Thursday, April 30, 2015

जीवन -मृत्यु


बचपन,जवानी ,और बुढ़ापा जीवन के ये तीन हिस्से माने गए हैं ,बचपन में बेफिक्री जवानी में करियर और बुढ़ापा मतलब जिन्दगी की शाम पर जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब
न बचपने जैसी बेफिक्री रहती है न जवानी में करियर जैसा कुछ  बनाने की चिंता और न ही अभी जिन्दगी की शाम हुई होती है यानि बुढ़ापा |शायद यही है अधेड़ावस्था जब जिन्दगी में एक ठहराव होता है पर यही उम्र का वो मुकाम है जब मौत सबसे ज्यादा डराती है |मैं भी इसी कश्क्मकश से गुजर रहा हूँ |
उम्र के इस  पड़ाव पर जो कभी हमारे बड़े थे धीरे धीरे सब जा रहे हैं और हम बड़े होते जा रहे हैं पर मुझे इतना बड़प्पन नहीं चाहिए कि हमारे ऊपर कोई हो ही न मौत किसे नहीं डराती पर जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है जब मौत के वाकये से आप रोज दो चार होने लगते हैं , मुझे अच्छी तरह याद है बचपन के दिन जब मैंने होश सम्हाला ही था कितने खुशनुमा थे बस थोड़ा बहुत इतना ही पता था कि कोई मर जाता है पर उसके बाद कैसा लगता है उसके अपनों को ,कितना खालीपन आता है जीवन में इस तरह के न तो कोई सवाल जेहन में आते थे और न ही कभी ये सोचा कि एक दिन हमको और हमसे  जुड़े लोगों को मर जाना है  हमेशा के लिए, मम्मी पापा का साथ दादी बाबा  का सानिध्य,लगता था जिन्दगी हमेशा ऐसी ही रहेगी|सब हमारे साथ रहेंगे और हम सोचते थे कि जल्दी से बड़े हो जाएँ सबके साथ कितना मजा आएगा पर बड़ा होने की कितनी बड़ी कीमत हम सबको चुकानी पड़ेगी इसका रत्ती भर अंदाज़ा नहीं था |दिन बीतते रहे और हम बड़े होते रहे |मौत से पहली बार वास्ता पड़ा 1989 में बाबा जी का देहांत हुआ हालांकि वह ज्यादातर वक्त हम लोगों के साथ ही रहा करते थे पर अपनी मौत के वक्त गाँव चले गये थे मैं और पिताजी उनको देखने गाँव गये थे और तय यह हुआ था की दो तीन दिन में किसी गाडी की व्यवस्था करके उन्हें लखनऊ बुला लिया जायेगा पर ऐसा हो न सका,उनकी मौत की खबर आयी,गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं | उस वक्त तुरंत तो  मुझे कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ा,घर के सभी लोग गाँव के लिए रवाना हो गए ,और घर पर मैं अपने भाइयों के साथ रह गया पर जैसे जैसे समय बीतता गया मुझ पर उदासी छाने लगी सोच में बस यही था कि अब मैं बाबा को कभी देख नहीं पाऊंगा और बरबस मैंने अकेले रोना शुरू कर दिया काफी देर रोने के बाद अपने आप चुप हो गया लेकिन पहली बार किसी के जाने के खालीपन को महसूस किया शायद यह मेरे बड़े होने की शुरुआत थी |
