Tuesday, August 12, 2014

रिश्तों को न बनने दें इतिहास


मेरे एक खुशमिजाज मित्र थे.थे” इसलिए लिख रहा हूँ कि अब उनसे कभी कभार ही बात होती है वो भी मतलब की पर एक वक्त ऐसा भी गुजरा है कि जब  हम बेमतलब की ढेर सारी बातें किया करते थे. फिर हम दोनों के रिश्तों में समस्या आयी क्यूंकि उनकी प्रायरटी बदलने लग गयी पर उस दौर में जब बात करने के सिलसिले कम होने लग गए थे.जब भी उनसे बात होती वो  मुझसे कहते कि काश सब पहले जैसा हो जाए और मैं अक्सर ये सोचा करता था कि क्या सब पहले जैसा हो सकता है और जवाब मिलता नहीं क्यूंकि ज़िन्दगी की कहानी बदल चुकी थी जाहिर है वो मुझसे किनारा करना चाहते थे.जाहिर है मेरी उनसे फिर वो पहले जैसी दोस्ती नहीं हो पायी क्यूंकि जो बीत जाता है वो बीत ही जाता है.वैसे आपको मेरी कहानी में इंटरेस्ट नहीं आया होगा छोडिये इस किस्से को ये बताइए कि आपने ज़िन्दगी के किसी न किसी मोड़ पर कोई कहानी जरुर पढी या सुनी होगी. ज़िन्दगी के साथ साथ हमारे साथ चलने वाली कहानियों के नायक नायिका बदलते जाते हैं पर हर कहानी में एक चीज कॉमन रहती है.आप गेस करेंगे क्या?न आप गलत हैं वो कॉमननेस है एक शब्द की जिसका नाम है थाया थीयानि कहानी में जो कुछ भी होता है वो बीत चुका होता है पर उन कहानियों के माध्यम से हम इंसानी रिश्तों, संघर्षों,तकलीफों को समझ कर आने वाले कल को बेहतर करने की कोशिश करते हैं. छोडिये मैं भी क्या ले बैठा आपको पता है कि इस साल यानि 2014 में  ट्रैफिक लाईट सौ साल की हो गयी मतलब आज से सौ साल पहले ट्रैफिक के लिए इन लाल हरी और पीली बत्तियों का इस्तेमाल होना शुरू हुआ था.लीजिये एक और कहानी ,ट्रैफिक लाईट के इतिहास की कहानी वैसे सुबह सुबह मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि मैं आपके इतिहास ज्ञान को जांचू पर  जब सवाल  इतिहास का हो तो कहानियों का जिक्र आना स्वाभाविक है .बात कहानी से शुरू हुई तो बगैर रिश्ते के कोई कहानी नहीं बनती और हर इतिहास की अपनी एक  कहानी होती है,मतलब कहानी ,रिश्ते और इतिहास तीनों एक दूसरे से इंटरकनिक्टेड हैं.चलिए आज इतिहास की कहानी से ज़िन्दगी के रिश्तों को समझने की कोशिश करते हैं. इतिहास आप के हिसाब से दुनिया का सबसे बोरिंग सब्जेक्ट होगा पर असल में ऐसा है नहीं  इतिहास की बहुत इम्पोर्टेंस है पर हम तो इतिहास को रटने का सब्जेक्ट ही समझते रहे पर इतिहास को समझे बगैर जिन्दगी और रिश्तों की कहानी नहीं समझ सकते .क्या समझे ? समय अच्छा हो या बुरा बीतने को  तो बीत जाता है पर अपने बीतने के निशान जरुर छोड़ जाता है आपने कभी सोचा जो कुछ “था” या “थे” हो जाता है वो सब इतिहास की कहानी बन जाता है. बगैर इतिहास की नींव के हम भविष्य की ईमारत तो नहीं खड़ा कर सकते. बात इतिहास की हो रही थी अब देखिये न हर रिश्ते का एक इतिहास होता है पर जबतक रिश्ते सामान्य रहते हैं हम इस इतिहास पर ध्यान ही  नहीं देते कि ये रिश्ता कैसे बना,कैसे कोई पति ,दोस्त रिश्तेदार बन जाता है  पर जब रिश्ते बिगड़ते हैं तब हम सोचते हैं ऐसा क्यूँ हुआ.जो अपनी गलती से सबक सीख लेते हैं वो इतिहास बना देते हैं  और जो नहीं सीखते हैं वो दूसरों के इतिहास को रटते हैं.कभी बचपने में पढ़ा था की इतिहास अपने आप को दोहराता है पर उसका दुहराव हर बार अलग तरीके से होता है.कहानियां हम सब पढ़ते ,सुनते हैं कुछ सच्ची होती हैं कुछ काल्पनिक पर उनसे सीख क्या लेते हैं ये ज्यादा इम्पोर्टेंट है,रिश्ते बनाना इंसानी फितरत है पर रिश्ते निभाना सबको नहीं आता इसको सीखना पड़ता है.रिश्ते प्यार की नींव,अपनेपन के एहसास और समर्पण की ऊर्जा से चलते हैं. अगर इनमें कमी आती है तो रिश्तों का इतिहास बनते देर नहीं लगती यानि सब कुछ थाया थेहो जाता है तो रिश्तों की कहानी को इतिहास बनने से बचाइये .

