों में जीना जैसा होता चार साल हुए इस वर्चुअल दुनिया को अपना हिस्सा बनाये हुए हम तो वहीं रहे पर कितने लोग आये और चले गए कमेन्ट ,लाईक और टैगिंग की सौगात देकर खोट मुझमें था या उनकी मजबूरियां कहना मुश्किल है सिलसिला जारी है पर मास्टर तो ठहरा मास्टर ज्ञान दे देता है लेना मुश्किल होता है| इस लेन देन के गुणा भाग में जिंदगी की रेखा गणित कब बीज गणित में तब्दील हो जाती है किसी को पता नहीं चलता |
(गरीब मास्टर की डायरी का पहला पन्ना ) 
"खड़िया" हाँ वो ही पहला शब्द था जिससे पहली बार जिंदगी ने कुछ सीखना शुरू किया था , "खड़िया" से शुरू हुआ सफर वर्चुअल दुनिया के की बोर्ड तक आ पहुंचा है पर वो खड़िया ही है जिसे मन आज तक नहीं भूला है जिंदगी की आपा धापी में बहुत कुछ भूला बहुत कुछ सीखा पर "खड़िया" का वो पहला पाठ जब आड़ी तिरछी रेखाओं से कुछ सीखने की शुरुवात की थी,आज भी मन को रोमांचित करती है |दुनिया कितनी भी बदल जाए "खड़िया" तुम मत बदलना क्योंकि जिंदगी की स्लेट तुम्हारे बिना खाली ही रहेगी |तुम सुन तो रही हो न......
(गरीब मास्टर की डायरी का दूसरा पन्ना )
ये आज तुम्हारे हैं पर हमेशा नहीं रहेंगे,गीता का ज्ञान है पर मुझे तो इनका होना पड़ता है बगैर किसी कारण भले ही ये मेरे कभी नहीं हो पाते,इस होने और न होने के बीच कट जाती है जिंदगी एक मास्टर की, और उनको पता भी नहीं पड़ता कि कभी कोई उनका हो जाता है |ये तो अपनी सुविधा से आपके होते हैं कोर्स खत्म रिश्ता खत्म हाँ आप भले ही यादों के सागर में कितने ही गोते लगाएं पर हासिल महज यादें ही होंगी वो तो चले जाते हैं आगे बढ़ने और मास्टर तो बेचारा मास्टर |
(गरीब मास्टर की डायरी का तीसरा पन्ना )
कैमरे की स्लो शटर स्पीड में आप गति को पकड़ सकते हैं पर जिंदगी की दौड में स्लो शटर स्पीड का कॉन्सेप्ट नहीं होता जिससे हम अपनी गलतियों की बारीकियों को जान पाते जो बीत जाता है वो बीत ही जाता है| सिर्फ जीतने की बातें करने से आप जीत नहीं सकते उसके लिए बहुत कुछ दांव पर लगाना पड़ता है |जब दांव भी आप अपनी मर्जी से लगाएंगे तो मुंह की खायेंगे, कुछ पाने के लिए प्राथमिकताएं तय करनी ही पड़ती हैं |
(प्राथमिकताओं की उधेड़ बुन में उलझे गरीब मास्टर की डायरी का चौथा पन्ना ) 
 हर साल चेहरे बदलते हैं किरदार नहीं क्लास का इतिहास बदलता है भूगोल नहीं, एक शिक्षक अपने विषय के अलावा कितना कुछ पढ़ रहा होता है ,क्लास में बनते बिगड़ते ग्रुप का अंकगणित कब समाजशास्त्र के बीजगणित में तब्दील हो जाता है और इससे शुरू हुआ राजनीति विज्ञान का सफर ना जाने कितनी लकीरें छोड़ जाता है ,उसका पता किसी को नहीं चलता|
(समाजशात्र की गणित में उलझे उस गरीब मास्टर की डायरी का पांचवां पन्ना, )
हर साल सेमेस्टर की परीक्षाओं के बीच कितना कुछ बदल जाता है दिसंबर के सेमेस्टर से जो संबंधों में गर्माहट आनी शुरू होती है वो गर्मी की परीक्षाओं तक पिघल चुकी होती है,वो अभी जाड़े को विदा भी नहीं कर पाया होता है कि गर्मी तपाने लगती है उसे तो यादों को सहेजने का मौका भी नहीं मिलता ,और उधर छात्रों को तो ज्ञान मिल चुका होता है पर मास्टर....... अपने ज्ञान के बोझ को ढोते हुए कब छात्रों के सामने सबसे बड़ा अज्ञानी साबित हो जाता इसकी गवाह छात्रों के बीच हुई कानाफूसी बनती हैं|