                    उस वक्त मैं आठवीं का विद्यार्थी था|जल्दी ही हम सब अपनी जिन्दगी में रम गए|मैं लखनऊ से उदयपुर पहुँच गया जिन्दगी अपनी गति से चलती रही तीन साल बाद फिर गर्मी की छुट्टियों में दादी की मौत देखी वह भी अपनी आँखों के सामने |मुझे अच्छी तरह से याद है वह गर्मियों की अलसाई दोपहर थी उस सुबह ही जब मैं सुबह की सैर के लिए निकल रहा था दादी अपने कमरे में आराम से सो रही थीं ,मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह वह अपने बिस्तर पर नहीं बर्फ की सिल्लियों पर लेटी होंगीं ,सुबह से उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी मैं पिता जी को फोन करने घर से एक किलोमीटर दूर पीसीओ की तरफ भागा छोटा भाई डॉक्टर की तलाश में निकला और जब हम घर लौटे तो सब कुछ बदल चुका था | जीवन की क्षण भंगुरता का सच में पहली बार एहसास हुआ दादी के साथ चुहल करना ,गाँव की कहानियां सुनना उनका कमरे उनका आख़िरी दिन कई महीनों तक जेहन में छाया रहा पर जिन्दगी बहुत क्रूर होती है |दादी जल्दी ही यादों का हिस्सा बन गयीं |हम भी आगे बढ़ चले |जिन्दगी खुल रही थी ,भविष्य ,करियर ,परिवार के कई पड़ाव पार करते हुए जिन्दगी को समझते हुए बीच के कुछ साल फिर ऐसे आये जब हम भूल गए कि मौत सबकी होनी है |जिन्दगी में अजब इत्तेफाक होते हैं नौकरी के सिलसिले में पहुंचे जौनपुर ,मैंने जिस मकान को अपना आशियाना बनाया वहां हाल ही में मकान मालिक की  मौत हुई थी और घर में सन्नाटा पसरा रहता था,कुछ दिन में वहां खुशियाँ लौटीं ,मेरे दोस्त शाम को उस घर में महफ़िल सजाने लगे और हंसी कहकहों का दौर शुरू हो गया जल्दी ही मकान मालिक के बेटे बेटी की शादी हुई पर मेरे और  बड़े होने की शुरुवात होनी थी,कुछ साल बाद उस घर की बहू की एक छोटी सी बीमारी के बाद मृत्यू हो गयी एक बार फिर जिन्दगी अपने क्रूर रूप में मेरे सामने थी मेरी आँखों के सामने जिस लडकी को हम नाचते गाते विदा करके लाये थे |आज उसकी अर्थी सजते हुए देख रहा था |इस हादसे के पांच महीने के बाद मैंने उस घर और जौनपुर को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया पर मैं आज भी सोचता हूँ उस घर में दो मौतों के बीच रहा जब मैं उस घर में रहने पहुंचा था तो मकान मालिक की मौत के पांच महीने गुजरे थे और जब मैं घर छोड़ रहा था तो घर की बहू की मृत्यु हुए पांच महीने बीते थे |
                          जौनपुर से लौटने के कुछ सालों बाद अपने सबसे अजीज दोस्त  में से एक पंकज को खोया,बाबा की मौत के बाद से किसी अपने के जाने से उपजा खालीपन लगातार बढ़ता रहा, बचपने के दिन बीते  हम जवान से अधेड़ हो गए और माता पिता जी बूढ़े जिन्दगी थिरने लग गयी अब नया ज्यादा कुछ नहीं जुड़ना है अब जो है उसी को सहेजना है पर वक्त तो कम है आस पास से अचानक मौत की ख़बरें मिलने बढ़ गईं हैं पड़ोस के शर्मा जी हों या रिश्तेदारी में दूर के चाचा- मामा जिनके साथ हम खेले कूदे बड़े हुई धीरे धीरे सब जा रहे हैं सच कहूँ तो उम्र के इस पड़ाव पर अब मौत ज्यादा डराती है