 आई नेक्स्ट में 12/08/14 को प्रकाशित 


9 comments:

Unknown said...

Hum kabhi bhi kisi rishte ko nahi chate ki vo humse dur jae aur ithas ban jaye par aaj ke badlte halat jindagi se kuch rishte dur kar deta hai aur vo baad me itihas ban jate hai....

विकास सिंह said...

आपके पूरे कंटेंट के लिए मुहम्मद रफी का गाया हुआ फिल्म "राजकुमार" का यह गाना-
"इस रंग बदलती दुनिया में इंसान की नीयत ठीक नहीं"॥

beauty said...

sbse jyada jaruri hai rishto me bonding nd understanding... fr chahe wo koi bhi rishta ho achhi bonding hogi to wo kabhi b itihas nhi banega...anjali singh

Vaishali Sharma said...

Apne sach kaha , hmari jindgi riston ka jaal hai , jabhi bhi hmari jindgi se apna koi dur ho jata hai tabhi hme uski asli kimat pata chalti hai .. sath hi uske “tha” ya “thi” ho jane se hmpr ghra prabhav padta hai pr kbhi kbhar ye jaruri bhi nhi hota, pr hmari jindgi ka itihas isi tarh bnta chala jata hai..
itihaas ek aisa beej hai jo jindgi ke podhe ko janm deta hai . ..
Rishta koi bhi ho pati-patni , bhai-bhen, maa-baap ya fir guru-shishya hr rishtey me chunotiya aati hai kabhi in chunotiyo ko smahj aur hoshiyari se smbhal liya jata hai ya fir apne ahainkar aur krodh ke chaltey pairotale ye ristey masl diye jate hai ..
Ajki is bhag dodh me jab rishto k liye samay nhi hai logo ke pass, kahi na kahi jab ek mukam pa jatey hai log tab ahsas karte hai ki sb kuch pakr bhi sayad kuch kami si hai .. tab ahsas hota hai kuch rh gaya kuch kho diya ..
Isliye ye sach hai ki chamk dhamak ki is duniya me agr rishto ko hm prathmikta denge to itihas aur vrtman ke sath apna ane wala kal bhi sukhad aur sahej bna sakenge..
Isliye rishto ko itihas nhi unhe sada ke liye udharan bna dijiye..

बोलना ही होगा said...

आपने सही कहा सर । हम जरूर कोशिश करेंगे की रिश्ते कभी इतिहास ना बनने पाये। रिश्तो को निभाने की शिद्दत होनी चाहिए नही तो बहाने हजार हैं।

kusum shastri said...

Zindagi me kae aise mod ate hai jaha na hum galat hote h or na hi hamare rishtedar, galat hote hai toh halaat.. Kae bar chijo ko suljhane se acha mante hai waqt pe chodna or jab tak uska waqt ata h chije apne ap itihas ban jati hai...or phir na us baat ki ehmiyat rehti hai or na hi WO rishta utna khas reh jata h...isiliye mera manna hai ki kisi se bhi agar lambe rishte me rehna hai toh logon ki buri adaton ya baato ko ignore krna jaruri h...qki jaise hathon ki 5 ungliya barabar nii hoti waise hi insan or rishte ek se nii hote.
Kusum
MJMC 1st sem.

Rachna Rishi said...

“हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते, जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन, ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते, शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा, जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते”- गुलज़ार साहब की ये गज़ल आपके व्लॉग को पढ़ कर या द आ गई। रिशते वाकई में बहुत मेहनत से संजोये जाते है। उन्हें निरंतर दुरुस्त करना पड़ता है। और जब ये भाव दोनो तरफ से हो तभी हो पाता है। अक्सर ज़िन्दगी के सफर में हम एक शहर से दूसरे और एक नौकरी से दूसरी बदलते रहते है, ऐसे में कई बार हम अपने चहीतों से दूर चले जाते है। कुछ दिन तक तो सम्पर्क बना रहता है पर फिर धीरे धीरे बातचीत कम से, न के बराबर हो जाती है। आपने ब्लॉग में रिशतों को इतिहास बनने से बचाने की बात की है पर कई बार जब पुराना साथ छूटता है तभी इंसान नए रिशते बनाता है। जो बीत जाते है उनके साथ बिताए लम्हे हमेशा खास होते है पर एक वक्त के बाद उन्हे इतिहास बनने से कोई बचा नही सकता और ये रीत तो बहुत पुरानी है।

Unknown said...

ज़िन्दगी के हर मोड़ पर बहुत से लोगो से मुलाक़ात होती है जिनमे से कुछ हमारे ख़ास बन जाते हैं , लेकिन ये सिलसिला हमेशा नहीं रह पाता क्योंकि :-

वक़्त की आंच से पत्थर भी पिघल जाते हैं ,
कहकहे टूटे अश्को में बदल जाते हैं ।
कोई किसी को याद नहीं रखता ,
वक़्त के साथ खयालात बदल जाते हैं ।

Unknown said...

itihaas hamesha khud ko waisa hi dohraye ye jaroori nahi,kuch logo ke itihass janne me hme mazaa ati hai to wahi kuch logo ke itihaas janey bagair hi hm unke sath puri jindagi bitane ko taiyaar ho atey hai....itihaass m
humesha khud ko naye tareekw se naye daur me dohrata hai ar har kisiko ajmata hai..

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