(जानते.. समझते... हुए अज्ञानी बनने का नाटक करते हुए भी ज्ञान बांटने का ढोंग करते गरीब मास्टर की डायरी का छठा पन्ना)
गर्मियों की छुट्टियों का आना और उनका चले जाना,परीक्षा हाल में छूटे नोट्स के साथ कहकहे लगाते छात्र मानो अपने संस्थान के साथ कपाल क्रिया (अंतिम संस्कार में की जाने वाली क्रिया जिससे मृतक अपने जन्म की यादों को भूल जाए )कर के जा रहे हों| कितने चेहरे घूम जाते हैं आँखों के सामने, अज्ञानी बनने की कोशिश करते सयाने ,सयाने बनने की कोशिश करते अज्ञानी|कौन कितना आगे जाएगा ये समय बताएगा | वे घर जायेंगे और धीरे धीरे सब कुछ भूल जायेंगे पर मास्टर को तो फिर आना है उन्हीं जगहों पर नयी कहानी लिखने| 
(छूटे हुए नोट्स और कहकहों के बीच क्या खोया क्या पाया, का हिसाब लगते गरीब मास्टर की डायरी का सातवां पन्ना ) 
 मैं ये करना चाहता हूँ, मैं वो करना चाहता ,हूँ पर करना क्या है? ये पता नहीं सच बोल देना कडुआ हो जाएगा और झूट बोलेंगे तो मीठी गोली देने की आदत है, क्योंकि जो कहा गया था वो हुआ नहीं |तुमने तो कह दिया ....पर मास्टर तो आज तक उन बातों को दिल से लगाए बैठा है कि गलती किसकी रही तुम जो कभी समझ नहीं पाए या उस मास्टर की जो समझा नहीं पाया |
(क्या सच है क्या झूठ उलझनों की सुलझन में उलझे गरीब मास्टर की डायरी की आठवां पन्ना )
एक मास्टर का जीवन बहुत छोटा होता है हर बैच के साथ वो जीता है और उसी के साथ खत्म होता है फिर नया बैच नया जीवन पर बच्चे बड़े नहीं होते वो तो हर बैच में बच्चे ही रहते हैं कुछ सेंटी ,कुछ चुप्पे, कुछ घुटे हुए ,कुछ तपे हुए ,कुछ निर्लिप्त पर मास्टर तो सबके लिए एक जैसा ही होता है तो सबक जो वो खुद नहीं सीख पाता है उसको सिखाने की कोशिश करता हुआ | "जाने वाले पे ना ऐतबार कर आने वाले का तू इंतज़ार कर, आज का ये दिन कल बन जाएगा कल पीछे मुड के न देख प्यारे आगे चल" 
(आने जाने के फेर में ऐतबार और इन्तजार के बीच में झूलते गरीब मास्टर की डायरी का नवां पन्ना )
मास्टर छात्रों की जिंदगी में अपनी मर्जी सी आता है पर जाने का फैसला उसके हाथ में नहीं,उनके हाथ में होता है, इस मामले में ये सभी बड़े निष्ठुर होते हैं |सर आप कितना अच्छा पढाते हैं, ये वाक्य हर बैच के साथ बदलता है पर नहीं बदलता तो उनका रवैया जिनको लगता है कि वो कितने समझदार हैं,  लेकिन मास्टर का आंकलन उसके दिए हुए ज्ञान से नहीं बल्कि छात्रों के बनाये गए बहानों को सच मानने से होता है |
(छात्रों के झूठ को जिंदगी का सच मान बैठे गरीब मास्टर की डायरी का दसवां पन्ना,जनता की बेहद मांग पर )
इसे मेरे ब्लॉग पर भी पढ़ सकते हैं

1 comment:

Bhawna Tewari said...

humare liye to aap hi sach hain sir... is gareeb master ke dil ki ameeri ko hum gareeb bachche hmesha yaad rkhege.
shukriya sir, un sabhi cheezon ke liye jo aapki wajah se humen haasil hui hain.

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