जनसत्ता में 30/04/15 को प्रकाशित 

22 comments:

बोलना ही होगा said...

जिंदगी के दो ही सच हैं जीवन और मौत .... एक सच का जीवंत वर्णन बेहतरीन लगा ... सोचने के लिए विवश भी करता है और प्रेरित भी करता है की ये जीवन मौत के आने से पहले किसी के लिए कुछ काम आ जाये ॥

Bhawna Tewari said...

baat to sahi hai sir.. maut hi shayad daraati hai

Unknown said...


मारना सच है , जीना झूठ । इस सत्य को जानते हुए भी ज़िन्दगी की आपाधापी में इंसान भूला बैठा है और सामान सौ बरस का , पल की खबर नहीं के आधार पर अपनी ज़िन्दगी के सपने बुनता रहता है । मौत से डर तो सभी को लगता है फिर भी जनम लिया है तो मृत्यु तो निश्चित है । अपनों को खोने के बाद ही इंसान को अहसास होता है की " दुनियां से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ , कैसे ढूंढे कोई उनको , नहीं कदमो के भी निशां "

Unknown said...


मारना सच है , जीना झूठ । इस सत्य को जानते हुए भी ज़िन्दगी की आपाधापी में इंसान भूला बैठा है और सामान सौ बरस का , पल की खबर नहीं के आधार पर अपनी ज़िन्दगी के सपने बुनता रहता है । मौत से डर तो सभी को लगता है फिर भी जनम लिया है तो मृत्यु तो निश्चित है । अपनों को खोने के बाद ही इंसान को अहसास होता है की " दुनियां से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ , कैसे ढूंढे कोई उनको , नहीं कदमो के भी निशां "

Unknown said...

Sir aapne zindagi ki hakikat se ru-ba-ru krwa diya......

Unknown said...

Jeevan milna bhagya ki baat hai,Mrityu ana samay ki baat hai,par mrityu ke baad bhi logo ke dilon meh jivit rehna yeh "karmo" ki baat h.

Unknown said...

Sir aapne zindagi ki hakikat se ru-ba-ru krwa diya. ...

Unknown said...

Death is inevitable; we all know & accept that but it doesn’t make dealing with the loss of a loved one any easier. We move on and get busy with our lives but even after years have passed if we spare a minute or two to look behind , the emptiness is still there. It doesn’t fade away with time like we think it has. The sense of loss is still the same. More than death itself, it’s the thought of what we leave behind- family, friends & loved ones that scares us the most.

anjali said...

apka ye artical pdne k bad mein thore der shant baithe the aur yhi soch re the ki ha chote mein toh humko bilkul bhi andaaza nhi hota tha,ki jab hm bde honge toh ye insan hame chod k chala jayega,phir thore bde hua toh btaya gya ki vo dekho star vhi tumare chacha hai lkin tbh bhi kbhi kise k jane ja dard mehsus nhi hua tha kyunki chote the phir kuch salo bad jab bde hua toh baba ki death hui tbh mehsus hua ki kise k jaane ka dard kya hota hai,lkin mujhe maut sa dar nhi lgta kyunki mujhe pta hai ki aye hai toh jna bhi hai..

Unknown said...

Maut se Dar utna ni lagta jinta apno ko khone se lagta hai....Maut sabki honi hai ye nischit hai lekin Maut agar ka Dar ho logo to jeena ki adhi umeed to aise hi khatam ho jati hai

Unknown said...

maut ham sabhi ke jeevan ki sbse badi sacchayi hai ya yu keh le ki akhri manzil hai...apne kisi kareebi ki maut ke baad jo ehsaas hme hota hai ya yu kahe ki jis tarah se hm sehem jatey hai usi darr ko maut kehte hai..aj bhi wo din yaad hai mjhe jab apne papa ki maut par achanak se laga mano jaise puri duniya ruk si gayi hai............kanoo me ek ajeeb sasanatta goonj rha tha mano ki jaise wo kbhi khatm hi nahi hoga...maut k wo manzar dkhne ke baad maine ajeeb badlaw mehsoos kiya...na jane wo hr mazakiya baat pr ane wali hasi kaha gum ho gyi ar jid krne ki wo sari wajaha ab bewajah si lagne lgi thi...maut sch me hme daraaati hai sehmati hai ar sath hi sath ek himmat ar josh bhar deti hai humare andar duniya ko naye tareeke se dkhne ar samajhne ka...maut ek aisi sachayi hai jisey sb jhuthlatey hai lekin wahi ek aisi asliyat hai jo na kabhi badli ar na kabhi badlegi.......

Anonymous said...

maut ham sabhi ke jeevan ki sbse badi sacchayi hai ya yu keh le ki akhri manzil hai...apne kisi kareebi ki maut ke baad jo ehsaas hme hota hai ya yu kahe ki jis tarah se hm sehem jatey hai usi darr ko maut kehte hai..aj bhi wo din yaad hai mjhe jab apne papa ki maut par achanak se laga mano jaise puri duniya ruk si gayi hai............kanoo me ek ajeeb sasanatta goonj rha tha mano ki jaise wo kbhi khatm hi nahi hoga...maut k wo manzar dkhne ke baad maine ajeeb badlaw mehsoos kiya...na jane wo hr mazakiya baat pr ane wali hasi kaha gum ho gyi ar jid krne ki wo sari wajaha ab bewajah si lagne lgi thi...maut sch me hme daraaati hai sehmati hai ar sath hi sath ek himmat ar josh bhar deti hai humare andar duniya ko naye tareeke se dkhne ar samajhne ka...maut ek aisi sachayi hai jisey sb jhuthlatey hai lekin wahi ek aisi asliyat hai jo na kabhi badli ar na kabhi badlegi.......

Unknown said...

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Anonymous said...

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Unknown said...

यह सच हे जो आया हे उसे जाना ही होता हैं लेकिन फिर भी हम अपनी जिंदगी मे इतने व्यस्त होगये हे की ना किसी के जाने से यह जिंदगी रूकती हे और ना थमती हैं as said by someone "life must go on"

Unknown said...

sb log jeevan k bare m sochte hai maut k bare m koi nhi sochta lekin zindagi k oosul h aaein h to jana bhi padega...

Garima bhatt said...

क्या बात खूब कहा आपने पर मौत तो ज़िन्दगी की अटल सच्चाई है। किसी की ज़िन्दगी को ये वक़्त पर ले जाती है और किसी को बेवक़्त। मौत तो वैसे भी मंडरा रही है पर फिर भी यह दुनिया भाग रही है। यही तो है ज़िन्दगी और मौत से जुड़े कड़वे सच।

Unknown said...

Ye such hi ki aagar iss duniya me koi aaya hi to jayaga zarur ... Or insan duniya me aa k feelings ...emotions s ghir jata hi But jiss trh kisi bache k janam hota hi to bahut khushi hoti or kisi ki death hone k baad bahut dukh hota hi leki jingadi whi ruk nhi jati wo chalti rehti hi issiliye khaa jata hi ki jb tk jinda hi jee loo wrna ek din to sbko marna hi...

Anonymous said...

Zindagi or maut ek hi sikke ke do pehlu hain.
Agar jeevan hai to maut bhi hai phir maut se darna kaisa. Maut to sabko ati hai par jinhe marne ke bad bhi yad kiya jae vo mar kar bhi "amar" ho jate hain. Iss zindagi ki yahi reet hai yahi sachhai hai ise badla nhi ja sakta. Bachpan khel kud me nikal jata hai or bade hone pe carrier ki chinta satane lagti hai or is udhedbun me ham yah bhul jate hai ki chahe jitna tention le le chahe jitna busy hole par ek din ham sabko maut ke raste se hokar jana hai. Ameer ho ya garib, vo zindagi kaise bhi jiyen par ek din marna sabhi ko hai. Ham apni zindagi me apne badon se itne ghulmil jatehain ki unki maut ki khabar hame ek sadme me le jati hai jabki hame pata hai ki maut sabko ani hi hai ek din or iska koi upaay nahi ye to zindagi ka niyam hai. Islie zindagi ko khoobsurti se jeena chahiye.

PeripateticSoul said...

True SIR the irony u explained in this "jeevan mrityu" the life cycle of an individual sees different phases sees in his/ her life, everyone has to accept this fact at some age nothing last forever in this life which is one of the greatest drawback of growing up. when we are kid we used to think all the people and the materialistic things are going to stay forever with us. Life is going to stay stable and sober but as we grow we tend to see lots of change regarding things and people. We meet many people through different-different phases and accept this fact we are forever bonded with them later the memories started fading away, people started changing away and later we realize this fact "Nothing is permanent in this life." so we accept this fact and move on with the flow of time whether we like it or not we have to accept harsh factual based things, the "worst part of growing up is, your parents grow old".

सूरज मीडिया said...

Aadmi Sab Mohre Huye Hain
Har taraf pehre huye hain,
Jakham bahut gehre huye hain.
Toot rahi hai veh sakh hi,
Jaspe hum thehre huye hain.
.
Jo dost the kabhi jigree,
Anjaan wo chehre huye hain.
Khel rha hai khel har koi,
Aadmi sab mohre huye hain.
मौत एक कड़वी सच्चाई है,जिसे जानते हुए भी कोई नहीं जानना चाहता,तभी तो दुनिया आगे बढ़ रही है। सब अपने काम में व्यस्त है। जिंदगी और मौत एक सिक्के के दो पहलु है। जो आया है ,उसे जाना ही है। इस को हमे स्वीकारना होगा।

आलोक रंजन said...

बहुत सुन्दर लेख

पसंद आया हो तो